धर्मेन्द्र सक्सेना
लखनऊ : नौ अंकों वाले अलग-अलग नम्बरों से मोबाइल कॉल बार-बार आती थी लेकिन उन्हीं नम्बरों पर कॉलबैक करने पर फोन नहीं लगता था इसके बावजूद कॉल करने वाले पर शक न करते हुए उसे गोपनीय जानकारी हासिल करा देता था एसडीएम कार्यालय में तैनात स्टेनोग्राफर। झांसी में भारतीय सेना से संबंधित प्रतिबंधित सूचनाएं जासूसी एजेंटों को दिये जाने के प्रकरण में एटीएस की पूछताछ में झांसी में एडीएम न्याय के यहां कार्यरत स्टेनो ने स्वीकार किया है कि वह बिना किसी अधिकारी के आदेश के गोपनीय सूचनायें मेजर यादव नाम के व्यक्ति को बिना उसकी आईडेंटिटी वैरीफाई किये बिना दे देता था। हालांकि स्टेनो पर लगे आरोप में सात साल से कम की सजा का प्रावधान होने के कारण उसको गिरफ्तार नहीं किया गया है।
यूपी एटीएस से मिली जानकारी के अनुसार स्टेनोग्राफर राघवेन्द्र अहिरवार जुलाई 2009 से जुलाई 2017 तक एसडीएम सदर कार्यालय में कार्यरत रहा था उस दौरान वह भारतीय सेना से जुड़े पत्राचारों को देखता था तथा रखरखाव करता था। एटीएस लखनऊ में मुकदमा दर्ज होने के बाद डीएसपी मनीष सोनकर द्वारा राघवेन्द्र से पूछताछ की गयी जिसमें राघवेंद्र ने स्वीकार किया कि उसके द्वारा ही एसडीएम सदर कार्यालय में नियुक्ति के दौरान भारतीय सेना से प्राप्त पत्राचारों और अभि लेख ों का रखरखाव किया जाता था। उसने बताया कि बबीना फील्ड फायरिंग रेंज (बीएफएफआर) में फायरिंग प्रैक्टिस के लिए भारतीय सेना की विभिन्न यूनिट आती रहती हैं जिससे सम्बन्धित सूचना उन सभी यूनिट्स द्वारा जिलाधिकारी झांसी को प्रतिबंधित पत्र द्वारा दी जाती हैं, ये पत्र एसडीएम सदर कार्यालय भी आते रहते हैं, जिनका रखरखाव राघवेंद्र करता था। बताया जाता है कि इन जानकारियों को आईएसआई या अन्य को देने के बाबत उससे पूछा गया तो उसने बताया कि वर्ष 2009 से ही फोन करके एक व्यक्ति जो अपने आपको बबीना में नियुक्त मेजर यादव बताता था और सूचना प्राप्त करता था।
तथाकथित मेजर यादव बदल-बदल कर नौ अंकों वाले मोबाइल नम्बर से कॉल किया करता था जिस पर कॉल बैक करने पर कॉल नहीं लगती थी। लेकिन राघवेंद्र ने यह कभी वैरीफाई नहीं किया कि आखिर एक मेजर रैंक का व्यक्ति उससे सीधे सूचनाएं क्यों ले रहा है और वह 2009 से लगातार एक ही पद पर क्यों है। राघवेंद्र ने यह भी स्वीकार किया कि पत्र पर प्रतिबंधित पत्र लिखा होने के बावजूद उसमें अंकित सूचना कि कौन सी यूनिट कहां पर और किस अवधि में अभ्यास करेगी की सूचना अनाधिकृत रूप से अनाधिकृत व्यक्ति को देता था। प्रतिबंधित पत्र की सूचना बिना किसी अधिकारी के आदेश के किसी को देना शासकीय गोपनीयता अधिनियम का अपराध बनता है।
एटीएस द्वारा यह भी बताया गया कि बबीना फील्ड फायरिंग रेंज से सम्बन्धित सेना के सूत्रों से भी पता चला है कि न तो सेना की प्रैक्टिस सम्बन्धी सूचना वैरीफाई की जाती है और न ही वर्ष 2009 के बाद से मेजर यादव नाम का कोई व्यक्ति नियुक्त रहा है। एटीएस के अनुसार इस केस में अभियोग के अंतर्गत अभियोजन स्वीकृति प्राप्त करके चार्जशीट न्यायालय में दी जायेगी। बताया गया है कि इस बात की भी जांच की जा रही है कि इस अवधि में नियुक्त सभी एसडीएम की क्या भूमिका थी साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि कौन व्यक्ति हैं जो इस काम में जुड़े हो सकते हैं। इसके अलावा तकनीकी जांच भी की जा रही है जिससे यह मालूम हो सके कि इंटरनेट कॉल कहां से आती थी। एटीएस द्वारा बताया गया है कि राघवेंद्र अनाधिकृत रूप से प्रतिबंधित सूचना को एक अनाधिकृत फर्जी व्यक्ति को देता था जो 3/4/5/9 शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 का अपराध है और इसमें 7 साल से कम की सजा का प्रावधान है इसलिए इस प्रकरण में गिरफ्तारी नहीं की जा रही है।
इस सम्बन्ध में आईजी यूपी एटीएस असीम अरुण का कहना है कि आईएसआई के जासूसों द्वारा ऐसी कार्यप्रणाली पहले भी अपनायी जा चुकी है इस प्रकरण में तो नौ साल से सूचनाएं लीक हो रही थीं। जरूरी है संवेदनशील पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को सचेत किया जाये ताकि राष्ट्र की सुरक्षा के ऐसे नुकसान से बचा जा सके।