‘‘गुरमीत सिंह’’ उर्फ ‘ड़ॉ.’ उर्फ ‘बाबा’ उर्फ ‘‘बिग बॉस’’ उर्फ ‘पिता’ उर्फ ‘राम रहीम’ उर्फ ‘इन्साँ’ उर्फ ‘मेसंजर ऑफ गॉड’ फिल्म निर्माता-निर्देशक-संगीतज्ञ-एक्टर, खिलाड़ी इत्यादि अनेकानेक व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति गुरमीत के रूप में आपके सामने आश्चर्य मिश्रित रूप से प्रकृट हुआ हैं। हर किरदार के साथ उसके कार्यो की अलग अलग कार्य श्रंृखलाएॅ भी एक फिल्मी कथा के रूप में आपके सामने हैं। जरा सोचिए, क्या एक व्यक्ति में इतने अनेक व्यक्तित्व एक साथ होने के साथ साथ परस्पर इतने विपरीत किरदार भी हो सकते हैं? यह सामान्यतः संभव नहीं लगता हैं। लेकिन गुरमीत ने इस असाधारण असामान्य कार्य को भी बहुत आसान तरीके से सामान्य बना दिया। इसीलिये वह आज का सबसे चर्चित लेकिन घृणास्पद चेहरा हैं। ऐसा व्यक्ति लगभग 20 साल से चरम विरोधाभास के बीच गैर कानूनी, असामाजिक अनैतिक व्यवहार करता रहा हैं। लेकिन इन घृणित कार्यो का इतनी लम्बी समयावधि तक जनता के सामने न आना, क्या राज्य सरकार की कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता हैं? क्या यह केन्द्र सरकार की विफलता को भी नहीं दर्शाता हैं? क्या यह समस्त केन्द्रीय एवं स्थानीय खुफिया जांच एजेंसियाँ की गहन विफलता नहीं हैं? ये प्रश्न बहुत ही गंभीर हैं, जो देश की आंतरिक सुरक्षा से भी जुडे़ हुए हैं। इसीलिये अब समय आ गया हैं कि इस पूरे कांड पर एक स्वेत पत्र राज्य/केन्द्र सरकार द्वारा तुरंत जारी किया जाना न केवल समयानुकूल होगा, जो जनता के मन में छिपे ड़र अंधविश्वास व अर्द्धसत्य पर पड़े परदे को भी दूर करेगा। डेरा सच्चा सौदा के मामले में पूरे सिस्टम (प्रणाली) की पूर्णतः और पूर्णतः विफलता रही हैं, चाहे फिर, वह प्रशासन की हो, शासन की हो, या समस्त सूचना तंत्रों की हो। ‘‘सच्चा सौदा’’ डेरा नाम का यदि शब्दार्थ निकाला जाय तो प्रतीत होगा कि सच (सत्य) के साथ सौदा होने के कारण यह निर्लज्जता पूर्ण स्थिति निर्मित हुई हैं। हरियाणा के सिरसा में सात सौ एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में बना यह डेरा एक दिन, एक महीना, एक साल की क्रिया-प्रक्रिया का परिणाम नहीं हैं। इसके अतिरिक्त राजस्थान (जहाँ बहुत बड़े क्षेत्रफल में डेरा फैला हुआ हैं,) सहित कई प्रदेशों में डेरा सच्चा सौदा के आश्रम हैं। इन समस्त सम्पत्तियों का संचय व कुसृजन अचल सम्पत्ति से संबंधित समस्त कानूनी प्रक्रिया, नियमों का घोर उल्लंघन करके किया गया हैं। डेरा के अंदर बने अनेक भवन, शापिग काम्प्लेक्स से लेकर विश्व के सात आश्चर्यो की अनुकृतियों के साथ टाइटन की आकृति निर्माण सहित, सेवन स्टार होटल के निर्माण की समस्त प्रकार की आवश्यक अनुमतियाँ थी या नहीं, यह भी अनबुझा प्रश्न हैं। यदि उत्तर होता तो डेरा के अंदर अनेकानेक गुफाओं के निर्माण की जो कथाएँ सामने आ रही हैं, वह प्रश्नवाचक नहीं रह जाती। तब क्या समस्त संबंधित प्रशासनिक ढाँचा आँखे मूँदे बैठा था? बेखबर था? क्या उसे ऐसी विकट स्थिति के बाबत् कोई भी भनक नहीं लगी? तो क्या यह सूचना तंत्र की पूरी तरह से विफलता नहीं हैं? और यदि खबर थी, तो इस अपराधिक षडंयत्र में प्रशासन की भागीदारी क्यों नहीं मानी जानी चाहिए? एक उत्तरदायी शासन के कितने और कैसे-कैसे उत्तरदायित्व होते हैं, तथा उन्हे किस तरह निभाया जाना चाहिये, इस घटना को लेकर यह मूल प्रश्न हृदय को चुभने वाले हैं। लेकिन आम नागरिको से लेकर देश के बुद्धिजीवी वर्ग के दिमाग में भी यदि ये प्रश्न नहीं कौंध रहे हैं, तो उत्तर का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता हैं। अभी जब करोड़ो रूपये के दसियों बैंक खातो को सीज किया गया, क्या वे सभी खाते प्रदर्शित किये गये थे नोटबंदी के समय बाबा राम रहीम (डेरा) ने कितने वैध अवैध नोट बैंको में जमा कराये थे? आयकर विभाग ने क्या इस संबंध में उसे कोई नोटिस दिया था? यह सब अभी काल के गर्भ में ही कैद हैं। गुरमीत द्वारा डेरा में स्वतः की मुद्रा का भी प्रचलन किया गया था, जो निःसदेह गैरकानूनी कृत्य था। डेरा में बने अस्पताल में हजारो लोगो को नपुसंक बनाया गया। डेरा में बड़ी संख्या में अवैध हथियारो के जखीरे का एकत्रीकरण कैसे संभव हुआ? बड़े-बड़े मीडिया हॉऊसेस् ने उसे आराम देय कुर्सी पर आमने सामने बैठा कर लम्बे-लम्बे साक्षात्कार कर अपनी टीआरपी तो अवश्य बढ़ाई। लेकिन खोजी पत्रकारिता का दावा करने वाली ‘‘मीडिया’’ गुरमीत की एक भी बुराई की खोज उसे सजा घोषित होेने के पूर्व तक नहीं बता पाई। डेरा के अंदर 600 से ज्यादा नर कंकाल पाये गये। इन व्यक्तियों के दाह संस्कार डेरा में ही डेरा के तरीके से कर दिए गये। क्या वह स्थान घोषित श्मशान घाट हैं? क्या सैकड़ो व्यक्तियों द्वारा उसकी देह और मृत्योपरान्त उपयोग का सम्पूर्ण अधिकार शपथ पत्र के साथ गुरमीत को सौप देना कानूनी हैं? धार्मिक हैं? नैतिक हैं? इन सब गैर-कानूनी कार्यो की हवा तक बाबा को सजा देने के बाद की गई उनकी गिरफ्तारी तक प्रशासन को नहीं लगी थी। गुरमीत द्वारा बनाये गये 19 वर्ल्ड रिकार्ड़ जो गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड़ लिमका बुक रिकार्ड़ में दर्ज किए गए, जिनके प्रमाण पत्र सतत् डेरे में प्रदर्शित किए। क्या वे सभी वास्तविक हैं? और यदि नहीं, तो फिर इस ओर प्रशासन का ध्यानाकर्षण क्यों नहीं हुआ। इसकी जांच क्यों नहीं की गई? विभिन्न राजनैतिक पार्टियो के हर नेता, और धार्मिक संस्थाओ केे अनेक व्यक्ति गुरमीत को दंडवत प्रणाम कर स्वयं को सम्मानित महसूस करते थे। गुरमीत को सजा प्राप्त होने के बाद हरियाणा के शिक्षा मंत्री का यह कहना कि मात्र बाबा गलत हो सकता हैं। डेरा गलत नहीं हैं। गुरमीत यदि गलत हैं, तो डेरा सही कैसे? फिर कौन सही व्यक्ति उसे चला रहा हैं? इसका नाम भी शिक्षा मंत्री बताये? क्या एक व्यक्ति बिना किसी की सहायता के कुछ अंधभक्त अनुयायियों की सहायता के बिना इतना बड़ा कांड़ कर सकता हैं? इतना बड़ा बवाल मच जाने के बावजूद, अभी भी हमारी मानसिकता गुरमीत व उसकी घृणित मानसिकता पर हमला करने की नहीं हैं? डेरा में सैकड़ो लडकियों का साध्वियों के रूप में रहना एवं अनैतिक कार्यो में सलग्न रहना भी प्रशासन की असफलता ही हैं। डेरा सच्चा सौदा की नम्बर दो प्रमुख साध्वी विपसना जिसे इस सम्पूर्ण कर्म कांड की जानकारी हैं, के विरूद्ध अभी तक प्रथम सूचना पत्र दर्ज न होना क्या दर्शाता हैं? संपूर्ण घटना क्रम एवं चक्र्र को देखते हुये ऐसा लगता है कि, डेरा सच्चा सौदा के आश्रम की सात सौ एकड़ जमीन भारत देश का हिस्सा नहीें हैं, वरन वह एक ऐसा क्षेत्र हैं, जिस पर भारत शासन का कोई हक नहीं हैं, या उस पर भारत सरकार का कोई कानून लागू नहीं होता हैं। इस पूरे कांड में तीन मुख्य किरदार रहे हैं, जो भूतो न भविष्यति की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं। मुख्य किरदार गुरमीत तो हैं ही। जिस के व्यक्तित्व की कल्पना सामान्यतः कल्पना से परे हैं। उसने माफी के नाम पर देहिक शोषण करके ‘‘माफी’’ शब्द को ही बदनाम कर दिया। लेकिन क्या इससे भी बढ़कर व्यक्तित्व हनीप्रीत का नहीं हैं? जो महिला नाम पर ही कलंक हैं? रोजी रोटी के लिये चकला चलाने वाली महिला के भी कुछ नियम सिद्धान्त होते हैं। लेकिन हनीप्रीत ने तो ‘पिता’ ‘बेटी’ के संबंध को ही तार-तार कर दिया। उसने अन्य साथी लड़कियों को जो साध्वी बनकर डेरा की सेवा में रहती थी, उन्हे भी पाश्विक, भयपूर्ण भ्रम पूर्ण व अन्य समस्त निम्न स्तर के तरीको से गुरमीत की शारीरिक भूख प्यास को पूरा करने के लिये इन सैकड़ो साध्वियों को प्रतिदिन उस व्यक्ति को सौपा जिसके साथ स्वतः उसके पति जैसे संबंध थे। ऐसी प्रकृत्ति, प्रवृत्ति, अनर्थ सोच एवं कार्य प्रद्धति शायद ही कोई अन्य महिला की हो सकती हैं। तीसरा किरदार विश्वास गुप्ता हैं जो हनीप्रीत का शादी शुदा पति होने के बावजूद यह सब अनैतिक कार्य व रिश्ते को तार-तार होते देखता रहा, सहता रहा व हनीप्रीत से तलाक होने के बावजूद भी उसने एक भी रिपोर्ट गुरमीत या हनीप्रीत के खिलाफ नहीं लिखाई। बल्कि इसके विपरीत गुरमीत की प्रताड़ना व उससे अपनी जान माल के खतरे के ड़र से विश्वास गुप्ता ने सबके सामने अपने पिताजी के साथ मिलकर बाबा से गिड़गिड़ाकर माफी माँगी। क्या स्वयं की प्रतिष्ठा व पत्नी के सतीत्व से बढकर किसी व्यक्ति के लिये जीवन हो सकता हैं? यहाँ एक और बड़ा प्रश्न पैदा होता हैं कि गुरमीत ने जिस कुटिल उद्देश्य को लेकर अन्य सेवादारों को नपुसंक बनाया, उसी उद्देश्य के लिये विश्वास गुप्ता को भी क्यो नहीं बनाया? डेरा सच्चा सौदा की नये-नये तथ्यों के साथ दिन प्रतिदिन नई-नई कहानियाँ प्रकाश में आ रही हैं। निश्चित रूप से यह किसी फिल्मी कहानी से भी ज्यादा हैं और, किसी भी फिल्म निर्माता को इस पर फिल्म निर्माण के लिये किसी लेख क से कोई पठकथा लिखवाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। गुरमीत को जेड़ प्लस की सुरक्षा मिलना भी कई प्रश्नों को जन्म देता हैं व सिर्फ इसी मुद्दे पर केन्द्रीय/राज्य सरकार को तुरंत ही स्वेत पत्र जारी करना चाहिए। जेड़ प्लस सुरक्षा का अर्थ क्या होता हैं? जेड़ प्लस सुरक्षा का सुरक्षा कवच कितना बड़ा होता हैं? यह अन्याय, अत्याचार, अनाचार, खौफ के विरूद्ध व देश व समाज के हितो के लिये लड़ने वाले व्यक्ति की जान पर खतरा होने की स्थिति में उस व्यक्ति की जान की सुरक्षा के लिये दी जाती हैं। अत्याचारी, व्यभिचारी, हत्यारे, पाखंड़ी, धूर्त व धर्म के विरूद्ध कार्य करने वाले व्यक्ति को नहीं? जेड़ प्लस सुरक्षा का मतलब हैं पुलिस अधीक्षक (आईपीएस केड़र) से लेकर सौ से अधिक पुलिस कर्मियो का दल बल जेड़ प्लस सुरक्षा के रहते हुये डेरे में इतने अनैतिक कार्य लगातार कैसे होते रहे। अन्यथा इन सुरक्षा बलो की नजर के नीचे इस बलात्कारी ने इतने अनैतिक काम कैसे कर लिये? क्यो इस बल द्वारा कोई भी सूचना प्रशासन को नहीं दी गई? यह सब तो स्वेत पत्र आने पर ही पता लग सकता हैं। प्रश्न तो अनेक हैं? लिखते जा रहा हूँ तो नये-नये प्रश्न पैदा हो रहे हैं। लेकिन समय की सीमा हैं। इन सब प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये भारत सरकार, केन्द्रीय सरकार ,केन्द्र शासित प्रदेश चढीगढ (यदि पंचकूला उसमें शामिल हैं तो) इस मामले में स्वेत पत्र जारी करके जनता को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने का कार्य क्यों नहीं कर रहे हैं, क्यों नहीं करना चाहते हैं? जब कि हम पूर्व में छोटे-छोटे कांडो में भी सरकार से स्वेत पत्र जारी करने की माँग करते रहे हैं, संसद में भी यही मांग करते रहे हैं। यह हमारी बड़ी पुरानी आदत हैं। अतः अब यह स्वेत पत्र जारी किया जाना इसलिए भी नितांत आवश्यक हैं, ताकि भविष्य में इस तरह के धूर्त बाबा की उत्पत्ति की पुनरावृत्ति को रोका जा सके।