ना कोई कविता है ना कोई ग़ज़ल है
भुल गए है जबसे वो हमको
दुनियाँ कि भीड़ मे अकेले हम है
देखता हु उनको तो यु लगता है
ख़ुदा है या आँखों का भरम है
लेकिन उनसे अब कैसे मिलु
दूर उनकी नज़रो से हम है
प्यासे दिल को कैसे समझाऊ कि
उनका दिल अब अपना घर नहीं है
डूबती नाव को मिलता साहिल नहीं है
जल चुकी उम्मीदों कि अब राख भी हासिल नहीं है
प्यासा है तू तो प्यासा हि रह
रेगिस्तान के मुसाफिर को मिलता जल नहीं है
उनकी जिन्दगी मे अब कोई और शामिल है
तुम तो मोह्बत कि शै पे, रोते और तड़पते शायर भर हो
कोई कविता और गज़ल तुमको हासिल नहीं है
आखरी लफ़ज़ है जो समझा रहे है
तुम्हारी मोह्बत मे दम कम है
ना कोई कविता.................