लोकतन्त्र में जायज कुछ चीजें ऐसी हैं कि कब उनका रूप नाजायज़ हो जाये कुछ कह नहीं सकते । एक है किसी मांग को लेकर आंदोलन और जुलूस। नहीं कह सकते कि कब ये हिंसक और विध्वंसकारी हो जाये ।
कुछ नारे कनफ्यूज करते हैं ,और डराते भी हैं । उनमें एक है "हमें चाहिये आज़ादी"। बड़े संघर्ष और बलिदानों के बाद तो देश को आज़ादी मिली। अब किसने क्या कर दिया? नारे में जोश और विद्रोह भरपूर झलकता है। काश ये जोश किसी काम आ जाये। विद्रोह किसी दल के खिलाफ है तो आप दोनों आपस में विरोधी हो और दोनों अपनी जगह अपने विचार से सही हो।
विद्रोह व्यवस्था के खिलाफ है तो व्यवस्था हम सब की सामूहिक जिम्मेवारी है। आज़ादी के नाम पर व्यवस्था से खुद को अलग दिखाने की चतुराई भरी चेष्टा कोई न समझे यह मासूम वहम है।