लखनऊ : यूपी के पूर्व मुख्य सचिव अलोक रंजन पर अब जब गाज गिरी है तो छटपटा रहे हैं। लेकिन सूबे के ये वही नौकरशाह हैं जो सवा साल पहले अपनी बहु का बेशकीमती हार चोरी हो जाने पर दो कर्मचारियों को दो माह तक पुलिस से प्रताड़ित कराते रहे थे. गौरतलब है कि माला हाई प्रोफाइल था। इसलिए पुलिस ने उस अफसर के घर पर काम करने वाले दो सरकारी कर्मचारियों को पूछतांछ के लिए उठाया। उसके बाद इन कर्मचारियों पर जुल्म और सितम के जितने भी कहर हो सकते थे, दहाये गए । दो महीनों तक यह कर्मचारी पुलिस और फिर एसटीएफ के चंगुल में दबोचे गये, लखनऊ के कई थानों की हवालातों में अवैध रूप से इन कर्मचारियों को बंद कर उन्हें अमानवीय प्रताड़ना दी गयीं। दिन रात पिटाई हुई, और सवाल केवल यह कि बताओ कि वह हार कहां छिपाया है तुमने।
न कानून चल पाया और न ही व्यवस्था
कितनी अमानवीय घटना थी यह घटना, जिसने तब की सरकार में प्रशासनिक और पुलिस मशीनरी की घिनौनी करतूतों की सारी सीमाएं ही तोड़ डाली थीं। न कानून चल पाया और न ही व्यवस्था। मानवाधिकार के सारे अध्यायों और किताबों को चिंदी-चिंदी कर दिया गया था। कानून है कि 24 घंटे के बाद किसी भी अभियुक्त को अदालत में पेश किया जाएगा, लेकिन पुलिस ने पूरा दो महीनों तक उन दो लोगों को अवैध रूप से बंद किये रखा। पीटा, डराया, धमकाया और फिर छोड़ दिया। किसी भी कागज में न तो उनकी आमद दर्ज की गयी और न ही उनकी रवानगी। कौन मानेगा कि तब अखिलेश सरकार में आम आदमी को इंसान के तौर पर माना, पहचाना और सम्मान दिया जाता है।
प्रशासनिक ढांचे का दारोमदार था अलोक रंजन पर
हैरत की बात तो यह है कि यह करतूत उस शख्स ने की, जिस पर यूपी के प्रशासनिक ढांचे का दारोमदार था। पूरी पुलिस महकमा उसी शख्स के जूतों में समाया रहता था। उसी पर यह जिम्मा है कि वह यूपी में कानून और व्यवस्था को बिलकुल ढंग तरीके से और प्रभावी तरीके से लागू करे और न्यायपालिका को मजबूत सहारा दिलाये। लेकिन इसी शख्स ने कानून को अपने जूतों में रौंद डाला। मगर आज वही शख्स आज अपनी खाल बचाने के लिए जहां-तहां गुहार लगाते घूम रहा है। छटपटा रहा है कि उसे इस घोटाले के फंदे में मत फंसाया जाए।
अपने ऊपर पड़ी तो लगे कांखने
जी हां, आपने ठीक पहचाना। इस शख्स का नाम है आलोक रंजन। आईएएस अफसर। यूपी की नौकरशाही का सबसे बड़ाबाबू। आज यही शख्स गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में फंस गया है। जाल फेंका है नयी सरकार योगी आदित्यनाथ ने। अखिलेश सरकार में बनायी गयी इस योजना में गोमती नदी के किनारे को सुंदर बनाने का काम होना था, जिसमें करीब डेढ़ हजार करोड़ रूपयों का खर्चा हुआ, लेकिन इसमें जमकर अराजकता, अनियमितता और घोटाले हुए। नदी का तो स्वरूप ही तहस-नहस कर दिया गया। जब इस घोटाले की फाइलें खुलनी शुरू हुईं, तो उसमें आलोक रंजन का नाम आ गया। फिर क्या था, बड़ा बाबू छटपटा पड़ा। आनन-फानन मीडिया के सामने बुक्का फाड़ कर बोले कि इसमें मैं पूरी तरह निर्दोष हूं। मुझे फंसाया जा रहा है।
सरकारी कर्मचारियों को किया था पुलिस के हवाले जबकि अपने मुख्य सचिव होने के दौरान इन्हीं आलोक रंजन ने अपनी बहू के रिसेप्शन में मिले गये एक बेशकीमती हीरों के हार की चोरी के आरोप में उन दो सरकारी कर्मचारियों को पुलिस के हवाले कर दिया था, जो पिछले 14 बरसों से उनके घर निजी नौकर के तौर पर रह रहे थे। इनमें से एक तो यूपी बीज निगम का कर्मचारी था और दूसरा नेफेड का कर्मचारी था। यह दोनों कर्मचारी दो महीनों तक पुलिस की अवैध हिरासत में बंद रहे थे। आपको बता दें कि इस मामले में एक इंस्पेक्टर ने तो पुलिस के एक बड़े अफसर के सामने यह तक कह दिया था कि अगर आलोक रंजन के परिवार के लोगों से पूछतांछ की इजाजत दी जाए, तो यह चोरी का मामला चंद घंटों में ही निपटाया जा सकता है।