क्यु नाराज़ हो तुम हर खता क़बूल है
मेरे लिए अनमोल हो तुम , तुम्हारी दी हर सज़ा क़बूल है
जलते है हम दिए कि तरह
बोल दो बस इक बार , तुम्हारी रौशनी क़बूल है
प्यार के धागे कच्चे हि सही
रास्ते प्यार के कच्चे हि सही
बोल दो बस इक बार ,
मन के साथ मन के, सात वचन कबूल है
नज़र भर के देखु तुझे , ऐसी मेरी तकदीर कहा
बाहों में भर लु तुझे, ऐसी मेरी तकदीर कहा
मुझको और मेरे दिल को भूलने वाले
हमने लिखी तुझपे ये ग़ज़ल है
दर्द जो तुमने दिया वो तो रूहानी है
इश्क़ हकीकत है या फ़सानो कि कहानी है
मेरा हाथ पकड़ लो मेरे महबूब ,
बोल दो मेरे साथ हर रिश्ता कबूल है
क्यु नाराज़ हो तुम हर खता कबूल है