जैसे पर्वतों में हिमालय है या शिखरों में गौरीशंकर, वैसे ही व्यक्तियों में महावीर है। बड़ी है चढ़ाई। जमीन पर खड़े होकर भी गौरीशंकर के हिमाच्छादित शिखर को देखा जा सकता है। लेकिन जिन्हें चढ़ाई करनी हो और शिखर पर पहुंच कर ही शिखर को देखना हो, उन्हें बड़ी तैयारी की जरूरत है। दूर से भी देख सकते है महावीर को, लेकिन दूर से जो परिचय होता है वह वास्तिक परिचय नहीं है। महावीर में तो छलांग लगाकर ही वास्तविक परिचय पाया जा सकता है।
आदमी जो आज जानता है वह पहली बार जान रहा है, ऐसी भूल में पड़ने का अब कोई कारण नहीं है। आदमी बहुत बार जान लेता है और भूल जाता है। बहुत बार शिखर छू लिए गये है। और खो गये है। सभ्यताएं उठती है और विलीन हो जाती है।
महावीर एक बहुत बड़ी संस्कृति के अंतिम व्यक्ति है, जिस संस्कृति का विस्तार कम से कम दस लाख वर्ष है। महवीर जैन विचार और परंपरा और अंतिम तीर्थंकर है—चौबीसवें। शिखरकी, लहर की आखिरी ऊँचाई और महावीर के बाद वह लहर और वह सभ्यता और वह संस्कृति सब बिखर गयी। आज उन सूत्रों को समझना इसलिए कठिन है, क्योंकि वह पूरा का पूरा मिल्यू, वह वातावरण जिसमें वे सूत्र सार्थकथे आज कहीं भी नहीं है।
ओशो