पूनम, स्कॉलर बीएचयू
जंतर-मंतर पर भीम आर्मी के प्रदर्शन में बड़ी संख्या लोगों का इकठ्ठा होना क्या इस बात के संकेत दे रहा है कि वर्तमान में दलित राजनीति का नया दौर फिर शुरू हो रहा है। बीते कुछ समय में दलितों के साथ हुई उत्पीड़न की कई घटनाओं के बाद उनके हक़ की बात करने का दावा करने वाली पारम्परिक की राजनीति कमजोर होती दिख रही है। उत्तर प्रदेश में भीम सेना दलित लामबंदी के एक नए चेहरे के रूप में उभरी है। सहारनपुर दलित उत्पीड़न की घटना जिसमें दलितों के 50 से अधिक घरों को जला दिया गया था, के विरोध में जंतर मंतर पर भीम आर्मी और वामसेफ के संयुक्त प्रदर्शन के दौरान मैं भी साक्षी के तौर पर वहाँ मौजूद थी। अन्ना आंदोलन के बाद किसी प्रोटेस्ट में दूसरी बड़ी भीड़ दिखाई दी जिसमें विभिन्न दलित संगठनों के अतिरिक्त अन्य राजनीतिक तथा गैर राजनीतिक संगठनों के झंडों के साथ ही तिरंगा हर कहीं लहराता हुआ प्रदर्शन समाप्त होने तक दिखाई देता रहा।
जय संविधान, जय लोकतंत्र और जय भीम आदि के नारे हर कहीं सुने जा सकते थे। युवा जितनी ऊर्जा से लबरेज थे उससे कहीं अधिक प्रौढ़ और बुजुर्ग ऊर्जावान दिखाई दे रहे थे। किसी के सिर पर टोपी, किसी के हाथ में ढपली, किसी के हाथ में झंडा किसी के हाथ में बैनर तो था ही मगर जय भीम का नारा वहाँ उपस्थित प्रत्येक की जुबान पर था। लोग किसी भी हद तक जाकर दलित उत्पीड़न की इस लड़ाई में अपना सहयोग देने को तैयार दिख रहे थे। साथ ही, लोगों का राज्य तथा केंद्र सरकार के प्रति रोष भी स्पष्ट दिखाई दे रहा था और वें जमकर मोदी-योगी सरकार के खिलाफ नारे भी लगा रहे थे। धर्म, जाति, सम्प्रदायवाद, उग्र राष्ट्रवाद और भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों से जुड़े स्लोगन लिखे पोस्टर-होल्डिंग्स हर कहीं नजर आ रहे थे। तकरीबन 20,000 लोगों की एक साथ भीड़ और बरकरार शांतिपूर्ण स्थिति वहाँ पहुँचे लोगों की मंशा को जाहिर कर रही थी।
जब मैंने लोगों से बातचीत की तो पाया कि वहाँ दलितों के हक की बात उठाने और उनके उत्पीड़न के विरोध में सिर्फ दलित नहीं खड़े थे बल्कि मुस्लिम और सवर्ण भी थे। इसका सीधा सा अर्थ यह भी है कि दलितों की शोषण के खिलाफ लड़ाई में सिर्फ दलित ही शामिल नही है बल्कि सवर्ण और अल्पसंख्यक वर्ग भी सम्मिलित है। भीम आर्मी के संस्थापक ने यह बात बड़े स्पष्ट तरीके से कही कि उनका विरोध दलितों पर हो रहे शोषण के खिलाफ है सरकार के खिलाफ नही, फिर भी यदि सरकार का पक्षपातपूर्ण रवैय्या नहीं बदला तो वें 23 तारीख को अन्य दलितों के साथ मिलकर बौद्ध धर्म अपना लेंगे और मनुवादी तथा ब्राह्मणवादी कलुषित सोच के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।
यद्यपि जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार और उमर खालिद का प्रदर्शन स्थल पर जाकर मंच पर चंद्रशेखर रावण के साथ खड़ा होना काफी लोगों को नागवार भी गुजरा और उन्होंने इस विरोध प्रदर्शन के दिशा भटकने के भी कयास लगाने प्रारम्भ कर दिए और दलित उत्पीड़न के खिलाफ शुरू हुए इस आन्दोलन का हश्र अन्ना आंदोलन जैसा हो जाने की भी आशंका जताई।
लोगों में यह भी भय बना हुआ था कि कहीं चंद्रशेखर की गिरफ्तारी कर आंदोलन को सरकार द्वारा ध्वस्त करने का प्रयास न किया जाए। ऐसी स्थिति में, चंद्रशेखर रावण ने भीम आर्मी के अध्यक्ष विनय कुमार के द्वारा आंदोलन को लीड करने की घोषणा भी कर दी। अब देखना यह है कि आगे आने वाले समय में चंद्रशेखर रावण और उनकी टीम क्या रणनीति अपनाती है और आंदोलन की क्या दिशा - दशा निर्धारित करती है।
( लेख िका- बीएचयू में रिसर्च स्कॉलर )