लोकतंत्र में अक्सर लोग इस भ्रम में रहते है कि, अपनी सरकार बेकार नहीं है और हाँ, इस बात को भली प्रकार से समझ भी लेना ... यहाँ पर बेकार का मतलब मलबे का ढेर (आलतू-फालतू सामान) नहीं बल्कि बेरोजगार लोगो से है या दूसरे अर्थ में कहें तो फालतू बैठे लोगो से है इसलिए इन लोगो को भ्रम होता है कि, बेचारी सरकार के पास बहुत ही काम है, क्योंकि फालतू काम तो आम जनता ही के पास है, जो नोटबंदी की घोषणा होते ही तुरंत मजा लूटने के लिए बैंक के बाहर लाइन लगाकर खड़ी हो जाती है... धन्य है सरकार के धीरज, सहनशीलता तथा अन्य समस्त श्रेष्ठ गुणों के लिए... क्योंकि कभी भी किसी सरकार द्वारा शिकायत नहीं किया गया कि उसके पास कोई काम नहीं है । वैसे भी इस बेचारी और लाचार लोकतांत्रिक सरकार कभी कोई फरियाद करें भी तो सुनता कौन है !! पब्लिक टेक्स नहीं भरती है और अच्छे/बुरे रास्तों को सम्भाल नहीं सकती तथा बिना आधार कार्ड के खुले मैदान को पब्लिक टॉयलेट की तरह प्रयोग करती है ... ऐसे सभी सरकारी विज्ञापनों को सुनता और मानता कौन है ?
तिरंगा भारत की शान है
लोकतंत्र में अपने आप को सर्वोपरी मानने वाली जनता की अपेक्षापूर्ति से हताष सरकार के पास काम करने के लिए समय कहाँ है !! इसी तरह से फालतू बैठने के स्थान पर कर्नाटक राज्य सरकार ने भी राज्य के लिए भी एक अलग झंडे की माँग के लिए एक कमिटी का गठन कर दिया है । इसके लिए सरकार द्वारा कोई विशेष विचार भी नहीं किया गया है किन्तु मजेदार बात यह है कि राज्य सरकार कर्जे में डूबे किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या या जेल में बंद शशिकला के दूध-मलाई/व्यंजन के लिए 5 करोड़ की रिश्वत लेने जैसे मुद्दों पर से ध्यान हटाने के लिए और सारी जनता को भी गौरवमय काम मिल जाए, ऐसा अद्भुत मुद्दा ढूँढ़ निकाला है । वास्तव में हर किसी को गौ-रक्षको अथवा फालतू फिल्मों को बनाने के फंडे को भुलाकर, झंडे पर फोकस करना चाहिए । कर्नाटक की तरह केवल राज्य के लिए ही नहीं बल्कि प्रत्येक जिला, शहर, मोहल्ला, घर, गली, जाती-पांति संस्था या मण्डल जैसे सभी के लिए अलग से झंडे की माँग के लिए आगे बढ़ना चाहिए । हमारे देश में अनेक विविधता है और स्कूलों में बहुत खोजबीन के बाद भी कुछ अमल नहीं किया है, किन्तु अब कम से कम झंडे का मुद्दा अमल करने का समय आ गया है ।
ब्राह्मणों का अलग झंडा, क्षत्रियों का झंडा अलग, वैश्यों का झंडा अलग, शूद्रों और अति शूद्रों का झंडा अलग और सभी जातियों में उप-जातियों का झंडा अलग-अलग ही होना चाहिए !!! कहने का अर्थ यह है कि, हमारे देश के समस्त धर्मों, जातियों, उप-जातियों, गाँव, समाज इत्यादि की लिस्ट तो कोई भी फोर्थ-क्लास पोलिटिशियन के पास आसानी से मिल ही जाएगी, उसी के अनुसार अलग-अलग झंडा तय किया जाना ही चाहिए । स्कूल-कोलेज़ों, विभिन्न कला एवं संस्कृतियों, मण्डल एवं एसोशिएशन, क्लब, प्रोफेशनल संगठनों के भी अलग-अलग झंडे बनाए जा सकते है । वैसे भी हम लोग एक-दूसरे को अलग-अलग करने में बहुत ही एक्सपर्ट है, फिर पता नहीं... अलग झंडे की माँग को लेकर क्यों पेट में दर्द हो रहा है ??? प्रत्येक परिवार का एक अलग झंडा तय किया जा सकता है । जरा सोचिए और कल्पना कीजिए कि, आप फुटपाथ पर पान-तम्बाकू बेचने का धंधा करते हो और आपकी ‘सरनेम’ अदानी या अंबानी है फिर भी आपकी फेमिली के झंडे में दूसरे अदानी या अंबानी फेमिली के साथ कोई भी समानता नहीं होने पर आप गर्व के साथ काम-धंधा कर सकते है । इसके अलावा वकील, चाटर्ड-एकाउंट, मेकेनिक, प्लम्बर इत्यादि लोगों का व्यवसाय की छाप का अलग ही झंडा बनाया जाए ताकि दूर से आपको झंडे के आधार पर आसानी से पहचाना जा सके और कोई मूर्धन्य ‘कवि’ टाइम-पास के लिए दिखाई दे, तो आसानी से रास्ता बदलने की समझ पड़ जाए ।
वैसे लोग चाहे तो, अपने व्यक्तिगत झंडे भी बना सकते है । जिस प्रकार से लोग अपने ‘मूड’ के अनुसार स्टेटस बदलते है, उसी प्रकार से झंडे को भी बदल सकते है ताकि दूर से ही पता चल जाए कि, सहियर आज रोमांस के मूड में है या रोने के मूड में ! थोडा ओर कल्पना करिए कि, प्रत्येक व्यक्ति के पास अपने राज्य, शहर, गाँव, समाज, सोसायटी, संस्था, मण्डल, फेमिली, व्यवसाय, पर्सनल और ‘मूड’ केलिए अलग-अलग झंडा होगा !!! इसके बाद यदि कोई व्यक्ति अपनी गाड़ी पर ये सभी झंडे लहराते हुए निकले तो आप तुरंत की अनुमान लगा सकते हो कि वह अमुक राज्य के शहर/गाँव की अमुक सोसायटी में रहने वाले अमुक जाति, अमुक ग्रुप के मेम्बर, अमुक व्यवसाय कर्ता, अमुक एसोसिएशन के सदस्य आज अदम्य सहस या ख़राब मूड में गाड़ी चला रहे है और इधर से खिसकना की बेहतर होगा । वास्तव में कथन यह है कि, “शहर के लखपति के घर लाख दीपक और करोड़पति के घर करोड़ दीपक” जलने जैसी कहावत है । यदि यह झंडे वाली बात अनिवार्य हो जाए तो एक-एक बिल्डिंग पर, गाड़ी पर, व्यक्ति के सिर पर कितने झंडे फरकते हुए होंगे और लुभावना दृश्य कितना अजीब, भव्य, मनोरम होगा; इसकी पहचान सामान्य भारतीय की नहीं बल्कि इतनी सारी विभिन्न झंडों से पहचान से होगी, इसकी कल्पना मात्र करके तो देखिए !!!
लोकतांत्रिक देश के अन्दर अभी-अभी रस्ते पर निकले तब सड़क पर गढ्ढे और भूलकर झंडों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए अपने आप को गौरवांवित महसूस करने जैसी बात है ।इतने सारे झंडों के बीच ‘राष्ट्रीय-ध्वज’ के सम्बन्ध में दूसरों के अन्दर कमी देखने वालों के लिए वर्ष में केवल दो बार, 15 अगस्त और 26 जनवरी के अलावा पूरे साल भर झंडे को घर में छिपाकर रखने वालों के संकुचित विचार और बोरिंग राष्ट्रप्रेम रखने वालों का स्थान मात्र चार दीवारों के अन्दर ही है और किसी दूसरी जगह नहीं हो सकता है।अब समझ में आ ही गया होगा कि, संविधान में “एक देश एक झंडा” के सिद्धांत के आधार पर तिरंगा ही पूरे देश का ध्वज है ।