गोरखपुर से उपेंद्र शुक्ल-: पिछले 36 घंटे से अधिक समय से मैं गोरखपुर शहर में हूँ। यह शहर गुरू गोरखनाथ की तपोभूमि रहने का साक्षी बन गया है। पिछले कई दशकों से उन्हीं की शिष्य परंपरा में ण्क मजबूत कडी योगी आदित्य नाथ की कर्मभूमि हो गयी है। बीते 25 सालों से यहां की धरती योगी को लोकसभा के लिये भेजती रही है। नियतिचक्र ने अब इनके सिर पर सूबे के मुख्य मंत्री का ताज रख दिया है।
योगी आदित्य नाथ दिल से क्या है और बाहर से क्या है? मुसलमान इनसे खौफजदा क्यों रहते हैं? इनके प्रति उनका असल नजरिया क्या है? इन पर चस्पा किया गया ‘फायरब्रांड‘ होने का लेबिल कितना सही है और कितना गलत है? इनसे जुडी इसी तरह की और भी तमाम बातों का खुलासा करने की ही गरज से इस संवाददाता ने इस शहर की मुस्लिम बहुल बस्तियों और कई मस्जिदों का खाक छानकर लोगों का मन टटोलने की कोशिश की है। लेकिन, बडी मशक्कत के बावजूद, इस सवाल का माकूल जवाब नहीं मिल सका है कि आखिर इस योगी से इस समुदाय के अधिकांश लोग इतने खौफजदा क्यों हैं? इसी के चलते इस शख्स के उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री हो जाने के बाद एक ओर जहां गोरखपुर में लोग बल्लियों उछल पडे। मिठाइयां बांटी गयीं और खूब पटाखे भी छुडाये गये। पूरे शहर हजारों विशाल होर्डिंग्स और बैनरों से पाट गया। लेकिन, इनमें से एक भी होर्डिंग अथवा बैनर मुस्लिम समुदाय की ओर से लगाया गया नहीं दिखाई पडा। सभी पर हिुंदुओं के ही नाम रहे हैं। इस सवाल का माकूल जवाब गोरखनाथ मंदिर के जिम्मेदार सूत्र भी नहीं दे सके हैं।
लेकिन, इसका अर्थ किसी भी स्थिति में यह नहीं लगाया जाना चाहिये कि योगी सांप्रदायिक दुर्भावना से पीडित हैं। कोई भी सच्चा योगी ऐसा हो ही नहीं सकता। हिंदू धर्मशास्त्रों में कहीं भी इसकी इजाजत ही नहीं दी गयी है। यही वजह है कि भारत भूमि में अत्यंत कठोर साधना के बाद ईश्वर की अनुभूति करने वाले हिंदू संतों ने अंततः लोककल्याण के लिये ही अपना शेष जीवन अर्पित कर दिया था। आदित्य नाथ भी सच्चे योगी हैं। अंतःकरण से निर्मल और निश्छल इस योगी को राजनीति क कुचक्र और स्वार्थप्रेरित दांवपेंच भी अभी तक लक्ष्यभ्रष्ट नहीं कर सके हैं। इनलिये इनकीआदित्य की दिशा और दशा भी राजनेताओं से एकदम अलग है। ऐसा न होता, तो गुरु गोरखनाथ के मंदिर में दलितों के प्रवेश और पूजार्चन पर रोक लग गयी होती। मुसलमान भी इस मंदिर में बेरोकटोक और बेखौफ होकर आते जाते हैं। भले ही वहां जाकर वह इबादत न करते हों। इसीलिये इस परिसर में हिंदू और मुसलमान के बीच लकीर नहीं खींची जा सकी है।
इस शहर के मुस्लिमबहुल मोहल्ले हुमायूपुर उत्तरी में रहने वाले जाकिर अली वारसी इसी मंदिर के कर्मचारी हैं। योगी ने मंदिर की संपत्तियों का पूरा लेख ाजोखा इन्हीं के हाथों में सौंप दिया है। मंदिर में काम करते देखकर इनके चेहरे पर शिकन की क्षीण रेखा भी नहीं दिखी। यह पूरी तरह सहज लगे। इनका कहना है कि इनकी बिरादरी के ही एक दर्जन से भी अधिक लोग इस मंदिर में काम करते हैं। यहां का माहौल इतना खुशनुमा और दिलकश है कि इनके लिये मस्जिद और मंदिर में कोई फर्क ही नहीं रह गया है। इस मंदिर में बिना किसी भेदभाव के हर किसी को आने और पूजा करने की खुली इजाजत है। लेकिन, इसके बावजूद, इसी कौम के अधिकांश लोग योगी को ‘फायरब्रांड‘ कहते हैं। वे ऐसा समझते भी हैं। इसीलिये इस शहर में भी वे योगी से खौफजदा से लगते हैं। शायद, इसीलिये इस कौम के एक भी शख्स ने यहां अपनी तरफ से होर्डिंग्स और बैनर लगाने की पहल नहीं की है। इसीलिये योगी के मुख्य मंत्री होने की खुशी में इस समुदाय के लोगों के यहां पटाखा छुडाने अथवा मिठाई बांटने की खबर ‘प्लांटेड‘ सी जान पडती है।
बहरहाल, मोदी के फायरब्रांड होने जैसे सवाल ने जाकिर अली वारिस को आगबबूला जैसा कर दिया। हांलाकि,उन्होंने इस संवाददाता से कोई बदसलूकी तो नहीं की। लेकिन, अंगारबरसाती जैसी निगाहों से देखते हुए वह गरज तो पडे ही। बोले ‘देखिये जनाब! योगी जी जैसे इंसान पर इतना संगीन इल्जाम लगाना खुदा को भी अच्छा नहीं लगेगा। इस शख्स के लिये इंसानियत ही सबसे बडा धर्म है। यह पक्के राष्ट्रभक्त हैं। इसलिये इनकी देशभक्ति को सांप्रदायिकता से जोडना इनके साथ सरासर ज्यादिती है। इनके यहां रहने पर हर रोज जनता से रूबरू होकर इनके कार्यक्रम का मैं चश्मदीद गवाह हूँ। आम आदमी की दिक्कतों को दूर करने वाले इस कार्यक्रम में हिंदू और मुसलमान जैसा कोई भी फर्क नहीं किया जाता है। उनके सामने आने वाले हर फरियादी पहले इंसान है, बाद में कुछ और। उसकी दिक्कतों को बडी तसल्ली से सुनकर यह उसे दूर करने की दिली कोशिश करते हैं। इसमें जरा भी दिखावा नहीं। चाहे वह किसी भी कौम अथवा बिरादरी का क्यों न हो। लेकिन, इतना जरूर है, कि यहां जो आता है, उसी को इसका फायदा मिल पाता है। यदि कोई मुसलमान अपनी बेटी के निकाह के लिये पैसे की इमदाद चाहता है, तो योगी ने उसे भी कभी खाली हाथ नहीं लौटाया। उस पर यदि किसी भी तरह का जुल्म ढाया जाता है, तो योगी नंगे पैर ही उसकी मदद के लिये दौड पडते है। इसीलिये मुसलमान उनके सामने उन्हें अपना सच्चा हमदर्द और मददगार समझकर ही यहां आता है।
इसके बावजूद, यह सवाल अनुत्तरित रह गया कि इस कौम के अधिकांश लोग इस योगी से इतने खौफजदा क्यों रहते हैं? इस सवाल का सटीक जवाब इस शहर की रसूलपुर, जामियानजर, दशहरीबाग, जमुनीयाबाग और चटकहुसैन जैसी अनेक मुस्लिम बहुल बस्तियों और कई मस्जिदों की खाक छानने के बाद भी नहीं मिल सका। मंदिर में योगी के मीडिया का काम देखने वाले जिम्मेदार लोग भी इस रहस्य पर से पर्दा नहीं उठा सके हैं कि आम मुसलमानों के नजरिये में योगी सांप्रदायिक कैसे हो गये हैं? सफेद कुर्ता पायजामें में अपने गले के भगवा अंगौछा डालकर मंदिर में बडी मस्ती से घूम रहे इरफान अली भी इस सवाल का माकूल जवाब नहीं दे सके। यह खुद को 2004 से योगी से जुडा होने का दावा करते हैं। यह भी कहते हैं कि बडी भारी तादाद में इस शहर के मुसलमान योगी से जुड गये हैं। इनके जुडने का सिलसिला लगातार बढता ही जा रहा है। इनकी बात को बीच में ही काटते हुए कृष्णानगर कालोनी में रहने वाले राम सिंह यादव बोल पडते हैं कि योगी जी के लिये इंसानियत ही सबसे बडा धर्म है। इसीलिये यहां आने वाले हर किसी व्यक्ति की बात सुनकर वह उसकी मदद करते हैं। ऐसे ही और भी न जाने क्या क्या वह कह गये। लेकिन, ‘इंडिया संवाद‘ अपने मतलब की बात इनसे भी नहीं निकाल सका।
इस अत्यंत ऊहापोह वाली स्थिति में इस सवाल की तह में जाने पर इस संवाददाता को लगता है कि इसकी जड में आजादी के बाद से ही देश के राजनेताओं का संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ रहा है। इसी के चलते भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज सोनिया गांधी तक के कालखंड में मुसलमानों के दिलोदिमाग में जनसंघ और भाजपा के प्रति नफरत और खौफ की भावना का जहर भरने की कोशिशें की जाती रही हैं। जवाहर लाल नेहरू अत्यंत दूरदर्शी राजनेता रहे हैं। लगता है कि देश का प्रधान मंत्री हो जाने के बाद वह हिंदू बहुसंख्यक भारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उदय और विस्तार को कांग्रेस के लिये महाकाल जैसा समझ बैठे थे। ऐसे में उन्हें यह भी लगा होगा कि कालांतर में इस देश में संघ जैसे संगठन के जडें जमा लेने के बाद कांग्रेस, खासतौर से उनके वंशजों का राजनीतिक भविष्य खतरे में पड जायेगा। इसीलिये बडी सुनियोजित साजिश के तहत गांधी हत्याकांड के बाद संघ को नेस्तनाबूत करने की हर पुरजोर कोशिशें की गयी। संघ के शीर्ष पुरुष रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी को काश्मीर में अपनी बलि देनी पड गयी। इसी क्रम में मोहम्मद अली जिन्ना जैसी दूसरी सियासी कट्टरपंथी ताकतों सहित तमाम मुस्लिम धर्मगुरु, उलेमाओं और मौलिवियों ने भी इन दोनों ही संप्रदायों के बीच खडी कर दी गयी दीवार को तोडने की बजाय उसे मजबूत करते रहे हैं। हांलाकि, यह बाते सभी मुस्लिम धर्मगुरुओं और नेताओं पर लागू नहीं की जा सकती है।
यही वजह है कि सूबे का मुख्य मंत्री बन जाने के बाद योगी आदित्य नाथ की जिम्मेदारी अब दोहरी हो गयी है। उन्हें सबके विकास और सबको साथ ले चलने के अपने संकल्प को साकार करने की सार्थक और ईमानदार कोशिशों के साथ ही मुस्लिम समुदाय के दिलोदिमाग में तह दर तह जमा दिये गये इस जहर को निकालना ही होगा। यह काम बेहद कठिन जरूर है, लेकिन, असाध्य और असंभव नहीं। बिना इसके प्रधान मंत्री मोदी और खुद उनका भी नया भारत निर्माण करने का संकल्प पूरा नहीं हो सकेगा। यह अटल सत्य है।
UPकी खबरों के लिए संपर्क करे -:9889991111