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‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’ से क्या ‘‘समस्या’’ ‘‘हल’’ हो जायेगी?

17 अक्टूबर 2016

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1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के पश्चात् शायद यह पहला अवसर हैं जब देश का राजनैतिक नेतृत्व ने न केवल दृढ़ इच्छा शक्ति प्रदर्शित करते हुये सेना को सर्जिकल स्ट्राइक की अनुमति प्रदान की बल्कि वह सेना के पीछे पूरी ताकत के साथ खडा हुआ भी हैं। शायद इसीलिए 56 इंच सीने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की न केवल देश में सर्वत्र भूरि-भूरि प्रशंसा की जा रही हैं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी उनके इस कदम को अवाक व बेबाक मूक सहमति मिल रही हैं। युद्ध व सर्जिकल आपरेशन में अंतर होता हैं। इसीलिए ‘‘कारगिल’’ को तत्त्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा सेना को दिया गया समर्थन ‘‘सर्जिकल आपरेशन’’ न माना जाकर ‘छोटा युद्ध’ माना गया। इसीलिये उक्त सर्जिकल आपरेशन को वर्ष 71 के बाद की प्रथम कार्यवाही कहा गया है। ‘यूपीए’ के कुछ नेतागण एंव पूर्व रक्षा मंत्री शरद पंवार यह दावा कर रहे हैं कि यूपीए सरकार ने इससे पहिले भी चार बार सर्जिकल आपरेशन किये थे, जिसका उनके द्वारा ढिंडोरा नहीं पीटा गया हैं। यदि यह बात सत्य हैं जैसा कि एक समाचार पत्र ‘‘द् हिन्दु’’ ने 2011 में सर्जिकल स्ट्राइक की बात को तथ्यों के प्रमाण के साथ छापा हैं तो यूपीए सरकार भी और ज्यादा बधाई की पात्र हैं क्योंकि उसने तुलनात्मक रूप में मौन रहकर उक्त कार्य को अंजाम दिया था। यद्यपि इस बात पर भी ध्यान देने की आवश्यकता हैं कि सरकार ने सेना के माध्यम से बाकायदा पत्रकार वार्ता कर उक्त सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी दुनिया को दी जिसका एक खास मकसद पाकिस्तान शासको पर मानसिक दबाव ड़ालने के साथ-साथ विश्व जनमत को उक्त कार्यवाही के पक्ष में अनुमोदन करवाना भी एक पक्ष हो सकता हैं।

जब से सर्जिकल स्ट्राइक हुआ हैं, इस देश में मीड़िया खासकर इलेक्ट्रानिक मीड़िया द्वारा राजनेताओं के बीच चलाई जा रही घातक बहस न केवल चिंतनीय हैं, बल्कि निंदनीय व दंड़नीय भी हैं। ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’ को प्रत्येक भारतीय ने अंतर्मन से सराहा हैं। सेना को पूर्ण होश हवास में आंख मंूद कर, खुलकर समर्थन दिया हैं। लेकिन राजनीति के चलते विपक्ष द्वारा सेना का प्रांरभिक समर्थन करने के साथ-साथ एक ही संॉस में (दुर्भाग्वश देश का दुर्भाग्य ही यही हैं) कुछ इस तरह के बयान व प्रतिक्रियॉये दी गई जिससे यह आभास/प्रतीत होने लगा हैं कि वे देश के राजनैतिक नेतृत्व के साथ -साथ सर्जिकल स्ट्राइक पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहे हैं। वस्तुतः विपक्ष ने शायद तुच्छ राजनीतिक भावना के तहत प्रतिक्रिया देते समय अनजाने में नहीं लेकिन अनचाहे कुछ इस तरह कि प्रतिक्रिया दे दी जिससे हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान को हमारी राजनीति पर हमला करने का सुअवसर प्राप्त हो गया। उक्त मुद्दे पर मीड़िया ने स्वयं आगे आकर विभिन्न दलो व नेताओं की प्रतिक्रिया लेकर (लगभग 99 प्रतिशत) उसे पूरे विश्व में प्रसारित किया गया। नगण्य लोगो ने ही स्वतः आगे आकर ट्विटर इत्यादि माध्यम से प्रतिक्रिया दी लेकिन स्वयं मीड़िया द्वारा उक्त आलोचनात्मक प्रतिक्रिया देने वालों कीे देश भक्ति पर ही प्रश्न चिन्ह लगाये जाने का प्रयास किया गया। क्या इस तरह की प्रतिक्रिया का प्रसारण कर उन्हें एक प्लेटफार्म देकर मीड़िया स्वयं की देशभक्ति पर भी प्रश्न वाचक चिन्ह नहीं लगवा रहे हैं? इस पर न केवल विचार करने की आवश्यकता हैं बल्कि इस पर विचार अवश्य किया जाना चाहिए। यदि मीड़िया अपने प्रोग्रामों में ऐंकर के माध्यम से इस तरह के वाद-विवाद बहस नहीं कराते तो इस तरह की फजीहत की नौबत तो नहीं होती। अतः क्या अब समय नहीं आ गया हैं कि जब देश पड़ोसी दुश्मन देश द्वारा पोषित आंतकवादियों गतिविधियों से लड़ रहा हो, देश की सीमा पर लगातार सीज-फायर भंग किये जा रहे हैं, सर्जिकल आपरेशन हो रहे हो, युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होने लगी हो, तब क्या मीड़िया खासकर इलेक्ट्रानिक मीड़िया पर प्रभावशाली नियत्रंण रखने की आवश्यकता नहीं है? क्योंकि हम मीड़िया हाउस से आत्मानुशासन की उम्मीद तो खो चुके हैं (कुछ एकाध मीड़िया हाउस को छोड़कर)

इस एक सर्जिकल स्ट्राइक से यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि क्या यही प्रमाण पत्र एक साधन हैं, जिससे कश्मीर का मामला, पीओके का मामला या अंर्तराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान द्वारा लगातार किये जा रहे उल्लघंनांे के मामले या आंतकवादी घटनाओं के मामले सुलझ सकते है?ं यहां पर सर्जिकल आपरेशन और पूर्ण आपरेशन में अंतर क्या हैं यह समझ लेना भी जरूरी हैं। पूर्ण आपरेशन अर्थात् युद्ध। क्या पाकिस्तान के पापी शरीर का मात्र कुछ अंग ही खराब हैं जिनका सर्जिकल स्ट्राइक कर हमारी उपरोक्त उल् लेख ित समस्त समस्याएॅं सुलझ जायेगी? उत्तर 100 प्रतिशत नहीं में हैं। इसका पूरा आपरेशन किया जाना नितांत आवश्यक हैं। तब हम स्वयं ही एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का ढिंडोरा क्यों पीट रहे हैं। क्यो नहीं सुदृढ़ दीर्घायु नीति बनाकर समग्र आपरेशन की पूर्ण तैयारी करके समय बद्ध अवधि में पूर्ण आपरेशन सम्पन्न नहीं करते? क्या अब पूर्ण आपरेशन का समय नहीं आ गया है? क्या हमारे देश के नेतृत्व को इस तरह की समस्या के निराकरण के लिये अमेरिका, जर्मनी, इजराईल, इंग्लैड़, रूस इत्यादि देशों द्वारा की गई कार्यवाही से दिशा-दर्शन नहीं मिलता हैं जिन्होंने अपने स्वाभिमान के खातिर तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार ऐसी समस्याओं को सुलझाने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति लिये बगैर व परवाह किये बिना परिस्थितियों का यथार्थ अंाकलन कर दुश्मन देशों में जाकर विभिन्न तरीकों के गुरिूल्लावार, सर्जिकल आपरेशन व आवश्यकतानुसार युद्ध कर समस्या को सुलझाया। हम एक तरफ तो पूर्ण कश्मीर हमारा हैं जिसमें पीओके भी शामिल हैं के लिये संसद में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करते हैं, इस प्रस्ताव के क्रियांन्वयन के लिये विगत 78 सालों में हमारे द्वारा कोई भी सार्थक, प्रभावी कदम नहीं उठाया गया? यदि एक सर्जिकल स्ट्राइक सिद्ध रामबाण माना जा रहा हैं तत्पश्चात् तब भी पाकिस्तान के द्वारा सीमाओं का लगातार उल्लंघन क्यों हो रहा हैं जिसमें हमारे सैनिक शहीद होते जा रहे है। यदि एक सर्जिकल स्ट्राइक से रोग का इलाज नहीं हो पा रहा हैं तो कई सर्जिकल आपरेशन लगातार करके आवश्यकतानुसार एक पूर्ण आपरेशन अर्थात् ‘‘आक्रमण’’ करके समस्या का अंतिम समाधान क्यों नहीं निकाला जाता हैं? हम क्यों शत्रु देश के आक्रमण रूपी आंतकवादी कार्यवाहीयों का इंतजार कर मात्र उसे विफल करने की सीमा तक ही प्रत्याक्रमण करके उसे नेस्ता नाबूद करते रहेगे। कुछ प्रगतिशील कहे जाने वाले लेखक, नेता, साहित्यकार जो अपने को शंाति का देव-दूत मानते हैं, वे यह कह सकते हैं कि यह अव्यावहारिक हैं, तो फिर यह राग अलापना छोड़ दे कि पूर्ण कश्मीर हमारा हैं व हम उसे साहित्यकारांे की विभिन्न किताबों में लेखनी मात्र इतिहास की किताबों के पन्नों में नजर आयेगी, धरातल पर नहीं!

देश के नागरिकों, समस्त राजनैतिक पार्टियों व नेताओं को याद होगा कि जब वर्ष 1971 यु़द्ध के फलस्वरूप बंग्लादेश के रूप में एक नये राष्ट्र का जन्म हुआ था तब पक्ष-विपक्ष प्रत्येक नागरिक ने चाहे वह किसी भी विचार धारा का ही क्यों न हो, सब ने एक साथ मिलकर एकजुट होकर तत्कालीन नेतृत्व का बिना शर्त समर्थन किया था। तत्कालीन विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तो प्रंशसा में इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार तक कह ड़ालने में हिचक तक नहीं की थी। (यद्यपि बाद में कुछ क्षेत्रो से यह खंडन भी आया कि अटलजी ने ऐसा नहीं कहा था।) आम नागरिक वैसे ही प्रतिक्रिया तत्कालीन सत्तापक्ष जो वर्तमान में अब विपक्ष ंहै,ं से उम्मीद करता हैं। लेकिन वर्ष 1971 के बाद 45 सालों में राजनीति में इतनी गिरावट आ गई हैं, नैतिक मूल्यों का इतना ह्रास हुआ हैं कि वर्तमान विपक्ष नरेन्द्र मोदी को वैसा समर्थन देने से हिचक रहे हैं (जिसके वे हकदार भी है।) जैसा कि पूर्व में इंदिरा गांधी को को मिला था। लोकतंत्र का यह सर्वमान्य सिंद्धान्त हैं कि सत्ता पर बैठा हुआ राजनैतिक नेतृत्व जो भी निर्णय लेता हैं उसके यश-अपयश का भी वही हकदार व जिम्मेदार होता हैं। अतः देशहित में केवल यही उपयुक्त होगा कि विपक्ष अनावश्यक रूप से इस मुद्दे पर राजनीति न कर पडौसी देश को हमारे विरूद्ध कुछ कहने का मौका न दे। सत्तापक्ष से भी यह उम्मीद की जाती है कि वे अतिरेक में सेना द्वारा की गई कार्यवाही को राजनीति से दूर रखने का प्रयास करे। ऐसे समय देश की 100 प्रतिशत एकजुटता की आवश्यकता हैं यदि हमे पीओके पर कब्जा कर पाकिस्तान को वास्तव में सबक सिखाना हैं तो! अंत में देश की सीमा के सजग प्रहरी व देश के आत्म सम्मान की रक्षा करने वाले समस्त सैनिकों को दंडवत् प्रणाम।

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क्या देश में ‘‘मीड़िया’’ को ‘‘नियत्रिंत’’ करने का समय नहीं आ गया है ?

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बढ़ती हुई आपराधिक घटनाओं के लिये क्या सिर्फ शासन ही जिम्मेदार हैं?

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विगत कुछ समय से बिहार के ‘‘सुशासन बाबू ’’ कहे जाने वाले ‘‘बाबू’’ नीतिश कुमार के शासन में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं पर मीडिया से लेकर विभिन्न क्षेत्रो में गहरी चिंता व्यक्त की जा रही है। नीतिश बाबू के शासन को निशाना बनाते हुए ‘‘जंगलराज पार्ट-2’’ कहा जा रहा हैं। बहुत से इलेक्ट्रानिक मीडिया ने बिहार के जग

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‘‘जमानत एक ‘‘रूल’’ हैं’’ कितनी वास्तविकता! कितनी सतही ?

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माननीय उच्चतम् न्यायालय ने लगातार अपने अनेक निर्णयों में आपराधिक विधिशास्त्र का यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया हैं कि जमानत एक नियम (रूल) हैं, जेल एक अपवाद हैं (अनेक निर्णयों में से एक संजय चन्द्र वि. सी.बी.आई.) न्यायपालिका का यह एक चिरपरिचित सिंद्धान्त हैं। लेकिन क्या वास्तविक धरातल में भी ऐसा ही है

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‘‘स्वाति सिंह’’ के ‘‘(दुः)’’ ‘‘साहस’’ की दाद दी जानी चाहिये!

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‘‘गिलास आधा खाली हैं या आधा भरा हैं’’, यह भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष दयाशंकर द्वारा सुश्री मायावती पर की गई अभद्र, अमर्यादित टिप्पणी व उससे उत्पन्न प्रतिक्रिया व उस पर अगली क्रिया-प्रतिक्रिया पर लगभग सही बैठती हैैं। यह घटना निम्न महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर देश की जम्हूरियत का ध्यान

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‘‘क्या ‘‘पीओके’’ पाक अधिकृत कश्मीर रह पायेगा!

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वर्ष 1947 में अखण्ड भारत के विभाजन के बाद जब स्वतंत्र भारत का उदय हुआ, तत्समय कश्मीरी पण्डित पं. नेहरू की गहन राजनैतिक भूल (समय पूर्व काश्मीर मुद्दे को सयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने) का परिणाम ही हैं कि आज 13297 किलोमीटर में फैला व चार करोड़ जनसंख्या वाला भू भाग नासूर बनकर कश्मीर ‘‘(प

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‘पाकिस्तान कब ‘‘पीओके’’ खाली करेगा! क्या यह कहना मात्र ही पर्याप्त हैं?

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस बात के लिए हार्दिक बधाई दी जानी चाहिये कि उन्होने पहली बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से पाकिस्तान को अपनी स्पष्ट विदेश नीति से अचंभित कर दिया। प्रधानमंत्री द्वारा स्वाधीनता दिवस के अवसर पर पाकिस्तान के एक प्रदेश बलूचिस्त

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‘‘ वैकल्पिक राजनीतिक व्यवस्था’’ की ‘‘ध्वस्त’’ होती अवस्था के लिये क्या केजरीवाल दोषी नहीं ?

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इतिहास अपने को दोहराता हैं, अक्सर ऐसा कहा जाता हैं। स्वतंत्रता के बाद से ही कांग्रेस की सिन्द्धात-हीन राजनीति पर आधारित लम्बे समय से चले आ रहे लगभग एक ही परिवार के बेरोक-टोक शासन पर प्रथम बार 1967 में संविद शासन के (असफल) प्रयोग द्वार

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‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’ से क्या ‘‘समस्या’’ ‘‘हल’’ हो जायेगी?

17 अक्टूबर 2016
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1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के पश्चात् शायद यह पहला अवसर हैं जब देश का राजनैतिक नेतृत्व ने न केवल दृढ़ इच्छा शक्ति प्रदर्शित करते हुये सेना को सर्जिकल स्ट्राइक की अनुमति प्रदान की बल्कि वह सेना के पीछे पूरी ताकत के साथ खडा हुआ भी हैं। शा

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‘‘मानवाधिकार क्या मात्र ‘‘अपराधियों’’ का ही है! ‘‘आम नागरिकों’’ का नहीं ?

8 नवम्बर 2016
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भोपाल जेल से 8 दुर्दान्त आतंकवादी विचाराधीन (अंडर ट्रायल) अपराधियों के भागने पर मुठभेड़ (एनकांउटर) में समस्त आतंकवादी मारे गये-कैसे व क्यों मारे गये, उस पर विवाद व राजनीति हो सकती है, बल्कि यह कहा जाए कि उस पर जमकर घोर विवाद व राजनीति हो रही हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रश्न यह नहीं हैं कि उक्त घटन

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हंगामा हो गया...............हा..हा..हा..!

22 नवम्बर 2016
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‘‘हंगामा हो गया’’ बॉलिवुड फिल्म ‘‘क्वीन’’ का एक प्रसिद्ध गाना है, जो आज विमु्द्रीकरण से उत्पन्न परिस्थिति को देखते हुए एकदम होठो पर आ जाता है। ‘‘हंगामा’’ सिर्फ दर्शकदीर्घा में ही नहीं है, बल्कि जो ’’फिल्म’’ दिखा रहे हैं उनके ‘‘बीच’’ भी है। हंगामा देश के हर क्षेत्र में ही नहीं अपितु नागरिक जीवन के हर

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महत्वपूर्ण निर्णय! लेकिन अव्यवस्था के घेरे में!

3 दिसम्बर 2016
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भारतीय जनता पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव के समय कालाधन को समाप्त करने व उसको वापस लाने का चुनावी वादा किया था। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार ने सता सीन होने के बाद अभी तक कालेधन की समाप्ति की दिशा में लगातर कई कदम उठाये हैैं। इसी कड़ी में 1000 व 500 की मुद्रा

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आम बजट को प्रस्तुत करने के विरोध का कोई संवैधानिक कानून या नैतिक बल नहीं!

17 जनवरी 2017
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स्वतंत्र भारत के इतिहास में प्रारंभ से ही बजट पेश करने की परम्परा 28-29 फरवरी की रही हैं। पिछले वर्ष बजट पेश करने के बाद जी.एस.टी को यथा संभव 1 अप्रेल 2017 से लागू करने के प्रयास (आज ही 1 जुलाई से लागू करने की आम सहमति बनी हैं) के तहत

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क्या कांग्रेस को मनमोहन सिंह की ईमानदारी पसंद नहीं ?

15 फरवरी 2017
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विगत दिवस राज्यसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री की तुलना रेनकोट पहनकर नहाने की कला से की हैं। कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा में उक्त बयान की प्रतिक्रिया में न केवल बयानो की झड़ी लगा दी, बल्कि राज्यसभा का बहिष्कार करने की प्र

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तमिलनाडु की घटना देश में ‘‘लोकतंत्र’’ की नई परिभाषा गठित करने जा रही हैं ?

18 फरवरी 2017
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तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता (अम्मा) की लंबी बीमारी के बाद स्वर्गवासी हो जाने के पश्चात् उत्पन्न हुई स्थिति का सामना महामहिम राज्यपाल तथा जिम्मेदार राजनैतिक पार्टियों व व्यक्तियों द्वारा जिस तरह से किया जा रहा हैं उससे एक नई राजनैतिक कल्पना की उत्पत्ति हुई हैं जिस कारण क्या लोकतंत्र

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एक नागरिक की ‘देशभक्ति’ पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाये जाने का कितना औचित्य ?

2 मार्च 2017
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रामजश कॉलेज दिल्ली में हुई घटना के संबंध में वर्ष 1999 में हुये शहीद केप्टन मनदीप सिंह की बेटी गुरमेहर के द्वारा किये गये ट्वीट पर कुछ लोगों द्वारा उसकी देशभक्ति पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाना कितना जायज व उचित हैं? जेएनयू दिल्ली में पिछले वर्ष हुई घटना (वर्तमान घटना से कुछ हट

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पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के मायने?

25 मार्च 2017
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11 मार्च को आये पांच राज्यों के चुनाव परिणाम विपक्ष के लिये आंधी और तूफान से ज्यादा एक ऐसीे सुनामी लेकर आये जिस तरह 11 मार्च को जापान के सेंडाड़ में अब तक का सबसे विध्वंशकारी व विनाशकारी भूकंप आया था। परिणाम पर गहरी नजर रखने वाले चुनाव विश्लेषकों व जीतने व हारने वाली पार्टियों सभी की नजर में उक्त परि

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गोवा में सरकार बनाने में कांग्रेस की ‘‘असफलता’’ या संविधान की हत्या?

28 मार्च 2017
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पांच राज्यांे में साथ-साथ हुये गोवा विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन सरकार बनाने में असफल रही। भाजपा ने न केवल बहुमत होने का दावा पेश किया बल्कि विधानसभा में विश्वास मत जीतने में भी सफल रही। ग

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उच्चतम् न्यायालय के ‘‘निर्णय की मूल भावना’’ का ऑटो कम्पनियों द्वारा घोर उल्लघंन!

3 अप्रैल 2017
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उच्चतम् न्यायालय ने विगत दिवस 29 मार्च को दिये गये अपने आदेश के द्वारा बीएस-3 (भारत स्टेज- 3 उत्सर्जन मानक) जिसकी शुरूआत केन्द्रीय सरकार ने वर्ष 2000 में की थी, वाले वाहनों के विक्रय व रजिस्ट्रेशन पर 1 अप्रैल 2017 से रोक लगा दी हैं। केन्द्रीय सरकार ने वर्ष 2014 में इस संबंध में एक अधिसूचना भी जारी क

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राज(नीति)!आंदोलन से उपवास तक!

14 जून 2017
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पिछली एक तारीख से महाराष्ट्र व मध्यप्र्रदेश के कुछ भागो में विभिन्न मांगो को लेकर किसानों एवं भिन्न -भिन्न किसान संगठनों द्वारा आंदोलन चलाया जा रहा हैं जो दिन प्रति दिन तीव्र होकर फैलता जा रहा हैं। देश के मध्य स्थित प्रदेश हमारे मध्य प्रदेश मंे भी आंदोलन इतना तीव्र हो गया हैं कि उसके हिंसक रूप धारण

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राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के पूर्व ही विपक्ष ने वाकओवर दे दिया!

30 जून 2017
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भाजपा ने चतुर पहल करते हुये बिहार के गर्वनर रामनाथ कोविंद का नाम राष्ट्रपति पद के लिये घोषित करके राजनैतिक श्रेष्ठता के साथ बढ़त प्राप्त कर एक बड़ी सफलता हासिल की हैं। विपक्ष को तो मानो सांॅंप ही सूंघ गया हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उनकी उम्मीदवारी की घो

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‘‘नैतिकता’’ के आवरण का दावा करने के लिये ‘‘अनैतिकता’’ को ओढना कितना नैतिक!

31 जुलाई 2017
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बिहार की राजनीति में तेजी से बदलते राजनैतिक घटना क्रम के चलते 18 घंटे से भी कम समय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का रंग हरा से भगवा हो गया।

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न्यायपालिका की ‘‘अवमानना’’के लिये क्या कुछ सीमा तक न्यायपालिका ही दोषी नहीं?

17 अगस्त 2017
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विगत पखवाड़ा भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस.खेहर ने भवन के व्यावसायिक उपयोग से संबंधित एक मामले में पीड़ा के साथ यह टिप्पणी की कि इस देश के लोग न्यायालयों के निर्णयो का पालन नहीं कर रहे हैं। कानून तोड़ने तथा कोर्ट के आदेशांे की धज्जिया उड़ाने में वे अपनी शान समझते हैं।

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‘‘बहुमत’’ का निर्णय ‘नैतिक’ रूप से कितना ‘‘बलशाली’’?

24 अगस्त 2017
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एक साथ ‘‘तीन तलाक’’ के संदर्भ में माननीय उच्चतम् न्यायालय द्वारा दो के विरूद्ध तीन के बहुमत से ऐतहासिक फ़ैसला देकर लम्बे समय से चली आ रही बहस को विराम देते हुए ‘‘त्वरित तीन तलाक’’ को असंवैधानिक करार देने के साथ साथ तुरन्त ही एक अन्य बहस को भी अवसर प्रदान कर दिया हैं। व

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गुरमीत सिंह पर आये सीबीआई न्यायालय के निर्णय के पश्चात् उत्पन्न स्थिति के लिये क्या मात्र प्रशासन ही जिम्मेदार हैं?

30 अगस्त 2017
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बहुप्रतीक्षित ‘‘मेसंजर ऑफ गाड’’ ‘‘बाबा’’ स्वयंभू ‘‘संत’’ ‘‘गुरमीत सिंह’’ ‘‘राम’’ ‘‘रहीम’’ ‘‘इन्संा’’ डेरा सच्चा सौदा प्रमुख पर निर्णय की तारीख 25 अगस्त पूर्व में ही दिनांक 18 अगस्त को तय की जा चुकी थी। समस्त प्रशासनिक, न्यायिक चेतावनी एवं जांच ऐजेंसीज के ‘‘इनपुट’’ ह

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रेयान इंटरनेशनल स्कूल में एक मासूम विद्यार्थी की जघन्य हत्या! क्या एक घटना मात्र हैं?

15 सितम्बर 2017
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‘‘गुरूग्राम’’ के ‘‘रेयान इंटरनेशनल स्कूल’’ में हुई एक 7 वर्ष के विद्यार्थी प्रद्युम्न की जघन्य हत्या को पिछले कुछ दिनो से इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया ने इतना अधिक कवरेज दिया है कि फिर वही पुराने अलाप व आरोप मीडिया ट्रायल की स्थिति उत्पन्न हो गई हैं। निश्चित रूप से मासूम की उक्त जघन्य हत्या ने अभिभा

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डॉ. ‘‘गुरमीत सिंह’’ का दूसरा रूप ‘‘बाबा‘‘ ‘‘राम रहीम’’?

19 सितम्बर 2017
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पिछले कुछ दिनो से प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रानिक मीड़िया में बलात्कारी, व्यभिचारी, अय्याश, पाखंड़ी, परमार्थ के बहाने अपनी स्वार्थी, वहशी, हवस की पूर्ति का एन केन प्रकारेन, साधक बाबा डॉ. गुरमीत सिंह से संबंधित खबरे भरी पड़ी हैं। दिन प्रति दिन नई नई गंदी स्टोरी प्रमाण सहित सामने आ रही हैं। इस बात में

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‘‘गुरमीत’’ पर एक ‘‘स्वेत पत्र’’ (व्हाईट पेपर) जारी करने की क्या अभी भी आवश्यकता नहीं हैं?

27 सितम्बर 2017
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‘‘गुरमीत सिंह’’ उर्फ ‘ड़ॉ.’ उर्फ ‘बाबा’ उर्फ ‘‘बिग बॉस’’ उर्फ ‘पिता’ उर्फ ‘राम रहीम’ उर्फ ‘इन्साँ’ उर्फ ‘मेसंजर ऑफ गॉड’ फिल्म निर्माता-निर्देशक-संगीतज्ञ-एक्टर, खिलाड़ी इत्यादि अनेकानेक व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति गुरमीत के रूप में आपके सामने आश्चर्य मिश्रित रूप से प्रकृट हुआ हैं। हर किरदार के साथ उसके का

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एनसीआर-दिल्ली के नागरिको को क्या ‘‘विशेष दर्जा’’ प्राप्त हैं?

18 अक्टूबर 2017
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माननीय उच्चतम् न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र) में पटाखों कीे बिक्री पर दीवाली तक रोक लगा दी हैं जिसको हटाने की व्यापार ियों द्वारा अपील को भी अस्वीकार कर दिया हैं। पटाखों से ही दीवापली त्यौहार की मुख्य पहचान होती हैं। इस प्रकार दिल्ली-एनसी

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आरूषि हत्याकांड़ प्रकरण का क्या ‘‘पटाक्षेप’’ हो गया हैं?

29 अक्टूबर 2017
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माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ‘‘आरूषि‘‘ हेमराज’’ दोहरे हत्याकांड के अभियुक्तगण दंत विशेषज्ञ डॉ. राजेश व उनकी धर्मपत्नि श्रीमति नुपुर तलवार द्वारा गाजियाबाद की विशेष सीबाीआई अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा के विरूद्ध की गई अपील को स्वीकार कर विशेष अदालत के दोष-सिद्ध के निर्णय को पलट कर डॉ

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‘प्रद्युम्न हत्या कांड’’ ‘‘न्यायिक व्यवस्था का उपहास’

2 दिसम्बर 2017
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‘‘शहादत का बदला’’ या ‘‘शहादत पर रोक’’ का पुख्ता इंतजाम! वर्ष २०१८?

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‘‘आम आदमी पार्टी’’ (आप) वास्तव में क्या ‘‘आम आदमियों की पार्टी’’ (आम)बन गई हैं?

6 जनवरी 2018
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माननीय उच्चतम् न्यायालय द्वारा केन्द्रीय विद्यालयों में की जा रही प्रार्थना पर केन्द्र सरकार को जारी नोटिस! कितना औचित्य पूर्ण!

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मध्यप्रदेश के निवासी विनायक शाह ने देश के 1125 केन्द्रीय विद्यालयों में 50 वर्षो से लगातार हिन्दी-संस्कृत में की जा रही प्रार्थना पर रोक लगाने के लिये दायर याचिका पर केन्द्रीय विद्यालय संगठनों एवं केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं हैं कि 50 वर्षो से अधिक जारी उक

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‘‘न्यायिक सक्रियता’’ ‘‘न्यायिक संकट’’ (क्राइसेस) में तो नहीं ?

16 जनवरी 2018
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बहुत पहले आपातकाल के समय स्वर्गीय जस्टिस पी.एन. भगवती ने एक नारा दिया था ‘‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’’ (कमिटेड़ ज्यूडिशियरी)। उसके बाद पिछले कुछ समय से जनहित याचिकाओं (पी.आई.एल.) के माध्यम व स्व-प्रेरणा से उच्च न्यायालयांे एवं उच्चतम् न्यायालय ने ऐेसे कई ऐतहासिक निर्णय जन हित में दिये हैं जिन्हे कुछ क्षे

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‘‘माननीयों’’ से ये उम्मीद तो ना थी?

17 जनवरी 2018
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‘‘शुक्रवार’’ को जब सुबह उच्चतम न्यायालय के चार सबसे वरिष्ठतम् न्यायाधिपतियों (जिनमें एक वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के इस वर्ष के मध्यांतर में रिटायर्ड होने के पश्चात वरिष्ठता के अनुसार मुख्य न्यायाधीश के क्रम में रंजन गगोई भी शामिल हैं) ने प्रेस कान्फ्रेस करके इस देश के न्यायिक इतिहास में न केवल एक अनच

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’’वैधानिकता’’ व ’’नैतिकता’’ के बीच उलझे ‘‘आप’’ के अयोग्य २० विधायक!

24 जनवरी 2018
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अंततः महामहिम राष्ट्रपति ने आप के 20 विधायको को लाभ के पद पर होने के कारण उत्पन्न हुई कानूनी अयोग्यता की चुनाव आयोग की सिफारिश को स्वीकार कर लिया। अतः उच्च न्यायालय में सोमवार को सुनवाई होने वाली आप के विधायको की याचिका भी शून्य हो गई। इसीलिये उनके द्वारा उक्त याचिका को दिल्ली उच्च न्यायालय से वापस

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उच्चतम न्यायालय के निर्णय की भावना का उल्लघंन क्या ‘‘अवमानना’’ की सीमा में नहीं आता हैं?

30 जनवरी 2018
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इस समय पूरे देश में पद्मावती-पद्मावत, राजपूत समाज व करणी सेना की ही चर्चा हैं। फिर चाहे वह पिं्रट मीडिया हो, इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या सोशल मीडिया हो। फिल्म ‘‘पद्मावती’’ को कई संशोधन व कट के पश्चात ‘पद्मावत’ के नाम से संेसर बोर्ड द्वारा फिल्म प्रदर्शन हेतु यू.ए. प्रमाण पत्र मिल जाने के बावजूद उक्त फ

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क्या ‘‘मीडिया हाऊस’’ को राष्ट्रीय शोक घोषित करने का अधिकार नहीं दे देना चाहिए?

4 मार्च 2018
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फिल्मी कलाकार, एक्ट्रेस, ‘‘डबल रोल की रानी’’ ‘‘प्रथम महिला सुपरस्टार, ‘‘पद्मश्री’’ श्रीदेवी’’ की मौत अचानक परिस्थिजन्य शंकास्पद स्थिति में दुबई में हो गई। तत्पश्चात् दुबई पुलिस द्वारा गहन जांच के बाद समस्त शंकाओ का निराकरण करते हुये श्रीदेवी की मौत को प्राकृतिक मौत का मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया। न

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‘‘विदेशों में मोदी का डंका’’!‘‘देश में अमित शाह का डंका’’!

6 मार्च 2018
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‘पूर्वोत्तर’’ में आये चुनाव परिणाम निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कांग्रेस मुक्त देश की सोच के अनुरूप ही हैं, जिन्होने सफलतापूर्वक विदेशों में विश्व के शक्तिशाली देश अमेरिका, रूस, चीन के रहते हुये उन्हे पछाड़कर या उनके समकक्ष विश्व नेता बनकर भारत देश का डंका बजाया है। विश्व के राष्ट्राध

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लाल निशान! शांतिपूर्ण मार्च?

16 मार्च 2018
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‘‘ऑल इण्ड़िया किसान सभा’’ के बैनर तले लगभग 45 से 50 हजार निर्धन किसानो, खेतिहर मजदूरो व आदिवासी भूमिहीन श्रमिको का लगभग 200 किलो मीटर तक का पैदल मार्च 7 मार्च को ‘नासिक’ से लगातार पांच दिन रात चलकर सोमवार दिनंाक 12 मार्च को देश की आर्थिक राजधानी, व महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई के ‘‘आजाद मैदान’’ में प

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सलमान खान को क्या ‘‘भारत रत्न’’/‘‘नोबेल पुरस्कार’’ मिल गया है?

10 अप्रैल 2018
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पिछले तीन दिनो से खासकर दो दिन लगातार इलेक्ट्रानिक मीडिया व कुछ हद तक प्रिंट मीडिया सेलीब्रिेटी सलमान खान को ही दिखाये-छापे जा रहा है, जिसे देखने-पढ़ने के लिए आम दर्शक-पाठक मजबूर है। बेशक सलमान खान देश के बड़े फिल्मी सेलीब्रिटी है। ‘‘वालीवुड’’ में अमिताभ बच्चन के बाद वे शायद देश के दूसरे सबसे बड़े सफल

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कर्नाटक के नाटक (घटनाक्रम) में न्यायपालिका की भूमिका क्या पूर्णतः न्यायोचित रही?

31 मई 2018
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अन्ततः कर्नाटक में सियासी दाव पंेच आजमाने के बाद मात्र ढ़ाई दिन की बी.एस. येदियुरप्पा की सरकार का अंत हो गया, जो होना ही था और अन्ततः नई सरकार चुनने का रास्ता साफ हो गया। अध

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आरएसएस के आमंत्रण की ‘‘प्रणब दा’’ द्वारा स्वीकारिता पर इतना हंगामा क्यों?

4 जून 2018
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‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’’ मुख्यालय नागपुर में प्रत्येक वर्ष संघ तृतीय वर्ष शिक्षा वर्ग के समापन (दीक्षांत समारोह) का आयोजन करता है। इसके अतिरिक्त संघ प्रत्येक वर्ष विजया-दशमी (दशहरा) के शुभ अवसर पर मुख्यालय नागपुर में ही वार्षिकोत्सव का आयोजन भी करता है। इन अवसरो पर संघ देश की विभिन्न प्रमुख हस्ति

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सर्वोच्च निर्णय! कोई सर्वोच्च नहीं!

5 जुलाई 2018
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माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध दिल्ली सरकार की अपील पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देकर जो व्यवस्था की, उसका घोषित प्रभाव यह हुआ कि संवैधानिक रूप से दिल्ली में न तो मुख्यमंत्री ही और न ही उपराज्यपाल सर्वोच्च है। उच्चतम न्यायालय ने चुनी हुई सरकार के महत्व को स्थाप

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क्या देश के नागरिको के रहवासी भवन के प्रति सुरक्षा की गांरटी हेतु कानूनी प्रावधान बनाने का समय नहीं आ गया है?

27 जुलाई 2018
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विगत एक हफ्ते के भीतर देश की राजधानी दिल्ली के पास एनसीआर में नवनिर्मित या निर्माणाधीन या पुरानी बिंल्डिग अचानक ढ़ह जाने की लगातार चार घटनाएँ हो गई जिस कारणं सम्पत्ति के अलावा जानमाल का भी बड़ा नुकसान हो गया। ये घटनाएं 17, 21, 22 जुलाई 2018 के बीच गाजियाबाद, शाहबेरी, मसूरी, साहिबाबाद में हुई हैं। शाहब

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‘‘सरकारें ’’ देशहित में ‘‘जुमलों’’ से कब बाहर आयेगीं?

17 सितम्बर 2018
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यद्यपि हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दावा करते हैं, और हैं भी। तथापि जनता लोकशाही से, लोकतांत्रिक तरीके से लोकतांत्रिक मूल्यो के आधार पर देश चलाने की अपेक्षा करती है। लेकिन पिछले कई दशकांे से हमारे देश में लोकतंत्र के नाम पर ‘‘जुमले बाजी’’ ही चल रही है। एक ‘जुमले’ मात्र से कई बार सरका

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‘‘उच्चतम् न्यायालय का ‘‘निर्णय’’ कितना प्रभावी ‘‘कितना औचित्यपूर्ण’’?

29 सितम्बर 2018
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संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार ‘‘उच्चतम् न्यायालय’’ के समस्त निर्णय न्यायिक और बंधनकारी होते है। लेकिन इसके बावजूद हमेशा ही उच्चतम् न्यायालय के निर्णयांे के औचित्य पर बहस होती रही है और यह स्वस्थ्य व मजबूत लोकतंात्रिक न्याय व्यवस्था का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। आरोपित नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से

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क्या माननीय उच्चतम न्यायालय त्यौहारों के मुहूर्त भी निकालेगी?

26 अक्टूबर 2018
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माननीय उच्चतम न्यायालय के आए निर्णय ने एक बार फिर उच्चतम न्यायालय के निर्णयों पर प्रश्नवाचक चिन्ह उठा दिया है। उच्चतम न्यायालय ने अपने इस निर्णय द्वारा विभिन्न धार्मिक आयोजनों के अवसरों पर पटाखे जलाने की समयावधि, गुणवक्ता की डेसीबल व मात्रा तय की है। आखिर उच्चतम न्यायालय को आज कल हो क्या गया है? मू

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सरदार पटेल की मूर्ति ‘‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’’ का अनावरण। भारत देश गरीब या अमीर?

5 नवम्बर 2018
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लगता है, भारत एक अमीर व विकसित देश हो गया है? आज का ही (31 अक्टूबर) दिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण ‘‘बलिदान दिवस’’ व भारत की एकता व अखंडता बनाए रखने में अति विशिष्ट महत्वपूर्ण व एकमात्र योगदान देने के कारण पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस को राष्ट्र एकता दिवस

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राहुल गांधी का ‘एप’ के माध्यम से मुख्यमंत्री चुनना! जनादेश का अपमान नहीं?

15 दिसम्बर 2018
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पाँच प्रदेशों में हुये विधानसभा चुनावों में तीन विधानसभाओं में कांग्रेस सरकारें बनने जा रही है। कांग्रेस पार्टी द्वारा तीन प्रदेशों में मुख्यमंत्री चुनने की प्रक्रिया की औपचारिकताओं की (औपचारिक) पूर्ती की जाकर विधायक दल द्वारा अंतिम निर्णय लेने का अधिकार परम्परा अनुसार हाई कमान अर्थात राहुल गांधी को

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स्वतंत्रता के 70 सालों के पश्चात भी क्या यही ‘‘परिपक्व’’ लोकतंत्र है?

19 दिसम्बर 2018
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पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं। चुनाव पूर्व का ‘‘ओपीनियन पोल’’ तुरन्त चुनाव बाद का ‘‘एक्जिट पोल’’ व अब ‘‘वास्तविक परिणाम’’ आपके सामने है। मैं यहाँ पर पर

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स्वतंत्रता के 70 सालों के पश्चात भी क्या यही ‘‘परिपक्व’’ लोकतंत्र है?

19 दिसम्बर 2018
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पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं। चुनाव पूर्व का ‘‘ओपीनियन पोल’’ तुरन्त चुनाव बाद का ‘‘एक्जिट पोल’’ व अब ‘‘वास्तविक परिणाम’’ आपके सामने है। मैं यहाँ पर परिणामों का विश्लेषण नहीं कर रहा हूूंँ। ये सब ‘‘पोल’’ अनुमान के कितने नजदीक थे, सही थे, या आश्चर्य जनक थे, इस संबंध में भी कोई विशेष मूर्धन्य़

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कहीं भाजपा का ‘‘कमल’’(भगवा) एजेंडा’’ कांग्रेस के ‘‘नाथ’’ ने चुरा तो नहीं लिया है?

22 दिसम्बर 2018
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मध्यप्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में ‘‘कमल’’ को अनाथ न होने देने वाले हमारे पडोसी जिले छिंदवाडा के कमलनाथ द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली गई जिसके लिये उन्हे हार्दिक बधाईयाँ, वंदन व अभिनंदन। सम्पन्न शपथ ग्रहण समारोह में वास्तव में ऐसा लगा ही नहीं कि वह किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण स

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केन्द्रीय सरकार का ‘‘आर्थिक आधार’’ पर 10 प्रतिशत आरक्षण का निर्णय! कितना अधूरा! कितना पूर्ण?

12 जनवरी 2019
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वास्तव में हमारे देश में यदि किसी भी ‘‘सरकार’’ से कोई निर्णय अपने पक्ष में करवाना हो तो सरकार के चुने जाने के 4 साल तक तो वह आपकी मांगे व मुद्दो पर गंभीरता से कोई विचार ही नहीं करती है, क्योकि तब तक वह आपके चुनावी दबाव में ही नहीं होती है। परन्तु चुनावी वर्ष में चुनावी मोड में आ जाने के बाद आपका मु

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क्या कानून व्यवस्था ‘कांग्रेस’ व ‘भाजपा’ के लिये अलग-अलग है?

24 जनवरी 2019
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विगत दिवस मंदसौर में भाजपा नेता व प्रथम नागरिक नगर पालिका अध्यक्ष प्रहलाद बंधवार की सरे आम गोली मारकर हत्या कर दी गई। निश्चित रूप से यह एक बेहद दुखद घटना थी और पुलिस ने त्वरित कार्यवाही कर 24 घंटे के भीतर ही एक आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ का उक्त घटना पर यह बयान कि यह भाजप

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‘‘कुंभ’’ ‘‘महाकुंभ’’ और ‘‘अर्धकुंभ’’ में क्या कोई अंतर हैं?

31 जनवरी 2019
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प्रयागराज (इलाहबाद) में मकर संक्र्राति से ‘‘अर्धकुंभ’’ प्रारंभहुआ है। लेकिन इस अर्धकुंभ को केन्द्रीय सरकार से लेकर उत्तर प्रदेश सरकार व समस्तमीडिया चाहे वह प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक इसे कुंभया महा!कुंभ कहकर महिमा-मंडित कर रहे हैं। इस ‘‘कुंभ’’ के जबरदस्तप्रचार-प्रसार के कारण ही मुझे भी यह शक हु

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2019 के लोकसभा चुनाव केे बाद ‘‘एनडीए’’ के प्रधानमंत्री क्या नितिन गडकरी होगें?

2 फरवरी 2019
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भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, आरएसएस के करीबी, कॉर्पोरेट और व्यापार जगत के चहेते और केन्द्र की मोदी सरकार के नियत अवधि में अपेक्षित परिणाम देने वाले सड़क परिवहन, जहाज रानी व गंगा सफाई विभाग के मंत्री नितिन गडकरी केे पिछले कुछ समय से जो बयान आ रहे है वे निश्चित रूप से सामान्य

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अरविंद केजरीवाल का बयान! संविधान व लोकतंत्र विरोधी कौन?

19 फरवरी 2019
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‘‘दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल’’ के मामले में उपराज्यपाल एवं दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र के विवाद पर उच्चतम न्यायालय का बहुप्रतिक्षित निर्णय आ गया है। उक्त निर्णय पर आई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की त्वरित प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री पद पर बैठे हुये व्यक्ति के लिये न केवल अत्यधिक अमर्यादित

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देशप्रेम-राष्ट्रभक्ति-राष्ट्रवाद को ढूढ़ता मेरा प्यारा देश!

5 मार्च 2019
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इस लेख का ‘‘शीर्षक’’ देख कर बहुत से लोगों को हैरानी अवश्य होगी और आश्चर्य होना भी चाहिये। पर बहुत से लोग इस पर आखें भी तरेर सकते है। यदि वास्तव में ऐसा हो सका तो, मेरे लेख लिखने का उद्देश्य भी सफल हो जायेगा। एक नागरिक, बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा एक भारतीय पैदाईशी ही स्वभावगतः देशप्रेमी होता है।

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आखिर देश को क्या हो गया है।

13 मार्च 2019
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‘‘पुलवामा’’ में हुई बड़ी वीभत्स आंतकी घटना में 40 सैनिकों के शहीद हो जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में किये गये हवाई हमलों के द्वारा ‘‘जैश-ए-मोहम्मद’’के आंतकवादी कैम्प (प्रशिक्षण शिविर) को नष्ट करने के बाद सम्पूर्ण देश ने एक जुट होकर सेना व सरकार को बधाई दी थी। कांग्रेस सहि

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‘‘पर्रिकर’’ ‘‘वाद’’ को ढूँढता मेरा देश। ‘व’’ ‘‘गांधीवाद’’ से चलकर ‘‘पर्रिकरवाद’’ तक पहुंचने का सुखद अहसास!

27 मार्च 2019
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देश के प्रथम आई.आईटी शिक्षा प्राप्त (गोवा के) मुख्यमंत्री एवं पूर्व रक्षामंत्री डॉ. मनोहर गोपाल कृष्ण प्रभु पर्रिकर लम्बी बीमारी से अदम्य आत्मबल के साथ लड़ते हुये अब इस दुनिया में नहीं रहे और ‘‘स्वर्गवासी’’ हो गये। याद कीजिये! विधानसभा में बजट प्रस्तुत करते समय उनका वह चेहरा, जो चिकित्सकीय उप

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बिगड़े नेताओं के ‘‘बिगडे़ बोल’’-‘‘विवादित बोल’’! फायदा-नुकसान कितना!

31 मार्च 2019
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भारतीय राजनीति में हमेशा से ही ‘‘बयानवीर’’ मीडिया में सुर्खिया पाते रहे है। विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के कुछ नेतागण अपने बेवाक बयानों के माध्यम से सुर्खियाँ बटोरनें के उदे्श्य से ऐसे बयान देते रहते है, जिसके परिणाम स्वरूप उनकी छाप एक चर्चित चेहरे की होकर वे माने जाने

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2019 के आम चुनाव के मुद्दे, क्या ‘‘स्थापित चुनावी मुद्दों से’’ हटकर हैं।

3 मई 2019
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स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वर्ष 2019 में देश का यह 17 वाँ आम चुनाव हो रहा है। प्रारंभ में स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर भाग लेने वाली पार्टी (सत्य से परे) एक मात्र कांग्रेस ही मानी जाती रही। वर्ष

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‘‘परिपक्व लोकतंत्र’’ में ‘‘परिपक्व’’ होते मतदाता का ‘‘परिपक्वता पूर्ण’’जनादेश!

3 जून 2019
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विश्व के सबसे बड़े लोकतंात्रिक देश भारत में हुये 17 वंे आम चुनाव का जनादेश आपके सामने है। ऐतिहासिक जीत से लेकर ऐतिहासिक हार के परिणामों की व्याख्या विभिन्न लेखों व प्रतिक्रियाओं के माध्यम से आप मीडिया में अवश्य देखेगंे/पढे़गें। वैसे तो हर आम चुनाव परिणाम पिछले चुनाव परिणाम से कुछ न कुछ भिन्न स्थिति

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साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने आखिर गलत क्या कहाँ ?

26 जुलाई 2019
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भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जो पूर्व में भी अपने कई बयानों के कारण मीडिया व देश की राजनीति में न केवल चर्चित रही, बल्कि उनके बयानों के कारण भाजपा को शर्मिदंगी भी उठानी पड़ी है, व पार्टी की किरकिरी भी हुई है। प्रधानमंत्री तक को पार्टी की छवि बचाने के लिये यह कहना पड़ा कि गोड़से को देशभक्त बता

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अनुच्छेद 370 (2) एवं (3) समाप्त! लेकिन उपबंध (1) क्या 370 का भाग नहीं?

8 अगस्त 2019
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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के इतिहास में राष्ट्रीय सुरक्षा व अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से वर्ष 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सबसे बड़ा कदम उठाकर पाकिस्तान को युद्ध में बुरी तरह से पटकनी देकर बंग्लादेश का निर्माण किया था। भारतीय सेना ने उक्त युद्ध में दो लाख से अधिक पाकिस्तानी सैनिको

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‘‘नौ सौं चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’’

28 अगस्त 2019
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विश्व के 195 देशों में भारत निश्चित रूप से एक अनूठा स्थान लिये हुये है। शायद इसका एक बहुत बड़ा कारण हमारी पीढि़यों से चली आ रही खुबसूरत सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासत है। हमारे देश की संस्कृति में इतनी (एकता में अनेकता) विभिन्नतायें है, जो सदैव जीवन्त बनी रहकर और अंततः एक मुहावरे के रूप में प्रसिद्ध ह

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अभी तक का सफर। कितना सफल।

21 अक्टूबर 2019
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वर्ष 1925 में विजयादशमी के पावन दिवस पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा एक शाखा प्रांरभ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की गई थी। वर्ष 2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी सौवीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। किसी भी संगठन के लिये 100 वर्ष पूर्ण करने का अत्यधिक महत्व होता है, क्योंकि इतने लम्बे सम

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‘‘50-50!’’ ‘‘क्या राजनीति में इसका अर्थ अलग होता है’’!

16 नवम्बर 2019
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अंततः शिवसेना-भाजपा का वर्ष 1990 से चला आ रहा लगभग 30 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया। तथाकथित 50-50 फॉमूले को आधार बनाकर महाराष्ट्र विधानसभा के परिणाम आने के तुरन्त बाद से ही शिवसेना के प्रवक्ता एवं सांसद संजय राउत लगातार यही कहते रहे है कि मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही बनेगा। 50-50 के सूत्र को स्पष्ट कर

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भारतीय राजनीति की नई ‘गुगली’।

3 दिसम्बर 2019
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स्वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास में बीता कल अभूतपूर्व कहलायेगा! यह घटना राजनैतिक भूचाल नहीं, बल्कि ‘भूकम्प’ है, जो स्वतंत्रता के बाद देश के राजनैतिक पटल पर प्रथम बार हुआ है। राजनीति में नैतिकता के निरंतर गिरते स्तर के बावजूद, इस तरह की यह पहली अलौकिक, अनोखी, अचम्भित करने वाली एक आश्चर्यजनक घटना है।

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आखिर! ‘न्याय’-‘इंसाफ’! इंसानियत एवं ‘न्यायप्रिय’ तरीके से ‘कैसे’ व ‘कब’ मिलेगा। ‘‘जन भावनाओं’’ से ‘‘न्याय व्यवस्था’’ नहीं ‘‘लोकतंत्र’’ चलता है।

12 दिसम्बर 2019
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6 दिसम्बर सुबह जैसे ही टीव्ही पर हैदराबाद की रेप पीडि़ता ‘‘दिशा’’ की वीभत्स हत्या के चारों अभियुक्तों के एनकाउंटर में मारे जाने की खबर आयी, लगभग पूरे देश में एक अजीब सी खुशी का माहौल पसर गया। तब से चारांे तरफ अधिकांश खुशी ही खुशी व्यक्त करते हुये एक ही आवाज आ रही है कि ‘‘इंसाफ’’ मिल गया है। देश में

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‘‘मोदी के दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष का लेखा-जोखा।’’

1 जून 2020
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आज आप पूरे देश के प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के दूसरे कार्य काल की 1 वर्ष की उपलब्धियों के समाचार पढ़ और देख रहे होंगे। प्रधानमंत्री ने स्वयं अपने दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष में किए गए कार्यों की जानकारी बड़े ही शालीन तरीके से

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क्या ‘‘कोरोना’’ ने ‘‘नौकरशाही’’ को कुंठित तो नहीं कर दिया है?

2 जून 2020
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लॉकडाउन-4 समाप्त! लॉकडाउन-5 प्रारंभ नहीं। बल्कि इसकी जगह देश अनलॉक-1 (नॉकडाउन-1) के नये दौर में देश प्रवेश कर रहा हैं। यह नया दौर कैसा होगा, यह तो भविष्य ही बतलायेगा। आइये, तब तक नौकरशाही द्वारा जारी अपरिपक्व आधे-अधूरे आदेशों निर्देशों के संबंध में गुजरे लॉकडाउन का थोड़ा अवलोकन कर लें। ‘देश’ व ‘जीवन

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‘‘आंकड़ों’’ के ‘‘खेल’’ की ‘‘बाजीगरी’’ द्वारा ‘‘कोरोना’’ पर ‘‘राजनीति’’क्यों?

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कोरोना वायरस को भारत में आए 4 महीने पूर्ण हो चुके हैं। हमारे देश में प्रथम मरीज 30 जनवरी को केरल के ‘‘त्रिशूर’’ में आया था। ‘‘कोरोना’’ (कोविड़-19) राष्ट्रीय महामारी और आपदा के रूप में, हमारे देश के लिये एक अत्यंत चिंता का विषय था। इसलिए सत्ता और विपक्ष के साथ देश की संपूर्ण जनता 30 जनवरी को एक साथ खड़

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विश्व में ‘‘लाॅकडाउन की नीति’’ कहीं ‘गलत’ व ‘‘असफल’’ तो सिध्द नहीं हो रही है?

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‘‘कोरोनावायरस’’ ‘‘(कोविड़-19)’’ के संक्रमण को रोकने के लिये कमोवेश पूरे विश्व में लाॅकडाउन की नीति अपनाई, जिसके परिणाम स्वरूप आज विश्व के लगभग 200 देशों की आधी से ज्यादा आबादी घर में कैद है, और आर्थिक रथ का चक्का जाम हो गया हैं। इसके बावजूद कमोवेश कुछ को छोड़कर प्रायः हर देश में संक्रमित मरीजों की संख

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क्या परिपक्व होते लोकतंत्र में ‘‘सरकारे’’ ‘‘गिराई’’ जाती है? अथवा ‘‘बनाई’’ जाती है?

12 जून 2020
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राजस्थान में राज्य सभा के हो रहे चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस का यह बयान आया है कि, राजस्थान में भी भाजपा ने मध्य प्रदेश के समान ही‘ ऑपरेशन कमल‘ पर अमल करना शुरू कर दिया है। भाजपा खरीद फरोख्त के द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है। विधायक दल के सचेतक द्वारा इसकी भ्

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भारतीय राजनीति में ‘सवालों’ के ‘जवाब’ के ‘उत्तर’ में क्या सिर्फ ‘सवाल’ ही रह गए हैं?

30 जून 2020
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भारतीय राजनीति का एक स्वर्णिम युग रहा है। जब राजनीति के धूमकेतु डॉ राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी बाजपेई, बलराम मधोक, के. कामराज, भाई अशोक मेहता, आचार्य कृपलानी, जॉर्ज फर्नांडिस, हरकिशन सिंह सुरजीत, ई. नमबुरूदीपाद, मोरारजी भाई देसाई, ज्योति बसु, चंद्रशेखर, तारकेश्वरी सिन्हा जैसे अनेक हस्तियां रही है।

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‘‘चीन’’ का नाम ‘‘क्यों’’ नहीं लिया ? भारतीय? राष्ट्रीय? कांग्रेस!

6 जुलाई 2020
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘अचानक’ ‘‘लेह’’ (लद्दाख) की 11000 फुट की उंचाई पर स्थित अग्रिम चौकी ‘‘नीमू’’ पंहुचकर सैनिकों के बीच ‘‘दम’’ भर कर सेना की हौसला अफजाई की। यह कहकर कि ‘‘बहादुरी और साहस शांति की जरूरी शर्ते है, दुश्मन ने हमारे जवान की ताकत व गुस्से को देखा है‘‘। उक्त दौरे के बाद कांग्रेस क

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‘विकसित’’ यूपी में ‘‘विकास‘‘ ‘‘राज‘‘ के साथ ‘‘ अराजकता राज‘‘ भी चल रहा है!

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जिस बात की आशंका ‘‘गैंगस्टर’’ विकास दुबे की गिरफ्तारी के समय उत्पन्न हो रही थी व कतिपय क्षेत्रों में व्यक्ति भी की गई थी, वह अंततः चरितार्थ सही सिद्ध हुई। मुठभेड़ की घटना के पूर्व ही माननीय उच्चतम न्यायालय में एक वकील द्वारा दायर याचिका में भी उक्त आंशका व्यक्त की गई थी। यह आशंका भी व्यक्त की जा रही

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‘‘फेक’’ ‘‘एनकाउंटर’’ को ‘‘वैध‘‘ बनाने के लिए ‘‘कानून‘ क्यों नहीं बना देना जाना चाहिए?

22 जुलाई 2020
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‘‘विकास दुबे एनकाउंटर’’ (मुठभेड़) पूरे देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित है। यह घटना न केवल स्वयं ‘‘सवालों में सवाल’’ लिये हुये है, बल्कि उपरोक्त ‘‘शीर्षक’’ प्रश्न भी पुनः उत्पन्न करता है। लगभग हर ‘एनकाउंटर’ के बाद उस पर हमेशा प्रश्नचिन्ह अवश्य लगते रहे हैं। उक्त ‘प्रश्नचिन्ह’ क

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‘‘न्यूटन के गति‘‘ का नियम क्या ‘‘अपराधिक राजनीति पर भी लागू होता है?

20 अक्टूबर 2020
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‘‘न्यूटन‘‘ क्या भारतीय राजनीति को ‘‘न्यूट्रल‘‘ कर देगें?मैं विज्ञान का छात्र रहा हूं। बचपन में मैंने पढ़ा है कि ‘‘न्यूटन के गति‘‘ के तीसरे नियम के अनुसार ‘‘हर क्रिया के बराबर (समान) और विपरीत प्रतिक्रिया होती है‘‘। प्रसिध्द वैज्ञानिक ‘‘न्यूटन‘‘ ने अपनी पुस्तक ‘‘प्रिंसीपिया मैथमैटिका‘‘ (वर्ष 1687) के

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बिहार के चुनाव ‘‘परिणाम’’ कहीं ‘‘अंकगणित‘‘ को गलत तो सिद्ध नहीं कर देंगे?

5 नवम्बर 2020
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बिहार के चुनाव परिणाम प्रायः अप्रत्याशित ही रहे हैं। याद कीजिये! पिछले विधानसभा के आम चुनाव के परिणाम। पहले घंटे के निकले प्रारंभिक रुझान पर स्टूडियोज में बैठे समस्त ज्ञानी, बुद्धिजीवी, मूर्धन्य पत्रकार, राजनीतिक पंडित व विशेषज्ञों द्वारा तेजी से प्रतिक्रिया देने के बाद परिणाम के धीरे-धीरे और अंततः

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किसान आंदोलन! उत्पन्न ‘‘आशंका के परसेप्शन‘‘ को दूर करने के लिए सरकार को ‘‘कदम उठाने‘‘ ही होंगे।

7 दिसम्बर 2020
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अभी हाल में ही मैंने बिहार विधानसभा के आम चुनाव और मध्य प्रदेश के उपचुनावों के संबंध में यह लिखा था कि ‘‘अंकगणित की जीत‘‘ के साथ ही उससे उत्पन्न ‘‘परसेप्शन‘‘ को जीतने पर ही ‘‘जीत पूर्ण‘‘ कहलाती है। किसान आंदोलन को देखते हुए परसेप्शन का उक्त सिद्धांत संसद एवं सरकार द्वारा लागू अधिनियम एवं लि

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सरकार और किसान नेता क्या ‘‘दिशाहीन‘‘ होकर मुद्दे से ‘‘भटक गये‘‘ या ‘‘परस्पर भटका‘‘ रहे है?

18 दिसम्बर 2020
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किसान आंदोलन के 22 दिन हो गये है। लेकिन अभी तक दोनों पक्षों के अंतिम निष्कर्ष व निर्णय पर पंहुच न सकने के कारण स्थिति रबड़ के समान खिंच कर वापिस न आने के कारण पूर्वतः दो विपरीत छोरों पर (दिल्ली सीमा के दोनों पार) रुकी हुई है। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि इन 21 दिनों में कुछ भी सकारात्मक व नका

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‘‘गांधी‘‘ के ‘‘साथ‘‘व ‘‘गांधी‘‘ के ‘‘बिना‘‘ ही कांग्रेस का ‘‘अस्तित्व एवम नियति‘‘ है।

23 दिसम्बर 2020
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पूर्व में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की कांग्रेस हाई कमांड को लिखी गई ‘चिट्ठी’ पर सोनिया गांधी के ‘‘बुलावे’’ पर इन समस्त ‘‘तथाकथित असंतुष्टों‘‘ व नाराज नेताओं की एक चिंतन बैठक हुई। ‘चिंता’ की सीमा तक कांग्रेस की ‘‘चिंताजनक स्थिति‘‘ हो जाने के कारण बैठक को उपयोगी बनाने हेतु‘‘ चिंतन बैठक‘‘ का नाम देना तो

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देश में ‘‘लोकतंत्र‘‘ ‘‘खत्म’’ हो गया है! राहुल गांधी! सही!/?

26 दिसम्बर 2020
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महामहिम राष्ट्रपति को किसानों के मुद्दे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसदों द्वारा अपने नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विरोध मार्च कर ज्ञापन सौंपने की अनुमति देने के बजाए धारा 144 लागू किये जाने पर राहुल गांधी को यह कहना पड़ गया कि देश में ‘‘लोकतंत्र समाप्त‘‘ हो गया है। रात्रि की अंधकार की गहरा

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