हाथ से रेत फिसलती रही
वक़्त के साथ दुनिया बदलती रही
जिन्दगी तुझे देखा तो
तबियत बिमार कि बहलती रही
हाथ से रेत फिसलती रही
मौसम को भी लग जाती है
जाने किसकी नजर
धुप जो निकली,
सावन के मौसम में तो
नज़रे आसमान में बादल तलाशती रही
हाथ से रेत फिसलती रही
उनके चाँद से चेहरे पे , नुर कौन बरसा गया
खुदा खुद अपनी सुरत , उनके चेहरे पे बना गया
दुआ जिसको पाने कि ,
दिल कि हर हसरत करती रही
वो आए इस तरह मेरी जिन्दगी मे
खुशबु उनकी मोह्बत कि
मुझको , मेरे दिल को और,
मेरे घर को महकाती रही
ज़िन्दगी रेत कि तरह हाथो से फिसलती रही