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‘‘मोदी के दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष का लेखा-जोखा।’’

1 जून 2020

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आज आप पूरे देश के प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के दूसरे कार्य काल की 1 वर्ष की उपलब्धियों के समाचार पढ़ और देख रहे होंगे। प्रधानमंत्री ने स्वयं अपने दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष में किए गए कार्यों की जानकारी बड़े ही शालीन तरीके से देशवासियों के नाम खुला पत्र लिख कर दी है। इन उपलब्धियों पर न तो कोई शक है और न ही कोई उंगली उठाने का प्रश्न। इसलिए मैं इस लेख में उन में से किसी भी उपलब्धि की पुनरावृत्ति नहीं करने जा रहा हूं।

आज के इस अवसर पर मैं दो तरीकों से मोदी जी के कार्यकाल का मूल्यांकन करना चाहता हूं। एक तो जनता ने आगे बढ़कर जो विश्वास विपक्षी पार्टियों की तुलना में भाजपा पर करके उसे पहले से ज्यादा बहुमत प्रदान किया, इस विश्वास को अक्षुण्ण रखने में मोदी कितने सफल रहे? इसका जवाब मैं ऊपर प्रथम पैरा में लिख चुका हूं। यद्यपि लोकतंत्र में विपक्षी पाटियों को रचनात्मक, सुझावत्मक, समालोचना करने का अधिकार है। लेकिन दुर्भाग्य वश हमारे लोकतंत्र में इस गुण का बिल्कुल ही अभाव है। इसीलिए विपक्ष इस अवसर पर भी अपने इस कुप्रसिद्ध चरित्र के ‘‘चरितार्थ’’ करने का ही प्रयास करेगा।

दूसरा मोदी के कार्य का मूल्यांकन, खुद मोदी की नजर में। मोदी, की एक नजर, वह जिसके द्वारा वे राजनीतिक दृष्टिकोण से अपने किए गए कार्यों जनता के सामने अपने पत्र के माध्यम से व्यक्त कर चुकें है। जो सही भी है। यह उनका अधिकार क्षेत्र भी है। लेकिन दृष्टिकोण की दूसरी नजर आत्मलोचन व आत्मावलोकन का मेरे मत में ज्यादा महत्व है, जिसके द्वारा विवेचना करके ही यह मूल्यांकन किया जा सकता है कि वे कौन से कार्य है, जो प्रधानमंत्री को करने थे, परन्तु अभी तक नहीं किए गए हैं, या प्रारंभ नहीं हुए हैं। जैसा कि मोदी ने स्वयं जनता के नाम अपने वीडियांे संदेश में कहा भी है कि ‘‘अभी कुछ किया है और बहुत कुछ करना है‘‘। यही सोच इस 1 साल के कार्यकाल के मूल्यांकन का मूल आधार है, जो अगले 4 वर्षों के कार्य की दिशा, नीति और उससे होने वाली उपलब्धियां, तय करेगी।

इस कोरोना के उथल पुथल पूर्ण काल खंड में भी हमारे पड़ोसी दुश्मन अपने ‘‘स्थापित चरित्र’’ के अनुरूप अपना कर्तव्य बखूबी निभा रहे हैं ? यह कहने की कतई आवश्यकता नहीं है कि, मोदी के हाथों में देश की सीमाएं बिल्कुल सुरक्षित है। बावजूद इसके पाकिस्तान संचालित आतंकवादी विभत्स आंतकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं, और हम अपनी सुरक्षा में केवल उनको मार/गिरा कर संतुष्ट हो लेते हैं। कभी कभार एकाध हम सिर्फ ‘सर्जिकल स्ट्राइक‘ करके प्रसन्न हो जाते है। इसी प्रकार दूसरे पड़ोसी देश (उदाहरणार्थ चीन) हमें ‘आंख‘ दिखाते हैं और हम उन्हें ‘‘बड़ी आंख‘‘ दिखा कर चुप करा देते हैं। अर्थात हम सिर्फ अपनी सुरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए (जैसा कि भारतीय नागरिकों को भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आत्मरक्षा का अधिकार प्राप्त है) अपनी आत्मरक्षार्थ तभी कार्यवाही करते हैं, जब हम पर कोई दुश्मन देश कार्यवाही करने की जुर्रत करता है। यह सब ठीक तो लगता है। जिसके लिए नरेंद्र मोदी बधाई के पात्र भी है। लेकिन यह बात हम सब को ध्यान में रखना चाहिए कि, इतनी कार्यवाही तो देश के समस्त प्रधानमंत्री अभी तक हमेशा (1962 के चीन युद्ध को छोड़कर) सफलतापूर्वक करते आए है।

परन्तु यह समय इससे आगे कुछ और सोचने का है। याद कीजिए 2014 के चुनावी प्रचार के दौरान ये मुहावरे बहुत ज्यादा प्रचलित हुए थे। ‘‘वे एक मारेंगे हम सौ मारेंगे‘‘ ‘‘भारत को एक के बदले 10 सिर लाना चाहिये।’’ जब हमारे सैनिकों के सिर काटकर जमीन पर पड़े थे, तब ‘‘हम टेबल पर चिकन बिरयानी खिला रहे थे?’’ परन्तु मोदी सिर्फ अभी तक हुए 15 प्रधानमंत्रियों के समान एक सामान्य जनतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुने गए सामान्य प्रधानमंत्री मात्र नहीं है, न ही वे इंदिरा गांधी के समान सिर्फ एक मजबूत (स्ट्रॉन्ग) प्रधानमंत्री भर है। वे ‘नरेंद्र मोदी‘ है। इसीलिये कि वे 56 इंच का सीना लिये हुए ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनसे देश निर्विवाद रूप से यह उम्मीद करता है कि ‘‘मोदी अपना 56 इंच का सीना हनुमानजी के समान चीऱ कर’’ पाकिस्तान को अपने सीने में समाकर उसके द्वारा उत्पादित व पल्लवित आतंकवाद के अस्तित्व को हमेशा के लिए खत्म कर देंगें। इसके लिए फिलहाल जितनी अनुकूल बाह्य और आंतरिक परिस्थितियों की आवश्यकता है, वह सब नरेंद्र मोदी ने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए व लोहा मनवाते हुए अर्जित कर रखी है।

अब तो सिर्फ उस क्षण ‘‘मोदी है तो मुमकिन’’ का इंतजार है, जब भारत अपनी क्षमता का स्थायी निदान प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वतः पहल करेगा और दूसरे दुश्मन देशों के पहल करने के समस्त अवसरों व सुविधाओं को हमेशा हमेशा के लिए नष्ट कर देगा। इसके लिये प्रधानमंत्री के सामने अमेरिका, रूस, जर्मनी, इजराइल सहित अनेक देशों के उदाहरण सामने है, जिन्होंने बिना किसी सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के इंतजार किए, अपने राष्ट्रीय हितों व सम्मान की खातिर दूसरे देशों में भीतर घुसकर आंतकवादियों व दुश्मनों को मार गिराया। नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के बचे चार वर्षों में उनके आंतरिक हृदय व आत्मावलोकन से मैं यही उम्मीद करता हूं। निश्चित रूप से, ऐसी कार्यवाही वे सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं कर सकते है, परन्तु कार्यान्वित अवश्य कर सकते हैं।

जहाँ तक देश की आंतरिक स्थिति की उपलब्धियों की बात है, इस दूसरे कार्यकाल का सबसे बड़ा संकट कोरोना संकट काल खंड हैं, जिसे प्रधानमंत्री ने कितनी सफलतापूर्वक सामना किया, यह राजनैतिक गलियारों में आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच फंसा है। याद कीजिये कोरोना वायरस से निपटने के लिये नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित लॉकडाउन का समस्त राजनैतिक पार्टियों सहित पूरे देश ने स्वागत किया था लेकिन शैनेः शैनेः नीति पर राजनीति हावी होती गई। अतः इसका आंकलन तो भविष्य स्वयं कुछ समय बाद ही बता पायेगा। तब तक इंतजार कीजियें!


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फिल्मी कलाकार, एक्ट्रेस, ‘‘डबल रोल की रानी’’ ‘‘प्रथम महिला सुपरस्टार, ‘‘पद्मश्री’’ श्रीदेवी’’ की मौत अचानक परिस्थिजन्य शंकास्पद स्थिति में दुबई में हो गई। तत्पश्चात् दुबई पुलिस द्वारा गहन जांच के बाद समस्त शंकाओ का निराकरण करते हुये श्रीदेवी की मौत को प्राकृतिक मौत का मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया। न

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‘‘विदेशों में मोदी का डंका’’!‘‘देश में अमित शाह का डंका’’!

6 मार्च 2018
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‘पूर्वोत्तर’’ में आये चुनाव परिणाम निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कांग्रेस मुक्त देश की सोच के अनुरूप ही हैं, जिन्होने सफलतापूर्वक विदेशों में विश्व के शक्तिशाली देश अमेरिका, रूस, चीन के रहते हुये उन्हे पछाड़कर या उनके समकक्ष विश्व नेता बनकर भारत देश का डंका बजाया है। विश्व के राष्ट्राध

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लाल निशान! शांतिपूर्ण मार्च?

16 मार्च 2018
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‘‘ऑल इण्ड़िया किसान सभा’’ के बैनर तले लगभग 45 से 50 हजार निर्धन किसानो, खेतिहर मजदूरो व आदिवासी भूमिहीन श्रमिको का लगभग 200 किलो मीटर तक का पैदल मार्च 7 मार्च को ‘नासिक’ से लगातार पांच दिन रात चलकर सोमवार दिनंाक 12 मार्च को देश की आर्थिक राजधानी, व महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई के ‘‘आजाद मैदान’’ में प

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सलमान खान को क्या ‘‘भारत रत्न’’/‘‘नोबेल पुरस्कार’’ मिल गया है?

10 अप्रैल 2018
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पिछले तीन दिनो से खासकर दो दिन लगातार इलेक्ट्रानिक मीडिया व कुछ हद तक प्रिंट मीडिया सेलीब्रिेटी सलमान खान को ही दिखाये-छापे जा रहा है, जिसे देखने-पढ़ने के लिए आम दर्शक-पाठक मजबूर है। बेशक सलमान खान देश के बड़े फिल्मी सेलीब्रिटी है। ‘‘वालीवुड’’ में अमिताभ बच्चन के बाद वे शायद देश के दूसरे सबसे बड़े सफल

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कर्नाटक के नाटक (घटनाक्रम) में न्यायपालिका की भूमिका क्या पूर्णतः न्यायोचित रही?

31 मई 2018
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अन्ततः कर्नाटक में सियासी दाव पंेच आजमाने के बाद मात्र ढ़ाई दिन की बी.एस. येदियुरप्पा की सरकार का अंत हो गया, जो होना ही था और अन्ततः नई सरकार चुनने का रास्ता साफ हो गया। अध

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आरएसएस के आमंत्रण की ‘‘प्रणब दा’’ द्वारा स्वीकारिता पर इतना हंगामा क्यों?

4 जून 2018
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‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’’ मुख्यालय नागपुर में प्रत्येक वर्ष संघ तृतीय वर्ष शिक्षा वर्ग के समापन (दीक्षांत समारोह) का आयोजन करता है। इसके अतिरिक्त संघ प्रत्येक वर्ष विजया-दशमी (दशहरा) के शुभ अवसर पर मुख्यालय नागपुर में ही वार्षिकोत्सव का आयोजन भी करता है। इन अवसरो पर संघ देश की विभिन्न प्रमुख हस्ति

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सर्वोच्च निर्णय! कोई सर्वोच्च नहीं!

5 जुलाई 2018
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माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध दिल्ली सरकार की अपील पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देकर जो व्यवस्था की, उसका घोषित प्रभाव यह हुआ कि संवैधानिक रूप से दिल्ली में न तो मुख्यमंत्री ही और न ही उपराज्यपाल सर्वोच्च है। उच्चतम न्यायालय ने चुनी हुई सरकार के महत्व को स्थाप

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क्या देश के नागरिको के रहवासी भवन के प्रति सुरक्षा की गांरटी हेतु कानूनी प्रावधान बनाने का समय नहीं आ गया है?

27 जुलाई 2018
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विगत एक हफ्ते के भीतर देश की राजधानी दिल्ली के पास एनसीआर में नवनिर्मित या निर्माणाधीन या पुरानी बिंल्डिग अचानक ढ़ह जाने की लगातार चार घटनाएँ हो गई जिस कारणं सम्पत्ति के अलावा जानमाल का भी बड़ा नुकसान हो गया। ये घटनाएं 17, 21, 22 जुलाई 2018 के बीच गाजियाबाद, शाहबेरी, मसूरी, साहिबाबाद में हुई हैं। शाहब

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‘‘सरकारें ’’ देशहित में ‘‘जुमलों’’ से कब बाहर आयेगीं?

17 सितम्बर 2018
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यद्यपि हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दावा करते हैं, और हैं भी। तथापि जनता लोकशाही से, लोकतांत्रिक तरीके से लोकतांत्रिक मूल्यो के आधार पर देश चलाने की अपेक्षा करती है। लेकिन पिछले कई दशकांे से हमारे देश में लोकतंत्र के नाम पर ‘‘जुमले बाजी’’ ही चल रही है। एक ‘जुमले’ मात्र से कई बार सरका

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‘‘उच्चतम् न्यायालय का ‘‘निर्णय’’ कितना प्रभावी ‘‘कितना औचित्यपूर्ण’’?

29 सितम्बर 2018
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संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार ‘‘उच्चतम् न्यायालय’’ के समस्त निर्णय न्यायिक और बंधनकारी होते है। लेकिन इसके बावजूद हमेशा ही उच्चतम् न्यायालय के निर्णयांे के औचित्य पर बहस होती रही है और यह स्वस्थ्य व मजबूत लोकतंात्रिक न्याय व्यवस्था का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। आरोपित नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से

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क्या माननीय उच्चतम न्यायालय त्यौहारों के मुहूर्त भी निकालेगी?

26 अक्टूबर 2018
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माननीय उच्चतम न्यायालय के आए निर्णय ने एक बार फिर उच्चतम न्यायालय के निर्णयों पर प्रश्नवाचक चिन्ह उठा दिया है। उच्चतम न्यायालय ने अपने इस निर्णय द्वारा विभिन्न धार्मिक आयोजनों के अवसरों पर पटाखे जलाने की समयावधि, गुणवक्ता की डेसीबल व मात्रा तय की है। आखिर उच्चतम न्यायालय को आज कल हो क्या गया है? मू

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सरदार पटेल की मूर्ति ‘‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’’ का अनावरण। भारत देश गरीब या अमीर?

5 नवम्बर 2018
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लगता है, भारत एक अमीर व विकसित देश हो गया है? आज का ही (31 अक्टूबर) दिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण ‘‘बलिदान दिवस’’ व भारत की एकता व अखंडता बनाए रखने में अति विशिष्ट महत्वपूर्ण व एकमात्र योगदान देने के कारण पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस को राष्ट्र एकता दिवस

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राहुल गांधी का ‘एप’ के माध्यम से मुख्यमंत्री चुनना! जनादेश का अपमान नहीं?

15 दिसम्बर 2018
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पाँच प्रदेशों में हुये विधानसभा चुनावों में तीन विधानसभाओं में कांग्रेस सरकारें बनने जा रही है। कांग्रेस पार्टी द्वारा तीन प्रदेशों में मुख्यमंत्री चुनने की प्रक्रिया की औपचारिकताओं की (औपचारिक) पूर्ती की जाकर विधायक दल द्वारा अंतिम निर्णय लेने का अधिकार परम्परा अनुसार हाई कमान अर्थात राहुल गांधी को

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स्वतंत्रता के 70 सालों के पश्चात भी क्या यही ‘‘परिपक्व’’ लोकतंत्र है?

19 दिसम्बर 2018
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पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं। चुनाव पूर्व का ‘‘ओपीनियन पोल’’ तुरन्त चुनाव बाद का ‘‘एक्जिट पोल’’ व अब ‘‘वास्तविक परिणाम’’ आपके सामने है। मैं यहाँ पर पर

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स्वतंत्रता के 70 सालों के पश्चात भी क्या यही ‘‘परिपक्व’’ लोकतंत्र है?

19 दिसम्बर 2018
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पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं। चुनाव पूर्व का ‘‘ओपीनियन पोल’’ तुरन्त चुनाव बाद का ‘‘एक्जिट पोल’’ व अब ‘‘वास्तविक परिणाम’’ आपके सामने है। मैं यहाँ पर परिणामों का विश्लेषण नहीं कर रहा हूूंँ। ये सब ‘‘पोल’’ अनुमान के कितने नजदीक थे, सही थे, या आश्चर्य जनक थे, इस संबंध में भी कोई विशेष मूर्धन्य़

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कहीं भाजपा का ‘‘कमल’’(भगवा) एजेंडा’’ कांग्रेस के ‘‘नाथ’’ ने चुरा तो नहीं लिया है?

22 दिसम्बर 2018
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मध्यप्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में ‘‘कमल’’ को अनाथ न होने देने वाले हमारे पडोसी जिले छिंदवाडा के कमलनाथ द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली गई जिसके लिये उन्हे हार्दिक बधाईयाँ, वंदन व अभिनंदन। सम्पन्न शपथ ग्रहण समारोह में वास्तव में ऐसा लगा ही नहीं कि वह किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण स

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केन्द्रीय सरकार का ‘‘आर्थिक आधार’’ पर 10 प्रतिशत आरक्षण का निर्णय! कितना अधूरा! कितना पूर्ण?

12 जनवरी 2019
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वास्तव में हमारे देश में यदि किसी भी ‘‘सरकार’’ से कोई निर्णय अपने पक्ष में करवाना हो तो सरकार के चुने जाने के 4 साल तक तो वह आपकी मांगे व मुद्दो पर गंभीरता से कोई विचार ही नहीं करती है, क्योकि तब तक वह आपके चुनावी दबाव में ही नहीं होती है। परन्तु चुनावी वर्ष में चुनावी मोड में आ जाने के बाद आपका मु

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क्या कानून व्यवस्था ‘कांग्रेस’ व ‘भाजपा’ के लिये अलग-अलग है?

24 जनवरी 2019
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विगत दिवस मंदसौर में भाजपा नेता व प्रथम नागरिक नगर पालिका अध्यक्ष प्रहलाद बंधवार की सरे आम गोली मारकर हत्या कर दी गई। निश्चित रूप से यह एक बेहद दुखद घटना थी और पुलिस ने त्वरित कार्यवाही कर 24 घंटे के भीतर ही एक आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ का उक्त घटना पर यह बयान कि यह भाजप

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‘‘कुंभ’’ ‘‘महाकुंभ’’ और ‘‘अर्धकुंभ’’ में क्या कोई अंतर हैं?

31 जनवरी 2019
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प्रयागराज (इलाहबाद) में मकर संक्र्राति से ‘‘अर्धकुंभ’’ प्रारंभहुआ है। लेकिन इस अर्धकुंभ को केन्द्रीय सरकार से लेकर उत्तर प्रदेश सरकार व समस्तमीडिया चाहे वह प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक इसे कुंभया महा!कुंभ कहकर महिमा-मंडित कर रहे हैं। इस ‘‘कुंभ’’ के जबरदस्तप्रचार-प्रसार के कारण ही मुझे भी यह शक हु

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2019 के लोकसभा चुनाव केे बाद ‘‘एनडीए’’ के प्रधानमंत्री क्या नितिन गडकरी होगें?

2 फरवरी 2019
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भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, आरएसएस के करीबी, कॉर्पोरेट और व्यापार जगत के चहेते और केन्द्र की मोदी सरकार के नियत अवधि में अपेक्षित परिणाम देने वाले सड़क परिवहन, जहाज रानी व गंगा सफाई विभाग के मंत्री नितिन गडकरी केे पिछले कुछ समय से जो बयान आ रहे है वे निश्चित रूप से सामान्य

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अरविंद केजरीवाल का बयान! संविधान व लोकतंत्र विरोधी कौन?

19 फरवरी 2019
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‘‘दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल’’ के मामले में उपराज्यपाल एवं दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र के विवाद पर उच्चतम न्यायालय का बहुप्रतिक्षित निर्णय आ गया है। उक्त निर्णय पर आई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की त्वरित प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री पद पर बैठे हुये व्यक्ति के लिये न केवल अत्यधिक अमर्यादित

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देशप्रेम-राष्ट्रभक्ति-राष्ट्रवाद को ढूढ़ता मेरा प्यारा देश!

5 मार्च 2019
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इस लेख का ‘‘शीर्षक’’ देख कर बहुत से लोगों को हैरानी अवश्य होगी और आश्चर्य होना भी चाहिये। पर बहुत से लोग इस पर आखें भी तरेर सकते है। यदि वास्तव में ऐसा हो सका तो, मेरे लेख लिखने का उद्देश्य भी सफल हो जायेगा। एक नागरिक, बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा एक भारतीय पैदाईशी ही स्वभावगतः देशप्रेमी होता है।

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आखिर देश को क्या हो गया है।

13 मार्च 2019
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‘‘पुलवामा’’ में हुई बड़ी वीभत्स आंतकी घटना में 40 सैनिकों के शहीद हो जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में किये गये हवाई हमलों के द्वारा ‘‘जैश-ए-मोहम्मद’’के आंतकवादी कैम्प (प्रशिक्षण शिविर) को नष्ट करने के बाद सम्पूर्ण देश ने एक जुट होकर सेना व सरकार को बधाई दी थी। कांग्रेस सहि

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‘‘पर्रिकर’’ ‘‘वाद’’ को ढूँढता मेरा देश। ‘व’’ ‘‘गांधीवाद’’ से चलकर ‘‘पर्रिकरवाद’’ तक पहुंचने का सुखद अहसास!

27 मार्च 2019
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देश के प्रथम आई.आईटी शिक्षा प्राप्त (गोवा के) मुख्यमंत्री एवं पूर्व रक्षामंत्री डॉ. मनोहर गोपाल कृष्ण प्रभु पर्रिकर लम्बी बीमारी से अदम्य आत्मबल के साथ लड़ते हुये अब इस दुनिया में नहीं रहे और ‘‘स्वर्गवासी’’ हो गये। याद कीजिये! विधानसभा में बजट प्रस्तुत करते समय उनका वह चेहरा, जो चिकित्सकीय उप

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बिगड़े नेताओं के ‘‘बिगडे़ बोल’’-‘‘विवादित बोल’’! फायदा-नुकसान कितना!

31 मार्च 2019
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भारतीय राजनीति में हमेशा से ही ‘‘बयानवीर’’ मीडिया में सुर्खिया पाते रहे है। विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के कुछ नेतागण अपने बेवाक बयानों के माध्यम से सुर्खियाँ बटोरनें के उदे्श्य से ऐसे बयान देते रहते है, जिसके परिणाम स्वरूप उनकी छाप एक चर्चित चेहरे की होकर वे माने जाने

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2019 के आम चुनाव के मुद्दे, क्या ‘‘स्थापित चुनावी मुद्दों से’’ हटकर हैं।

3 मई 2019
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स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वर्ष 2019 में देश का यह 17 वाँ आम चुनाव हो रहा है। प्रारंभ में स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर भाग लेने वाली पार्टी (सत्य से परे) एक मात्र कांग्रेस ही मानी जाती रही। वर्ष

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‘‘परिपक्व लोकतंत्र’’ में ‘‘परिपक्व’’ होते मतदाता का ‘‘परिपक्वता पूर्ण’’जनादेश!

3 जून 2019
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विश्व के सबसे बड़े लोकतंात्रिक देश भारत में हुये 17 वंे आम चुनाव का जनादेश आपके सामने है। ऐतिहासिक जीत से लेकर ऐतिहासिक हार के परिणामों की व्याख्या विभिन्न लेखों व प्रतिक्रियाओं के माध्यम से आप मीडिया में अवश्य देखेगंे/पढे़गें। वैसे तो हर आम चुनाव परिणाम पिछले चुनाव परिणाम से कुछ न कुछ भिन्न स्थिति

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साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने आखिर गलत क्या कहाँ ?

26 जुलाई 2019
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भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जो पूर्व में भी अपने कई बयानों के कारण मीडिया व देश की राजनीति में न केवल चर्चित रही, बल्कि उनके बयानों के कारण भाजपा को शर्मिदंगी भी उठानी पड़ी है, व पार्टी की किरकिरी भी हुई है। प्रधानमंत्री तक को पार्टी की छवि बचाने के लिये यह कहना पड़ा कि गोड़से को देशभक्त बता

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अनुच्छेद 370 (2) एवं (3) समाप्त! लेकिन उपबंध (1) क्या 370 का भाग नहीं?

8 अगस्त 2019
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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के इतिहास में राष्ट्रीय सुरक्षा व अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से वर्ष 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सबसे बड़ा कदम उठाकर पाकिस्तान को युद्ध में बुरी तरह से पटकनी देकर बंग्लादेश का निर्माण किया था। भारतीय सेना ने उक्त युद्ध में दो लाख से अधिक पाकिस्तानी सैनिको

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‘‘नौ सौं चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’’

28 अगस्त 2019
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विश्व के 195 देशों में भारत निश्चित रूप से एक अनूठा स्थान लिये हुये है। शायद इसका एक बहुत बड़ा कारण हमारी पीढि़यों से चली आ रही खुबसूरत सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासत है। हमारे देश की संस्कृति में इतनी (एकता में अनेकता) विभिन्नतायें है, जो सदैव जीवन्त बनी रहकर और अंततः एक मुहावरे के रूप में प्रसिद्ध ह

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अभी तक का सफर। कितना सफल।

21 अक्टूबर 2019
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वर्ष 1925 में विजयादशमी के पावन दिवस पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा एक शाखा प्रांरभ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की गई थी। वर्ष 2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी सौवीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। किसी भी संगठन के लिये 100 वर्ष पूर्ण करने का अत्यधिक महत्व होता है, क्योंकि इतने लम्बे सम

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‘‘50-50!’’ ‘‘क्या राजनीति में इसका अर्थ अलग होता है’’!

16 नवम्बर 2019
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अंततः शिवसेना-भाजपा का वर्ष 1990 से चला आ रहा लगभग 30 वर्ष पुराना गठबंधन टूट गया। तथाकथित 50-50 फॉमूले को आधार बनाकर महाराष्ट्र विधानसभा के परिणाम आने के तुरन्त बाद से ही शिवसेना के प्रवक्ता एवं सांसद संजय राउत लगातार यही कहते रहे है कि मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही बनेगा। 50-50 के सूत्र को स्पष्ट कर

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भारतीय राजनीति की नई ‘गुगली’।

3 दिसम्बर 2019
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स्वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास में बीता कल अभूतपूर्व कहलायेगा! यह घटना राजनैतिक भूचाल नहीं, बल्कि ‘भूकम्प’ है, जो स्वतंत्रता के बाद देश के राजनैतिक पटल पर प्रथम बार हुआ है। राजनीति में नैतिकता के निरंतर गिरते स्तर के बावजूद, इस तरह की यह पहली अलौकिक, अनोखी, अचम्भित करने वाली एक आश्चर्यजनक घटना है।

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आखिर! ‘न्याय’-‘इंसाफ’! इंसानियत एवं ‘न्यायप्रिय’ तरीके से ‘कैसे’ व ‘कब’ मिलेगा। ‘‘जन भावनाओं’’ से ‘‘न्याय व्यवस्था’’ नहीं ‘‘लोकतंत्र’’ चलता है।

12 दिसम्बर 2019
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6 दिसम्बर सुबह जैसे ही टीव्ही पर हैदराबाद की रेप पीडि़ता ‘‘दिशा’’ की वीभत्स हत्या के चारों अभियुक्तों के एनकाउंटर में मारे जाने की खबर आयी, लगभग पूरे देश में एक अजीब सी खुशी का माहौल पसर गया। तब से चारांे तरफ अधिकांश खुशी ही खुशी व्यक्त करते हुये एक ही आवाज आ रही है कि ‘‘इंसाफ’’ मिल गया है। देश में

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‘‘मोदी के दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष का लेखा-जोखा।’’

1 जून 2020
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आज आप पूरे देश के प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के दूसरे कार्य काल की 1 वर्ष की उपलब्धियों के समाचार पढ़ और देख रहे होंगे। प्रधानमंत्री ने स्वयं अपने दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष में किए गए कार्यों की जानकारी बड़े ही शालीन तरीके से

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क्या ‘‘कोरोना’’ ने ‘‘नौकरशाही’’ को कुंठित तो नहीं कर दिया है?

2 जून 2020
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लॉकडाउन-4 समाप्त! लॉकडाउन-5 प्रारंभ नहीं। बल्कि इसकी जगह देश अनलॉक-1 (नॉकडाउन-1) के नये दौर में देश प्रवेश कर रहा हैं। यह नया दौर कैसा होगा, यह तो भविष्य ही बतलायेगा। आइये, तब तक नौकरशाही द्वारा जारी अपरिपक्व आधे-अधूरे आदेशों निर्देशों के संबंध में गुजरे लॉकडाउन का थोड़ा अवलोकन कर लें। ‘देश’ व ‘जीवन

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‘‘आंकड़ों’’ के ‘‘खेल’’ की ‘‘बाजीगरी’’ द्वारा ‘‘कोरोना’’ पर ‘‘राजनीति’’क्यों?

6 जून 2020
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कोरोना वायरस को भारत में आए 4 महीने पूर्ण हो चुके हैं। हमारे देश में प्रथम मरीज 30 जनवरी को केरल के ‘‘त्रिशूर’’ में आया था। ‘‘कोरोना’’ (कोविड़-19) राष्ट्रीय महामारी और आपदा के रूप में, हमारे देश के लिये एक अत्यंत चिंता का विषय था। इसलिए सत्ता और विपक्ष के साथ देश की संपूर्ण जनता 30 जनवरी को एक साथ खड़

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विश्व में ‘‘लाॅकडाउन की नीति’’ कहीं ‘गलत’ व ‘‘असफल’’ तो सिध्द नहीं हो रही है?

8 जून 2020
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‘‘कोरोनावायरस’’ ‘‘(कोविड़-19)’’ के संक्रमण को रोकने के लिये कमोवेश पूरे विश्व में लाॅकडाउन की नीति अपनाई, जिसके परिणाम स्वरूप आज विश्व के लगभग 200 देशों की आधी से ज्यादा आबादी घर में कैद है, और आर्थिक रथ का चक्का जाम हो गया हैं। इसके बावजूद कमोवेश कुछ को छोड़कर प्रायः हर देश में संक्रमित मरीजों की संख

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क्या परिपक्व होते लोकतंत्र में ‘‘सरकारे’’ ‘‘गिराई’’ जाती है? अथवा ‘‘बनाई’’ जाती है?

12 जून 2020
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राजस्थान में राज्य सभा के हो रहे चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस का यह बयान आया है कि, राजस्थान में भी भाजपा ने मध्य प्रदेश के समान ही‘ ऑपरेशन कमल‘ पर अमल करना शुरू कर दिया है। भाजपा खरीद फरोख्त के द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है। विधायक दल के सचेतक द्वारा इसकी भ्

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भारतीय राजनीति में ‘सवालों’ के ‘जवाब’ के ‘उत्तर’ में क्या सिर्फ ‘सवाल’ ही रह गए हैं?

30 जून 2020
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भारतीय राजनीति का एक स्वर्णिम युग रहा है। जब राजनीति के धूमकेतु डॉ राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी बाजपेई, बलराम मधोक, के. कामराज, भाई अशोक मेहता, आचार्य कृपलानी, जॉर्ज फर्नांडिस, हरकिशन सिंह सुरजीत, ई. नमबुरूदीपाद, मोरारजी भाई देसाई, ज्योति बसु, चंद्रशेखर, तारकेश्वरी सिन्हा जैसे अनेक हस्तियां रही है।

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‘‘चीन’’ का नाम ‘‘क्यों’’ नहीं लिया ? भारतीय? राष्ट्रीय? कांग्रेस!

6 जुलाई 2020
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘अचानक’ ‘‘लेह’’ (लद्दाख) की 11000 फुट की उंचाई पर स्थित अग्रिम चौकी ‘‘नीमू’’ पंहुचकर सैनिकों के बीच ‘‘दम’’ भर कर सेना की हौसला अफजाई की। यह कहकर कि ‘‘बहादुरी और साहस शांति की जरूरी शर्ते है, दुश्मन ने हमारे जवान की ताकत व गुस्से को देखा है‘‘। उक्त दौरे के बाद कांग्रेस क

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‘विकसित’’ यूपी में ‘‘विकास‘‘ ‘‘राज‘‘ के साथ ‘‘ अराजकता राज‘‘ भी चल रहा है!

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जिस बात की आशंका ‘‘गैंगस्टर’’ विकास दुबे की गिरफ्तारी के समय उत्पन्न हो रही थी व कतिपय क्षेत्रों में व्यक्ति भी की गई थी, वह अंततः चरितार्थ सही सिद्ध हुई। मुठभेड़ की घटना के पूर्व ही माननीय उच्चतम न्यायालय में एक वकील द्वारा दायर याचिका में भी उक्त आंशका व्यक्त की गई थी। यह आशंका भी व्यक्त की जा रही

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‘‘फेक’’ ‘‘एनकाउंटर’’ को ‘‘वैध‘‘ बनाने के लिए ‘‘कानून‘ क्यों नहीं बना देना जाना चाहिए?

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‘‘विकास दुबे एनकाउंटर’’ (मुठभेड़) पूरे देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित है। यह घटना न केवल स्वयं ‘‘सवालों में सवाल’’ लिये हुये है, बल्कि उपरोक्त ‘‘शीर्षक’’ प्रश्न भी पुनः उत्पन्न करता है। लगभग हर ‘एनकाउंटर’ के बाद उस पर हमेशा प्रश्नचिन्ह अवश्य लगते रहे हैं। उक्त ‘प्रश्नचिन्ह’ क

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‘‘न्यूटन के गति‘‘ का नियम क्या ‘‘अपराधिक राजनीति पर भी लागू होता है?

20 अक्टूबर 2020
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‘‘न्यूटन‘‘ क्या भारतीय राजनीति को ‘‘न्यूट्रल‘‘ कर देगें?मैं विज्ञान का छात्र रहा हूं। बचपन में मैंने पढ़ा है कि ‘‘न्यूटन के गति‘‘ के तीसरे नियम के अनुसार ‘‘हर क्रिया के बराबर (समान) और विपरीत प्रतिक्रिया होती है‘‘। प्रसिध्द वैज्ञानिक ‘‘न्यूटन‘‘ ने अपनी पुस्तक ‘‘प्रिंसीपिया मैथमैटिका‘‘ (वर्ष 1687) के

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बिहार के चुनाव ‘‘परिणाम’’ कहीं ‘‘अंकगणित‘‘ को गलत तो सिद्ध नहीं कर देंगे?

5 नवम्बर 2020
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बिहार के चुनाव परिणाम प्रायः अप्रत्याशित ही रहे हैं। याद कीजिये! पिछले विधानसभा के आम चुनाव के परिणाम। पहले घंटे के निकले प्रारंभिक रुझान पर स्टूडियोज में बैठे समस्त ज्ञानी, बुद्धिजीवी, मूर्धन्य पत्रकार, राजनीतिक पंडित व विशेषज्ञों द्वारा तेजी से प्रतिक्रिया देने के बाद परिणाम के धीरे-धीरे और अंततः

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किसान आंदोलन! उत्पन्न ‘‘आशंका के परसेप्शन‘‘ को दूर करने के लिए सरकार को ‘‘कदम उठाने‘‘ ही होंगे।

7 दिसम्बर 2020
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अभी हाल में ही मैंने बिहार विधानसभा के आम चुनाव और मध्य प्रदेश के उपचुनावों के संबंध में यह लिखा था कि ‘‘अंकगणित की जीत‘‘ के साथ ही उससे उत्पन्न ‘‘परसेप्शन‘‘ को जीतने पर ही ‘‘जीत पूर्ण‘‘ कहलाती है। किसान आंदोलन को देखते हुए परसेप्शन का उक्त सिद्धांत संसद एवं सरकार द्वारा लागू अधिनियम एवं लि

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सरकार और किसान नेता क्या ‘‘दिशाहीन‘‘ होकर मुद्दे से ‘‘भटक गये‘‘ या ‘‘परस्पर भटका‘‘ रहे है?

18 दिसम्बर 2020
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किसान आंदोलन के 22 दिन हो गये है। लेकिन अभी तक दोनों पक्षों के अंतिम निष्कर्ष व निर्णय पर पंहुच न सकने के कारण स्थिति रबड़ के समान खिंच कर वापिस न आने के कारण पूर्वतः दो विपरीत छोरों पर (दिल्ली सीमा के दोनों पार) रुकी हुई है। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि इन 21 दिनों में कुछ भी सकारात्मक व नका

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‘‘गांधी‘‘ के ‘‘साथ‘‘व ‘‘गांधी‘‘ के ‘‘बिना‘‘ ही कांग्रेस का ‘‘अस्तित्व एवम नियति‘‘ है।

23 दिसम्बर 2020
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पूर्व में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की कांग्रेस हाई कमांड को लिखी गई ‘चिट्ठी’ पर सोनिया गांधी के ‘‘बुलावे’’ पर इन समस्त ‘‘तथाकथित असंतुष्टों‘‘ व नाराज नेताओं की एक चिंतन बैठक हुई। ‘चिंता’ की सीमा तक कांग्रेस की ‘‘चिंताजनक स्थिति‘‘ हो जाने के कारण बैठक को उपयोगी बनाने हेतु‘‘ चिंतन बैठक‘‘ का नाम देना तो

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देश में ‘‘लोकतंत्र‘‘ ‘‘खत्म’’ हो गया है! राहुल गांधी! सही!/?

26 दिसम्बर 2020
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महामहिम राष्ट्रपति को किसानों के मुद्दे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसदों द्वारा अपने नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विरोध मार्च कर ज्ञापन सौंपने की अनुमति देने के बजाए धारा 144 लागू किये जाने पर राहुल गांधी को यह कहना पड़ गया कि देश में ‘‘लोकतंत्र समाप्त‘‘ हो गया है। रात्रि की अंधकार की गहरा

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