पिछले कुछ दिनो से प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रानिक मीड़िया में बलात्कारी, व्यभिचारी, अय्याश, पाखंड़ी, परमार्थ के बहाने अपनी स्वार्थी, वहशी, हवस की पूर्ति का एन केन प्रकारेन, साधक बाबा डॉ. गुरमीत सिंह से संबंधित खबरे भरी पड़ी हैं। दिन प्रति दिन नई नई गंदी स्टोरी प्रमाण सहित सामने आ रही हैं। इस बात में कोई शक नहीं हैं कि बाबा समाज के लिए एक बोझ हैं, जिसे उसकेे सही स्थान पर (जेल) पहुंचा दिया गया हैं। इस पृथ्वी पर जो भी व्यक्ति आता हैं वह सम्पूर्ण नहीं होता हैं। उसके हमेशा दो पहलू होते हैं, जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। ठीक इसी प्रकार एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के भी दो पहलू एक अच्छा व दूसरा बुरा होता हैं। गुरमीत में अनगिनत, अकल्पनीय, अक्षम बुराइयों के रहते हुये यह सिद्ध हो चुका हैं कि उसका व्यक्तित्व बुराईयों से अटाटूट भरा पड़ा हैं। इस तरह से उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व खराब होकर खारिज कर दिए जाने के लायक ही हैं। फिर भी, आगे हम यहॉं पर सिक्के के दूसरे पहलू को भी पढ़ने का प्रयास करते हैं। अनगिनत बुराइयो की व्यापकता के कारण गुरमीत का तनिक तिनका सा भी उजला पक्ष न तो स्वतः दिख रहा हैं और न ही हम देख पा रहे हैं। हम मंे कम से कम इतना तो साहस अवश्य होना ही चाहिए कि, हम बुरे व्यक्तित्व के किचिंत तिनके भर उजले पक्ष को भी पढ़ सकें और उस पर विचार मनन् कर सके। आचार्य बिनोवा भावे व सम्पूर्ण क्रांति के जनक जय प्रकाश नारायण से प्रेरित होकर हमारे मध्य प्रदेश में ही पहले डाकू मान सिंह, फिर डाकू मोहर सिंह ने मूरत सिंह सहित बडी संख्या में अनेक डाकुओं के साथ आत्म समर्पण किया था। आज वे समाज के सभ्य नागरिक बनकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इन सबके बहुत पहले भी वाल्मिकी से लेकर चक्रवर्ती राजा सम्राट अशोक जैसे अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों के उदाहरण हमारे समक्ष हैं, जो प्रारंभ में बुरे थे, बाद में किसी एकाधिक घटना से प्रेरणा प्राप्त कर बुरे से अच्छे और अतंतः महान व्यक्ति बनकर इतिहास प्रसिद्ध हो गए। ये उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि बुरे व्यक्तित्व में भी अवश्य कुछ न कुछ अच्छाई छिपी होती हैं और अच्छे व्यक्ति में भी कुछ न कुछ बुराई होती ही हैं। जब किसी की बुराई, अच्छाई पर हावी होती हैं, तब वह बुरा व्यक्ति कहलाता हैं व जब किसी में अच्छाई ,बुराई पर हावी होती हैं, तब वह अच्छा व्यक्ति कहलाता हैं। फूलन देवी भी डाकू थी। लेकिन उसके व्यक्तित्व का एक पहलू कहीं न कहीं उजला पन लिये हुये था, जिसके बल पर वह चुनाव जीत कर संसद में पहुंॅच सकी। अपराधी गुरमीत सिंह के बुरे पक्ष के संबंध में पहले भी मैं एक लेख लिख चुका हैं। अब उसके उजले पक्ष जो उसके नाम राम रहीम से इंगित होता हैं, पर कुछ उजाला डालने का दुःसाहस पूर्ण प्रयास कर रहा हूंूॅ। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह हैं कि आखिर गुरमीत राम-रहीम के करोडो अनुयायी (एक अनुमान के अनुसार लगभग 6 करोड़ से अधिक) कैसे बने, कई हजारो शिष्य अंधभक्त कैसे हुये व सैकडों शिष्य इस सीमा तक उसे भगवान मानने वाले, कैसे बन गए। यह नहीं वे साधक व साध्वी बनकर उन्होने अपना पूरा जीवन ही डेरे को सौप दिया। यही उसके व्यक्तित्व का एकमात्र उजला पक्ष कहा जा सकता हैं। इक्कीसवी सदी के वि ज्ञान से ओतप्रोत माहोल में हर तरह के व्यभिचारी बाबा के इतने सारे अंधभक्त बन गए कि वे उसके लिए मरने मारने के लिये उतारू हो जाते हैं, यह कैसे संभव हुआ? अर्थात् उसके व्यक्तित्व में अनेकानेक विध्वंशक तत्वों के साथ कुछ न कुछ निर्माण कारक तत्व भी मौजूद हैं। यह बात भी सामने आयी कि ‘‘बाबा’’ अपने कई सैकड़ो शिष्यों को रोजी रोटी देता रहा हैं। उसके वृहत डेरे में सैकडों लोग प्रतिदिन मुफ्त भोजन करते हैं। उसने अस्पताल व स्कूल खुलवाये जहॉं शिष्यों को मुफ्त इलाज व मुफ्त शिक्षा की सुविधा दी जाती हैं। गुरमीत सिंह के साधक व साध्वियों ने कही भी यह दावा नहीं किया कि बाबा तांत्रिक (सिद्ध पुरूष) हैं या बाबा की किसी कार्य पद्धति सिद्धी, पूजा अथवा तंत्र से, भक्तों की समस्त इच्छाओं या मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती हैं। इसके बावजूद भी यदि वे उसके इतने अंधभक्त हैं, तो निश्चित रूप से गुरमीत के व्यक्तित्व में सम्मोहन अथवा कुछ ऐसा विशेष गुण भी हैं, जो एक सामान्य नागरिक को शिष्य बनाकर अंधभक्त बना लेता हैं। भक्तों की अंधभक्ति भी इस सीमा तक कि वे अपने बच्चो व परिवार के सदस्यो पर भी विश्वास न करके बाबा पर अटूट अंध विश्वास (भगवान मानने की सीमा तक) करते हैं जो बाबा की कार्यपद्धति का एक अहम तथ्य हैं। अन्यथा, यह अंधभक्ति निश्चित रूप से गुरमीत के हजारो समर्थको के दिमाग के दिवालियापन को ही दर्शाती हैं। यदि ऐसी अटूट अंधभक्ति का उपयोग सत्कार्यो के निष्पादन हेतु किया जा सके तो समाज देश का भला हो सकता हैं। गुरमीत एक आधुनिक ढोंगी बाबा हैं इसलिए उसने पीले चोले को धारण न कर 21 वीं सदी की चोला पहना। जिस कपड़े का एक बार उपयोग किया उसे दूसरी बार नहीं छुआ। डेरे में दस हजार से अधिक पोशाखें व ढेड़ हजार से अधिक जूते चप्पल मिले थे। साथ ही उसने कई गाड़ी भी अलग-अलग तरह की डिजाईन की या करवाई। उसके काफिले में सैकडों डिजाईन गाडियों का कारवॉं हैं, जो रजिस्टर्ड ब्रांड के डिजाईन की नहीं हैं। इसीलिए वह डिजाइनर बाबा कहलाए इस डिजाईनिग कार्य को रचनात्मक माना जा सकता हैं। छः म्युजिक एलबम जारी कर वह रॉक स्टार बाबा भी कहलाया। इसके साथ ही उसने फिल्म निर्माता, निर्देशक, एक्टर इत्यादि का भी कार्य किया व चार फिल्मे बनाई। उसने अपनी ऐशो आराम व व्यभिचार पूर्ण अय्याश जिदंगी के लिए अपने डेरे में सात सितारा होटल बनाया जिसकी सबसे विशेष बात सात कमरे ऐसे बनवाए जो विश्व की सात धरोहर से रूबरू हो सके। इस प्रकार बुरे उद्देश्य को लेकर किए गये निर्माण में भी अनजाने में वह कुछ नवीन (अच्छा) कर बैठा। उसने डेरे में कई मार्केट बनाकर उनमें बहुत से शिष्यों को रोजगार भी दिया। बाबा के व्यक्तित्व का एक और अच्छा महत्वपूर्ण योगदान उसके द्वारा करीब 19 से अधिक वर्ल्ड़ रिकार्ड़ व अन्य रिकार्ड़ बनाये गये जो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड़ व लिमका बुक ऑफ रिकार्ड़ व अन्य संस्थाओ में दर्ज हैं। इनके प्रमाण पत्र डेरे में प्रदर्शित किये गये हैं। यद्यपि उनमें से अधिकांश रिकार्ड कितने सही व उपयोगी हैं, इस पर प्रश्नचिन्ह जरूर लगाया जा सकता हैं। गुरमीत ने सैकडो शिष्यों से देह दान के शपथ पत्र भी भरवाएॅं हैं। लेकिन इस अच्छे कार्य में भी मानव अंगों की तस्करी का गोरख धन्धा होना बतलाया जा रहा हैं। वह क्रिकेट, बिलिर्यड़, बेड़ मिंटन आदि कई खेल ो में रूचि रखता रहा हैं। गुरमीत के द्वारा सर्वधर्म सदभाव का संदेश देने के लिये अपना नाम गुरमीत सिंह से बदल कर गुरमीत राम रहीम रखा। जाति प्रथा की समाप्ति के लिये जाति सूचक नाम हटाकर अपने भक्तों के नाम के आगे ‘‘इन्सा’’ (इन्सान) लगाने को प्रेरित किया व स्वयं भी लगाया। यह भी कहा गया हैं कि गुरमीत ने गरीब परिवार के बच्चों की शादियों में भी आर्थिक सहायता प्रदान की। भ्रूर्ण हत्या, सामूहिक रक्तदान, आपदा प्रबंधन के लिये ग्रीन वेलफेयर फोरम के नाम से प्रशिक्षित अनुयायियों के दल का गठन किया। स्वच्छता, जैविक खेती व अन्य कई सामाजिक कार्यो के लिये अभियान भी चलाए। नेपाल में आये भूकंप में भी उसने सहायता प्रदान की थी। देश की 130 करोड़ की जनसंख्या में से कुल लगभग 29 नागरिको को सरकार द्वारा प्रदत्त की गई जेड़ प्लस सुरक्षा में एक व्यक्ति राम रहीम भी शामिल हैं। बाबा ने बड़ी संख्या में लोगो को शराब, मांस, तंबाकू के व्यसन से मुक्त कराया। भले ही इनकी आड़ में उसका उद्देश्य अनुचित रहा हो। उसके इन कृत्यों की आलोचना नहीं की जा सकती हैं। आज के युग में गांधी जी का वह सूत्र कि ‘‘साध्य के साथ साधन में भी शुचिता होनी चाहिये, कितना सार्थक हैं? यर्थार्थ धरातल पर आज यह कितना लागू हैं? जब हम आज साध्य की प्राप्ति के लिये साधन की शुचिता को छोड़ देते हैं, तो बाबा ने कुछ अच्छे उक्त निर्माण कार्य के लिये शुचिता को ही पूरी तरह ताक पर रख दिया। यह भी कहां जा सकता हैं कि गुरमीत ने अपनी पापी दुनिया को इस तरह के कुछ अच्छे कार्यो को वस्त्र से अपनी पापी दुनिया को ढ़कने का प्रयास किया हैं। गुरमीत के व्यक्तित्व का सबसे खराब पहलू उसका सेक्स के प्रति असीमित असामाजिक घृणित अनुराग रहा हैं। डेरे के स्कूल अस्पताल तथा अन्य सभी कार्य कलाप उसने इसी हवस की पूर्ति के लिए डिजाइन किए व करवाए, यहॉ तक कि इसके लिए उसने अनेक हत्या तथा सैकडो को नपुंसक बनाने में भी कतई गुरेज नहीं किया। यदि उसके व्यक्तित्व से इन अक्षम्य बुराई को हटा दिया जाये, सम्राट अशोक के समान उसका हृदय परिवर्तन हो जाय तो बाबा डॉ. गुरमीत सिंह बाबा राम रहीम बन सकता था तब वह अपने व्यक्तित्व के उपरोक्त कुछ (अच्छे) गुणों के कारण समाज के लिये उस सीमा तक उपयोगी व्यक्ति भी सिद्ध हो सकता हैं? गुरमीत से भी गिरा हुआ यदि कोेई व्यक्ति इस पूरे कांड में हैं तो वह हनीप्रीत! हैं महिला होकर जिस तरह उसने सैकड़ो महिलाओं को बाबा गुरमीत की हवस का शिकार बनवाया जिसके लिये उसने एक ऐसी महत्वपूर्ण सक्रिय ‘‘विलेन’’ की भूमिका अदा की जो महिला समाज पर एक ऐसा कलंक हैं, जिसकी कल्पना शायद बुरे से बुरा व्यक्ति भी नहीं कर सकता हैं। हनीप्रीत ने सामाजिक रिश्तो को तार-तार कर दिया। इस घटिया कृत्य जिस का शब्दो में उल्लेख करना भी बहुत शर्मनाक हैं, के लिये शायद हमारे अपराधिक दंड संहिता में समुचित दंड़ भी नहीं हैं। अतः गुरमीत के पहिले तो सबसे पहिले हनीप्रीत को पकड़ कर बगैर मुकदमा चलाये उसे सरे आम फॉंसी देना भी शायद सभ्य समाज में असभ्य नहीं कहलायेगा।