‘‘पुलवामा’’ में हुई बड़ी वीभत्स आंतकी घटना में 40 सैनिकों के शहीद हो जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में किये गये हवाई हमलों के द्वारा ‘‘जैश-ए-मोहम्मद’’के आंतकवादी कैम्प (प्रशिक्षण शिविर) को नष्ट करने के बाद सम्पूर्ण देश ने एक जुट होकर सेना व सरकार को बधाई दी थी। कांग्रेस सहित समस्त राजनैतिक पार्टियों ने सेना के पराक्रम व अदम्य साहस की प्रशंसा कर बधाईयाँ दी थी। एक स्वर से यह कहा गया कि हर हाल में पाकिस्तान को माकूल जवाब देने के लिये वे सेना, सरकार व देश के साथ खडे़ हुये हैं। कांग्रेस ने बधाई देने में यद्यपि थोड़ी सी कंजूसी अवश्य बरती। उन्होंने सेना को तो खुलकर बधाई दी, नमन किया, लेकिन सरकार के प्रति उतनी उदारता नहीं बरती (शायद चुनाव सिर पर है इसलिये)। यद्यपि संकट की इस घड़ी में कांग्रेस ने सरकार के साथ खड़ा होनें का वायदा अवश्य किया (जो बाद में मात्र ‘नाटक’ ही सिद्ध हुआ)। लेकिन कांग्रेस ने वैसी ही उदारता नहीं दिखाई, जैसी वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध के परिणाम स्वरूप बंग्लादेश बनने के समय अटल जी ने इंदिरा जी के प्रति दिखाई थी। तब भी सेना लड़ी थी और आज भी सेना ही ने बहादूरी दिखाई। यद्यपि दोनो वक्त आक्रमण (सेना भेजने) का निर्णय राजनैतिक नेतृत्व ने ही लिया था। इसलिये आज भी राजनैतिक नेतृत्व को वर्ष 1971 के समान बधाई दी जानी चाहिए थी। लेकिन सरकार के नेतृत्व को बधाई देने में कांग्रेस से यह एक चुक छोटी सी हुई। तथापि वह राजनैतिक दृष्टि से उठाया गया कदम कहा जाकर, उसे क्षम्य माना जा सकता है। तत्पश्चात कांग्रेस लगातार बड़ी-बड़ी चूक करती जा रही है, जबसे कांग्रेस के नेताओं में बालाकोट हवाई हमले की साक्ष्य मांगने की होड़ सी मची हुई है। धीरे-धीरे समस्त प्रमुख विपक्षी दल भी इसमें सुर से सुर मिलाते जा रहे हैं। हद तो तब हो गई जब, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बी.के. हरिप्रसाद ने पुलवामा व बालाकोट घटना को नरेन्द्र मोदी व इमरान खान के बीच मैच फिक्सिंग ही करार दे दिया।
महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि घटना के तत्काल बाद कांग्रेस ने किस बात के लिये सेना की प्रशंसा की थी व बधाई दी थी। साफ झलकता है, तत्समय आपने बालाकोट हवाई हमले में एयर फोर्स के साहसी विंग कमांडर अभिनंदन के द्वारा मिग 21 से पाकिस्तान के एफ 16 को मार गिराये जाने के साथ-साथ बालाकोट में स्थित जैश-ए-मोहम्मद के आंतकी बेस को समाप्त करने पर सेना के अदम्य साहस को सराहा था। यदि ऐसा नहीं था, तो उसे नकारे अथवा बधाई का कारण देश को बताएँ। दो दिन बाद ऐसा क्या हो गया कि कांग्रेस सहित समस्त विपक्ष ने रूख ही बदल दिया और वे उक्त हवाई हमले तथा उसमें हुए संहारण के न केवल साक्ष्य मांगने लगे, बल्कि घटना पर ही शक की उंगली उठाने लगे है। वे अपने बयानों से भारत में न केवल बयानवीर बने अपितु पाकिस्तानी मीडिया के जाने अनजाने हीरो बन गए। क्या यही देशभक्ति है? इसका उल्लेख मैनें पिछले हफ्ते लिखे अपने लेख में किया था, जिसकी कमी आज भी हम महसूस कर रहे हैं।
अब सत्ताधारी व विपक्ष दोनांे पक्ष ‘‘सेना पर राजनीति करने के आरोप-प्रत्यारोप’’ परस्पर लगाए जा रहे हैं। जहां तक राजनीति करने की बात है, बेशक दोनों ही पक्ष पूरी क्षमता, ताकत व निर्लजता के साथ राजनीति कर रहे हैं। घटना का राजनीतिकरण करने में सबसे पहला कदम भाजपा की तरफ से ही उठाया गया हैं। जब कर्नाटक के पूर्व भाजपाई मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुरप्पा ने साफ शब्दो में कहा कि हवाई हमले से पार्टी को 25 में से 22 सीटों पर फायदा होगा। तत्पश्चात भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि 250 से अधिक आतंकवादी मारे गये, (तब तक सेना व सरकार ने ऐसा कोई खुलासा नहीं किया था)। मोदी जी रैलियों में स्वयं कह रहे हैं कि पाताल से आंतकवादियों को खोद निकालेगें। लेकिन कब और कितने शहीद हो जाने के बाद? पता नहीं? न बताऐगें? क्योंकि राजनैतिक पार्टियों के सदस्य तो शहीदों में बिरले ही मिलेगें। अब मोदी जी भारत के बजाय ‘‘विजयी भारत’’ की जय के नारे लगवा रहे हैं। अभी कौन सी विजय मिल गई, जिस कारण विजयी भारत के नारे? यदि बालाकोट विजय है, तो उसके तत्काल बाद से लगातार हो रही सीमापार उल्लघंन एवं आंतकी घटनाएं व उनमें हुये शहीदांे व नागरिकों की मृत्यु को क्या कहना चाहेगें? यही सब घटना का विशुद्ध राजनीतिकरण है।
सेना के तीनो अंगों के द्वारा संयुक्त प्रेसवार्ता करके एयर स्ट्राइक कार्यवाही की विस्तृत आवश्यक जानकारी दे दी गई। तत्पश्चात एयर चीफ मार्शल ने भी एयर स्ट्राइक की जानकारी दे दी। तब साक्ष्य मांगते रहने का क्या औचित्य रह जाता है, विशेषकर उस स्थिति में, जब कांग्रेस सेना के र्शोर्य-पराक्रम को लगातार स्वीकार करती आ रही है। ये ही तो राजनीति है। साफ है, बयानों के द्वारा सेना पर विश्वास परन्तु कार्यरूप में अविश्वास जता रहे हैं। यदि एयर स्ट्राईक की कार्यवाही की जानकारी पत्रकार वार्ता करके सरकार देती तो, आप शायद उसे स्वीकार ही नहीं करते। प्रश्नवाचक चिन्ह सहित प्रश्नों की बाैंछार लगा देते। यानी यहाँ पर तो सेना पर विश्वास जताने के बावजूद सेना (जिसने पत्रकार वार्ता में समस्त जानकारी आवश्यक साक्ष्य सहित प्रस्तुत की थी) के कथनों को ही नहीं माना जा रहा है।
फिर भी सेना पर राजनीति करने के तरीको में भाजपा व विपक्षी पार्टियों में जमीन-आसमान का अंतर हैं। सेना पर भाजपा ने आसमानी राजनीति अर्थात् ऊंचाई की राजनीति की हैं। क्योंकि सेना का चुनावी दृष्टि से फायदा लेने के लिये ‘‘मुद्दे’’ का राजनीतिकरण करने के बावजूद, देश, देश हित और राष्ट्रवाद के साथ वह मजबूती से जनता के सामने खड़ी हुई दिख रही है। दूसरी ओर साक्ष्य मांगने हेतु जिस तरह की अमर्यादित भाषा कांग्रेस प्रयोग कर रही है, वह उनके देशभक्त भारतीय नागरिक होने पर ही संदेह पैदा करके स्वयं ही प्रश्नवाचक चिन्ह लगा रहे हैं। क्योंकि उनके बयानों से विश्व में भारत का पक्ष कमजोर होते जाता है, तथा पाकिस्तान उन बयानों को अपने मीडिया में सुखर््िाया बनाकर हमारी सेना व सरकार के दावे की विश्व पटल में हवा निकाल रहा है। जिस प्रकार रक्षा राज्यमंत्री वी.के.सिंह ने बी.एस.येदियुरप्पा के बयान से असहमति दिखाई है। ठीक वैसे ही कांग्रेस पार्टी के पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के बयान से अवश्य सीख लेनी चाहिये, जहां उन्होंने कहा,‘‘एक मरे या 100 मरें यह साफ संदेश जोरदार तरीके से गया है कि भारत निर्दोष जवानों और नागरिकों की शहादत बेकार नहीं जाने देगा।’’
बी.एस.येदियुरप्पा से 22 सीटों के जीतने के बयान पर अवश्य प्रश्न किया जाना चाहिये। अमित शाह से इस बात पर प्रश्न किया जा सकता है कि सेना व सरकार द्वारा कोई आकड़ा नहीं देने के बावजूद, 250 संख्या की जानकारी उन्हें कहां से मिल गई। चुनावी रैलियों में शहीदों की फोटांे के उपयोग पर भी प्रश्न किया जा सकता है। खुफिया एजेंसी की विफलता पर भी प्रश्न उठाया जा सकता है। ‘‘उरी’’ के बाद ‘‘पुलवामा’’ क्यों व आगे क्या? इस विफलता पर भी प्रश्न उठाये जाने चाहिये। देशप्रेम व निष्ठा पर आंच आने दिए बिना कांग्रेस, भाजपा को इन सब प्रश्नों के साथ कटघरे में खड़ा करके बेहतर सफल राजनीति कर सकती थी। परन्तु उक्त आंतकी घटना को ‘‘दुर्घटना’’ कहना, हवाई हमलों को ‘‘जंगल में ब्लास्ट कर’’, पेड़ व पहाडों से बदला’’ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के हवाले से घटना के ‘‘वजूद’’ पर ही शक जाहिर करना, यह सब निश्चित रूप से देश हितेषी व परिपक्व राजनीति का घोतक नहीं है। क्योंकि इसमें नीति ही नहीं है। सिर्फ और सिर्फ दिमागी फितूर राजनैतिक दिवालिया पन व खोखले पन की निशानी भर ही हैं। ऐसे व्यवहार का बड़ा खामियाजा आने वाले लोकसभा चुनाव में निश्चित ही कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा व पड़ना भी चाहिये।
क्या हमारे देश में देश की सुरक्षा, मान-सम्मान और देश हित से जुड़े हुये मुद्दे को अच्छुण्ण रखते हुये देश को बल प्रदान करने हेतु समस्त राजनैतिक दल देश के लिए खडे़ नहीं हो सकते हैं? जैसे ऐसी ही विकट विपरीत परिस्थितियों में अमेरिका सहित विश्व के कई देशों में खड़े हो जाते हैं। बालाकोट हवाई हमले की घटना के विषय में सेना पर विश्वास करने के बाद, सबूत के नाम पर सरकार को कटघरे में दर्शाने के उद्देश्य से सेना पर ही अपरोक्ष रूप से अविश्वास जताने का आभास परिलक्षित कराने से कांग्रेस को कौन सा राजनैतिक फायदा होने वाला है, प्रश्न यह हैं? लेकिन ऐसे अवांछित व्यवहार से विश्व में हमारी किरकिरी अवश्य हो रही है। ऐसा महसूस होता है कि कांग्रेस का बौद्धिक स्तर निम्नतर से निम्नतम पर पहुंचता जा रहा हैं। हम किसी भी घटना का राजनीतिकरण राजनैतिक दृष्टि से फायदा लेने की दृष्टि से ही करते है। तब यह बात बिल्कुल समझ से परे है कि उक्त बयानों से प्रभावित होकर कौन सा वर्ग, समाज, नागरिकगण जो निरपेक्ष मतदाता है, कांग्रेस को वोट देने की सोच की ओर पलटेगा।
इसीलिये शीर्षक में मैने ‘‘देश में क्या हो रहा है’’ के बदले ‘‘देश को क्या हो गया हैं’, लिखना ज्यादा सामयिक समझा क्योकि दोनों मेें महत्वपूर्ण अंतर है जिसको समझना आवश्यक है जिसके लिये फिर कभी।
... as ati-pant m. a drunkard, or one who drinks to excess ; ati'parakram, very powarfuL t. ...... afwajU Hkhra, a victorious army, qfwaji-shaiydfin, a host of oevtb. met a ...... Coldness, chilliness, a, *^(^jj} ft Oh birodh (for virodh), m. quarrel, enmity, ..... A. UjS^«j l^m^iil bitma-karma, the artificer ofthegod«; Ihe Indian Vulam