आज आप पूरे देश के प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के दूसरे कार्य काल की 1 वर्ष की उपलब्धियों के समाचार पढ़ और देख रहे होंगे। प्रधानमंत्री ने स्वयं अपने दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष में किए गए कार्यों की जानकारी बड़े ही शालीन तरीके से देशवासियों के नाम खुला पत्र लिख कर दी है। इन उपलब्धियों पर न तो कोई शक है और न ही कोई उंगली उठाने का प्रश्न। इसलिए मैं इस लेख में उन में से किसी भी उपलब्धि की पुनरावृत्ति नहीं करने जा रहा हूं।
आज के इस अवसर पर मैं दो तरीकों से मोदी जी के कार्यकाल का मूल्यांकन करना चाहता हूं। एक तो जनता ने आगे बढ़कर जो विश्वास विपक्षी पार्टियों की तुलना में भाजपा पर करके उसे पहले से ज्यादा बहुमत प्रदान किया, इस विश्वास को अक्षुण्ण रखने में मोदी कितने सफल रहे? इसका जवाब मैं ऊपर प्रथम पैरा में लिख चुका हूं। यद्यपि लोकतंत्र में विपक्षी पाटियों को रचनात्मक, सुझावत्मक, समालोचना करने का अधिकार है। लेकिन दुर्भाग्य वश हमारे लोकतंत्र में इस गुण का बिल्कुल ही अभाव है। इसीलिए विपक्ष इस अवसर पर भी अपने इस कुप्रसिद्ध चरित्र के ‘‘चरितार्थ’’ करने का ही प्रयास करेगा।
दूसरा मोदी के कार्य का मूल्यांकन, खुद मोदी की नजर में। मोदी, की एक नजर, वह जिसके द्वारा वे राजनीतिक दृष्टिकोण से अपने किए गए कार्यों जनता के सामने अपने पत्र के माध्यम से व्यक्त कर चुकें है। जो सही भी है। यह उनका अधिकार क्षेत्र भी है। लेकिन दृष्टिकोण की दूसरी नजर आत्मलोचन व आत्मावलोकन का मेरे मत में ज्यादा महत्व है, जिसके द्वारा विवेचना करके ही यह मूल्यांकन किया जा सकता है कि वे कौन से कार्य है, जो प्रधानमंत्री को करने थे, परन्तु अभी तक नहीं किए गए हैं, या प्रारंभ नहीं हुए हैं। जैसा कि मोदी ने स्वयं जनता के नाम अपने वीडियांे संदेश में कहा भी है कि ‘‘अभी कुछ किया है और बहुत कुछ करना है‘‘। यही सोच इस 1 साल के कार्यकाल के मूल्यांकन का मूल आधार है, जो अगले 4 वर्षों के कार्य की दिशा, नीति और उससे होने वाली उपलब्धियां, तय करेगी।
इस कोरोना के उथल पुथल पूर्ण काल खंड में भी हमारे पड़ोसी दुश्मन अपने ‘‘स्थापित चरित्र’’ के अनुरूप अपना कर्तव्य बखूबी निभा रहे हैं ? यह कहने की कतई आवश्यकता नहीं है कि, मोदी के हाथों में देश की सीमाएं बिल्कुल सुरक्षित है। बावजूद इसके पाकिस्तान संचालित आतंकवादी विभत्स आंतकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं, और हम अपनी सुरक्षा में केवल उनको मार/गिरा कर संतुष्ट हो लेते हैं। कभी कभार एकाध हम सिर्फ ‘सर्जिकल स्ट्राइक‘ करके प्रसन्न हो जाते है। इसी प्रकार दूसरे पड़ोसी देश (उदाहरणार्थ चीन) हमें ‘आंख‘ दिखाते हैं और हम उन्हें ‘‘बड़ी आंख‘‘ दिखा कर चुप करा देते हैं। अर्थात हम सिर्फ अपनी सुरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए (जैसा कि भारतीय नागरिकों को भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आत्मरक्षा का अधिकार प्राप्त है) अपनी आत्मरक्षार्थ तभी कार्यवाही करते हैं, जब हम पर कोई दुश्मन देश कार्यवाही करने की जुर्रत करता है। यह सब ठीक तो लगता है। जिसके लिए नरेंद्र मोदी बधाई के पात्र भी है। लेकिन यह बात हम सब को ध्यान में रखना चाहिए कि, इतनी कार्यवाही तो देश के समस्त प्रधानमंत्री अभी तक हमेशा (1962 के चीन युद्ध को छोड़कर) सफलतापूर्वक करते आए है।
परन्तु यह समय इससे आगे कुछ और सोचने का है। याद कीजिए 2014 के चुनावी प्रचार के दौरान ये मुहावरे बहुत ज्यादा प्रचलित हुए थे। ‘‘वे एक मारेंगे हम सौ मारेंगे‘‘ ‘‘भारत को एक के बदले 10 सिर लाना चाहिये।’’ जब हमारे सैनिकों के सिर काटकर जमीन पर पड़े थे, तब ‘‘हम टेबल पर चिकन बिरयानी खिला रहे थे?’’ परन्तु मोदी सिर्फ अभी तक हुए 15 प्रधानमंत्रियों के समान एक सामान्य जनतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुने गए सामान्य प्रधानमंत्री मात्र नहीं है, न ही वे इंदिरा गांधी के समान सिर्फ एक मजबूत (स्ट्रॉन्ग) प्रधानमंत्री भर है। वे ‘नरेंद्र मोदी‘ है। इसीलिये कि वे 56 इंच का सीना लिये हुए ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनसे देश निर्विवाद रूप से यह उम्मीद करता है कि ‘‘मोदी अपना 56 इंच का सीना हनुमानजी के समान चीऱ कर’’ पाकिस्तान को अपने सीने में समाकर उसके द्वारा उत्पादित व पल्लवित आतंकवाद के अस्तित्व को हमेशा के लिए खत्म कर देंगें। इसके लिए फिलहाल जितनी अनुकूल बाह्य और आंतरिक परिस्थितियों की आवश्यकता है, वह सब नरेंद्र मोदी ने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए व लोहा मनवाते हुए अर्जित कर रखी है।
अब तो सिर्फ उस क्षण ‘‘मोदी है तो मुमकिन’’ का इंतजार है, जब भारत अपनी क्षमता का स्थायी निदान प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वतः पहल करेगा और दूसरे दुश्मन देशों के पहल करने के समस्त अवसरों व सुविधाओं को हमेशा हमेशा के लिए नष्ट कर देगा। इसके लिये प्रधानमंत्री के सामने अमेरिका, रूस, जर्मनी, इजराइल सहित अनेक देशों के उदाहरण सामने है, जिन्होंने बिना किसी सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के इंतजार किए, अपने राष्ट्रीय हितों व सम्मान की खातिर दूसरे देशों में भीतर घुसकर आंतकवादियों व दुश्मनों को मार गिराया। नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के बचे चार वर्षों में उनके आंतरिक हृदय व आत्मावलोकन से मैं यही उम्मीद करता हूं। निश्चित रूप से, ऐसी कार्यवाही वे सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं कर सकते है, परन्तु कार्यान्वित अवश्य कर सकते हैं।
जहाँ तक देश की आंतरिक स्थिति की उपलब्धियों की बात है, इस दूसरे कार्यकाल का सबसे बड़ा संकट कोरोना संकट काल खंड हैं, जिसे प्रधानमंत्री ने कितनी सफलतापूर्वक सामना किया, यह राजनैतिक गलियारों में आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच फंसा है। याद कीजिये कोरोना वायरस से निपटने के लिये नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित लॉकडाउन का समस्त राजनैतिक पार्टियों सहित पूरे देश ने स्वागत किया था लेकिन शैनेः शैनेः नीति पर राजनीति हावी होती गई। अतः इसका आंकलन तो भविष्य स्वयं कुछ समय बाद ही बता पायेगा। तब तक इंतजार कीजियें!