लखनऊ: गर्मी आते ही काले पानी का धंधा चरमोत्कर्ष पर पहुच जाता है। रेलवे स्टेशन हो या आम बाज़ार मिनिरल वाटर और प्यूरीफाईड वाटर के नाम पर धड़ल्ले से बीमारी युक्त पानी प्लास्टिक के पाउच से लेकर 20 लीटर तक कि बोतल में जगह जगह बिकता हुआ मिल जाएगा।
यद्यपि 20 लीटर वाली बोतलों की आपूर्ति दुकानों,वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों और ऑफिस के लिए होती है पर सबसे ज्यादा नकली पानी उन्ही में आपूर्ति होता है।छोटी बोतलों में नकली मिनिरल वाटर रेलवे स्टेशनों एवं बस स्टेशनों पर बिकता है। जो लोग शुद्ध पानी की असली बोतले रखते है वह 15 रुपये मूल्य वाली बोतलों को 25 से 30 रुपये तक बेचते है। किसी भी मॉल में स्थित सिनेमा घरों में इसके दामो को देख जा सकता है। अच्छे रेस्टोरेंट और होटलों में तो पानी की कीमत चाय कॉफी के समान होती है।
लखनऊ शहर हो या कोई अन्य जगह पानी के नाम पर बीमारी बेची जा रही है बावजूद इसके सरकार का इस तरफ बिल्कुल ध्यान नही जाता है।पानी की जांच करने वाले संगठन का कहना है कि उसके सीमित अधिकार है इसके चलते कोई कार्यवाही सम्भव नही हो पाती।
खाद्य सुरक्ष एवं औषधि सुरक्षा प्रशासन के अधिकारियों को पानी विक्रेताओं द्वारा खुश करने के कारण इस वर्ष योगी सरकार बनने के बाद भी अभी तक मिनिरल वाटर सप्लाई करने वाली किसी भी कंपनी की जांच नही की गई है। बोतल में पानी भरने वाली कंपनियों के प्लांट पुराने और जर्जर हो चुके है,उसके फ़िल्टर नियत समय पर बदले नही जाते है,प्लांट की सफाई भी नियमित रूप से नही होती है।प्लांट में पानी की आपूर्ति हेतु बनाये गये तालाब गंदगी से सड़े पड़े है।इतना ही नही प्लांट खराब होने पर बोतलों में पानी सीधे नाल से या प्लांट हेतु बनाये गये सम्प (तालाब) से ही भर कर बिक्री के लिये बाज़ार में भेज दिया जाता है।
बाजार में बिक रहे पानी की जांच कराए जाने हेतु प्रशासन अभी भी चिंतित नही है।यदा कदा कभी अभी छापा मारकर गंदगी या मानक के अनुरूप चीज़े नही पायी जाती है तो मामलों को आपस मे ही रफा दफा कर लिया जाता है।
शासन और प्रशासन का रवैया इसी प्रकार रहा तो वो दिन दूर नही की जब पानी की वजह से लखनऊ जैसे शहर को किसी महामारी का शिकार न बनना पड़े।