नई दिल्लीः एक सवाल आपसे। अगर राहुल गांधी और केजरीवाल राम मनोहर लोहिया अस्पताल जाते और उन्हें बिना किसी विरोध के वन रैंक वन पेंशन(OROP) को लेकर सुसाइड करने वाले पूर्व सैनिक के परिवार से मिलने दिया जाता तो क्या आसमान फट जाता....। नहीं न..। अगर इन नेताओं को आसानी से मिलने दिया जाता तो अखबारों के लिए सिंगल कॉलम खबर और टीवी चैनलों के लिए महज एक पट्टी चलती.... राहुल गांधी और केजरीवाल ने पीड़ित सैनिकों के परिवार से मुलाकात की। और थोड़ी बहुत मोदी सरकार पर इन नेताओं के निशाना साधने की बात खबर में जगह पा जाती। पूरी की पूरी खबर पेंशन को लेकर एक सैनिक के आत्महत्या तक सिमट कर रह जाती। मगर, जिस तरह से राहुल गांधी और केजरीवाल को पूर्व सैनिक के परिवार वालों से बेवजह मिलने से सिस्टम ने रोका, उसने मामले को तिल का ताड़ बना दिया। वहीं अन्जाने में भाजपा सरकार ने राहुल गांधी और केजरीवाल को खुद ही अखाड़ा तैयार कर दे दिया, जहां वे समर्थकों संग सियासी दांव-पेंच आजमा कर मोदी सरकार पर सैनिक हितों पर कुठाराघात करने का इल्जाम लगा सकें। सिर्फ संवादहीनता की स्थिति ने मोदी सरकार की छीछालेदर करा दी। राहुल गांधी और केजरीवाल जैसे नेताओं को हैंडल करने के लिए ऊपर से किसी आदेश के इंतजार में गृहमंत्रालय के साथ ही पुलिस के आला अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। मौके पर एक एसएचओ जैसा अफसर नेताओं से मान-मनुहार में लगा रहा। इसी के साथ जो दीया दीवाली पर मोदी ने सैनिकों के नाम जलवाया था, वह नाकाम सिस्टम के चलते बुझ गया। खास बात रही कि बड़े मामलों को डील करने के लिए सरकार का फाइटिंग सिस्टम भी कहीं नहीं दिखा।
कल तक भाजपा भुना रही थी, आज कांग्रेस व आप का दिन था
कभी कश्मीर में पत्थरबाजी का मुद्दा तो कभी सर्जिकल स्टॅाइकक। इन दो मुद्दों पर पर कभी भाजपा खुद को सैनिकों का सपोर्टर और हमदर्द बताकर शहादत भुना रही था। वजह की तब सर्जिकल स्ट्राइक पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से सुबूत की मांग से भाजपा को उनकी मंशा पर सवाल उठाने का मौका मिलता रहा। जनता में भी भाजपा खुद को सैना का बड़ा हमदर्द साबित करने में एक हद तक सफल रही। मगर मोदी सरकार ने जिस तरह से पूर्व सैनिक की आत्महत्या के मामले को हैंडल करने में लापरवाही दिखाई, उस लापरवाही ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को पिछले दिनों के डैमेज कंट्रोल का मुद्दा दे दिया। राहुल गांधी जिस तरह से पुलिस वालों से एंग्री यंगमैन की शक्ल में बहस कर रहे थे, बार-बार यह कैसा हिंदुस्तान बन रहा है....जहां शहीद के परिवार को डिटेन कर दिया जा रहा है। बेटे को पीटा जा रहा है। एक पूर्व सैनिक के साथ यह कैसा सलूक हो रहा है। जैसे जुमले उछालकर राहुल गांधी ने भाजपा की मोदी सरकार को इस मुद्दे पर खलनायक साबित करने की पूरी कोशिश की। कुछ हद तक इसमें सफल भी रहे।
मोदी के हाथ में सत्ता का केंद्रीयकरण होने से बिगड़े हालात
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता इंडिया संवाद से नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि मंगलवार को सैनिक की आत्महत्या मामले में जो कुछ हुआ वह सरकार की नाकामी का नतीजा रहा। अगर सत्ता का विकेंद्रीकरण होता। यानी सब कुछ मोदी के हाथ में ही न समाहित होता तो शायद यह मामला तिल का ताड़ न बन पाता। पूरी सरकारी मशीनरी मोदी के स्तर से कोई संदेश मिलने की बाट जोहती रही। मोदी सरकार में 70 से अधिक मंत्री हैं। मगर कोई मंत्री राम मनोहर लोहिया में अस्पताल में झांकने तक नहीं पहुंचा। न ही किसी ने पीड़ित पूर्व सैनिक के परिवार से मुलाकात ही की। जबकि मोदी सरकार के पास पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह, एक अन्य पूर्व सैन्य अधिकारी राज्यवर्धन सिंह राठौर जैसे मंत्री भी हैं। फिर भी कोई इसलिए नहीं पहुंचा कि मोदी की तरफ से कुछ इशारा नहीं हुआ। चूंकि इस मामले में केजरीवाल और राहुल गांधी भी शामिल रहे तो इन बड़े नेताओं के साथ किस तरह का व्यवहार हो, यह निचले स्तर के अफसर तय नहीं करते, बल्कि ऊपर से तय होता है। पुलिस कमिश्नर गृह मंत्री से कोई निर्देश मिलने की उम्मीद में असमंजस में रहे तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह मोदी की तरफ से कोई इशारा मिलने की बाट जोहते रहे। तब तक मोदी का सैनिकों के नाम का दीया नाकारा सिस्टम ने बुझा दिया था।