फिर मन उदास हो गया
जो कल तक था अपना
वो आज , किसी और के लिए ख़ास हो गया
कल तक खिलखिलाती थी गज़ले मेरी
उसकी बेबाक शोख़ी में डूबी नज़्मे मेरी
कागज़ कि खिड़की से झाकती वो कविता मेरी
तेरे लबों को छु के आती शायरी मेरी
आज सब ख़ामोश है
धड़कनो का शोर भी खामोश है
टूटे हुए दिल के साज़ खामोश है
रोती है आँखे और ,
तन्हाई लिए होंठ खामोश है
कोई जवाब नहीं है ,
खुदा के पास मेरे सवाल का
आज ख़ुदा भी खामोश है
आ के मर जाए दिल मेरे
खत्म जब प्यार का , हर अहसास हो गया
कल रात के बाद जो गया
वो तो आसमां का चाँद था ,
जिसे तुम अपना समझ बैठे थे
सुबह कि रौशनी का साथ पाके
जो नज़रो से ओझल हो गया
फिर मन उदास हो गया