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शीश

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मैं भूल गया अपने ग़म को,जब माँ ने मुझे पुकारा था।मैं जीत गया सारी दुनिया,मैंने जब-जब शीश नवाज़ा था।मेरी माँ की सेवा में भले ही,चाहें ज़िस्म लहू ही बिक जाए।सज़दे करूँ मैं सौ-सौ बारों,मेरा इसके बिना संसार कहाँ।। -सर्वेश कुमार मारुत

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