भारत का लोकतंत्र महान,जन जन को इस पर अभिमान,भेदभाव न किसी से करता,सबको देता अधिकार समान।अनपढ़ शिक्षित या विद्वान,सबका वोट है एक समान,हर वोट बेशकीमती है होता,सब मिलकर करते मतदान।हर मत अनमोल है होता,एक भ
हमारा भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक राष्ट्र है। लोकतंत्र की आधारशिला चुनाव है। इसलिए यहाँ नियमित रूप से से पांच वर्ष में चुनाव होते हैं। चुनाव का अर्थ है प्रत्याशियों का जनता के दरबार में पहु
महामहिम राष्ट्रपति को किसानों के मुद्दे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसदों द्वारा अपने नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में विरोध मार्च कर ज्ञापन सौंपने की अनुमति देने के बजाए धारा 144 लागू किये जाने पर राहुल गांधी को यह कहना पड़ गया कि देश में ‘‘लोकतंत्र समाप्त‘‘ हो गया है। रात्रि की अंधकार की गहरा
राजस्थान में राज्य सभा के हो रहे चुनाव के संदर्भ में कांग्रेस का यह बयान आया है कि, राजस्थान में भी भाजपा ने मध्य प्रदेश के समान ही‘ ऑपरेशन कमल‘ पर अमल करना शुरू कर दिया है। भाजपा खरीद फरोख्त के द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है। विधायक दल के सचेतक द्वारा इसकी भ्
कैसा है ये लोकतंत्र ?जहाँ जनता है, ओछी मानसिकता और भ्रष्ट राजनीति की शिकार !यहाँ हर दिन नया मुद्दा , मुद्दे पर बहस होती है ,मरती है तो केवल जनता , राजनीति आराम से सोती है। त्रस्त हो चुकी है जनता , अवसाद की शिकार, मासूम जल रहे हैं या जला दिए जा रहे हैं। इंसानियत को गिरता देखकर भी हम गूंगे , बहरे ब
: संविधान की प्रस्तावना : हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचा
लोकतन्त्र में जायज कुछ चीजें ऐसी हैं कि कब उनका रूप नाजायज़ हो जाये कुछ कह नहीं सकते । एक है किसी मांग को लेकर आंदोलन और जुलूस। नहीं कह सकते कि कब ये हिंसक और विध्वंसकारी हो जाये । कुछ नारे कनफ्यूज करते हैं ,और डराते भी हैं । उनमें एक है "हमें चाहिये आज़ादी"। बड़े संघर्ष और बलिदानों के बाद तो देश को आज़
‘‘दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल’’ के मामले में उपराज्यपाल एवं दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र के विवाद पर उच्चतम न्यायालय का बहुप्रतिक्षित निर्णय आ गया है। उक्त निर्णय पर आई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की त्वरित प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री पद पर बैठे हुये व्यक्ति के लिये न केवल अत्यधिक अमर्यादित
पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं। चुनाव पूर्व का ‘‘ओपीनियन पोल’’ तुरन्त चुनाव बाद का ‘‘एक्जिट पोल’’ व अब ‘‘वास्तविक परिणाम’’ आपके सामने है। मैं यहाँ पर परिणामों का विश्लेषण नहीं कर रहा हूूंँ। ये सब ‘‘पोल’’ अनुमान के कितने नजदीक थे, सही थे, या आश्चर्य जनक थे, इस संबंध में भी कोई विशेष मूर्धन्य़
पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गये हैं। चुनाव पूर्व का ‘‘ओपीनियन पोल’’ तुरन्त चुनाव बाद का ‘‘एक्जिट पोल’’ व अब ‘‘वास्तविक परिणाम’’ आपके सामने है। मैं यहाँ पर पर
हमारा नेता कैसा हो पर अगर लोगो की चाहत है कि वो सख्त फैसले लेने वाला होना चाहिए तो मेरा मानना है कि सख्त फैसले नहीं बल्कि समझदारी से फैसले लेने वाला होना चाहिए. हम सख्त फैसले किस के खिलाफ चाहते है? अपने खिलाफ या अपने विरोधियों के खिलाफ? अगर कोई नेता
लोकतांत्रिक व्यवस्था को विस्तार और परिभाषित करने की आज की व्यवस्था में कोई आवश्यकता नहीं हैं। अगर लोकतंत्र सात दशक आज़ादी की आबोहवा में पंख फड़फड़ाने के बाद भी वर्तमान दौर में जातिवाद, परिवारवाद, और तमाम सामाजिक कुरीतियों की साया से आज़ाद नहीं हो सका, तो उसके लिए जिम्मेवार लालफीताशाही भी हैं, क्योंकि अग
लोकतंत्र में अक्सर लोग इस भ्रम में रहते है कि, अपनी सरकार बेकार नहीं है और हाँ, इस बात को भली प्रकार से समझ भी लेना ... यहाँ पर बेकार का मतलब मलबे का ढेर (आलतू-फालतू सामान) नहीं बल्कि बेरोजगार लोगो से है या दूसरे अर्थ में कहें तो फालतू बैठे लोगो से है इसलिए इन लोगो को भ्रम होता है कि, बेचारी सरकार क
क्या लोकतंत्र अलोकतन्त्र हो गया है सैकड़ों पंजीकृत राजनैतिक दल, जितने दल उतने विचारधारा क्या आज़ादी के बाद बांटो और राज करो के तहत इस सोच को देश की राजनीती में जगह दी गई थी या व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए पक्ष और विपक्ष की भूमिका लोकतंत्र में असरदार रहें इसकी वकालत थी? क्यों लोकतंत्र के नाम