स्वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास में बीता कल अभूतपूर्व कहलायेगा! यह घटना राजनैतिक भूचाल नहीं, बल्कि ‘भूकम्प’ है, जो स्वतंत्रता के बाद देश के राजनैतिक पटल पर प्रथम बार हुआ है। राजनीति में नैतिकता के निरंतर गिरते स्तर के बावजूद, इस तरह की यह पहली अलौकिक, अनोखी, अचम्भित करने वाली एक आश्चर्यजनक घटना है। स्वतंत्रता के बाद 1947 से ही देश का राजनैतिक इतिहास राजनैतिक उलटफेरों से भरा पड़ा हुआ हैं। लेकिन कल के इस उलट फेर नेे ‘‘सिद्धान्त’’ व ‘‘विश्वास’’ को शून्य (अस्त्विहीन) ही बना दिया है। याद कीजिए! हरियाणा में भजनलाल ने पूरी सरकार का ही दल बदल कर लिया था। परन्तु कल की महाराष्ट्र की घटना न केवल अकल्पनीय व अपने आप में एकांगी वरण ऐतिहासिक बन गई है।
देश के मीडिया के लिये भी अचम्भित कर देने वाला यह प्रथम अवसर है। मीडिया को इसकी बिल्कुल भी आहट नहीं हो पायी और न ही ऐसी कोई कल्पना। मीडिया जो सुबह से ही जहां शिवसेना राकांपा व कांग्रेस की महायुति की सरकार बनने की ख़बरे प्रसारित कर रहा था, उसे अचानक सुबह 08 बजे के बाद देवेन्द्र फडणवीस की शपथग्रहण की रिकॉडे़ड फोटो प्रसारित करनी पड़ी। इस फोटो समाचार के पूर्व फडणवीस के होने वाले शपथग्रहण समारोह का कोई भी समाचार या संभावना की कोई खबर मीडिया प्रसारित नहीं कर पाया था। सबसे बड़ी शर्मनाक स्थिति तो मीडिया के लिये है, जिसे स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार लाईव न्यूज या ब्रेकिंग न्यूज के बदले रिकॉडेड़ शपथग्रहण समारोह का समाचार प्रसाारित करना पड़ा। यह स्थिति भी मीडिया की योग्यता व क्षमता पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह तो लगाती ही है। आज तक हुई किसी भी राजनैतिक घटनाक्रम में इससे बड़ी गोपनीयता नहीं बरती गई। इस घटना ने एक बार पुनः इस बात पर मुहर लगा दी है कि, राजनीति में सिंद्धान्त का कोई स्थान नहीं होता है। सिर्फ इस शब्द (सिंद्धात) का प्रयोग आलोचना-प्रत्यालोचना तथा जनता को भ्रमित करने भर में ही होता है। वैसे भी आज की राजनीति में सिंद्धान्त की बात करना बेमानी ही है। याद कीजिए संजय राउत का वह बयान जिसमें उन्होंने कहा था, कि शरद पवार को समझने में 100 जन्म लेने पडे़गें। यदि भजनलाल के पाला बदलने के कदम को अलग रखा जाये तो, ऐसा राजनैतिक उलटफेर देश में पहली बार हुआ है। आम चुनावों में हमने पाया है कि, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार पोलिंग के दिन की पूर्व रात्रि को कत्ल की रात मानते हैं (मैं खुद भी चुनाव लड़ चुका हूं इसका मुझे भली भाति अनुभव है) इस ‘कत्ल की रात्रि’ में पूर्ण सजगता के साथ राजनैतिक कदम उठाने पड़ते है। भाजपा ने इसे कत्ल की रात्रि मानकर पूरी राजनैतिक गोटियाँ इस तरह से बिछाई, जिसके परिणाम अपने सामने है। भाजपा के इस धोबी पछाड़ दाव से शिवसेना को बड़ा झटका लगा व वह गर्त में चली गई। 2 दिवसीय यात्रा को बीच में ही छोड़कर जिस तीव्र गति से राज्यपाल दिल्ली से वापिस आये और तुरन्त राष्ट्रपति को प्रतिवेदन भेजा। जिस रफ्तार से सूर्यादय होने के पूर्व ही केबिनेट के निर्णय के बिना ही नियम 12 का सहारा लेते हुये राष्ट्रपति शासन समाप्त किया जाता है। शपथ पत्र का निमत्रंण छापे बिना व मीडिया को बुलाये बिना (सिर्फ 1 मीडिया को छोड़कर) सुबह लगभग 08 बजे देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला कर ‘‘लोकप्रिय’’ लोकतंात्रिक सरकार का गठन किया जाता है। इस प्रकार का अल सुबह शपथ ग्रहण समारोह देश के इतिहास में पहली बार हुआ है। राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण कराने के बाद मुख्यमंत्री को एक निश्चित समय में बहुमत सिद्ध करने का निर्देश न देना न केवल असंवैधानिक है बल्कि यह भी मात्र एक अपवाद है, खासकर उस स्थिति में जब किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिला हो। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि देश की समस्त संवैधानिक संस्थाओं ने देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने में जिस प्रकार की तूफानी तेजी दिखाई है, वह एकदम अभूतपूर्व व देश के लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार घटित हुई है। यह घटनाक्रम इस बात को पुनः सिद्ध करता है, कि ‘मोदी-शाह’ की जोड़ी का आज के राजनैतिक दृश्य पटल व परिवेश में दूर-दूर तक कोई मुकाबला नहीं है। तथापि केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का यह बयान कि ‘‘महायुति चोर दरवाजे से सरकार बना रही थी’’ बिल्कुल गलत व तथ्यों के विपरीत है। इसके ठीक विपरीत भाजपा ने ही रात्रि में चोर दरवाजे से सरकार बनाने की प्रक्रिया पूर्ण की है। जबकि यह कार्य हमेशा से दिन के उजाले में होता आया है। देश के इतिहास में यह भी पहली बार ही हुआ है कि राष्ट्रपति ने सुबह 5.47 बजे राष्ट्रपति शासन हटाने की घोषणा पर हस्ताक्षर किये। महामहिम राज्यपाल व राष्ट्रपति जिन संवैधानिक पदों पर बैठे है, उन्हें इतनी दिलचस्पी दिखाने की क्या आवश्यकता थी? 24 घंटे चलने वाली अत्यावश्यक सेवाओं (जैसे रेल्वे, चिकित्सा इत्यादि) के समान महामहिमों ने कार्य किया है। महामहिमों के पास वर्षो से लंबित सैकड़ों आवेदन, याचिकाओं (क्षमा याचना सहित) के मामलों में भी ऐसी ही तीव्रता से निर्णय ले लिया जाय तो देश/जनता का बहुत भला हो जाय। किसी भी प्रकार से यदि यह सही है कि इस पूरे घटनाक्रम में शरद पवार भी है व वे ही इसके सुत्रधार हैं, तो जिस किसी ने भी विश्वास शब्द की रचना की है उसे आज इस देश में अवतरित होकर इस शब्द के अर्थ को ही बदलना होगा। इसके पूर्व जितने भी राजनैतिक उलटफेर हुये है, उनकी कुछ न कुछ झलक/आहट पहले से अवश्य मिल जाती रही है। साथ ही निर्णय के विपरीत परिणाम कभी भी नहीं आए। यहां तो विश्वास के बदले विश्वासघात सफल सिद्ध हुआ है, जिसने विश्वास शब्द को अवैध सिद्ध करके श्ूान्य घोषित कर दिखाया है। यद्यपि शाम तक यह स्पष्ट हो गया था कि यह विश्वासघात शरद पवार ने नहीं बल्कि अजित पवार ने किया है। सबसे बड़ा प्रश्न तो राज्यपाल की भूमिका पर है। राज्यपाल ने उस पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री पद की शपथ मात्र दावे के पत्र के बल पर 12 घंटों के भीतर दिला दी, जिसने पूर्व में इस आधार पर सरकार बनाने से इंकार कर दिया था कि उसके पास बहुमत नहीं है। जब राकांपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार ने सायं 7.30 बजे मीडिया से चर्चा करते हुये यह स्पष्ट कहा था कि तीनों दलों के बीच इस बात पर सहमति बन गई है कि, उद्धव ठाकरे ही सरकार का नेतृत्व करेगें। तिस पर भी यदि अजित पवार ने राकांपा के विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को साैंपा तो, उस पत्र के वास्तविक सत्यापन का दायित्व तो राज्यपाल पर ही था। इसके साथ-साथ देवेन्द्र फडणवीस के बहुमत के दावे का सत्यापन करने का दायित्व भी संवैधानिक कानूनी व नैतिक रूप से राज्यपाल का ही था। यह सत्यापन सिर्फ उनके विवेक व मात्र एक शब्द संतुष्टि भर कह देने से पूर्ण नहीं हो जाता है। क्योंकि वे उस स्थिति में उस व्यक्ति को निमत्रिंत कर रहे थे, जिसने पूर्व में ही बहुमत न होने के आधार पर सरकार बनाने से इंकार कर दिया था। अलावा शरद पवार जो राकांपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष है, उनके स्पष्टीकरण के बाद तो संख्या बल के दावे का सत्यापन उपलब्ध तथ्यों व आवश्यक तथ्यों को प्राप्त कर लेने के बाद ही किया जाना चाहिये था। तत्पश्चात ही उनकी संवैधानिक दायित्व की पूर्ति होती एवं तभी उनकी राष्ट्रपति शासन के लिए सिफारिश करने की अनुशंसा सही मानी जाती। लेकिन ऐसी कोई कवायद राज्यपाल द्वारा नहीं की गई, जैसा कि अत्यंत अल्प समय में घटित घटनाक्रम से स्वयं सिद्ध हो रहा है। मतलब साफ है! प्रधानमंत्री से लेकर पूरा संवैधानिक तंत्र पिछले रात्रि के 12 घंटे से इस बात में जुट गया था कि ‘‘ऐन-केन-प्रकारेण’’ देवेन्द्र फडणवीस की सरकार को शीघ्रातिशीघ्र शपथग्रहण कराना है, जिसमें वे पूरी तरह सफल भी रहे। सत्ता ही आज के लोकतंत्र में साध्य है व उसे पाने का साधन भी सत्ता ही है। विश्व में भारतीय लोकतंत्र जो सबसे बड़ा भव्य व सफल माना जाता रहा है, ऐसे लोकतंत्र की क्या यही नियति है। अन्त में चंूकि इस समय देश में पहली बार ‘पिंक’ गुलाबी क्रिकेट मैच चल रहा है। इसलिए राजनीति मेें यह कदम निश्चित रूप से राजनीति में नई ‘‘गुगली’’ की ईजाद है, जो सिर्फ व सिर्फ ‘सत्ता’ द्वारा ही निर्मित है।