नई दिल्ली : साल 2012 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीसीटी) ने अपनी एक 109 की रिपोर्ट में कहा था कि रूपये के विमुद्रीकरण से कालेधन की समस्या से नही लड़ा जा सकता है क्योंकि कालधन बड़ी संख्या में बेनामी सम्पति, सर्राफा और आभूषण के रूप में होता है। रिपोर्ट में कहा गया कि नोट बदलने की प्रक्रिया में उल्टा नोटों की छपाई और ढुलाई पर बड़ा खर्च आता है। साथ ही इससे छोटे कारोबार, दैनिक मजदूरी और देश की सामाजिक स्थिति पर भी असर पड़ता है। उदाहरण के लिए सरकार ने जिस तरह 8 नवम्बर को 500 और 1000 के नोट वापसी का फैसला लिया उसने पूरे देश में अफरा-तफरी मचा दी है। अभी तक देशभर में 15 ज्यादा लोग करेंसी संकट के चलते मौत को गले लगा चुके हैं।
यह पहला मौका नही बल्कि इससे पहले साल 1948 और 1978 में भी देश में विमुद्रीकरण हुआ था लेकिन वो विफल रहे थे। 2012 की रिपोर्ट में कहा गया कि इन विमुद्रीकरण से 85 प्रतिशत नोट कभी कालेधन वालों ने वापस किये ही नही। ऐसे लोगों को डर रहता है कि आखिरकार वह टैक्स अधिकारियों की पकड़ में आ ही जाएंगे इसलिए उन्होंने इसे फेंकना की उचित समझा। आर्थिक मामलों के जानकर मोहन गुरुस्वामी ने अपने एक लेख में लिखा है कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती को तोड़ने हेतु हमारे हुक्मरान को लगा कि एक सर्जिकल स्ट्राइक कर दी जाए। लिहाजा उन्होंने हमें संतुष्ट करने के लिए यह धमाका कर दिया, किंतु क्या यह काफी है? पिछले साल भारत में रह रहे भारतीयों ने अवैध ढंग से 83 अरब डॉलर की रकम बाहर भेजी। इस मामले में हम चीन के बाद दूसरे नंबर पर रहे। यह रकम तो इस विमुद्रीकरण के दायरे से बाहर ही है। पिछले एक दशक के दौरान अनुमानित रूप से 500 अरब डॉलर की रकम अवैध रूप से बाहर भेजी गई है। सरकार ने इसकी वापसी के प्रति भी कोई खास सक्रियता नहीं दिखाई है।
1977 में इमरजेंसी हटने के बाद चुनाव हुए और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। जनवरी, 1978 में मोरारजी सरकार ने एक कानून बनाकर 1000, 5000 और 10,000 के नोट बंद कर दिए। उस वक़्त आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर आईजी पटेल सरकार के इस कदम से सहमत नहीं थे। पटेल के अनुसार ये फैसला कालाधन खत्म करने के बजाय पिछली भ्रष्ट सरकारों को पंगु बनाने के लिए लिया गया है। इससे पहले साल 2005 में मनमोहन सरकार ने 500 के 2005 से पहले के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया।
नोटों को बदलने में लग सकता है लंबा समय
बैंकों में नोटों को लेकर मची हायतौबा के बीच भारतीय स्टेट बैंक की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य का कहना है कि बैंकों यह हालात आगामी 50 दिनों में सामान्य हो जायेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी लोगों को यही आश्वासन दिया है कि आपको 50 दिन का दर्द सहन होगा। सरकार के इस फैसले के बाद अभी बैंकों को तकरीबन 50 अरब नोट बदलने हैं। वित्त मंत्रालय के आकड़ों की माने अक्टूबर तक देश में 1750000 करोड़ ने नोट थे जिनमे 84 फीसदी 500 और हजार के नॉट थे।
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों की माने तो पिछले चार दिनों में सरकार ने कुल पचास हजार करोड़ के नए 100 और 2000 के नोट लोगों तक पहुंचाए। एक आंकड़े की माने तो यदि सरकार आने वाले समय में रोजाना 2000 के नोटों से 12500 करोड़ रूपये की रकम रोजाना जारीकर तो वापस किये गए नोटों को बदलने में 116 दिन लगेंगे। सरकार का कहना है कि उनकी पॉन्टिंग प्रेस पूरी तेजी से नॉट छप रही।