नई दिल्ली: राजस्थान जिले के अजमेर में रहने वाले सोनवीर सिंह को एक समय 900 रुपए की सैलेरी मिलती थी। किस्मत देखिए आज सोनवीर सिंह, नैरोबी में 100 करोड़ की कंपनी के मालिक हैं। आज प्रिंट पैकेजिंग में सोनवीर के काम का दबदबा केन्या ही नहीं, बल्कि आसपास के कई देशों सहित चीन तक फैला है। अफ्रीकी देश तंजानिया, यूगांडा, रवांडा सहित अन्य देशों में करोड़ों का बिजनेस है। सोनवीर केन्या के पहले ऐसे बिजनेस टाइकून हैं, जिन्होंने अफ्रीकी देशों में अल्ट्रा वॉयलट (यूवी) इंक और फ्लैक्सो प्रिंटिंग की टेक्निक को इंट्रोड्यूज किया। पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी तंजानिया पहुंचे थे, वहां उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की थी कि इंडियंस यहां बिजनेस कर अपना लोहा मनवा रहे हैं।
सोनवीर के संघर्ष की कहानी ...
18 साल पहले उन्होंने प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी में डिप्लोमा इंजीनियरिंग किया था। कॉलेज से पासआउट होते ही गुड़गांव में डोमिनेंट ऑफसेट मैन्यूफैक्चरिंग लिमिटेड में जॉब मिली। शुरुआती दौर में कंपनी ने ट्रेनिंग पर रखा। तब 900 रुपए मासिक मिलते थे। फिर 1500 रुपए की सैलेरी पर यहीं दो साल काम किया। इसी दौरान दिल्ली में एशियन प्रिंटिंग मशीनरीज से ऑफर मिला, कंपनी ने मेंटिनेंस इंजीनियर की जिम्मेदारी दी। कुछ समय काम करने के बाद नोएडा के इंटरनेशनल प्रिंटोपेक्ट लिमिटेड में प्रिंटिंग इंजीनियर के तौर पर काम किया। फिर फ्लैक्सो प्रिंटिंग में प्रोडक्शन सुपरवाइजर और आठ महीने बाद यहीं हैड ऑफ द डिपार्टमेंट का जिम्मा मिला।
जिंदगी का यू-टर्न
जब उन्हें हैड ऑफ द डिपार्टमेंट का जिम्मा मिला। तो ये उनके लिए जिंदगी का यू-टर्न था। अफ्रीकी देश नैरोबी की एक कंपनी से ऑफर मिला। पत्नी के साथ केन्या के नैरोबी शहर पहुंचे। तीन माह बाद ही जॉब चली गई, मालूम चला कि नेरोबियंस ने यूज एंड थ्रो किया, उन्हें सिर्फ तकनीक सीखनी थी।
जब बदल गई किस्मत
जब जॉब नहीं मिली तो उन्होंने भारत आने का प्लान बनाया। टिकट के पैसे नहीं थे तो उनके अश्विनी नाम के दोस्त ने उनकी मदद की। जिस दिन निकलना था। एक दिन पहले ही एल्गोन केन्या लिमिटेड से ऑफर मिला। डायरेक्टर विमल कंठारिया उसकी काबिलियत को पहचानते थे। इस कंपनी में 1.50 लाख रुपए प्रतिमाह सैलरी थी। कुछ दिन ठीक चला, लेकिन वर्क परमिट की अवधि समाप्त हो गई।
कर दी गई शिकायत
जैसे ही उनके वर्क परमिट की अवधि समाप्त हुई तो किसी प्रतिद्वंद्वी ने केन्या इमिग्रेशन से शिकायत कर दी। कंपनी ने उन्हें तुरंत नोकरी से निकाल दिया। कई लोगों से मदद मांगी लेकिन काम नहीं बना। यह दूसरी बार था जब उन्हें अपनी नौकरी गवानी पड़ी थी। उन्हें भारत भेजने की तैयारी चल ही रही थी कि उनकी मुलाकात जयपुर के बजरंग राठौड़ से हो गई जिनकी इमिग्रेशन ऑफिस में पहचान थी। राठौड़ की मदद से सोनवीर को छह महीने का और वर्क परमिट बनवाने के लिए मिल गया।
50 फीसदी सैलेरी में काम करना पड़ा
सोनवीर अपनी पुरानी कंपनी में गए लेकिन उन्हें वहां नौकरी नहीं मिली क्योंकि उनकी जगह किसी और को रख लिया गया था। उनका वर्क परमिट इसी कंपनी के लिए बना था, इसमें कंपनी नहीं बदली जा सकती थी। मजबूरी में जहां 1.50 लाख सैलेरी थी। वहीं 50 फीसदी सैलेरी में काम करना पड़ा। यहाँ एक साल काम करने के बाद सोनवीर ने एक कोरोगेशन (कर्टन मैन्यूफैक्चरिंग) कंपनी ज्वाइन कर ली, एल्गोन केन्या लिमिटेड कंपनी भी नुकसान में आकर बिक गई। जिसका मतलब ये था कि सोनवीर की नौकरी फिर चली गई।
जब ठानी खुद का काम करने की
नोकरी चले जाने से सोनवीर परेशान हो चुके थे अब उन्होंने खुद का काम शुरू करने की ठानी और 2009 में श्री कृष्ण ओवरसीज लिमिटेड के नाम से कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाया। उनकी पत्नी निर्मला ने उनका पूरा साथ दिया उन्होंने भी मसाले-चावल इंपोर्ट का काम शुरू किया और कुछ ही दिनों के बादरेस्त्रां व डिपार्टमेंटल स्टोर भी चलाया। हर काम में फायदा कम, नुकसान ज्यादा हुआ, लेकिन हार नहीं मानी। उनकी जिद थी केन्या से नहीं जाएंगे, यहीं पैर जमाने हैं...जमा लिए ।
4 कर्मचारियों के साथ किया काम शुरू
जिस फॉर्मर एम्प्लाय ने केन्या इमिग्रेशन में सोनवीर की शिकायत की थी, उसने केन्या छोड़ने की बात की तो सोनवीर ने ठान लिया कि अब यहीं रहकर कारोबार करना है। उन्होंने एक पैकेजिंग मशीन खरीदी और 4 कर्मचारियों के साथ काम शुरू कर दिया। रोज 16-16 घंटे तक काम करने में लग गए। इसी दौरान मूमासा में कोरोगेशन फैक्ट्री बिकने का पता चला। टीम के साथ देखने पहुंचे, डायरेक्टर से बात हुई। उस कंपनी के डायरेक्टर ने सभी मशीनें क्रेडिट पर दे दीं। काम शुरू कर दिया और कर्मचारियों की संख्या हो गई 25। क्रेडिट पर कच्चा माल भी मिलना शुरू हो गया। फिर पहले 30 लाख का टर्नओवर, फिर 80 लाख से सीधे 14 करोड़ पर पहुंच गया। आसपास के देशों से भी काम मिलने लगा तो टर्नओवर बढ़कर 50 करोड़ पहुंच गया। आज 100 करोड़ की कंपनी में 110 लोग सेवाएं दे रहे हैं।