जब से सेक्सी और प्रसिद्द विदेशी बालाओं ने किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किया। बल्लू सींग का जोश बढ़ गया। उनमें रेहाना नाम की गायिका है। उसका गाना तो समझ में न आया। किन्त
वर्त्तमान में दिल्ली की सीमा पर चल रहे पंजाब के किसान आंदोलन की जो रूप रेखा है वह एक आदर्श हो सकती है। लम्बे संघर्ष की रणनीतिक तैयारी गजब की है। रसद सप्लाई। थोड़े थोड़े दिन बाद लोगों का घर लौटना और नये लोगो का आकर जुड़ना। मौसम के हिसाब से कपड़ों का इंतजाम। मेडिकल सुविधाएँ
आजकल होने वाले कुछ आंदोलनों में ,ख़ास कर कुछ युवा आन्दोलनों में एक नारा बड़ी उलझन में डाल देता है और डराता भी है। वह है "आज़ादी, हमें चाहिये आज़ादी।" इसके साथ एक से अधिक उलझे सवाल पैदा किये जाते है। आंदोलन फासिस्ट और सांप्रदायिक लोगों ,पार्टियों या सरकारों के खिलाफ बताया जाता है और नारे में आगे जोड़ दिया
सी ए ए ,एन सी आर , एन पी ए , डिटेन्शन सेंटर की ए बी सी डी ने देश में कोहराम मचा रखा है । साथ ही शायद मच रहे उत्पात के पीछे मुद्दों की ए बी सी डी न समझना भी है । उपरोक्त मुद्दों पर जिसकी जो राय हो उसका सम्मान करते हुए मैं सिर्फ दृष्टिगत
लोकतन्त्र में जायज कुछ चीजें ऐसी हैं कि कब उनका रूप नाजायज़ हो जाये कुछ कह नहीं सकते । एक है किसी मांग को लेकर आंदोलन और जुलूस। नहीं कह सकते कि कब ये हिंसक और विध्वंसकारी हो जाये । कुछ नारे कनफ्यूज करते हैं ,और डराते भी हैं । उनमें एक है "हमें चाहिये आज़ादी"। बड़े संघर्ष और बलिदानों के बाद तो देश को आज़
सरकारी फ़ाइल में रहती है एक रेखा जिनके बीच खींची गयी है क्या आपने देखा ..?सम्वेदनाविहीन सत्ता के केंद्र को अपनी आवाज़ सुनाने चलते हैं पैदल किसान 180 किलोमीटरचलते-चलते घिस जाती हैं चप्पलें डामर की सड़क बन जाती है हीटर। सत्ता के गलियारों तक आते-आते घिसकर टूट जाती हैं चप्पलें घर्षण से तलवों में फूट पड़त