फिल्मी कलाकार, एक्ट्रेस, ‘‘डबल रोल की रानी’’ ‘‘प्रथम महिला सुपरस्टार, ‘‘पद्मश्री’’ श्रीदेवी’’ की मौत अचानक परिस्थिजन्य शंकास्पद स्थिति में दुबई में हो गई। तत्पश्चात् दुबई पुलिस द्वारा गहन जांच के बाद समस्त शंकाओ का निराकरण करते हुये श्रीदेवी की मौत को प्राकृतिक मौत का मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया। निश्चित रूप से आज तक की वर्त्तमान स्थिति में श्रीदेवी का 50 वर्षो का फिल्मी जीवन एक सफल और प्रथम महिला सुपरस्टार के रूप में रहा जहाँ उनके द्वारा विभिन्न चरित्रों को परदे पर सफलतापूर्वक निभाया गया। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और हिन्दी, मलयालम, कन्नंड, तेलगु, तमिल आदि विभिन्न दक्षिणी भाषाओं में फिल्मो में कार्य करने वाली वह एक मात्र सफल अभिनेत्री रही। उनके असामयिक निधन के कुछ समय पूर्व तक वे अपने रिश्तेदार (भांजे मरवाह) की शादी में डान्स करती रही। फिर अचानक निधन की खबर मिलने से लाखो करोडो प्रशंसको को एक गहरा सदमा लगा जिसकी भावनात्मक प्रतिक्र्रिया होना स्वाभाविक ही है। क्योकि चाँद के रहने के बावजूद उनकी ‘‘चांदनी’’ हमेशा के लिये चली गई थी। इस स्वाभाविक प्रतिक्र्रिया पर मीडिया द्वारा पिछले 72 घंटो से अधिक समय तक लगातार केवल उन्ही के बारे में प्रसारण किया जाता रहा। ऐसा करके क्या उन्होने उनके प्रशंसको, आम जनता, समाज व देश के साथ-साथ देश के चौथे स्तम्भ सहित समस्त जनमानस के साथ न्याय किया? यही एक यक्ष प्रश्न है। उपरोक्त तथ्यों के बावजूद क्या श्रीदेवी कोई राष्ट्रीय व्यक्तित्व थी या देश के प्रति उनका इतना महत्वपूर्ण योगदान था कि तीन दिनो से लगातार मीडिया में सिर्फ और सिर्फ श्रीदेवी ही छायी हुई रही। टीआरपी की होड़ में वे चेनल भी इस दौड़ में शामिल होकर 72 घंटो से ज्यादा समय से अपने चेनलो में श्रीदेवी को ही लगातार दिखाते रहे जो सामान्यतः अपने निर्धारित कार्यक्रम में कोई कटौती/परिर्वतन नहीं करते है। जैसे एन.डी.टीवी जो कई बार प्रधानमंत्री के सीधा प्रसारण को निर्धारित कार्यक्रम में परिर्वतन किये बिना ही दिखाता रहा यदि वाास्तव में मीडिया वालों की नजर में श्रीदेवी एक राष्ट्रीय नेत्री रही और इस तरह का लगातार प्रसारण पाये जाने की अधिकारी थी तो इस तरह के अनेकानेक अन्यान्य व्यक्तित्व जो पूर्व में हमारे बीच से चले गये तत्समय उनके लिए भी मीडिया इसी तरह से सक्रिय क्यो नहीं हुआ। यदि मीडिया का यह मानना हैं कि वही ऐसी एकमात्र गैरसरकारी व्यक्तित्व थी जो ऐसे टीआरपी पाने की हकदार थी तब मुझे कुछ भी नहीं कहना हैं। मैने भी इससे पूर्व देश हित के लिए योगदान करने वाले ऐसे ही अन्य व्यक्तित्व या इससे भी ज्यादा विशिष्ठ व्यक्तियों के स्वर्गवासी हो जाने पर मीडिया का ऐसा जमावड़ा कभी नहीं देखा। फिल्मी कला क्षेत्र से आने के कारण यहाँ श्रीदेवी के योगदान को कम करके नहीं आका जा रहा है और न ही यह किसी राजनैतिक व्यक्तित्व का विशेषाधिकार हैं कि सिर्फ उन्हे ही इस तरह से मीडिया का सम्मान मिले। लेकिन मीडिया को शायद यह भी सोचना चाहिए कि यदि समय चलता रहेगा और समय के साथ-साथ देश भी चलता रहेगा तभी देश आगे बढ़ता रह सकेगा। परन्तु पिछले तीन दिनो से मीडिया रिपोर्ट में एक रूकी हुई धड़कन को लगातार दिखाकर देश की धड़कने को रोकने का अनचाहा प्रयास अनजाने में ही मीडिया द्वारा होता रहा। उचित होगा यदि देश के प्रत्येक नागरिक द्वारा देश व समाज के प्रति उनके (श्रीदेवी) बलिदान को इस तरह से याद किया जाय जिससे उनके व्यक्तित्व तथा उनकी फिल्मो के माध्यम से समाज को दी गई शिक्षा द्वारा देश की जनता को प्रेरणा मिल सके। भारत रत्न प्राप्त व्यक्तित्वों की तुलना में पद्मश्री प्राप्त व्यक्तित्व को मीडिया का इतना ज्यादा सम्मान मिलने के कारण उत्पन्न अंतर स्पष्ट रूप से रेखंाकित हो रहा हैं। इसीलिए यह लेख के शीर्षक अनुसार मीडिया को यह अधिकार दे दिया जाना चाहिये क्योकि किसी राष्ट्रीय व्यक्ति के निधन पर सरकार द्वारा ही राष्ट्रीय शोक घोषित किया जाता है। कुछ व्यक्ति मेरे इस लेख पर आलोचना कर सकते है जिसका उनका पूरा अधिकार है। मैं उनसे क्षमा मांगते हुये यही निवेदन करता हँू कि श्रीदेवी का व्यक्तित्व बडा था जो वास्तव में उनके अंतिम शव यात्रा में आये हुजूम से सिद्ध भी हो गया। वह पहली व शायद आखिरी अभिनेत्री रही जिसने इस पुरूष प्रधान युग वाले फिल्मी जगत में अमिताभ बच्चन जैसे व्यक्तित्व द्वारा स्थापित पुरूष प्रधानता की सर्वोच्चता को तोड़ने का साहसिक प्रयास करके महिला को पुरूष के बराबर सफलतापूर्वक स्थापित किया। शायद इसीलिए श्रीदेवी को लेडी अमिताभ बच्चन भी कहा गया। फिर भी देश आगे है, व्यक्ति पीछे। इस शोक की घड़ी में हजारो लाखों समर्थक नागरिकगण प्रार्थना करते है कि ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे व उनके परिवार को यह दुख सहने की क्षमता प्रदान करे।