इस लेख का ‘‘शीर्षक’’ देख कर बहुत से लोगों को हैरानी अवश्य होगी और आश्चर्य होना भी चाहिये। पर बहुत से लोग इस पर आखें भी तरेर सकते है। यदि वास्तव में ऐसा हो सका तो, मेरे लेख लिखने का उद्देश्य भी सफल हो जायेगा।
एक नागरिक, बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा एक भारतीय पैदाईशी ही स्वभावगतः देशप्रेमी होता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार से संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार उसे जन्मते ही प्राप्त हो जाते है, और संवैधानिक कर्त्तव्य का बोध भी उसे हो जाता है। ऐसी सामान्य कानूनी मान्यता है। परन्तु जब हम इन गुणों की जमीनी वास्तविकता को धरातल पर परखतेे है और उनकी वास्तविक स्थिति को मापने का प्रयास करते है, तो न केवल हम अधिकतर जगह पर विफल होते हैं, वरण उसमे मैं अपने आप को भी असफल पाता हूँ। इसके लिए मैं स्वयं को दूसरो की तुलना में कुछ ज्यादा ही दोषी मानता हँू। एक देश भक्त नागारिक के कर्त्तव्यों का पूर्णतः पालन करने में मैं स्वयं भी असफल रहा हूँं। वास्तव में यह हमारा एक आम परिवेश है, जिसका मैं भी एक भाग भर हूँ।
‘‘पुलवामा’’ आतंकी घटना के बाद से पूरे राष्ट्र में, समस्त प्रिंट, इलेक्ट्रानिक एवं सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न संगठनों, राजनैतिक पार्टियों एवं स्वयंसिद्ध-वीर नागरिकों के एक से बढ़कर एक बयानों की बयार सी आ गई है। पाकिस्तान से आक्रमक आक्रमण (युद्ध) कर मटिया-मेट, नष्ट-नाबूद करने से लेकर समाप्त कर देने तक के ओजस्वी बयान देकर स्वयं को सबसे बड़ा देश प्रेमी सिद्ध कर स्वयंभू देशभक्त होने का प्रमाण पत्र ले रहे हैं। यदि आप उन बयानों में ‘शब्दो’ का चयन देखें व उन शब्दों को थोड़ा भी ध्यानपूर्वक पढं़े, तो आपको उनमें मात्र खोखला पन सतही पन, व विरोधाभाष ही महसूस होगा। मात्र वे वीर रस की अभिव्यक्ति भर नजर आवेंगे।
कुछ जुमले आगे उद्वरित हैं जैसे ‘‘पाकिस्तान झुक गया है’’, ‘‘अंतिम सासें गिन रहा है’’, ‘‘धबराया हुआ है, ‘‘घुटने टेक दिये है‘‘, ‘‘झुक गया है’’, ‘‘ड़र के मारे रात भर सोया नहीं है’’ ‘‘पाकिस्तान को समझ में आई उसकी औकात’’, ‘उसका पानी बंद कर दिया है’’, ‘‘भूखा मरेगा’’, ‘‘भीख मांगना पाकिस्तान की फितरत है’’, ‘‘शांति की भीख लिए गिडगिडा रहा है’’, ‘‘बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए’’, ‘‘हर मोर्चो पर पीटा है-ठोका है’’ इत्यादि-इत्यादि। हमारे देश के शांति प्रिय नागरिक भी वीर जवानों से भी ज्यादा, युद्ध करने की अनचाही, अनमांगी, साहसिक सलाह सरकार को दे रहे है। एक उदाहरण ‘‘इमरान खान बार-बार भारत से बातचीत का अनुरोध कर रहा है व शांति की भीख के लिये गिड़गिड़ा रहा है’’, ऐसा अधिकांश मीडिया उल्लेख कर रहे हैं। साथ ही साथ बार-बार वे यह भी दिखा रहे हैं कि ‘‘पाकिस्तान माननें को तैयार नहीं’’,‘‘पाकिस्तान नहीं सुधरा’’, ‘‘पाकिस्तान ने फिर सीमा का उल्लंघन किया है’’ एलओसी स्थित बालाकोट पर हवाई हमले के बाद गांवों में दहशत हैं। एक हमले के अंदर 60 से भी ज्यादा बार सीमा का उल्ल्घंन किया गया है जिसमें 15 से अधिक सैनिक व सिविलियन शहीद हुये हैं। समस्त मीडिया द्वारा दिये गये इतने सब शीर्षकों/अंलकारों से महिमा मंडित करने के बावजूद पाकिस्तान, सीमा का उल्ल्घंन करने का साहस/दूःसाहस लगातार कर रहा है तो, इस तरह की वाणी/कथनांे का तीर चलाकर क्या मीडिया हाऊसेस भी पाकिस्तान की सीमा पार उल्लघंन की कार्यवाहियों को अनजाने में ही सम्मान व ऊंचाई प्रदान नहीं कर रहे है? क्योंकि इन विरोधाभाषी कथनों का यही अर्थ निकलता है कि एक कमजोर घबराया हुआ व घुटने टेकने वाला मजबूर पाकिस्तान बावजूद लगातार आंतकी कार्यवाही कर हमारे सैनिकों व सिविलियनों को मार रहा है, जबकि एक मजबूत भारत बालाकोट पर हवाई हमले करने के बावजूद आंतकी घटनाओं को रोकने में आवश्यक कार्यवाही करने में असफल हो रहा है। शब्दों का खोखला पन भर ये ही है। भीख शब्द के उपयोग करने की यहाँ क्या आवश्यकता एवं औचित्य है?
आखिर; क्या देश भक्ति, सिर्फ हमारे भाषण, लेखन, कथन, बयान और टीवी डिबेट तक ही सीमित होकर रह जावेगी, प्रश्न यह है? इसका कदापि यह मतलब भी नहीं है कि देश भक्ति सिद्ध करने के लिए हर नागरिक को सीमा पर जाकर बंदूक चलानी पढे़गी, बम फेकना पडे़गा। ‘‘देश भक्ति’’ का यथार्थ मतलब है, वर्तमान युद्ध की आशंका लिये हुई उत्पन्न स्थिति में, प्रत्येक नागरिक जो जहां कहीं जिस भी क्षेत्र में कार्यरत है, वह अपनी सम्पूर्ण ताकत, क्षमता, बुद्धि व भावनाओं के साथ देश हित के लिए वह वे सभी कार्य करे, जो उसका वैधानिक, संवैधानिक, मानवीय व नैतिक, कर्त्तव्य एवं दायित्व है। साथ ही सीमा पर लड़ने वाले हमारे जांबाज वीर सैनिकों के लिए वह कुछ ऐसा कर गुजरें, जिससे बहादुर वीर सैनिकों को यह महसूस हो कि भले ही वे सीमा पर तैनात है, लेकिन वे अकेले नहीं है। सम्पूर्ण समाज, स्थानीय लोगों सहित पूरा देश एकजुट होकर उनके साथ उनकेे परिवार को सहारा देने के लिए खडे़ है। यही वास्तविक देश भक्ति हैं। देश भक्ति को हम स्वयं अपने बैरो मीटर में नापें। इसे हम जितना सोचते जायेगंे, देश भक्ति की तीव्रता की भावना उतनी ही प्रबल होती जायेगीं।
यहाँ एक उदाहरण देना चाहता हँू। हमारे देश में आज भी कई जगह ‘‘भारत मुर्दाबाद’’ व ’‘पाकिस्तान जिंदाबाद’’ के नारे लगाए जाते हैं। एक देश भक्त राष्ट्र में यह कैसे संभव हैं? कहीं न कहीं, जहां हमारी राष्ट्र भक्ति के प्रति कमजोरी उजागर होती है, वहीं पर देश विरोधी-देशद्रोही ताकतंे सिर उठाकर ऐसी हिमाकत कर जाती हैं। उन्हे रोकनंे के लिए हम न तो उनमें कोई ड़र व खौंफ पैदा कर पाते है, और न ही ऐसी घटना घटित हो जाने के बावजूद भी उनके विरूद्ध कोई कड़ी कार्यवाही करते है। तब हमारा देशप्रेम वैसा नहीं उमड़ता है कि हम उनको पकड़कर कानून के शिकंजे में बंद करवाएँ, उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करे। उनका सामाजिक बहिष्कार करे। शासन व प्रशासन भी ऐसी दशा में कई बार उदासीन ही रहता है, जो उनके देशप्रेम (की मात्रा) को इंगित करने का घोतक हैं।
कैड़ल मार्च करना, ‘‘जय भारत’’ के नारे लगाना ‘‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’’ के नारे लगाना ये सब सिर्फ बयान बाजी ही कहलायेगी। इतने को हीे देशप्रेम मानना खोखला देश प्रेम होगा। देश प्रेम की दो स्थितियाँ हैं। एक वह, जो दुश्मन देश से पोषित व संचालित से बाहरी आतंकी शक्तियाँ से उत्पन्न देश की सुरक्षा व आत्मसम्मान को धक्का पहुचानंे के प्रयास का विरोध करते हैं। दूसरा, देश के भीतर की आंतरिक स्थिति जहां देश की संरचना को नुकसान पहुचाने वालों के विरूद्ध की जाने वाली कार्यवाही के प्रति हमारा राष्ट्रीय दृष्टिकोण है। अभी मैं यहां बाहरी घटनाओं से निपटने के लिए मौजूद आवश्यक देशप्रेम की चर्चा कर रहा हूँ। देशप्रेम का एक उदाहरण और देखिये, अरूण जेटली का यह बयान ‘‘जिस तरह अलकायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर मार गिराया, हम भी ऐसी कार्यवाही कर सकते है’’। यह ऊपरी देशप्रेम है। यह बयान क्या आज ही आना चाहिये था? पिछले पांच सालो में पाकिस्तान द्वारा पोषित पुलवामा जैसी कई घटनाएं आंतकियों द्वारा घटित की जा चुकी है। इन सबकी विस्तृत जानकारी हम विश्व को कई बार दे चुके है। तब उक्त बयान देने की बजाए, बिन लादेन की तरह हाफिज सईद व मसूद अजहर को पाकिस्तान के भीतर घुसकर मारने से उन्हे किसने रोक रखा था? देशप्रेम की वास्तविक झलक तब ही दिखेगी। एक उदाहरण से इस अंतर को समझिये ‘‘अभिनंदन वापस ‘‘लाओं’’ और ‘‘अभिनंदन वापस ‘‘करो’’। यही अंतर हमारी देशभक्ति में भी है।
अभी अभी ‘‘अभिनंदन’’ को पाकिस्तान ने वापिस किया है। पाकिस्तान को समझौते के तहत युद्धबंदी (पीओडब्लू) विंग कमांडर ‘‘अभिनंदन’’ को भारत को वापस करना ही था। पूर्व में भी कारगिल युद्ध के समय युद्धबंदी लेफ्टिनेंट कमबमपति नचिकेता को कारगिल युद्ध जारी रहने के बावजूद वापिस किया गया था। लेकिन यह अंतर्राष्ट्रीय कानून होने के बावजूद पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय कानून को कितना मानता है, जो उसके द्वारा की जा रही आंतकवादी घटनाओं के घटने से स्वयं सिद्ध है। इसीलिए भारत सरकार व भारतीय सेना को इस बात के लिए धन्यवाद अवश्य ही दिया जाना चाहिए, जिन्होने अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर पाकिस्तान को विश्व पटल पर अलग-थलग करने के साथ ही सेना के द्वारा बनाये गये जबरदस्त दबाव के फलस्वरूप, पाकिस्तान को जिनेवा संधि (समझौता) को मानकर (विंग कमांडर अभिनंदन को वापिस भेजने की) कार्यवाही करने के लिए बाध्य होना पड़ा हैं। यह हमारी एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक सफलता व सैनिक बलों के जबरदस्त दबाव की जीत है। यहा एक कोतूहल भी पैदा होता है। जब हमारी सरकार व रक्षामंत्री यह मानते है कि जिनेवा समझौते के तहत युद्धबंदी ‘‘अभिनंदन’’ को पाकिस्तान द्वारा भारत को हर हालत में सौपना ही था तो, इसका क्या यह मतलब नहीं निकलता है कि भारत पाकिस्तान के विरूद्ध युद्ध छिड़ गया है? तभी तो ‘अभिनंदन’ युद्धबंदी कहलायेगे व जिनेवा संधि लागू होगी।
युद्ध की वर्तमान आंशका की स्थिति में हममे से कितने नागरिकों ने शहीद परिवारों को किसी भी तरह का सहयोग पहंुचाया है, या व्यक्तिगत सांत्वना दी है, या अभिनेता अक्षय कुमार के सुझाव पर देश में खोले गये शहीदो की सहायता के लिये ‘‘आर्मी वेलफेयर फंड/बैटल केजुअल्टी फंड’’ में अपना अंशदान/सहायता राशी जमाकर अपने देशभक्त होने का परिचय दिया है? जब हम किसी राजनैतिक दल या सामाजिक संगठन के आव्हान पर अपने संसाधन से स्वयं के खर्च पर भोपाल-दिल्ली चले जाते है, तो क्या हम इन शहीद परिवारों के दुख में व्यक्तिगत रूप से शामिल होकर उन्हे सांत्वना देकर उनके परिवार के आत्मबल को बनाये रखने में सहयोग प्रदान कर देश प्रेमी होने का उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सकते है? ऐसे जुनून से भरी देशभक्ति की ही वर्तमान में सख्त आवश्यकता है। इन्ही भावनाओं को उभारने का प्रयास इस लेख का उद्देश्य हैं।
हमारे देश में ही शासन व प्रशासन की देशभक्ति का आलम यह है कि अलगाँवादी व्यक्तियों जिन्हे स्वयं सरकार अलगाँवादी कहकर संबोधित करती है, उन्हे न केवल शासकीय सुरक्षा कराई जाती है, बल्कि लगातार करोडांे रूपया उनकी सुरक्षा व सुविधा पर खर्च होते है (यद्यपि अभी हाल में सरकार ने कुछ अलगाँवादी व्यक्तियों की सुविधाओं को समाप्त भी किया हैं, जो स्वागत योग्य है)। कश्मीर को स्वतत्रंता दिलाकर भारत को तोड़ने वाले अलगाँवादी व्यक्तियों की भारतीय नागरिकता समाप्त कर उनको जेल के सलाखों के भीतर क्यों नहीं डाला जाता है? ये सब अवांछित सुविधाएँ हमारी देशभक्ति की परिभाषा में ही संभव है, विश्व के अन्य किसी भी देश में नहीं।
आज जब अनवरत हो रही आंतकवादी घटनाओं के साथ पाकिस्तान बातचीत का राग अलाप कर विश्व को अंधेरे में रखने का प्रयास कर सकता है। तब प्रत्येक घटित आंतकवादी घटनाओं के बदले स्वरूप प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही करने की बजाए हम लगातार आगे होकर आक्रमण करते रहने के साथ बातचीत की पेशकश कर पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने में क्यों परहेज कर रहे है? (क्योंकि सरकार स्वयं यह कह रही है कि पुलवामा घटना के बाद जैश-ए-मोहम्मद के बालाकोट स्थित आंतकी बेस को समाप्त करने के लिये किया गया हवाई हमला हमारा मिलिट्री ऑपरेशन नहीं हैं) देश के जनमानस के जेहन में आज का यक्ष (सबसे बड़ा) प्रश्न यही हैं, जिसे सरकार को असली जामा पहनाना हैं।