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‘‘न्यायिक सक्रियता’’ ‘‘न्यायिक संकट’’ (क्राइसेस) में तो नहीं ?

16 जनवरी 2018

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बहुत पहले आपातकाल के समय स्वर्गीय जस्टिस पी.एन. भगवती ने एक नारा दिया था ‘‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’’ (कमिटेड़ ज्यूडिशियरी)। उसके बाद पिछले कुछ समय से जनहित याचिकाओं (पी.आई.एल.) के माध्यम व स्व-प्रेरणा से उच्च न्यायालयांे एवं उच्चतम् न्यायालय ने ऐेसे कई ऐतहासिक निर्णय जन हित में दिये हैं जिन्हे कुछ क्षेत्रों में कार्यपालिका एवं विधायिका के अधिकारो का उल्लघंन माना गया हैं। इन्हे न्यायिक सक्रियता कहा गया। आज निष्पक्ष न्याय के साथ-साथ न्यायिक सक्रियता भी स्वतंत्र भारत के न्यायिक इतिहास के (अब तक के सबसे बड़े) गहरे न्यायिक संकट में फंस गई हैं, जिसका (दुश्ः) परिणाम फिलहाल गर्भ में हैं। हमारा देश चार स्वतंत्र स्तम्भों (पैरो) पर खड़ा हैं। संविधान द्वारा प्रदत्त न्यायपालिका, कार्यपालिका व विधायिका के तीन स्वतंत्र खम्भों के साथ चौथे स्वंतत्र स्तम्भ प्रेस के मजबूत कंधो पर हमारे देश की सम्पूर्ण व्यवस्था टिकी हुई हैं। तीनो संवैधानिक स्तम्भ स्वतंत्र होने के बावजूद परस्पर सहयोग के द्वारा ही देश को चलाने व आगे बढ़ाने का कार्य कमोवेश सफलतापूर्वक करते चले आ रहे हैं। इन चारो स्तम्भों में सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संविधान ने न्यायपालिका को दी हैं, जिसे यह अधिकार दिया गया हैं कि संविधान के किसी भी एक अंग का दूसरे अंगो (संस्थाओं) के साथ विवाद की स्थिति निर्मित होने पर उच्चतम् न्यायालय का निर्णय अंतिम व बंधनकारी (अन्य किसी भी मामलो की तरह) होता हैं। इसके साथ ही संविधान ने विधायिका को भी यह अधिकार दिया हैं कि यदि उच्चतम न्यायालय के किसी निर्णय से कार्यपालिका सहमत नहीं हैं, वह संसद में बिल लाकर उस निर्णय को पलट सकती हैं (जैसा कि राजीव गांधी के कार्यकाल में शाहबानो प्रकरण में हुआ था) बशर्ते वह संविधान की सीमा के भीतर हो व संविधान की भावना के विरूद्ध न हो। जैसा कि केशवानंद भारतीय के प्रकरण में भी माननीय उच्चतम न्यायालय ने सिद्धान्त प्रतिपादित किया हैं कि संविधान के बुनियादी ढ़ाँचा (बेसिक स्ट्रक्चर) से छेड़ छाड़ नहीं की जा सकती हैं। इस प्रकार अंततः वास्तविकता में अभी तक उच्चतम न्यायालय को ही सर्वोच्च मानने की व्यवस्था ही कार्यरत रही हैं। संविधान का सरक्ष्ंाक एवं लोकतंत्र का प्रहरी भी न्यायपालिका को ही माना गया हैं। आज उसी उच्चतम न्यायालय के कोलेजियम में व्यवस्था परस्पर आपसी (मुख्य न्यायाधीश विरूद्ध चार वरिष्ठ न्यायाधीश) विवाद उत्पन्न होकर प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से प्रकट हुआ हैं जो अत्यंत खेद जनक और एक ऐतहासिक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हैैं। आखिर यह कोलेजियम व्यवस्था क्या हैं। कोलेजियम उच्चतम न्यायालय की एक प्रशासनिक व्यवस्था हैं, जो मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 5 वरिष्ठ जजो का एक समूह हैं, जिसका प्रमुख न्यायाधिपति (प्रथम होने के नाते) मुख्य न्यायाधीश होता हैं। कोलेजियम की एक जिम्मेदारी जजो की नियुक्ति के मामले में सरकार को सिफारिश भेजना भी होता हैं जो सामान्यतः सरकार स्वीकार कर लेती हैं। तबादलों के फैसले भी कोलेजियम करता हैं। यद्यपि विषयानुसार रॉस्टर अर्थात कार्यतालिका बनाने का विशेषाधिकार मुख्य न्यायाधीश के पास होता हैं, परन्तु चली आ रही परम्परा नुसार सामान्यतः मुख्य न्यायाधीश कोलेजियम के अन्य वरिष्ठ जजो की सहमति से ही कार्यो का बँटवारा करते रहे हैं। उक्त परम्परा का पालन नहीं हो पाने के कारण ही दो माह पूर्व चारो वरिष्ठ जजों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर वेदना पूर्वक अपनी बात व्यक्त की थी। इसीलिए यह विवाद उत्पन्न हुआ हैं। चारो वरिष्ठ जजो ने इसी रॉस्टर प्रणाली को संाकेतिक रूप से कुछ विशिष्ट केसो के साथ जोड़कर विवाद को और गहरा कर दिया हैं। यद्यपि इस व्यवस्था के एक भाग ‘‘जिसके अंतर्गत जजो की नियुक्ति की सिफारिश की जाती हैं’’ को संसद में कानून पारित कर न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाकर समाप्त कर दिया गया था। लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा उक्त कानून को असंवैधानिक घोषित करके कोलेजियम व्यवस्था को पुनः बहाल किया। इसके बावजूद भी उच्चतम न्यायालय इस कोलेजियम व्यवस्था में सुधार चाहता हैं जिसके लिये सुझाव मागें गये हैं। किस न्यायाधीश को या न्यायाधीशों की किस बंेच को कौन सा प्रकरण दिया जाए (‘‘बेंच हंटिंग’’), इससे देश का लोकतंत्र कैसे खतरे में पड़ सकता हैं, जैसा कि चार वरिष्ठ जजों ने आरोप लगाया हैं, यह एक बडा प्रश्न हैं। जब तक यह तथ्य सामने नहीं आता हैं कि निर्णय देने वाली बेंच ‘‘न्यायपूर्वक निर्णय न देकर किसी प्रभाव मेें आकर निर्णय दे रही हैं’’ तब तक उनकी मंशा पर सांकेतिक रूप से निशाना लगाना/उठाना उचित नहीं होगा। वरिष्ठ न्यायाधीशो के उक्त कथन का (बिना कहे) साथ में यह अर्थ भी निकलता हैं कि वे मुख्य न्यायाधीश के साथ उन बेंचो के न्यायाधीशों के विवेक पूर्ण निर्णयों (न्याय) पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहे हैं जिन्हे मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई हेतु रॉस्टर से हटकर केस दिये हैं। सुप्रीम कोर्ट के चारो न्यायाधिपतियांे द्वारा विवाद के मुद्दो को प्रेस कांफ्रेस का सहारा लेकर सामने लाने की बात पर मत तीव्र विभाजित हो सकते हैं। इस प्रेस वार्ता से एक तरफ उच्चतम न्यायालय की गरिमा, प्रतिष्ठा, निष्ठा व निष्पक्षता की लगभग 70 सालो से खीची गई मजबूत दीवार पर ही एक दरार उत्पन्न हो गई हैं, जो कैसे दूर होगी, कैसे भरेगी, यह एक बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह उत्पन्न करती हैं? इन्ही वरिष्ठ न्यायाधीशों की नजर में उच्चतम न्यायालय में ‘‘सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है’’ं जिसको ध्यान में लाने के लिये उन्होने मुख्य न्यायाधीश को चिठ्ठी लिखी, व्यक्तिगत मुलाकात की, लेकिन उसके बावजूद न तो कोई सुधार हुआ और न ही इन न्यायाधीशो के मन में कोई सुधार की आशा की किरण ही जगी। शायद तभी मजबूरी में उन्होंने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा हैं, की बात को सार्वजनिक किया हैं। लेकिन यह चरम कदम उठाने के पूर्व उनके पास तीन रास्ते और थे। एक महामहिम राष्ट्रपति से मिलकर अपनी व्यथा व्यक्त करते। दूसरा उच्चतम न्यायालय के अन्य समस्त (24) जजो के साथ बैठकर चर्चा कर अपनी बात समझाते और फिर उनकी बात यदि सही मानी जाती तो उन समस्त न्यायाधीशो के साथ मिलकर मुख्य न्यायाधीश से मिलते। तीसरा अपने पद से इस्तीफा देकर प्रेस कान्फ्रेस करते व उसमें यह घोषणा करते कि वे स्वयं उच्चतम न्यायालय में उक्त मुद्दो (रॉस्टर व विशिष्ट केसो को) लेकर याचिका दायर करेगें। तब शायद उन पर न्यायपालिका को सेन्सेशन (सनसनी) बनाने का आरोप नहीं लग पाता। बल्कि लाचारी में बेबश होकर सुधार लाने के लिये ‘‘अंतिम’’ हथियार को उठाकर न्यायालय के प्रति ‘‘धारणा’’ की रक्षा करने के लिये उक्त अप्रिय लेकिन साहसिक कदम उठाने के लिये वे सही ठहराये जाते। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों और आम नागरिक के बीच उक्त मुद्दे को लाने का क्या यही एकमात्र सही तरीका था? प्रश्न ये भी है?ं जिस तरीके को अपनाया गया हैं, निश्चित रूप से उसने उच्चतम न्यायालय की न्याय व्यवस्था पर नागरिको की आस्था को डिगाने का ही प्रयास किया हैं। इससे भी बड़ा प्रश्न यह हैं कि क्या उक्त मुद्दे जो कि उच्चतम न्यायालय के कोलेजियम का आंतरिक मामला था, को इस तरह से सार्वजनिक रूप से लाना निहायत जरूरी व उचित था? विशिष्ट रूप से, क्या न्यायपालिका पर देश के नागरिको के भरोसे पर भी कहीं न कहीं दरार पैदा कर देना देश की न्याय व्यवस्था के लिये एक खतरनाक बात नहीं होगी? सब कुछ ठीक न होने की बात को लेकर न्यायपालिका के कोलेजियम को सुधारने के लिये चार वरिष्ठ जजों ने पद पर रहते हुये जो जज्बा दिखाया हैं उससे भी खतरनाक स्थिति (उनकी न्याय व्यवस्था के ठीक न होने की कल्पना से परे) संविधान के इस महत्वपूर्ण खंभे को ही कहीं चौथा खम्बा (मीडिया) हिला न दे, प्रश्न यह हैं? अभी तक इस मामले में केन्द्रीय सरकार ने यह कहकर अपने को फिलहाल अलग थलग कर लिया हैं कि यह उच्चतम न्यायालय का अन्दरूनी मामला हैं। जब उच्चतम न्यायालय न्याय हित में देश हित में, नागरिको के हित में, संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार एवं कर्त्यव्यो के तहत शासन की अंदरूनी स्थिति (कमियों) पर स्वयं या विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा जांच करवाता रहता हैं, निर्देश देता रहता हैं, तब ठीक वैसी ही स्थिति सर्वोच्य न्यायालय के भीतर उत्पन्न होने पर, सरकार भी मुख्य न्यायाधीश की सहमति से एक स्पेशल सीबाीआई जांच टीम का गठन करने के लिये एक कदम आगे क्यों नहीं बढाती हैं। ताकि वस्तु स्थिति दोनो पक्षों के सामने स्पष्ट हो जाए। चार वरिष्ठ जजों के द्वारा गंभीर रूप से भ्रष्ट्राचार की स्थिति की ओर इंगित करने का प्रयास किया गया हैं जैसा कि मीडिया के कुछ क्षेत्रो में रिपोर्टिग हो रही हैं। चूकि यह एक अभूतपूर्व स्थिति हैं और ऐसी स्थिति का हल भी एक अभूतपूर्व कदम उठा कर ही किया जा सकता हैं। शायद इसके लिये कुछ समय का इंतजार करना होगा? साथ ही प्रंधानमत्री को स्वयं आगे आकर कानून मंत्री को साथ में लेकर मुख्य न्यायाधीश के साथ कोलेजियम की मींटिग बुलाकर समस्त निहित मुद्दो पर चर्चा करने पर कुछ न कुछ हल अवश्य निकलेगा, और उच्चतम न्यायालय की छबि भी अक्षुण्ण रह पायेगी। न्यायालय की स्थिति न केवल न्यायपूर्वक होनी चाहिए बल्कि न्यायपूर्ण होते हुये दिखना भी चाहिए। वैसे ही, जैसे कि न्याय के लिए कहा गया हैं कि न्याय न केवल मिलना चाहिये बल्कि मिलते हुये दिखना भी चाहिए। अंत में इस मामले में किसी भी एक पक्ष को पूर्णतः स्वीकार करना व दूसरे पक्ष को अस्वीकार कर किसी भी पक्ष को बयान बाजी से आगे बचना चाहिए ताकि स्थिति और खराब न हो। कुछ मीडिया चैनलों ने जहां चार ‘‘न्यायाधीशों की प्रेस कांफ्रेस करने को’’ सनसनी फैलाकर जजों को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया हैं, वहीं वे स्वयं इस मुद्दे पर लम्बी चौड़ी बहस कराकर मामले में स्थिति को और खराब कर रहे हैं। न्यायपालिका की गरिमा को बचाये रखने के लिये फिलहाल मीडिया को भी इससे बचना चाहिए।

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महत्वपूर्ण निर्णय! लेकिन अव्यवस्था के घेरे में!

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आम बजट को प्रस्तुत करने के विरोध का कोई संवैधानिक कानून या नैतिक बल नहीं!

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क्या कांग्रेस को मनमोहन सिंह की ईमानदारी पसंद नहीं ?

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विगत दिवस राज्यसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री की तुलना रेनकोट पहनकर नहाने की कला से की हैं। कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा में उक्त बयान की प्रतिक्रिया में न केवल बयानो की झड़ी लगा दी, बल्कि राज्यसभा का बहिष्कार करने की प्र

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तमिलनाडु की घटना देश में ‘‘लोकतंत्र’’ की नई परिभाषा गठित करने जा रही हैं ?

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तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता (अम्मा) की लंबी बीमारी के बाद स्वर्गवासी हो जाने के पश्चात् उत्पन्न हुई स्थिति का सामना महामहिम राज्यपाल तथा जिम्मेदार राजनैतिक पार्टियों व व्यक्तियों द्वारा जिस तरह से किया जा रहा हैं उससे एक नई राजनैतिक कल्पना की उत्पत्ति हुई हैं जिस कारण क्या लोकतंत्र

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एक नागरिक की ‘देशभक्ति’ पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाये जाने का कितना औचित्य ?

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रामजश कॉलेज दिल्ली में हुई घटना के संबंध में वर्ष 1999 में हुये शहीद केप्टन मनदीप सिंह की बेटी गुरमेहर के द्वारा किये गये ट्वीट पर कुछ लोगों द्वारा उसकी देशभक्ति पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाना कितना जायज व उचित हैं? जेएनयू दिल्ली में पिछले वर्ष हुई घटना (वर्तमान घटना से कुछ हट

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पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के मायने?

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गोवा में सरकार बनाने में कांग्रेस की ‘‘असफलता’’ या संविधान की हत्या?

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पांच राज्यांे में साथ-साथ हुये गोवा विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन सरकार बनाने में असफल रही। भाजपा ने न केवल बहुमत होने का दावा पेश किया बल्कि विधानसभा में विश्वास मत जीतने में भी सफल रही। ग

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उच्चतम् न्यायालय के ‘‘निर्णय की मूल भावना’’ का ऑटो कम्पनियों द्वारा घोर उल्लघंन!

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राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के पूर्व ही विपक्ष ने वाकओवर दे दिया!

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17 अगस्त 2017
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विगत पखवाड़ा भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस.खेहर ने भवन के व्यावसायिक उपयोग से संबंधित एक मामले में पीड़ा के साथ यह टिप्पणी की कि इस देश के लोग न्यायालयों के निर्णयो का पालन नहीं कर रहे हैं। कानून तोड़ने तथा कोर्ट के आदेशांे की धज्जिया उड़ाने में वे अपनी शान समझते हैं।

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‘‘बहुमत’’ का निर्णय ‘नैतिक’ रूप से कितना ‘‘बलशाली’’?

24 अगस्त 2017
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एक साथ ‘‘तीन तलाक’’ के संदर्भ में माननीय उच्चतम् न्यायालय द्वारा दो के विरूद्ध तीन के बहुमत से ऐतहासिक फ़ैसला देकर लम्बे समय से चली आ रही बहस को विराम देते हुए ‘‘त्वरित तीन तलाक’’ को असंवैधानिक करार देने के साथ साथ तुरन्त ही एक अन्य बहस को भी अवसर प्रदान कर दिया हैं। व

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गुरमीत सिंह पर आये सीबीआई न्यायालय के निर्णय के पश्चात् उत्पन्न स्थिति के लिये क्या मात्र प्रशासन ही जिम्मेदार हैं?

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रेयान इंटरनेशनल स्कूल में एक मासूम विद्यार्थी की जघन्य हत्या! क्या एक घटना मात्र हैं?

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‘‘गुरूग्राम’’ के ‘‘रेयान इंटरनेशनल स्कूल’’ में हुई एक 7 वर्ष के विद्यार्थी प्रद्युम्न की जघन्य हत्या को पिछले कुछ दिनो से इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया ने इतना अधिक कवरेज दिया है कि फिर वही पुराने अलाप व आरोप मीडिया ट्रायल की स्थिति उत्पन्न हो गई हैं। निश्चित रूप से मासूम की उक्त जघन्य हत्या ने अभिभा

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डॉ. ‘‘गुरमीत सिंह’’ का दूसरा रूप ‘‘बाबा‘‘ ‘‘राम रहीम’’?

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‘‘गुरमीत’’ पर एक ‘‘स्वेत पत्र’’ (व्हाईट पेपर) जारी करने की क्या अभी भी आवश्यकता नहीं हैं?

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सृष्टि की सामान्य परिपाटी और प्रक्रियानुसार प्रतिवर्षानुसार की भाँति इस वर्ष भी वर्ष 2017 का समापन हुआ व वर्ष 2018 का आगाज हुआ। विश्व के विभिन्न अनेकानेेक नागरिको के समान ही राष्ट्र के विभिन्न भागो में हम भारतीयो ने भी विभिन्न तरीको से हुये जश्नों में शामिल होकर नये साल का आगाज किया। लेकिन एक देशभक्

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‘‘आम आदमी पार्टी’’ (आप) वास्तव में क्या ‘‘आम आदमियों की पार्टी’’ (आम)बन गई हैं?

6 जनवरी 2018
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5 तारीख को दिल्ली प्रदेश के लिए होने वाले राज्यसभा चुनाव हेतु आप पार्टी ने निश्चित विजय प्राप्त करने वाले अपने तीनों उम्मीदवारो की घोषणा कर दी हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्य संजय सिंह के अलावा पार्टी ने दो बाहरी ख्याति प्राप्त व्यक्तियों एन.डी. गुप्ता चार्टर्ड एकाउंटेंट तथा भूतपूर्व अध्यक्ष चार्टर्ड

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माननीय उच्चतम् न्यायालय द्वारा केन्द्रीय विद्यालयों में की जा रही प्रार्थना पर केन्द्र सरकार को जारी नोटिस! कितना औचित्य पूर्ण!

15 जनवरी 2018
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मध्यप्रदेश के निवासी विनायक शाह ने देश के 1125 केन्द्रीय विद्यालयों में 50 वर्षो से लगातार हिन्दी-संस्कृत में की जा रही प्रार्थना पर रोक लगाने के लिये दायर याचिका पर केन्द्रीय विद्यालय संगठनों एवं केन्द्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं हैं कि 50 वर्षो से अधिक जारी उक

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‘‘न्यायिक सक्रियता’’ ‘‘न्यायिक संकट’’ (क्राइसेस) में तो नहीं ?

16 जनवरी 2018
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बहुत पहले आपातकाल के समय स्वर्गीय जस्टिस पी.एन. भगवती ने एक नारा दिया था ‘‘प्रतिबद्ध न्यायपालिका’’ (कमिटेड़ ज्यूडिशियरी)। उसके बाद पिछले कुछ समय से जनहित याचिकाओं (पी.आई.एल.) के माध्यम व स्व-प्रेरणा से उच्च न्यायालयांे एवं उच्चतम् न्यायालय ने ऐेसे कई ऐतहासिक निर्णय जन हित में दिये हैं जिन्हे कुछ क्षे

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‘‘माननीयों’’ से ये उम्मीद तो ना थी?

17 जनवरी 2018
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‘‘शुक्रवार’’ को जब सुबह उच्चतम न्यायालय के चार सबसे वरिष्ठतम् न्यायाधिपतियों (जिनमें एक वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के इस वर्ष के मध्यांतर में रिटायर्ड होने के पश्चात वरिष्ठता के अनुसार मुख्य न्यायाधीश के क्रम में रंजन गगोई भी शामिल हैं) ने प्रेस कान्फ्रेस करके इस देश के न्यायिक इतिहास में न केवल एक अनच

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’’वैधानिकता’’ व ’’नैतिकता’’ के बीच उलझे ‘‘आप’’ के अयोग्य २० विधायक!

24 जनवरी 2018
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अंततः महामहिम राष्ट्रपति ने आप के 20 विधायको को लाभ के पद पर होने के कारण उत्पन्न हुई कानूनी अयोग्यता की चुनाव आयोग की सिफारिश को स्वीकार कर लिया। अतः उच्च न्यायालय में सोमवार को सुनवाई होने वाली आप के विधायको की याचिका भी शून्य हो गई। इसीलिये उनके द्वारा उक्त याचिका को दिल्ली उच्च न्यायालय से वापस

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उच्चतम न्यायालय के निर्णय की भावना का उल्लघंन क्या ‘‘अवमानना’’ की सीमा में नहीं आता हैं?

30 जनवरी 2018
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इस समय पूरे देश में पद्मावती-पद्मावत, राजपूत समाज व करणी सेना की ही चर्चा हैं। फिर चाहे वह पिं्रट मीडिया हो, इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या सोशल मीडिया हो। फिल्म ‘‘पद्मावती’’ को कई संशोधन व कट के पश्चात ‘पद्मावत’ के नाम से संेसर बोर्ड द्वारा फिल्म प्रदर्शन हेतु यू.ए. प्रमाण पत्र मिल जाने के बावजूद उक्त फ

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क्या ‘‘मीडिया हाऊस’’ को राष्ट्रीय शोक घोषित करने का अधिकार नहीं दे देना चाहिए?

4 मार्च 2018
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फिल्मी कलाकार, एक्ट्रेस, ‘‘डबल रोल की रानी’’ ‘‘प्रथम महिला सुपरस्टार, ‘‘पद्मश्री’’ श्रीदेवी’’ की मौत अचानक परिस्थिजन्य शंकास्पद स्थिति में दुबई में हो गई। तत्पश्चात् दुबई पुलिस द्वारा गहन जांच के बाद समस्त शंकाओ का निराकरण करते हुये श्रीदेवी की मौत को प्राकृतिक मौत का मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया। न

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‘‘विदेशों में मोदी का डंका’’!‘‘देश में अमित शाह का डंका’’!

6 मार्च 2018
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‘पूर्वोत्तर’’ में आये चुनाव परिणाम निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कांग्रेस मुक्त देश की सोच के अनुरूप ही हैं, जिन्होने सफलतापूर्वक विदेशों में विश्व के शक्तिशाली देश अमेरिका, रूस, चीन के रहते हुये उन्हे पछाड़कर या उनके समकक्ष विश्व नेता बनकर भारत देश का डंका बजाया है। विश्व के राष्ट्राध

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लाल निशान! शांतिपूर्ण मार्च?

16 मार्च 2018
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‘‘ऑल इण्ड़िया किसान सभा’’ के बैनर तले लगभग 45 से 50 हजार निर्धन किसानो, खेतिहर मजदूरो व आदिवासी भूमिहीन श्रमिको का लगभग 200 किलो मीटर तक का पैदल मार्च 7 मार्च को ‘नासिक’ से लगातार पांच दिन रात चलकर सोमवार दिनंाक 12 मार्च को देश की आर्थिक राजधानी, व महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई के ‘‘आजाद मैदान’’ में प

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सलमान खान को क्या ‘‘भारत रत्न’’/‘‘नोबेल पुरस्कार’’ मिल गया है?

10 अप्रैल 2018
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पिछले तीन दिनो से खासकर दो दिन लगातार इलेक्ट्रानिक मीडिया व कुछ हद तक प्रिंट मीडिया सेलीब्रिेटी सलमान खान को ही दिखाये-छापे जा रहा है, जिसे देखने-पढ़ने के लिए आम दर्शक-पाठक मजबूर है। बेशक सलमान खान देश के बड़े फिल्मी सेलीब्रिटी है। ‘‘वालीवुड’’ में अमिताभ बच्चन के बाद वे शायद देश के दूसरे सबसे बड़े सफल

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कर्नाटक के नाटक (घटनाक्रम) में न्यायपालिका की भूमिका क्या पूर्णतः न्यायोचित रही?

31 मई 2018
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अन्ततः कर्नाटक में सियासी दाव पंेच आजमाने के बाद मात्र ढ़ाई दिन की बी.एस. येदियुरप्पा की सरकार का अंत हो गया, जो होना ही था और अन्ततः नई सरकार चुनने का रास्ता साफ हो गया। अध

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आरएसएस के आमंत्रण की ‘‘प्रणब दा’’ द्वारा स्वीकारिता पर इतना हंगामा क्यों?

4 जून 2018
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‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’’ मुख्यालय नागपुर में प्रत्येक वर्ष संघ तृतीय वर्ष शिक्षा वर्ग के समापन (दीक्षांत समारोह) का आयोजन करता है। इसके अतिरिक्त संघ प्रत्येक वर्ष विजया-दशमी (दशहरा) के शुभ अवसर पर मुख्यालय नागपुर में ही वार्षिकोत्सव का आयोजन भी करता है। इन अवसरो पर संघ देश की विभिन्न प्रमुख हस्ति

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सर्वोच्च निर्णय! कोई सर्वोच्च नहीं!

5 जुलाई 2018
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माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध दिल्ली सरकार की अपील पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देकर जो व्यवस्था की, उसका घोषित प्रभाव यह हुआ कि संवैधानिक रूप से दिल्ली में न तो मुख्यमंत्री ही और न ही उपराज्यपाल सर्वोच्च है। उच्चतम न्यायालय ने चुनी हुई सरकार के महत्व को स्थाप

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क्या देश के नागरिको के रहवासी भवन के प्रति सुरक्षा की गांरटी हेतु कानूनी प्रावधान बनाने का समय नहीं आ गया है?

27 जुलाई 2018
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विगत एक हफ्ते के भीतर देश की राजधानी दिल्ली के पास एनसीआर में नवनिर्मित या निर्माणाधीन या पुरानी बिंल्डिग अचानक ढ़ह जाने की लगातार चार घटनाएँ हो गई जिस कारणं सम्पत्ति के अलावा जानमाल का भी बड़ा नुकसान हो गया। ये घटनाएं 17, 21, 22 जुलाई 2018 के बीच गाजियाबाद, शाहबेरी, मसूरी, साहिबाबाद में हुई हैं। शाहब

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‘‘सरकारें ’’ देशहित में ‘‘जुमलों’’ से कब बाहर आयेगीं?

17 सितम्बर 2018
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यद्यपि हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दावा करते हैं, और हैं भी। तथापि जनता लोकशाही से, लोकतांत्रिक तरीके से लोकतांत्रिक मूल्यो के आधार पर देश चलाने की अपेक्षा करती है। लेकिन पिछले कई दशकांे से हमारे देश में लोकतंत्र के नाम पर ‘‘जुमले बाजी’’ ही चल रही है। एक ‘जुमले’ मात्र से कई बार सरका

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‘‘उच्चतम् न्यायालय का ‘‘निर्णय’’ कितना प्रभावी ‘‘कितना औचित्यपूर्ण’’?

29 सितम्बर 2018
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संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार ‘‘उच्चतम् न्यायालय’’ के समस्त निर्णय न्यायिक और बंधनकारी होते है। लेकिन इसके बावजूद हमेशा ही उच्चतम् न्यायालय के निर्णयांे के औचित्य पर बहस होती रही है और यह स्वस्थ्य व मजबूत लोकतंात्रिक न्याय व्यवस्था का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। आरोपित नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से

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क्या माननीय उच्चतम न्यायालय त्यौहारों के मुहूर्त भी निकालेगी?

26 अक्टूबर 2018
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माननीय उच्चतम न्यायालय के आए निर्णय ने एक बार फिर उच्चतम न्यायालय के निर्णयों पर प्रश्नवाचक चिन्ह उठा दिया है। उच्चतम न्यायालय ने अपने इस निर्णय द्वारा विभिन्न धार्मिक आयोजनों के अवसरों पर पटाखे जलाने की समयावधि, गुणवक्ता की डेसीबल व मात्रा तय की है। आखिर उच्चतम न्यायालय को आज कल हो क्या गया है? मू

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सरदार पटेल की मूर्ति ‘‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’’ का अनावरण। भारत देश गरीब या अमीर?

5 नवम्बर 2018
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लगता है, भारत एक अमीर व विकसित देश हो गया है? आज का ही (31 अक्टूबर) दिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण ‘‘बलिदान दिवस’’ व भारत की एकता व अखंडता बनाए रखने में अति विशिष्ट महत्वपूर्ण व एकमात्र योगदान देने के कारण पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस को राष्ट्र एकता दिवस

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राहुल गांधी का ‘एप’ के माध्यम से मुख्यमंत्री चुनना! जनादेश का अपमान नहीं?

15 दिसम्बर 2018
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पाँच प्रदेशों में हुये विधानसभा चुनावों में तीन विधानसभाओं में कांग्रेस सरकारें बनने जा रही है। कांग्रेस पार्टी द्वारा तीन प्रदेशों में मुख्यमंत्री चुनने की प्रक्रिया की औपचारिकताओं की (औपचारिक) पूर्ती की जाकर विधायक दल द्वारा अंतिम निर्णय लेने का अधिकार परम्परा अनुसार हाई कमान अर्थात राहुल गांधी को

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स्वतंत्रता के 70 सालों के पश्चात भी क्या यही ‘‘परिपक्व’’ लोकतंत्र है?

19 दिसम्बर 2018
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पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं। चुनाव पूर्व का ‘‘ओपीनियन पोल’’ तुरन्त चुनाव बाद का ‘‘एक्जिट पोल’’ व अब ‘‘वास्तविक परिणाम’’ आपके सामने है। मैं यहाँ पर पर

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स्वतंत्रता के 70 सालों के पश्चात भी क्या यही ‘‘परिपक्व’’ लोकतंत्र है?

19 दिसम्बर 2018
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पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं। चुनाव पूर्व का ‘‘ओपीनियन पोल’’ तुरन्त चुनाव बाद का ‘‘एक्जिट पोल’’ व अब ‘‘वास्तविक परिणाम’’ आपके सामने है। मैं यहाँ पर परिणामों का विश्लेषण नहीं कर रहा हूूंँ। ये सब ‘‘पोल’’ अनुमान के कितने नजदीक थे, सही थे, या आश्चर्य जनक थे, इस संबंध में भी कोई विशेष मूर्धन्य़

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कहीं भाजपा का ‘‘कमल’’(भगवा) एजेंडा’’ कांग्रेस के ‘‘नाथ’’ ने चुरा तो नहीं लिया है?

22 दिसम्बर 2018
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मध्यप्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में ‘‘कमल’’ को अनाथ न होने देने वाले हमारे पडोसी जिले छिंदवाडा के कमलनाथ द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली गई जिसके लिये उन्हे हार्दिक बधाईयाँ, वंदन व अभिनंदन। सम्पन्न शपथ ग्रहण समारोह में वास्तव में ऐसा लगा ही नहीं कि वह किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण स

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केन्द्रीय सरकार का ‘‘आर्थिक आधार’’ पर 10 प्रतिशत आरक्षण का निर्णय! कितना अधूरा! कितना पूर्ण?

12 जनवरी 2019
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वास्तव में हमारे देश में यदि किसी भी ‘‘सरकार’’ से कोई निर्णय अपने पक्ष में करवाना हो तो सरकार के चुने जाने के 4 साल तक तो वह आपकी मांगे व मुद्दो पर गंभीरता से कोई विचार ही नहीं करती है, क्योकि तब तक वह आपके चुनावी दबाव में ही नहीं होती है। परन्तु चुनावी वर्ष में चुनावी मोड में आ जाने के बाद आपका मु

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क्या कानून व्यवस्था ‘कांग्रेस’ व ‘भाजपा’ के लिये अलग-अलग है?

24 जनवरी 2019
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विगत दिवस मंदसौर में भाजपा नेता व प्रथम नागरिक नगर पालिका अध्यक्ष प्रहलाद बंधवार की सरे आम गोली मारकर हत्या कर दी गई। निश्चित रूप से यह एक बेहद दुखद घटना थी और पुलिस ने त्वरित कार्यवाही कर 24 घंटे के भीतर ही एक आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ का उक्त घटना पर यह बयान कि यह भाजप

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‘‘कुंभ’’ ‘‘महाकुंभ’’ और ‘‘अर्धकुंभ’’ में क्या कोई अंतर हैं?

31 जनवरी 2019
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प्रयागराज (इलाहबाद) में मकर संक्र्राति से ‘‘अर्धकुंभ’’ प्रारंभहुआ है। लेकिन इस अर्धकुंभ को केन्द्रीय सरकार से लेकर उत्तर प्रदेश सरकार व समस्तमीडिया चाहे वह प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक इसे कुंभया महा!कुंभ कहकर महिमा-मंडित कर रहे हैं। इस ‘‘कुंभ’’ के जबरदस्तप्रचार-प्रसार के कारण ही मुझे भी यह शक हु

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2019 के लोकसभा चुनाव केे बाद ‘‘एनडीए’’ के प्रधानमंत्री क्या नितिन गडकरी होगें?

2 फरवरी 2019
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भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, आरएसएस के करीबी, कॉर्पोरेट और व्यापार जगत के चहेते और केन्द्र की मोदी सरकार के नियत अवधि में अपेक्षित परिणाम देने वाले सड़क परिवहन, जहाज रानी व गंगा सफाई विभाग के मंत्री नितिन गडकरी केे पिछले कुछ समय से जो बयान आ रहे है वे निश्चित रूप से सामान्य

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अरविंद केजरीवाल का बयान! संविधान व लोकतंत्र विरोधी कौन?

19 फरवरी 2019
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‘‘दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल’’ के मामले में उपराज्यपाल एवं दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र के विवाद पर उच्चतम न्यायालय का बहुप्रतिक्षित निर्णय आ गया है। उक्त निर्णय पर आई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की त्वरित प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री पद पर बैठे हुये व्यक्ति के लिये न केवल अत्यधिक अमर्यादित

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देशप्रेम-राष्ट्रभक्ति-राष्ट्रवाद को ढूढ़ता मेरा प्यारा देश!

5 मार्च 2019
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इस लेख का ‘‘शीर्षक’’ देख कर बहुत से लोगों को हैरानी अवश्य होगी और आश्चर्य होना भी चाहिये। पर बहुत से लोग इस पर आखें भी तरेर सकते है। यदि वास्तव में ऐसा हो सका तो, मेरे लेख लिखने का उद्देश्य भी सफल हो जायेगा। एक नागरिक, बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा एक भारतीय पैदाईशी ही स्वभावगतः देशप्रेमी होता है।

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आखिर देश को क्या हो गया है।

13 मार्च 2019
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‘‘पुलवामा’’ में हुई बड़ी वीभत्स आंतकी घटना में 40 सैनिकों के शहीद हो जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में किये गये हवाई हमलों के द्वारा ‘‘जैश-ए-मोहम्मद’’के आंतकवादी कैम्प (प्रशिक्षण शिविर) को नष्ट करने के बाद सम्पूर्ण देश ने एक जुट होकर सेना व सरकार को बधाई दी थी। कांग्रेस सहि

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‘‘पर्रिकर’’ ‘‘वाद’’ को ढूँढता मेरा देश। ‘व’’ ‘‘गांधीवाद’’ से चलकर ‘‘पर्रिकरवाद’’ तक पहुंचने का सुखद अहसास!

27 मार्च 2019
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देश के प्रथम आई.आईटी शिक्षा प्राप्त (गोवा के) मुख्यमंत्री एवं पूर्व रक्षामंत्री डॉ. मनोहर गोपाल कृष्ण प्रभु पर्रिकर लम्बी बीमारी से अदम्य आत्मबल के साथ लड़ते हुये अब इस दुनिया में नहीं रहे और ‘‘स्वर्गवासी’’ हो गये। याद कीजिये! विधानसभा में बजट प्रस्तुत करते समय उनका वह चेहरा, जो चिकित्सकीय उप

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बिगड़े नेताओं के ‘‘बिगडे़ बोल’’-‘‘विवादित बोल’’! फायदा-नुकसान कितना!

31 मार्च 2019
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भारतीय राजनीति में हमेशा से ही ‘‘बयानवीर’’ मीडिया में सुर्खिया पाते रहे है। विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के कुछ नेतागण अपने बेवाक बयानों के माध्यम से सुर्खियाँ बटोरनें के उदे्श्य से ऐसे बयान देते रहते है, जिसके परिणाम स्वरूप उनकी छाप एक चर्चित चेहरे की होकर वे माने जाने

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2019 के आम चुनाव के मुद्दे, क्या ‘‘स्थापित चुनावी मुद्दों से’’ हटकर हैं।

3 मई 2019
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स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वर्ष 2019 में देश का यह 17 वाँ आम चुनाव हो रहा है। प्रारंभ में स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर भाग लेने वाली पार्टी (सत्य से परे) एक मात्र कांग्रेस ही मानी जाती रही। वर्ष

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‘‘परिपक्व लोकतंत्र’’ में ‘‘परिपक्व’’ होते मतदाता का ‘‘परिपक्वता पूर्ण’’जनादेश!

3 जून 2019
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विश्व के सबसे बड़े लोकतंात्रिक देश भारत में हुये 17 वंे आम चुनाव का जनादेश आपके सामने है। ऐतिहासिक जीत से लेकर ऐतिहासिक हार के परिणामों की व्याख्या विभिन्न लेखों व प्रतिक्रियाओं के माध्यम से आप मीडिया में अवश्य देखेगंे/पढे़गें। वैसे तो हर आम चुनाव परिणाम पिछले चुनाव परिणाम से कुछ न कुछ भिन्न स्थिति

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साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने आखिर गलत क्या कहाँ ?

26 जुलाई 2019
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भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जो पूर्व में भी अपने कई बयानों के कारण मीडिया व देश की राजनीति में न केवल चर्चित रही, बल्कि उनके बयानों के कारण भाजपा को शर्मिदंगी भी उठानी पड़ी है, व पार्टी की किरकिरी भी हुई है। प्रधानमंत्री तक को पार्टी की छवि बचाने के लिये यह कहना पड़ा कि गोड़से को देशभक्त बता

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अनुच्छेद 370 (2) एवं (3) समाप्त! लेकिन उपबंध (1) क्या 370 का भाग नहीं?

8 अगस्त 2019
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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के इतिहास में राष्ट्रीय सुरक्षा व अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से वर्ष 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सबसे बड़ा कदम उठाकर पाकिस्तान को युद्ध में बुरी तरह से पटकनी देकर बंग्लादेश का निर्माण किया था। भारतीय सेना ने उक्त युद्ध में दो लाख से अधिक पाकिस्तानी सैनिको

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‘‘नौ सौं चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’’

28 अगस्त 2019
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विश्व के 195 देशों में भारत निश्चित रूप से एक अनूठा स्थान लिये हुये है। शायद इसका एक बहुत बड़ा कारण हमारी पीढि़यों से चली आ रही खुबसूरत सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासत है। हमारे देश की संस्कृति में इतनी (एकता में अनेकता) विभिन्नतायें है, जो सदैव जीवन्त बनी रहकर और अंततः एक मुहावरे के रूप में प्रसिद्ध ह

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अभी तक का सफर। कितना सफल।

21 अक्टूबर 2019
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वर्ष 1925 में विजयादशमी के पावन दिवस पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा एक शाखा प्रांरभ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की गई थी। वर्ष 2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी सौवीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। किसी भी संगठन के लिये 100 वर्ष पूर्ण करने का अत्यधिक महत्व होता है, क्योंकि इतने लम्बे सम

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‘‘50-50!’’ ‘‘क्या राजनीति में इसका अर्थ अलग होता है’’!

16 नवम्बर 2019
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अंततः शिवसेना-भाजपा का वर्ष 1990 से चला आ रहा लगभग 30 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया। तथाकथित 50-50 फॉमूले को आधार बनाकर महाराष्ट्र विधानसभा के परिणाम आने के तुरन्त बाद से ही शिवसेना के प्रवक्ता एवं सांसद संजय राउत लगातार यही कहते रहे है कि मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही बनेगा। 50-50 के सूत्र को स्पष्ट कर

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भारतीय राजनीति की नई ‘गुगली’।

3 दिसम्बर 2019
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स्वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास में बीता कल अभूतपूर्व कहलायेगा! यह घटना राजनैतिक भूचाल नहीं, बल्कि ‘भूकम्प’ है, जो स्वतंत्रता के बाद देश के राजनैतिक पटल पर प्रथम बार हुआ है। राजनीति में नैतिकता के निरंतर गिरते स्तर के बावजूद, इस तरह की यह पहली अलौकिक, अनोखी, अचम्भित करने वाली एक आश्चर्यजनक घटना है।

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आखिर! ‘न्याय’-‘इंसाफ’! इंसानियत एवं ‘न्यायप्रिय’ तरीके से ‘कैसे’ व ‘कब’ मिलेगा। ‘‘जन भावनाओं’’ से ‘‘न्याय व्यवस्था’’ नहीं ‘‘लोकतंत्र’’ चलता है।

12 दिसम्बर 2019
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6 दिसम्बर सुबह जैसे ही टीव्ही पर हैदराबाद की रेप पीडि़ता ‘‘दिशा’’ की वीभत्स हत्या के चारों अभियुक्तों के एनकाउंटर में मारे जाने की खबर आयी, लगभग पूरे देश में एक अजीब सी खुशी का माहौल पसर गया। तब से चारांे तरफ अधिकांश खुशी ही खुशी व्यक्त करते हुये एक ही आवाज आ रही है कि ‘‘इंसाफ’’ मिल गया है। देश में

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‘‘मोदी के दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष का लेखा-जोखा।’’

1 जून 2020
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आज आप पूरे देश के प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के दूसरे कार्य काल की 1 वर्ष की उपलब्धियों के समाचार पढ़ और देख रहे होंगे। प्रधानमंत्री ने स्वयं अपने दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष में किए गए कार्यों की जानकारी बड़े ही शालीन तरीके से

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क्या ‘‘कोरोना’’ ने ‘‘नौकरशाही’’ को कुंठित तो नहीं कर दिया है?

2 जून 2020
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लॉकडाउन-4 समाप्त! लॉकडाउन-5 प्रारंभ नहीं। बल्कि इसकी जगह देश अनलॉक-1 (नॉकडाउन-1) के नये दौर में देश प्रवेश कर रहा हैं। यह नया दौर कैसा होगा, यह तो भविष्य ही बतलायेगा। आइये, तब तक नौकरशाही द्वारा जारी अपरिपक्व आधे-अधूरे आदेशों निर्देशों के संबंध में गुजरे लॉकडाउन का थोड़ा अवलोकन कर लें। ‘देश’ व ‘जीवन

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‘‘आंकड़ों’’ के ‘‘खेल’’ की ‘‘बाजीगरी’’ द्वारा ‘‘कोरोना’’ पर ‘‘राजनीति’’क्यों?

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कोरोना वायरस को भारत में आए 4 महीने पूर्ण हो चुके हैं। हमारे देश में प्रथम मरीज 30 जनवरी को केरल के ‘‘त्रिशूर’’ में आया था। ‘‘कोरोना’’ (कोविड़-19) राष्ट्रीय महामारी और आपदा के रूप में, हमारे देश के लिये एक अत्यंत चिंता का विषय था। इसलिए सत्ता और विपक्ष के साथ देश की संपूर्ण जनता 30 जनवरी को एक साथ खड़

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विश्व में ‘‘लाॅकडाउन की नीति’’ कहीं ‘गलत’ व ‘‘असफल’’ तो सिध्द नहीं हो रही है?

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‘‘कोरोनावायरस’’ ‘‘(कोविड़-19)’’ के संक्रमण को रोकने के लिये कमोवेश पूरे विश्व में लाॅकडाउन की नीति अपनाई, जिसके परिणाम स्वरूप आज विश्व के लगभग 200 देशों की आधी से ज्यादा आबादी घर में कैद है, और आर्थिक रथ का चक्का जाम हो गया हैं। इसके बावजूद कमोवेश कुछ को छोड़कर प्रायः हर देश में संक्रमित मरीजों की संख

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क्या परिपक्व होते लोकतंत्र में ‘‘सरकारे’’ ‘‘गिराई’’ जाती है? अथवा ‘‘बनाई’’ जाती है?

12 जून 2020
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राजस्थान में राज्य सभा के हो रहे चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस का यह बयान आया है कि, राजस्थान में भी भाजपा ने मध्य प्रदेश के समान ही‘ ऑपरेशन कमल‘ पर अमल करना शुरू कर दिया है। भाजपा खरीद फरोख्त के द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है। विधायक दल के सचेतक द्वारा इसकी भ्

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भारतीय राजनीति में ‘सवालों’ के ‘जवाब’ के ‘उत्तर’ में क्या सिर्फ ‘सवाल’ ही रह गए हैं?

30 जून 2020
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भारतीय राजनीति का एक स्वर्णिम युग रहा है। जब राजनीति के धूमकेतु डॉ राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी बाजपेई, बलराम मधोक, के. कामराज, भाई अशोक मेहता, आचार्य कृपलानी, जॉर्ज फर्नांडिस, हरकिशन सिंह सुरजीत, ई. नमबुरूदीपाद, मोरारजी भाई देसाई, ज्योति बसु, चंद्रशेखर, तारकेश्वरी सिन्हा जैसे अनेक हस्तियां रही है।

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‘‘चीन’’ का नाम ‘‘क्यों’’ नहीं लिया ? भारतीय? राष्ट्रीय? कांग्रेस!

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘अचानक’ ‘‘लेह’’ (लद्दाख) की 11000 फुट की उंचाई पर स्थित अग्रिम चौकी ‘‘नीमू’’ पंहुचकर सैनिकों के बीच ‘‘दम’’ भर कर सेना की हौसला अफजाई की। यह कहकर कि ‘‘बहादुरी और साहस शांति की जरूरी शर्ते है, दुश्मन ने हमारे जवान की ताकत व गुस्से को देखा है‘‘। उक्त दौरे के बाद कांग्रेस क

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‘विकसित’’ यूपी में ‘‘विकास‘‘ ‘‘राज‘‘ के साथ ‘‘ अराजकता राज‘‘ भी चल रहा है!

11 जुलाई 2020
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जिस बात की आशंका ‘‘गैंगस्टर’’ विकास दुबे की गिरफ्तारी के समय उत्पन्न हो रही थी व कतिपय क्षेत्रों में व्यक्ति भी की गई थी, वह अंततः चरितार्थ सही सिद्ध हुई। मुठभेड़ की घटना के पूर्व ही माननीय उच्चतम न्यायालय में एक वकील द्वारा दायर याचिका में भी उक्त आंशका व्यक्त की गई थी। यह आशंका भी व्यक्त की जा रही

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‘‘फेक’’ ‘‘एनकाउंटर’’ को ‘‘वैध‘‘ बनाने के लिए ‘‘कानून‘ क्यों नहीं बना देना जाना चाहिए?

22 जुलाई 2020
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‘‘विकास दुबे एनकाउंटर’’ (मुठभेड़) पूरे देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित है। यह घटना न केवल स्वयं ‘‘सवालों में सवाल’’ लिये हुये है, बल्कि उपरोक्त ‘‘शीर्षक’’ प्रश्न भी पुनः उत्पन्न करता है। लगभग हर ‘एनकाउंटर’ के बाद उस पर हमेशा प्रश्नचिन्ह अवश्य लगते रहे हैं। उक्त ‘प्रश्नचिन्ह’ क

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‘‘न्यूटन के गति‘‘ का नियम क्या ‘‘अपराधिक राजनीति पर भी लागू होता है?

20 अक्टूबर 2020
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‘‘न्यूटन‘‘ क्या भारतीय राजनीति को ‘‘न्यूट्रल‘‘ कर देगें?मैं विज्ञान का छात्र रहा हूं। बचपन में मैंने पढ़ा है कि ‘‘न्यूटन के गति‘‘ के तीसरे नियम के अनुसार ‘‘हर क्रिया के बराबर (समान) और विपरीत प्रतिक्रिया होती है‘‘। प्रसिध्द वैज्ञानिक ‘‘न्यूटन‘‘ ने अपनी पुस्तक ‘‘प्रिंसीपिया मैथमैटिका‘‘ (वर्ष 1687) के

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बिहार के चुनाव ‘‘परिणाम’’ कहीं ‘‘अंकगणित‘‘ को गलत तो सिद्ध नहीं कर देंगे?

5 नवम्बर 2020
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बिहार के चुनाव परिणाम प्रायः अप्रत्याशित ही रहे हैं। याद कीजिये! पिछले विधानसभा के आम चुनाव के परिणाम। पहले घंटे के निकले प्रारंभिक रुझान पर स्टूडियोज में बैठे समस्त ज्ञानी, बुद्धिजीवी, मूर्धन्य पत्रकार, राजनीतिक पंडित व विशेषज्ञों द्वारा तेजी से प्रतिक्रिया देने के बाद परिणाम के धीरे-धीरे और अंततः

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किसान आंदोलन! उत्पन्न ‘‘आशंका के परसेप्शन‘‘ को दूर करने के लिए सरकार को ‘‘कदम उठाने‘‘ ही होंगे।

7 दिसम्बर 2020
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अभी हाल में ही मैंने बिहार विधानसभा के आम चुनाव और मध्य प्रदेश के उपचुनावों के संबंध में यह लिखा था कि ‘‘अंकगणित की जीत‘‘ के साथ ही उससे उत्पन्न ‘‘परसेप्शन‘‘ को जीतने पर ही ‘‘जीत पूर्ण‘‘ कहलाती है। किसान आंदोलन को देखते हुए परसेप्शन का उक्त सिद्धांत संसद एवं सरकार द्वारा लागू अधिनियम एवं लि

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सरकार और किसान नेता क्या ‘‘दिशाहीन‘‘ होकर मुद्दे से ‘‘भटक गये‘‘ या ‘‘परस्पर भटका‘‘ रहे है?

18 दिसम्बर 2020
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किसान आंदोलन के 22 दिन हो गये है। लेकिन अभी तक दोनों पक्षों के अंतिम निष्कर्ष व निर्णय पर पंहुच न सकने के कारण स्थिति रबड़ के समान खिंच कर वापिस न आने के कारण पूर्वतः दो विपरीत छोरों पर (दिल्ली सीमा के दोनों पार) रुकी हुई है। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि इन 21 दिनों में कुछ भी सकारात्मक व नका

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‘‘गांधी‘‘ के ‘‘साथ‘‘व ‘‘गांधी‘‘ के ‘‘बिना‘‘ ही कांग्रेस का ‘‘अस्तित्व एवम नियति‘‘ है।

23 दिसम्बर 2020
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पूर्व में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की कांग्रेस हाई कमांड को लिखी गई ‘चिट्ठी’ पर सोनिया गांधी के ‘‘बुलावे’’ पर इन समस्त ‘‘तथाकथित असंतुष्टों‘‘ व नाराज नेताओं की एक चिंतन बैठक हुई। ‘चिंता’ की सीमा तक कांग्रेस की ‘‘चिंताजनक स्थिति‘‘ हो जाने के कारण बैठक को उपयोगी बनाने हेतु‘‘ चिंतन बैठक‘‘ का नाम देना तो

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देश में ‘‘लोकतंत्र‘‘ ‘‘खत्म’’ हो गया है! राहुल गांधी! सही!/?

26 दिसम्बर 2020
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महामहिम राष्ट्रपति को किसानों के मुद्दे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसदों द्वारा अपने नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विरोध मार्च कर ज्ञापन सौंपने की अनुमति देने के बजाए धारा 144 लागू किये जाने पर राहुल गांधी को यह कहना पड़ गया कि देश में ‘‘लोकतंत्र समाप्त‘‘ हो गया है। रात्रि की अंधकार की गहरा

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