लगता है, भारत एक अमीर व विकसित देश हो गया है? आज का ही (31 अक्टूबर) दिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण ‘‘बलिदान दिवस’’ व भारत की एकता व अखंडता बनाए रखने में अति विशिष्ट महत्वपूर्ण व एकमात्र योगदान देने के कारण पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस को राष्ट्र एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। सरदार पटेल की 143 वीं जयंती के अवसर पर विशेष आज देश के 56 इंच का सीना (चौडा कहे जाने) वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा तट पर केलदिया में सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर ऊँची प्रतिमा का अनावरण व लोकार्पण किया है। विश्व की अभी तक की सबसे ऊँची 153 मीटर मूर्ति चीन स्थित ‘‘स्प्रिंग टेम्पल’’ बुद्ध की प्रतिमा है, से भी ऊँची मूर्ती 33 माह के रिकार्ड़ कम समय मे स्थापित करने का कीर्तिमान मोदी सरकार ने बनाया है। आश्चर्य की बात नहीं होगी आगे, यदि इसे विश्व के आठवे अजूबे का कीर्तिमान भी न मिल जाये। देश के प्रथम प्रधानमंत्री चाचा जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमडंल में पहिले उप-प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री के रूप में प्रतिष्ठत लौहपुरूष दृढ़ निश्चियी सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत पाकिस्तान विभाजन के समय 550 से ज्यादा देशी रियासतांे को भारत में शामिल करने का महत् कार्य करके भारत के वर्तमान मानचित्र का स्वरूप देकर (अपना लोहा मनवाकर) लौहपुरूष कहलाएँ थे। देश का प्रत्येक नागरिक ही नहीं बल्कि यह राष्ट्र इस जटिल श्रेष्ठतम् कार्य के लिये सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रति हृदय से कृतज्ञ है। निश्चित ही उनका यह कार्य इतिहास में अमर हो गया है, जिसके लिये देशवासी उन्हे (बिना स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के भी) हमेशा याद रखेगें। जैसा की अभी तक दिलो मे रखे हुये हैं।
विभाजित भारत के भारत एवं पाकिस्तान दो भागों में विभाजन के समय तत्कालीन नेत्त्व की कौन-कौन सी मजबूरियाँ रही व उस नेतृत्व में कौन-कौन से व्यक्ति किस सीमा तक उत्तरदायी रह,े यह अवश्य अभी भी शोध का विषय हो सकता है। लेकिन यह कटु सत्य है कि तत्कालीन नेतृत्व की असफलता व गलत आकलन/मूल्याकंन के कारण ही भारत का विभाजन हुआ। यद्यपि इंदिरा गांधी ने 1971 में अपनी दृढ़ आक्र्रामक नीति से पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये और इस प्रकार आंशिक रूप से ही सही, पाकिस्तान से विभाजन का बदला ले लिया। इसीलिये पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री अटल बिहारी बाजपयी ने इंदिरा गंाधी को दुर्गा की संज्ञा दी थी। परन्तु आज सिर्फ सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की उच्चतम मूर्ति बनाकर उसका अनावरण’ किया गया है। लेकिन क्या भाजपा या मोदी ने अपनी व पार्टी के विचारो को पटेल के विचारो की उच्चतम सीमा तक पहंुचाने की कभी कल्पना भी की है, सबसे बड़ा प्रश्न यही है? इसीलिये उनसे बड़ा व्यक्तित्व नहीं तो उनके समतुल्य व्यक्तित्व इंदिरा गांधी की मूर्ति बनाने का किंचित विचार भी सरदार पटेल की मूर्ति बनाते समय वर्तमान शासको के मन में क्यों नहीं आया? क्या वे सिर्फ ‘‘गांधी’’ (इंदिरा नहीं) होती तो ‘‘गांधी’’ (महात्मा) वर्तमान शासको द्वारा दिये जा रहे असहज सम्मान के समान मूर्ति/प्रतिमा नहीं बन गई होती? क्या इसका मतलब सरदार पटेल की मूर्ति का निर्माण सिर्फ राजनीतिक मंशा से किया गया यह नहीं है? मूलतः कांग्रसी होने के बावजूद दोनो नेता राजनीति से परे राष्ट्र-पिता व लौह-पुरुष कहलाये। लेकिन लौह महिला (आयरन लेडी) कहलाने के बावजूद इंदिरा गांधी कांग्रेसी छाप से शायद बाहर नहीं निकल पाई। हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि पंजाब को बचाने के लिये इंदिरा गांधी द्वारा चलाये गये ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण अमृतसर स्थित पवित्र सिख मंदिर ‘‘स्वणर््ा मंदिर’’ में सेना प्रवेश के कारणे सिखों में उत्पन्न हुई नाराजगी के चलते उनकी विश्वासघाती हत्या की गई। इस प्रकार देश की सेवा करते हुये हमारी प्रधानमंत्री को अपना जीवन खोना पड़ा था व उनके पु़त्र राजीव गांधी को भी (प्रधानमंत्री पद पर रहते हुये) लिट्टे की समस्या के कारण अपना जीवन खोना पडा था। यह शायद विश्व में एक मात्र घटना है जहाँ एक लोकतांत्रिक देश में एक ही परिवार की प्रधानमंत्री एवं उनके पुत्र की भी प्रधानमंत्री रहते हुये हत्या हुई है।
फिर हमारे देश की सामाजिक व आर्थिक स्थिति को देखते हुये 3000 करोड़ खर्च करना क्या बुद्धिमत्ता पूर्ण है सही है, या जनोपयोगी है? जबकि किसी अन्य पार्टी द्वारा (मायावती द्वारा) काशीराम की मूर्ति व पार्को पर करोड़ो रूपये खर्च कर बनाये गये स्मारक पर घोर आपत्ति जताई गई थी। मीडिया तत्समय के उनके भाषणों को चला कर जनता को रूबरू करा सकती है। क्या हमारे देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति लगभग 3000 करोड़ मात्र मूर्ति व स्मारक के निर-अनुपयोगी निर्माण पर खर्च करने व वहन करने की स्थिति में हैं? इसी पैसे से कितने ही किसान की भूमि की सिचाई; शिक्षा व चिकित्सा, भोजन इत्यादि पर खर्च करके जनता जनार्दन की ज्वलंत समस्याओं में किंचित कमी की जा सकती थी। यह तर्क दिया जा सकता है कि भविष्य में आठवाँ यह अजूबा कहलायेगा, जिस प्रकार ताजमहल। जो विश्व में प्रसिद्ध है उसीके समान ही विश्व भर से लोग स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के दर्शन व पर्यटक स्थल धूमने के लिये आयेगें। इससे देशी व विदेशी मुद्रा में वृद्धि होगी। अब तो खैर 3000 करोड़ जो खर्च हो चुके वे वापिस नहीं लाये जा सकते। अब भविष्य मे केवल यही विकल्प बचा रह गया है कि पर्यटन उद्योग के माध्यम से उक्त रूपये की वसूली की जायेे। वैसे प्रश्न यह भी है कि जब कभी भी भविष्य मे यदि ं कांग्रेस सत्ता में आती हैं तो उनके नेतागणो को (प्रतिस्पर्धा के कारण) 4000 करोड़ खर्च कर इंदिरा गांधी की मूर्ति बनाने के संकल्प से रोक पाने का नैतिक साहस भाजपा कैसे जुटा पायेगी?
अंत में इस मूर्ति का निर्माण करने वाले पद्म भूषण श्री राम वी. सुतार को शायद अगले गणतंत्र दिवस पर पद्म विभूषण तो मिल ही जायेगा।