नई दिल्ली : आज से 55 साल पहले जब दशरथ मांझी सड़क के अभाव में पत्नी को अस्पताल नहीं पहुंचा पाया और पत्नी की मौत हो गई तो दशरथ मांझी ने व्यवस्था से कोई मदद नहीं मांगी और भीमकाय पहाड़ को काटकर सड़क बना डाली। दशरथ मांझी की कहानी को सिल्वर स्क्रीन के जरिये पूरी दुनिया ने देखा। वहीँ कालाहांडी के दाना मांझी ने भी कुछ ऐसी ही खुद्दारी दिखाई और मृत पत्नी को कंधे पर उठाकर बिना किसी को बताये निकल पड़ा अपने गांव मेलघड़ा।
अब दाना मांझी ने पहली बार उस दिन की कहानी को सामने आकर बयां किया है। दाना मांझी ने कहा है कि उन्होंने ही किसी से मदद नहीं मांगी थी और न ही अस्पताल प्रशासन को इसके लिए उन्होंने कोई आग्रह किया। दाना मांझी ने कहा कि उस रात डॉक्टर ने उसकी पत्नी का तीन बार इलाज किया और रात के 10 बजे अंतिम बार डॉक्टर ने उसकी पत्नी की हालत जानने के लिए विजिट किया था।
मांझी का कहना है कि रात के दो बजे जब उसने देखा कि उसकी पत्नी की मौत हो गई है तो उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। बतौर मांझी ' मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूं।
हालाँकि भवानी पटना हॉस्पिटल से मृत पत्नी को कंधे पर लादकर 12 किलोमीटर तक पैदल चले दाना मांझी की तस्वीर सामने आने के बाद अस्पतालों की व्यवस्था और एम्बुलेंस सेवाओं पर खूब सवाल उठे। मांझी ने आगे कहा- उस फीमेल वार्ड में (जहाँ उसकी पत्नी थी) उस वक़्त कोई अटेंड करने वाला भी नहीं था। तो दाना मांझी ने पत्नी अमांग देइ का शव कंधे पर उठाया और निकल दिया अपने गांव मेलघड़ा, जो भवानी पटना अस्पताल से 60 किलोमीटर दूर था। मांझी का कहना है कि भवानीपुर में उसका कोई रिश्तेदार नहीं था इसलिए उसने सोचा कि वह अपने गांव पहुंचकर ही लोगों से मदद मांगेगा।