लिखने वाले ख़ूब जानते हैं कि कितने ही क्षण ऐसे आते हैं जब लिखे बिना रहा नहीं जाता...निर्झर सरिता सा बहता कल-कल प्रवाह फिर रोके नहीं रुकता ! मीमांसा-अभिवेगों से रंगा मन, लिखने का अमल-अभिमाद, व्यक्ति को भीड़ में भी अकेला कर देता है, उसे तब तक चैन नहीं मिलता जब तक उसकी क़लम अपना अंतर्वेग काग़ज़ के पन्नों पर उकेर नहीं देती...!
21 जुलाई, 1930 को रावलपिंडी में जन्मे आनन्द प्रकाश वैद यानि आनन्द बख्शी का परिवार, देश के विभाजन के बाद भारत आ गया I परिवार, पहले लखनऊ और फिर दिल्ली में आकर बस गया I उस वक़्त वो मात्र सत्रह बरस के थे I प्ले-बैक सिंगर बनने के सपने ने उन्हें सोने नहीं दिया और यही ख्वाब संजोए, आनन्द बख्शी बम्बई (मुंबई) आ गए I मुंबई आकर उन्होंने रॉयल इंडियन नेवी में कैडेट के पद पर काम किया I लेकिन किसी कारणवश दो वर्षों बाद उन्हें वो नौकरी छोडनी पड़ी I इसके बाद उन्होंने सेना में भी नौकरी की I जब वो सेना में थे, अक्सर गीत लिखकर अपने साथियों को सुनाया करते थे I साथियों की सलाह और हौसलाअफ्जाई ने ही उन्हें फ़िल्मों में क़िस्मत आज़माने की प्रेरणा दी I
आनन्द बख्शी को पहली बार, भगवान दादा अभिनीत, ब्रिज मोहन की फ़िल्म ‘बड़ा आदमी’ (1958) में गीत लिखने का मौक़ा मिला I इस फ़िल्म में उन्होंने 4 गाने लिखे लेकिन सफलता नहीं मिली I इसके बाद वर्ष 1962 में लाइमलाइट के बैनर तले बनी फ़िल्म ‘मेंहदी लगी मेरे हाथ’ के लिए उन्होंने गाने लिखे I फिर 1965 में बनी फ़िल्म ‘जब जब फूल खिले’ I शशि कपूर और नंदा अभिनीत ये फ़िल्म लिखी थी ब्रिज कात्याल ने और निर्देशक थे, सूरज प्रकाश I इस फ़िल्म में संगीत निर्देशन था कल्यानजी आनंदजी का और गीत लिखे थे आनन्द बख्शी ने I इस फ़िल्म के गीतों ने उन्हें बहुत लोकप्रियता दिलाई I वर्ष 1967 में प्रदर्शित सुनील दत्त और नूतन अभिनीत फ़िल्म ‘मिलन’ के गीत, ‘सावन का महीना पवन करे शोर...हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के...और राम करे ऐसा हो जाये, इन गीतों ने उन्हें बहुत शोहरत दिलाई ।
आनंद बख्शी गायक बनने का सपना लिए भी बंबई आए थे. 1972 में उनकी यह इच्छा पूरी हुई. फिल्म 'मोम की गुड़िया' में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ उन्होंने अपना पहला गाना गाया–‘मैं ढूंढ रहा था सपनों में’ । निर्देशक मोहन कुमार को वह गाना इतना अच्छा लगा कि उन्होंने घोषणा कर दी कि आनंद बख्शी, लता मंगेशकर के साथ एक युगल गीत भी गाएंगे. यह गाना था– ‘बागों में बहार आई, होठों पे पुकार आई‘ । यह गाना खूब चला । इसके बाद तो उन्होंने शोले, महाचोर, चरस और बालिकावधू जैसी कई फिल्मों के गीतों को अपनी आवाज दी ।
आनन्द बख्शी 40 बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हुए I उन्हें 4 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया I वर्ष 1977 में फ़िल्म ‘अपनापन’ के सदाबहार गीत आदमी मुसाफिर है..., वर्ष 1981, फ़िल्म ‘एक दूजे के लिए’ और गाना था ‘तेरे मेरे बीच में...वर्ष 1995, फ़िल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ और गाना था, ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम...और फिर 1999 में बनी फ़िल्म ‘ताल’ और गाना था ‘इश्क़ बिना क्या जीना यारो...I
30 मार्च, 2002 को सदाबहार गीतों का ये शिल्पकार इस नश्वर संसार को अलविदा कह गया I आनन्द बख्शी जैसे नायाब फ़नकार अपने शब्दों, अपने गीतों के ज़रिए हमेशा हमारे साथ रहेंगे...आदमी का क्या, आदमी मुसाफिर है...आता है जाता है, आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है...