लखनऊ-: इन दिनों सडक पर खडे, खडे लगता है, बबुआ बेचारा थक गया है। थकान से चेहरे की चमक भी उड गयी है। एक दो दिन नहीं ढाई महीना हो रहे हैं गद्दी से उतरे। बहुत हो गया। इसीलिये शायद अब नही रहा सहा जाता। अकुलाय उठा है मन। यही वजह हो सकती है कि बबुआ अखिलेश यादव ने, इशारों में ही सही, यह जता दिया है कि वह बुआ मायावती से हाथ मिलाने के लिये आतुर हैं। उनके इस बयान से इसे मजबूती मिली है कि लालू यादव द्वारा भाजपा के खिलाफ विपक्षी दनों का महागठबंधन बनाने के सिलसिले में 27 अगस्त को पटना में आयोजित सम्मेलन में इसकी घोषणा की जा सकती है।
वैसे, राहुल गांधी उनकी दस मंशा से सहमत हो सकेंगे, इसकी संभावना तो क्षीण है। दूसरी ओर, बुआ जी ने अपने बबुआ के इस प्रस्ताव पर अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। याद कीजिये कि भयंकर बाढ के समय साप, नेवला और चूहे जैसे जीवजंतु अपनी जान बचाने के लिये परस्पर शुत्रभाव छोडकर किसी पेड की शाखा में अगलबगल ही पडे रहते हैं। भूल जाते हैं पररस्पर हिंसक भाव। उस समय इन सबको अपनी जिंदगी बचाने की चिंता रहती है। लेकिन, बाढ उतर जाने के बाद ये सभी अपनी असििलयत में आ जाते हैं। क्या बुआ और बबुआ कां यह सच नहीं मालूम है? बुआ को तो हैं, लेकिन बबुआ बेचारा।
इस मौके पर एक बात यद आ रही है। बात भी उस समय की जब उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा की गठबंधन की सरकार थी। आपसी समझौते के मुताबिक उस समय मुलायम सिंह यादव मुख्य मंत्री के पद पर विराजमान थे। बसपा सुप्रीमो कांशीराम और मायावती मीराबाई मार्ग स्थित राज्य अतिथि गृह के कक्ष सख्या एक में रुके हुए थे। दोपहर का समय था। उस समय उनके कमरे में तीन चार लोग और भी थे। उनमें एक मैं भी था। कंशीराम नीले चारखाने की लुंगी और सफेद बनियाइन पहने हुए पलंग पर लेटे थे। अचानक मायावती ने कांशीराम के कान में फुसफुसाकर कुछ कहा। क्या कहा? यह तो मैं नहीं सुन सका। लेकिन, इसके बाद ही कांशीराम का चेहरा अचानक सुर्ख हो गया। उन्होंने गरजने जैसे अंदाज में किसी से कहा कि बुलाओं मुलायम सिंह यादव को। अभी और इसी वक्त। इस पर तुरंत मुलायम सिंह यादव को फोन कर आने के लिये कहा गया। जवाबी फोन आया कि इस समय वह अधिकारियों के साथ एक बहुत जरूरी बैठक कर रहे हैं। इसके बाद ही आ सकेंगे। इसे सुनकर आगबबूला से हो उठे कांशीराम गरज उठे-बुलाओं उसे अभी और इसी वक्त। उस वक्त मोबाइल का चलन नहीं थी। बीबीएक्स के जरिये उन्हें सूचना दी गयी। उधर से जवाब आया कि मुख्य मंत्री जी अधिकारियों के साथ एक जरूरी बैठक कर रहे हैं। उसके बाद ही आयेंगे।
यह सुनते ही दहाड उठे कांशीराम। बोले उससे कहो कि फौरन आये। इसके बमुश्किल दस मिनट के अंदर ही उत्तर प्रदेश के तम्कालीन मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव हाजिर हो गये और कांशीराम की पंलग की बायीं और चुपचाप खडे हो गये। उस समय कांशीराम ने सामान्य शिष्टाचारवश भी उठकर बैठने तक जरूरत नहीं समझी। कमरे से बाहर आते समय मैंने देखा कि कांशीराम ने सामंती अंदाज में मुलायम सिंह यादव से कुछ कहना शुरू किया था।
इस वाकये का उल् लेख सिर्फ इसलिये कि पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव यह बात अच्छी तरह समझ लें कि बसपा सुप्रीमों मायावती से सियासी हाथ मिलाने के बाद यदि उनके साथ ऐसा कुछ हो जाय, तो क्या वह अपना आत्मसम्मान सुरक्षित रख सकेंगे? यदि हा, तो कोई बात नहीं। दूसरी ओर, सुप्रीमो मायावती ज्यादा व्यावहारिक जान पड रही हैर्। इसलिये भी कि वह क्या कोई दूसरा भी जिसके साथ स्टेट गंेस्ट हाउस जैसा बर्बर कांड हो चुका हो, वह उसे कम से कम इस जिंदगी में तो उसे नहीं भुला सकता है। संयाग से यह संवाददाता उस जघन्यकांड का भी चश्मदीद गवाह रहा है। शायद, इसीलिये अपने बबुआ की अति आतुरता को समझते हुए भी बुआजी ने अभी तक अपने पत्ते नही खोले हैं।