परवीन बाबी सत्तर के दशक के शीर्ष नायको के साथ फिल्मो मे ग्लैमरस भूमिका निभाने के लिए याद की जाती है। उन्होने सत्तर और अस्सी के दशक में बनी ब्लॉकबस्टर फिल्मो मे भी काम किया जिनमें प्रमुख थीं दीवार, नमक हलाल, अमर अकबर एन्थोनी और शान। वह भारतीय सिनेमा की तमाम खूबसूरत अभिनेत्रियो मे से एक मानी जाती है।
4 अप्रैल 1949 को परवीन जुनागध यानि परवीन बाबी, गुजरात के एक मुस्लिम परिवार मे जन्मी थीं। उनकी शुरुआती शिक्षा माउंट कार्मेल हाई स्कूल, अहमदाबाद से हुई और बाद में उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, अहमदाबाद से अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की।
परवीन का मॉडलिंग करीअर 1972 मे शुरू हुआ और जल्द ही उन्हें क्रिकेटर
सलीम दुरानी के साथ चरित्र (1973) नामक एक फिल्म करने का मौका भी मिला।
हालांकि यह फिल्म फ़्लॉप रही, परवीन को इसके बाद कई फिल्मे करने के
प्रस्ताव मिले। उनकी पहली बडी हिट अमिताभ बच्चन के साथ अभिनीत 'मजबूर' (1974) थी।
जीनत अमान के साथ साथ, परवीन बॉबी ने भी भारतीय फिल्म नायिका की छवि को बदलने में
मदद की। वह जुलाई 1976, उस समय के किसी मैगज़ीन के पहले पन्ने पर
प्रदर्शित करने वाली पहली बॉलीवुड स्टार थीं। अपने कैरियर के दौरान, वह एक
गंभीर अभिनेत्री की तुलना में एक ग्लैमरस हीरोइन के रूप में अधिक प्रसिद्ध
थीं। वह एक फैशन आइकन के रूप में भी जानी जाती थी।
परवीन, हेमा मालिनी, रेखा, जीनत अमान, जया बच्चन, रीना रॉय और राखी के साथ साथ, अपने ज़माने की सबसे सफल अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती थी। अमिताभ बच्चन के साथ आठ फिल्मों में अभिनय किया, जो हिट या सुपर हिट हुईं । उन्होंने शशि कपूर के साथ सुहाग (1979), काला पत्थर (1979) और नमक हलाल (1982) में अभिनय किया था। धर्मेंद्र के साथ जानी दोस्त (1983) और फिरोज खान के साथ काला सोना (1975) मे भी अभिनय कर चुकी थी। अपने कैरियर के अंत में उन्होंने मार्क जुबेर के साथ "दूसरी औरत" की भूमिका निभाई, विनोद पांडे के साथ नजदीकीया (1982) जैसी लीक से हटकर फिल्मों में अभिनय किया।
2002 में अपनी माँ के निधन के बाद परवीन का मानसिक संतुलन बिगड़ गया। वह अकेले रहने लगीं और एक चर्च से जुड़ी रहीं। वह इसी धर्म की अनुयाई थीं और कभी कभी वह चर्च से संपर्क कर लिया करती थीं। बताया जाता है कि परवीन डायबिटीज़ और पैर की बीमारी गैंगरीन से पीड़ित थीं जिसकी वजह से उनकी किडनी और शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। एक व्हील चेयर, दो जोड़ी कपड़े, कुछ दवाइयां, चंद पेंटिंग्स और कैनवास ही परवीन के अंतिम दिनों के साथी थे।परवीन ने शादी नहीं की थी, इस तरह जीवन एकाकी ही रहा। उन्होंने अपनी जिंदगी के अंतिम दिन अकेले ही काटे और 20 जनवरी, 2005 को मौत की आगोश में चली गईं।
यूं तो एक कलाकार का जीवन खुली किताब की तरह होता है जिसे सब अपने अपने तरीक़े से पढ़ते हैं। मगर हँसते-खिलखिलाते चेहरों के पीछे तमाम दर्द से भी इंकार कोई कैसे करे। ये भी सच है कि परदे की चकाचौंध से जगमगाते सितारों की किरदार से अलग भी ज़िन्दगी होती है। दर्शकों और चाहने वालों के लिए तो यही बेहतर है कि इन सितारों को उसी आसमान पर सजाकर देखते रहें वे जिसके लिए जाने जाते हैं। बेहतरीन अदाकारी के लिए फिल्म जगत में परवीन बाबी को हमेशा याद किया जाएगा।