नई दिल्लीः हिंदू होने के बाद भी जयललिता के शव का दाह-संस्कार करने की जगह उन्हें दफनाकर समाधि क्यों दी गई। इसका कारण पार्टी के करीबियों ने बताया है। कहा गया है कि अम्मा को समाधि देकर उसी परंपरा का पालन किया गया है, जिस परंपरा के तहत निधन होने पर अब तक सभी द्रविणियन नेताओं को समाधि दी जाती रही है। जयललिता को इच्छा के मुताबिक उनके राजनीति क गुरु व तमिलनाडु के पूर्व सीएम एमजी रामचंद्रन के बगल समाधि दी गई है।
समाधि से मोक्ष मिलने की है मलयालियों में मान्यता
एमजीआर मलयाली थे। उनकी प्रतीकात्मक राजनीति को जयललिता आगे बढ़ाने का काम कर रहीं थीं। जितने भी द्रविणियन नेता हैं, उन्हें समाधि देने की अब तक परंपरा रही है। मलयालियों में मान्यता है कि दफनाने से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि जयललिता का मैरीन बीच पर क्रिमिनेशन की जगह उन्हें दफनाने का फैसला हुआ।
तमिलनाडु में MGR की कैसे बनीं थीं जयललिता उत्तराधिकारी
दरअसल जयललिता की चर्चित अभिनेता एमजीआर के साथ कई फिल्मों में जोड़ी बनी तो दोनों एक दूसरे के करीब आई। जब एमजीआर राजनीति में कूदे तो उन्होंने जयललिता की फर्राटेदार अंग्रेजी से प्रभावित होकर अपने साथ जोड़ने का इरादा किया। इसके बाद एमजीआर ने सन 1984 में उन्हें पार्टी की प्रतिनिधि के बतौर जयललिता को राज्यसभा भेजा। . 1984 से 1989 तक वे तमिलनाडु से राज्यसभा की सदस्य बनी थीं। इसके बाद से ही जयललिता को एमजीआर का उत्तराधिकारी माना जाने लगा था। लेकिन यह उनकी पार्टी के कई नेताओं को पसंद नहीं था. 1984 में जब ब्रेन स्ट्रोक के कारण रामचंद्रन अक्षम हो गये तब जया ने मुख्यमंत्री का पद संभालना चाहा, लेकिन तब रामचंद्रन ने उन्हें पार्टी के उप नेता पद से भी हटा दिया था. वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन हो गया और इसके बाद अन्ना द्रमुक दो धड़ों में बंट गयी. एक धड़े की नेता एमजीआर की विधवा जानकी रामचंद्रन थीं और दूसरे की जयललिता, लेकिन जयललिता ने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था.