नई दिल्लीः
जिस रोज उस लड़की के दोनों पैर काटे जाने थे, उस दिन आंसुओं की बारिश में उसने पैरों को आखिरी बार सजाया। नाखूनों में लाल रंग की चमकती नैल-पॉलिश लगाई। बार-बार हाथों से पैरों को सहलाती रही और आंखों से टिप-टिप बरसतीं बूदों के साथ किसी लड़की की खुशियां, हसरतें बह रहीं थी। हाथों के बाद पैरों की भी शरीर से यह जुदाई की खौफनाक बेला थी। तस्वीर में बिना हाथ-पैर की ये जो लड़की खड़ी है, उसका नाम है शालिनी सरस्वती। बेंगलुरु की शालिनी की कहानी सुनकर आपकी रुह कांप उठेगी, मगर उसका हौसला देख आप सिर झुका लेंगे। क्योंकि वह बहादुर है बेचारी नहीं है। ऐसी बहादुर लड़की जो सही सलामत हाथ-पैर वाले सैकड़ों धावकों को भी बीच मैदान में चुनौती देने का साहस रखती है। शालिनी को क्यों हाथ-पैर गंवाने पड़े, यह दर्दनाक किस्सा बाद में जानिएगा, पहले उसकी बहादुरी की गाथा सुनिए। पिछले साल मई की बात है। देश की मशहूर कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विस(टीसीएस) ने बेंगलुरु में 10 किमी मैराथन रेस का आयोजन किया। टीसीएस वर्ल्ड 10 के नाम की यह रेस कोई दिव्यांगों की रेस नहीं थीं। हट्टे-कट्टे तमाम धावक पहुंचे। इस बीच एक लड़की को देखकर लोगों की आंखें फटी की फटी रह गई। इस लड़की के न दो हाथ थे न पैर। वैशाखी सरीखे कृत्रिम पैर से चलकर ट्रैक पर पहुंची थी। रेस में हिस्सा लेने की जिद पर अड़ गई। आयोजकों ने बहुत समझाया-बुझाया मगर लड़की नहीं मानी। शायद वह अक्षमताओं को अपने हौसले से मात देना चाहती थी। और आखिर में इस लड़की ने कर दिखाया। पूरे दस किमी की दौड़ सफलतापूर्वक नाप डाली। कौन जीता-कौन हारा, इस पर किसी का ध्यान ही नहीं रहा। मैदान में जमा हजारों दर्शकों की निगाहों ने तो इस लड़की को उसी वक्त विजेता मान लिया था, जब सही सलामत हाथ-पैर वाले धावकों के बीच यह दिव्यांग लड़की ने दौड़ना शुरू किया था। रेस की शुरुआत में वैसे ही लोग पहले भी दंग थे और जब यह लड़की दस किमी की दौड़ पूरी की तो उनकी आंखें और चौड़ीं हो गईं। दोस्तों, शालिनी का किस्सा हम इसलिए सुना रहे कि हमारे आसपास तमाम ऐसे बने-चुने दीन-दुखिया रहते हैं, जो हमेशा हालात का रोना रोते हैं। आप पूछेंगे-और भाई क्या हाल है, इतना सुनते ही रोने लगेंगे-यार नसीब खराब है, भगवान मेरे साथ बहुत बुरा कर रहा है...। नकारापन छुपाने के लिए बहानों की पूरी लिस्ट गिना डालेंगे। सही सलामत हाथ-पैर वाले इन बेचारों के लिए शालिनी सरस्वती को देखकर अगर प्रेरणा न लें तो शर्म जरूर करनी चाहिए। ऐसे लोगों के लिए शालिनी एक प्रेरणा हैं। मौत को भी हराने वाली जिंदादिली का दूसरा नाम हैं शालिनी।
शालिनी के साथ किस्मत का क्रूर मजाक
शालिनी कोई जन्म से दिव्यांग पैदा नहीं हुईं। बल्कि किस्मत के क्रूर मजाक ने शालिनी को इस हालत में लाकर छोड़ दिया। 2013 की बात है। मौका शादी की सालगिरह का था। पेट में बच्चा भी था। पति प्रशांत के साथ वह कंबोडिया गई थीं खुशियों की तलाश में। सेलिब्रेट करने शादी की वर्षगांठ। वहां से लौटीं तो बुखार हो गया। अस्पताल गईं तो डॉक्टर ने डेंगू बताया और इलाज शुरू हो गया। इस बीच शालिनी बैक्टीरिया इंफेक्शन की चपेंट में आ गईं। जिंदगी वेंटीलेटर पर हो गई। गंभीर बीमारी के चलते शालिनी के बच्चे की कोख में ही मौत हो गई। दुखों का पहाड़ तब और टूट पड़ा, जब शरीर पर गैंगरीन का भी अटैक हो गया। डॉक्टरों ने कहा-जिंदगी चाहिए तो बायां हाथ काटना पड़ेगा। अगले दिन डॉक्टरों ने बुलाया। जिंदगी बचानी थी तो शालिनी को आना ही पड़ा। शालिनी चीखती रही, और कुछ ही देर बाद उसका बांया हाथ जिस्म से अलग हो चुका था। कुछ ही महीने बाद बाएं हाथ की बीमारी दाएं हाथ को लग गई। छह महीने के बीच दायां हाथ अपने आप झूल गया। यह देखकर डॉक्टरों ने शालिनी की दोनों टांगें भी काटने का फैसला लिया। क्योंकि डॉक्टरों को रोग का खतरा पूरे शरीर में फैलने का था। इस नाते शरीर से मृत कोशिकाएं तत्काल हटानी थीं। दोस्तों शालिनी का ब्लॉग आप जरूर पढ़िएगा, रो उठेंगे आप। ब्लॉग का नाम-पता है- http://soulsurvivedintact.blogspot.in/। अंग्रेजी के इस ब्लॉग में शालिनी लिखती हैं कि- 'जब शरीर को किसी अंग की जरूरत नहीं होता तो वो उसे छोड़ देता है। मैं समझ गई थी कि जिंदगी कुछ छोड़कर आगे बढ़ने का संकेत दे रही हैं। जिस रोज मेरे पैर काटे जाने थे-'उस दिन मैं पैरों में चमकती लाल नैल-पोलिश लगाकर अस्पताल गई थी'। मैने सोचा-'अगर मेरे कदम जा रहे हैं तो क्यों न उन्हें खूबसूरती से विदा करूं।' शालिनी आप जिंदादिली का दूसरा नाम हो। हम जैसे दो हाथ-पैर वालों से लाख गुना बहादुर भी। शालिनी पर यह शेर मौजू है।
दर्द को भी दर्द होने लगा, दर्द खुद ही मेरे पांव धोने लगा
दर्द के लिए मैं नहीं रोई, लेकिन दर्द मुझे छूकर खुद रोने लगा