प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस बात के लिए हार्दिक बधाई दी जानी चाहिये कि उन्होने पहली बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से पाकिस्तान को अपनी स्पष्ट विदेश नीति से अचंभित कर दिया। प्रधानमंत्री द्वारा स्वाधीनता दिवस के अवसर पर पाकिस्तान के एक प्रदेश बलूचिस्तान में मानवाधिकार के उल्लघंन के मुद्दे को प्रथम-बार सार्वजनिक रूप से उठाने के लिये भी वे बधाई के पात्र हैं। पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर पर वार्ता के लिये दिये गये पत्र के जवाब में भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा वर्ष 1947 के बाद लिखित जवाब दिया गया, जिसमें प्रथम बार ‘‘जम्मू कश्मीर’’ के शेष हिस्से ‘‘पीओके’’ को पाकिस्तान के नियंत्रण से मुक्ति को भी महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में शामिल किया गया।
लेकिन क्या इन मुद्दो को उठाना मात्र ही काफी है? पाकिस्तान के पिछले लम्बे समय केे व्यवहार को देखते हुये भारतीय विदेश मंत्रालय के मात्र लिखित अनुरोध के परिपालन में क्या पाकिस्तान से उचित, वास्तविक व न्यायिक व्यवहार की उम्मीद की जा सकती हैं? यदि हॉं तो कब तक? सन् 1947 से तीन युद्ध होने के बावजूद भी हम अभी तक भी कश्मीर व ‘‘पीओके’’ पर पाकिस्तान से अच्छे यानी हमारी अपेक्षानुसार व्यवहार की उम्मीद पाल रहे हैं। क्या अब तक पाकिस्तान की जमीनी वास्तविकता ऐसी सिद्ध नहीं हो चुकी है कि अब वह ऐसे ‘व्यवहार’ की पात्रता नहीं रखता, बल्कि अब उसके विरूद्ध कड़क कार्यवाही आवश्यक हैं? 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के 56 इंच चौंड़े सीने वाले प्रधानमंत्री से अब तुरंत न केवल प्रभावी जवाबी कार्यवाही वरण् केवल और केवल एकदम कड़क कार्यवाही की उम्मीद देश कर रहा हैं।
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने पाक से बातचीत करने की पंाच बातों (शर्तो) का उल् लेख किया हैं 1. पाकिस्तान द्वारा सीमापार से भारत में किए जाने वाले आंतकवाद पर रोक लगाना। 2. जम्मू-कश्मीर में पाक द्वारा छद्म हिंसा एवं आंतकवाद को भड़काना बंद करना। 3. पाक में पलित अंतर्राष्ट्रीय आंतकवादियों को हिरासत में लेकर उन पर मुकदमा चलाना। 4. पाक द्वारा प्रायोजित आंतकी ट्रेनिंग कैंपों को अविलम्ब बंद करना। 5. भारतीय कानून में भगोड़े करार दिए गए आंतकवादियों को पाक के भीतर समर्थन एवं पनाह देने से इंकार करना।
यद्यपि पहले भी इन सब मुद्दांे पर भारत पाकिस्तान के साथ कई बार बातचीत कर चुका हैं
बल्कि यह कहा जायें कि भारत पाकिस्तान के साथ प्रत्येक वार्ता में उन्हें उठाता रहा हैं तो अतिशयोक्ति नही होगी। लेकिन इस सबके बावजूद पाकिस्तान की उक्त ‘‘हरकते’’ व ‘‘उत्प्रेरक’’ कार्य किंचित भी कम नहीं हुए हैं, बल्कि पिछले कुछ समय से तो इनमें अप्रत्याशित बढोतरी ही हुई हैं। उपरोक्त तथ्य (भारत द्वारा पूर्व में समय-समय पर पाकिस्तान को सौंपे गये) न केवल डोजियर से सिद्ध होते हैं, बल्कि पिछले कुछ समय से घाटी में पाक द्वारा प्रायोजित आंतकवादी घटनाओं से भी सिद्ध होते हैं। लेकिन इतना सब हो जाने के बावजूद जिस तरह से इजराईल ने अपनी सीमा की रक्षा के लिये फिलिस्तीन से युद्ध किया, अमेरिका ने लादेन को संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के बिना पाकिस्तान में जाकर मारा और रूस, जर्मनी इत्यादि देशों ने अपने सम्मान, स्वाभिमान व हितो की रक्षा के लिये अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों व दबावो की चिंता किये बगैर व संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने गये बिना सीधी कार्यवाही की, उसी तरह भारत भी अभी तक कोई बड़ी कार्यवाही क्यों नहीं कर रहा है? यही प्रश्न देश के नागरिक खासकर मेरे जैसे नौजवानों के हृदय में बारम्बार उत्कटता से सुलग रहा हैं।
इसके बावजूद अब भी ‘‘मुद्दो’’ पर सिर्फ बातचीत करके भारत को क्या अपेक्षित उपलब्धि हो पायेगी? लगता हैं इस बात पर भारत सरकार अभी भी गंभीरता से नहीं सोच रही हैं। अब समय आ गया है कि भारत पाकिस्तान सेे बातचीत के बदले उक्त आंतकी कार्यवाही को रोकने व वांछित आंतकवादियों को सौपने का निश्चित समय बद्ध डोजियर पाकिस्तान को देकर अंतिम कार्यवाही की चेतावनी दे अन्यथा ‘परिणाम’ के लिये तैयार रहे।
क्या हमारे रहनुमा ये शाश्वत कहावत भूल गये हैं‘‘जैसे को तैसा’’, ‘‘लातों के देव बातांे से नहीं मानते’’! अब परिस्थिति इतनी विकट हो चुकी हैं कि प्रधानमंत्री नई कहावत क्यो नहीं गढते कि गोली का देव (पाक) बातांे से नहीं मानेगा, जिसके लिये उन्हे अब अविलम्ब कार्यवाही करनी चाहिये।