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महावीर वाणी - ओशो

ओशो

49 अध्याय
8 लोगों ने लाइब्रेरी में जोड़ा
10 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

इन प्रवचनों में महावीर वाणी की व्याख्या करते हुए ओशो ने साधना जगत से जुड़े गूढ़ सूत्रों को समसामयिक ढंग से प्रस्तुत किया है। इन सूत्रों में सम्मिलित हैं--समय और मृत्यु का अंतरबोध, अलिप्तता और अनासक्ति का भावबोध, मुमुक्षा के चार बीज, छह लेश्याएं: चेतना में उठी लहरें इत्यादि। 

mahavir vani osho

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पुस्तक के भाग

1

महावीर—वाणी (प्रवचन-01)

20 अप्रैल 2022
3
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जैसे पर्वतों में हिमालय है या शिखरों में गौरीशंकर, वैसे ही व्‍यक्‍तियों में महावीर है। बड़ी है चढ़ाई। जमीन पर खड़े होकर भी गौरीशंकर के हिमाच्‍छादित शिखर को देखा जा सकता है। लेकिन जिन्‍हें चढ़ाई करनी ह

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महावीर वाणी-(प्रवचन-02)

20 अप्रैल 2022
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अरिहंत मंगल हैं। सिद्ध मंगल हैं। साधु मंगल हैं। केवलीप्ररूपित अर्थात आत्मज्ञकथित धर्म मंगल है। अरिहंत लोकोत्तम हैं। सिद्ध लोकोत्तम हैं। साधु लोकोत्तम हैं। केवलीप्ररूपित अर्थात आत्मशकथित धर्म लोकोत्तम

3

महावीर वाणी-(प्रवचन-03)

20 अप्रैल 2022
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शरणागति—स्प अरिहते सरण पवज्जामि। सिद्धे सरण पवज्जामि। सादू सरण पवज्जामि। केवलिपन्नत्त धम्म सरण पवज्जामि।  अरिहंत की शरण स्वीकार करता हूं। सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूं। साधुओं की शरण स्वीका

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महावीर वाणी-(प्रवचन-04)

20 अप्रैल 2022
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धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है। (कौन-सा धर्म?) अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म। जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है — तो अमंगल क्या है, द

5

महावीर वाणी-(प्रवचन-05)

20 अप्रैल 2022
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धर्म मंगल है। कौन-सा धर्म? अहिंसा, संयम और तप। अहिंसा धर्म की आत्मा है। कल अहिंसा पर थोड़ी बातें मैंने आपसे कहीं, थोड़े और आयामों से अहिंसा को समझ लेना जरूरी है। हिंसा पैदा ही क्यों होती है? हिंसा जन

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महावीर वाणी-(प्रवचन-06)

20 अप्रैल 2022
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एक मित्र ने पूछा है कि महावीर रास्ते से गुजरते हों और किसी प्राणी की हत्या हो रही हो तो महावीर क्या करेंगे? किसी स्त्री के साथ बलात्कार की घटना घट रही हो तो महावीर क्या करेंगे? क्या वे अनुपस्थित हैं,

7

महावीर वाणी-(प्रवचन-07)

20 अप्रैल 2022
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सूर्यास्त के समय, जैसे कोई फूल अपनी पंखुड़ियों को बन्द कर ले— संयम ऐसा नहीं है। वरन सूर्योदय के समय जैसे कोई कली अपनी पंखुड़ियों को खोल ले—संयम ऐसा है। संयम मृत्यु के भय में सिकुड़ गए चित्त की रुग्ण दशा

8

महावीर वाणी-(प्रवचन-08)

20 अप्रैल 2022
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अहिंसा है आत्मा, संयम है प्राण, तप है शरीर। स्वभावतः अहिंसा के संबंध में भूलें हुई हैं, गलत व्याख्याएं हुई हैं। लेकिन वे भूलें और व्याख्याएं अपरिचय की भूलें हैं। संयम के संबंध में भी भूलें हुई हैं, गल

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महावीर वाणी-(प्रवचन-09)

20 अप्रैल 2022
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तप के संबंध में, मनुष्य की प्राण ऊर्जा को रूपान्तरण करने की प्रक्रिया के संबंध में और थोड़े-से वैज्ञानिक तथ्य समझ लेने आवश्यक हैं। धर्म भी विज्ञान है, या कहें परम विज्ञान है, सुप्रीम साइंस है। क्योंकि

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महावीर वाणी-(प्रवचन-10)

20 अप्रैल 2022
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होगी। और हम अपने बाहर खड़े हैं। हम वहां खड़े हैं जहां हमें नहीं होना चाहिए; हम वहां नहीं खड़े हैं जहां हमें होना चाहिए। हम अपने को ही छोड़कर, अपने से ही च्युत होकर, अपने से ही दूर खड़े हैं। हम दूसरों से अज

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महावीर वाणी-(प्रवचन-11)

20 अप्रैल 2022
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अनशन के बाद महावीर ने दूसरा बाहयत्तप ऊणोदरी कहा है। ऊणोदरी का अर्थ है : अपूर्ण भोजन, अपूर्ण आहार। आश्चर्य होगा कि अनशन के बाद ऊणोदरी के लिए क्यों महावीर ने कहा है! अनशन का अर्थ तो है निराहार। अगर ऊणोद

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महावीर वाणी-(प्रवचन-12)

20 अप्रैल 2022
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बाह्य-तप का चौथा चरण है — रस-परित्याग। परंपरा रस-परित्याग से अर्थ लेती रही है। किन्हीं रसों का, किन्हीं स्वादों का निषेध, नियंत्रण। इतनी स्थूल बात रस-परित्याग नहीं है। वस्तुतः सधना के जगत में स्थूल स

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महावीर वाणी-(प्रवचन-13)

20 अप्रैल 2022
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बाह्य तप का अन्तिम सूत्र, अन्तिम अंग है—संलीनता। संलीनता सेतु है, बाहयत्तप और अंतरत्तप के बीच। संलीनता के बिना कोई बाहयत्तप से अंतरत्तप की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। इस लिए संलीनता को बहुत ध्यानपूर

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महावीर वाणी-(प्रवचन-14)

20 अप्रैल 2022
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तप के छह बाहय अंगों की हमने चर्चा की है, आज से अंतरत्तपों के संबंध में बात करेंगे। महावीर ने पहला अंतरत्तप कहा है — प्रायश्चित। पहले तो हम समझ लें कि प्रायश्चित क्या नहीं हैं तो आ सान होगा समझना कि प्

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महावीर वाणी-(प्रवचन-15)

20 अप्रैल 2022
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अंतरत्तप की दूसरी सीढ़ी है विनय। प्रायश्चित के बाद ही विनय के पैदा होने की सम्भावना है। क्योंकि जब तक मन देखता रहता है दूसरे के दोष, तब तक विनय पैदा नहीं हो सकती। जब तक मनुष्य सोचता है कि मुझे छोड़कर शे

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महावीर वाणी-(प्रवचन-16)

20 अप्रैल 2022
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तीसरा अंतरत्तप महावीर ने कहा है, वैयावृत्य। वैयावृत्य का अर्थ होता है–सेवा। लेकिन महावीर सेवा से बहुत दूसरे अर्थ लेते हैं। सेवा का एक अर्थ है मसीही, क्रिश्चियन अर्थ है। और शायद पृथ्वी पर ईसाइयत ने,

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महावीर वाणी-(प्रवचन-17)

20 अप्रैल 2022
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ग्‍यारहवां तप या पांचवां अंतर—कर—तप है ध्यान। जो दस तपो से गुजरते है उन्हें तो ध्यान को समझना कठिन नहीं होता। लेकिन जो केवल दस तपो को समझ से समझते हैं, उन्हें ध्यान को समझना बहुत कठिन होता है। फिर भी

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महावीर वाणी-(प्रवचन-18)

20 अप्रैल 2022
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महावीर के साधना सूत्रों में आज बारहवें और अंतिम तप पर बात करेंगे। अंतिम तप को महावीर ने कहा है—कायोत्सर्ग— शरीर का छूट जाना। मृत्यु में तो सभी का शरीर छूट जाता है। शरीर तो छूट जाता है मृत्यु में, लेकि

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महावीर वाणी-(प्रवचन-19)

20 अप्रैल 2022
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अरस्‍तु ने कहा है कि—यदि मृत्यु न हो, तो जगत में कोई धर्म भी न हो। ठीक ही है उसकी बात, क्योंकि अगर मृत्यु न हो, तो जगत में कोई जीवन भी नहीं हो सकता मृत्यु केवल मनुष्य के लिए है। इसे थोड़ा समझ लें।

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महावीर वाणी-(प्रवचन-20)

20 अप्रैल 2022
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मृत्यु के संबंध में थोड़ी—सी बातें और। पहली बात—मृत्यु अत्यंत निजी अनुभव है। दूसरे को हम मरता हुआ देखते हैं, लेकिन मृत्यु को नहीं देखते! दूसरे को मरता हुआ देखना, मृत्यु का परिचय नहीं है। मृत्यु आंतर

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महावीर वाणी-(प्रवचन-21)

20 अप्रैल 2022
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सदा अप्रमादी व सावधान रहते हुए असत्य को त्याग कर हितकारी सत्य—वचन ही बोलना चाहिए। इस प्रकार का सत्य बोलना सदा बड़ा कठिन होता है। श्रेष्ठ साधु पापमय, निश्रयात्मक और दूसरों को दुख देने वाली वाणी न बोल

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महावीर वाणी-(प्रवचन-22)

20 अप्रैल 2022
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जो मनुष्य काम और भोगों के रस को जानता है, उनका अनुभवी है, उसके लिए अब्रह्मचर्य त्यागकर, ब्रह्मचर्य के महाव्रत को धारण करना अत्यन्त दुष्कर है। निर्ग्रन्थ मुनि अब्रह्मचर्य अर्थात मैथुन—संसर्ग का त्या

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महावीर वाणी-(प्रवचन-23)

20 अप्रैल 2022
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एक मित्र ने पूछा है, यदि कामवासना जैविक, बायोलाजिकल है, केवल जैविक है, तब तो तत्र की पद्धति ही ठीक होगी। लेकिन यदि मात्र आदतन, हैबिचुअल है, तब महावीर की विधि से श्रेष्ठ और कुछ नहीं हो सकता। क्या है—जै

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महावीर वाणी-(प्रवचन-24)

20 अप्रैल 2022
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प्राणिमात्र के संरक्षक ज्ञातपुत्र ( भगवान महावीर) ने कुछ वस्‍त्र आदि स्थूल पदार्थों के रखने को परिग्रह नहीं बतलाया है। लेकिन इन सामग्रियों में असक्ति, ममता व मूर्छा रखना ही परिग्रह है, ऐसा उन महर्षि न

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महावीर वाणी-(प्रवचन-25)

20 अप्रैल 2022
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सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद श्रेयार्थी को सभी प्रकार के भोजन—पान आदि की मन से भी इच्छा नहीं करनी चाहिए। हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन, परिग्रह और रात्रि—भोजन से जो जीव विरत रहता है, वह निराश्रव अ

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महावीर वाणी-(प्रवचन-26)

20 अप्रैल 2022
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जो मनुष्य गुरु की आज्ञा पालता हो, उनके पास रहता हो, गुरु के इंगितों को ठीक—ठीक समझता हो तथा कार्य—विशेष में गुरु की शारीरिक अथवा मौखिक मुद्राओं को ठीक—ठीक समझ लेता हो, वह मनुष्य विनय संपन्न कहलाता है।

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महावीर वाणी-(प्रवचन-27)

20 अप्रैल 2022
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संसार में जीवों को इन चार श्रेष्ठ अंगों का प्राप्त होना बड़ा दुर्लभ है—मनुष्यत्व, धर्म—श्रवण, श्रद्धा और संयम के लिए पुरुषार्थ। संसार में परिभ्रमण करते—करते जब कभी बहुत काल में पाप कर्मों का वेग क्ष

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महावीर वाणी-(प्रवचन-28)

20 अप्रैल 2022
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एक मित्र ने पूछा है, मनुष्य जीवन है दुर्लभ, लेकिन हम आदमियों को उस दुर्लभता का बोध क्यों नहीं होता? श्रवण करने की कला क्या है? कलियुग, सतयुग मनोस्थितियो के नाम हैं? क्या बुद्धत्व को भी हम एक मनोस्थिति

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महावीर वाणी-(प्रवचन-29)

20 अप्रैल 2022
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जैसे कमल शरद-काल के निर्मल जल को भी नहीं छूता और अलिप्त रहता है, वैसे ही संसार से अपनी समस्त आसक्तियां मिटाकर सब प्रकार के स्नेहबंधनों से रहित हो जा। अतः गौतम! क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर। तू इस प्रप

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महावीर वाणी-(प्रवचन-30)

20 अप्रैल 2022
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प्रमाद को कर्म कहा है और अप्रमाद को अकर्म अर्थात जो प्रवृत्तियां प्रमादयुक्त हैं वे कर्म-बंधन करनेवाली हैं और जो प्रवृत्तियां प्रमादरहित हैं, वे कर्म-बंधन नहीं करतीं। प्रमाद के होने और न होने से मनुष्

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महावीर वाणी-(प्रवचन-31)

20 अप्रैल 2022
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दूध, दही, घी, मक्खन, मलाई, शक्कर, गुड़, खांड, तेल, मधु, मद्य, मांस आदि रसवाले पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे मादकता पैदा करते हैं और मत्त पुरुष अथवा स्त्री के पास वासनाएं

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महावीर वाणी-(प्रवचन-32)

20 अप्रैल 2022
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अनिगृहित क्रोध और मान तथा बढ़ते हुए माया और लोभ, ये चारों काले कुत्सित कषाय पुनर्जन्मरूपी संसार-वृक्ष की जड़ों को सींचते रहते हैं। चावल और जौ आदि धान्यों तथा सुवर्ण और पशुओं से परिपूर्ण यह समस्त पृथ्

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महावीर वाणी-(प्रवचन-33)

20 अप्रैल 2022
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अकेले ही है भोगना  संसार में जितने भी प्राणी हैं, सब अपने कृतकर्मों के कारण ही दुखी होते हैं। अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म हो, उसका फल भोगे बिना छुटकारा नहीं हो सकता। पापी जीव के दुख को न जातिवाले ब

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महावीर वाणी-(प्रवचन-34)

20 अप्रैल 2022
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यह निःश्रेयस का मार्ग है जो मनुष्य सुंदर और प्रिय भोगों को पाकर भी पीठ फेर लेता है, सब प्रकार से स्वाधीन भोगों का परित्याग करता है, वही सच्चा त्यागी कहलाता है। जो मनुष्य किसी परतंत्रता के कारण वस्

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महावीर वाणी-(प्रवचन-35)

20 अप्रैल 2022
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आप ही हैं अपने परम मित्र आत्मा ही अपने सुख और दुख का कर्ता है तथा आत्मा ही अपने सुख और दुख का नाशक है। अच्छे मार्ग पर चलनेवाला आत्मा मित्र है और बुरे मार्ग पर चलनेवाला आत्मा शत्रु। पांच इन्‍दिरयां

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महावीर वाणी-(प्रवचन-36)

20 अप्रैल 2022
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साधना का सूत्र : संयम जिस साधक की आत्मा इस प्रकार दृढ़-निश्चयी हो कि देह भले ही चली जाये, पर मैं अपना धर्म-शासन नहीं छोड़ सकता, उसे इन्दिरयां कभी भी विचलित नहीं कर सकतीं। जैसे भीषण बवंडर सुमेरु पर्वत क

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महावीर वाणी-(प्रवचन-37)

20 अप्रैल 2022
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विकास की ओर गति है धर्म धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुदगल और जीव—ये छह द्रव्य हैं। केवल दर्शन के धर्ता जिन भगवानों ने इन सबको लोक कहा है। धर्म द्रव्य का लक्षण गति है; अधर्म द्रव्य का लक्षण स्थिति है,

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महावीर वाणी-(प्रवचन-38)

20 अप्रैल 2022
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आत्मा का लक्षण है ज्ञान ज्ञान, दर्शन, चारितरय, तप, वीर्य और उपयोग अर्थात अनुभव–ये सब जीव के लक्षण हैं। शब्द, अंधकार, प्रकाश, प्रभा, छाया, आतप (धूप), वर्ण, रस, गंध और स्पर्श–ये सब पुदगल के लक्षण है

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महावीर वाणी-(प्रवचन-39)

20 अप्रैल 2022
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मुमुक्षा के चार बीज मुमुक्षु-आत्मा ज्ञान से जीवादिक पदार्थों को जानता है, दर्शन से श्रद्धान करता है, चारित्र्य से भोग-वासनाओं का निग्रह करता है, और तप से कर्ममलरहित होकर पूर्णतया शुद्ध हो जाता है।

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महावीर वाणी-(प्रवचन-40)

20 अप्रैल 2022
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पांच ज्ञान और आठ कर्म श्रुत, मति, अवधि, मन—पर्याय और कैवल्य —— इस भांति ज्ञान पांच प्रकार का है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय —— इस प्रकार संक्षेप में ये आठ

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महावीर वाणी-(प्रवचन-41)

20 अप्रैल 2022
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छह लेश्याएं कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पदम और शुक्ल–ये लेश्याओं के क्रमशः छह नाम हैं। कृष्ण, नील, कापोत–ये तीन अधर्म-लेश्याएं हैं। इन तीनों से युक्त जीव दुर्गति में उत्पन्न होता है। तेज, पदम और शु

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महावीर वाणी-(प्रवचन-42)

20 अप्रैल 2022
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पांच समितियां और तीन गुप्तियां पांच समिति और तीन गुप्ति–इस प्रकार आठ प्रवचन-माताएं कहलाती हैं। ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेप और उच्चार या उत्सर्ग–ये पांच समितियां हैं। तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति औ

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महावीर वाणी-(प्रवचन-43)

20 अप्रैल 2022
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कौन है पूज्य? पूज्य-सूत्र: आयारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं।  जहोवइट्ठं अभिकंखमाणो, गुरुं तु नासाययई स पुज्जो ।। भअन्नायउंछं चरई विसुद्धं, जवणट्ठया समुयाणं च निच्चं। अलद्धु

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महावीर वाणी-(प्रवचन-44)

20 अप्रैल 2022
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राग, द्वेष, भय से रहित है ब्राह्मण ब्राह्मण-सूत्र : 1 जो न सज्जइ आगन्तुं, पव्वयन्तो न सोयई। रमइ अज्जवयणम्मि, तं वयं बूम माहणं ।। जायरुवं जहामट्ठं, निद्धन्तमल-पावगं। राग-दोस-भयाईयं, तं वयं बूम माह

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महावीर वाणी-(प्रवचन-46)

20 अप्रैल 2022
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वर्णभेद जन्म से नहीं, चर्या से ब्राह्मण—सूत्र : 3 न वि मुंडिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण ण तावसो ।। समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो। नाणेण उ मुणी होइ, तवेण होइ तावस

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महावीर वाणी-(प्रवचन-45)

20 अप्रैल 2022
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अलिप्तता है ब्राह्मणत्व ब्राह्मण-सूत्र : 2 दिव्व-माणुसत्तेरिच्छं, जो न सेवइ मेहुणं। मणसा काय-वक्केणं, तं वयं बूम माहणं ।। भजहा पोम्मं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तं कामेहिं, तं वयं बूम म

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महावीर वाणी-(प्रवचन-47)

20 अप्रैल 2022
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अस्पर्शित, अकंप है भिक्षु भिक्षु-सूत्रः जो सहइ हु गामकंटए, अक्कोस-पहारत्तज्जणाओ य। भय-भेरव-सद्द-सप्पहासे, समसुह-दुक्खसहे अ जे स भिक्खू हत्थसंजए पायसंजए,वायसंजए संजइन्दिए। अज्झप्परए सुसमाहि

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महावीर वाणी-(प्रवचन-48)

20 अप्रैल 2022
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भिक्षु कौन? भिक्षु-सूत्रः 3 उवहिम्मि अमुच्छिए अगिद्धे, अन्नायउंछं पुलनिप्पुलाए। कयविक्कयसन्निहिओ विरए, सव्वसंगावगए य जे स भिक्खू।। अलोल भिक्खू न रसेसु गिद्धे, उंछं चरे जीविय नाभिकंखे। इडिंढ़

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महावीर वाणी-(प्रवचन-49)

20 अप्रैल 2022
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कल्याण-पथ पर खड़ा है भिक्षु भिक्षु-सूत्र : 4 न परं वइज्जासि अयं कुसीले, जेणं च कुप्पेज्ज न तं वएज्जा। जाणिय पत्तेयं पुण्ण-पावं, अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू।। न जाइमत्ते न य रूवमत्ते, न लाभमत

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