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कमाल के फ़नकार थे-कमाल अमरोही

10 फरवरी 2016

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'चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो'...जी हाँ, अज़ीम फनकारों के साथ ये अक्सर ही हुआ कि वो जहाँ जिस हाल में जन्मे और पले-बढ़े, दिल से बस यही सदा निकली I उनके बचपन के किस्से सुनो तो हैरत होती है कि फ़र्श से अर्श का ये सफ़र भला कोई कैसे तय लेता है ! एक ऐसी ही बेहतरीन शख्सियत के मालिक थे, गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक, निर्माता-निर्देशक सैयद आमिर हैदर यानि कमाल अमरोही I


17 जनवरी 1918 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जमींदार परिवार में जन्मे कमाल अमरोही शुरुआती दौर में एक उर्दू समाचार पत्र में नियमित रूप से स्तम्भ लिखा करते थे। अखबार में कुछ समय तक काम करने के बाद उनका मन वहां भी नहीं लगा और वह कलकत्ता चले गए और फिर वहां से मुम्बई आ गए। मुंबई पहुंचने पर कमाल अमरोही को मिनर्वा मूवीटोन के बैनर तले 'जेलर', 'पुकार', 'भरोसा' जैसी कुछ फिल्मों में संवाद लेखन का काम मिला। फिर भी, अमरोही के लिए ये कोई कमाल नहीं था I

        

अपना वजूद तलाशते कमाल अमरोही लगभग 10 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करते रहे I उनके सितारे चमके वर्ष 1949 में जब अशोक कुमार ने उन्हें अपनी क्लासिक फिल्म 'महल' के निर्देशन की बागडोर थमाई I बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी 'महल' की कामयाबी ने न सिर्फ पाश्र्वगायिका लता मंगेश्कर के सिने करियर को सही दिशा दी बल्कि फिल्म की नायिका मधुबाला को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

         

वर्ष 1952 मे कमाल अमरोही ने फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी से शादी कर ली। उस समय कमाल अमरोही और मीना कुमारी की उम्र में काफी अंतर था। कमाल अमरोही 34 वर्ष के थे जबकि मीना कुमारी लगभग 20 वर्ष की थीं।

      

'महल' की कामयाबी के बाद कमाल अमरोही ने कमाल पिक्चर्स और कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की। कमाल पिक्चर्स के बैनर तले उन्होंने मीना कुमारी को लेकर 'दायरा' फिल्म का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी।

      

इसी दौरान कमाल अमरोही को के.आसिफ की वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म 'मुगल-ए-आज़म' में संवाद लिखने का अवसर मिला। इस फिल्म के लिए संवाद लिख रहे थे वजाहत मिर्जा लेकिन के.आसिफ, कमाल अमरोही की क़लम से इस क़दर मुतास्सिर थे कि यादगार डायलॉग्स लिखने की चाहत में उन्होंने कमाल अमरोही को अपने चार संवाद लेखकों में शामिल कर लिया। के. आसिफ का ये फैसला कमाल का रहा और इस फिल्म के लिए कमाल अमरोही को सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक के रूप में फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया।

  

60 के दशक में कमाल अमरोही और मीना कुमारी की विवाहित जिंदगी में दरार आ गयी और दोनों अलग-अलग रहने लगे। इस बीच कमाल अमरोही  अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म 'पाकीज़ा' के निर्माण में व्यस्त रहे। कमाल अमरोही की फिल्म 'पाकीज़ा' के निर्माण में लगभग चौदह वर्ष लग गए। कमाल अमरोही और मीना कुमारी अलग-अलग हो गए थे फिर भी कमाल अमरोही ने फिल्म की शूटिंग जारी रखी क्योंकि उनका मानना था कि 'पाकीज़ा' जैसी फिल्मों के निर्माण का मौका बार बार नहीं मिल पाता है। वर्ष 1972 में जब 'पाकीज़ा' प्रदर्शित हुई तो फिल्म में कमाल अमरोही के निर्देशन और मीना कुमारी के बेजोड़ अभिनय ने दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी। 'पाकीज़ा' कालजयी फ़िल्मों में शुमार की जाती है।      


वर्ष 1972 में मीना कुमारी की मृत्यु के बाद, कमाल अमरोही टूट से गए और उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 1983 में कमाल अमरोही ने खुद को स्थापित करने के उद्देश्य से एक बार फिर फिल्म इंडस्ट्री का रुख किया और फिल्म 'रज़िया सुल्तान' का निर्देशन किया। भव्य पैमाने पर बनी इस फिल्म में कमाल अमरोही ने एक बार फिर अपनी निर्देशन क्षमता का लोहा मनवाया लेकिन दर्शकों को यह फिल्म पसंद नहीं आयी और बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गई I

      

90 के दशक में कमाल अमरोही 'अंतिम मुगल' नाम से एक फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन उनका यह ख्वाब हकीकत में नहीं बदल पाया। बेहतरीन निर्देशन के माध्यम से दर्शकों के दिलो में एक अलग पहचान बनाने वाले कमाल अमरोही 11 फरवरी 1993 को इस दुनिया को अलविदा कह गए

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