मुंबई के एक मौलाना अंसार रज़ा जो संघ से अपने रिश्तों के लिए मशहूर हैं, और उनकी एनजीओ ‘ग़रीब नवाज़ फाउंडेशन’ ने, 25 जनवरी को, दिल्ली उच्चन्यायालय में एक जन-हित याचिका (पीआईएल) दाखिल करके ‘ज़ी टीवी’ पर प्रत्येक शनिवार और रविवार को प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ‘फ़तह का फ़तवा’ पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है. उनका कहना है कि प्रोग्राम का एंकर ‘तारेक फ़तह’ हिन्दुओं के खिलाफ़ नफरत फैला रहा है.
‘फ़तह का फ़तवा’ कार्यक्रम, 7 जनवरी, 1917 को पहली बार प्रसारित हुआ और अपने पहले एपिसोड से ही देश-विदेश के दर्शकों में लोकप्रिय हो गया. तवलीन सिंह अशोक पंडित और मधुर भंडारकर जैसी हस्तियों ने, फ़ेसबुक, ट्वीटर और अपने कॉलमों में इसकी तारीफ में जम कर लिखा. आरिफ मुहम्मद खान और कई मुस्लिम विद्वानों ने भी इस लेख क से बात करते हुए इसके समर्थन में ज़ोरदार वकालत की, उनका कहना था कि इससे पहले कभी कोई ऐसा बोल्ड प्रोग्राम उन्होंने नहीं देखा था और मुल्लाओं द्वारा की जा रही गुमराहियों से बचाने के लिए ये एक सही क़दम है. तारेक फ़तह भी इस प्रोग्राम की जरूरत पर कहते हैं कि ‘ये वक़्त की मांग है कि मुल्ला का इस्लाम और अल्लाह के इस्लाम को सामने लाया जाए ताकि लोगों को पता चले कि मुसलमान कब और कहाँ भटक गए”.
कार्यक्रम में मुसलामानों से जुड़े कई ज्वलंत विषय उठाये गए हैं जैसे जिहाद, बुर्का, काफ़िर और तीन तलाक़, ज़ाहिर है कि मुस्लिम समाज में ये सब चर्चा के विषय हैं जिनपर अभी तक सिर्फ मुल्ला ही अपनी-अपनी व्याख्याएं अपने तरीके से देते आ रहे थे, अब तारेक फतह ने इस पर मुल्लाओं को खुली चुनौती देना शुरू कर दी है की कई फिरकों में बंटे होने के अलावा मोटे तौर पर दो तरह के इस्लाम चलन में हैं, एक है मुल्ला का इस्लाम और दूसरा है अल्लाह का इस्लाम. ज़ाहिर है ये चुनौती, देश-विदेश में, दंगल की तरह लोकप्रिय हो रही है.
कार्यक्रम की शोहरत का एक दूसरा कारण ये भी है कि ‘फतह का फ़तवा’ में, पहले एपिसोड से लेकर पिछले शनिवार को प्रसारित हुए ‘तीन-तलाक’ मुद्दे तक, मुल्लाओं ने फ़तह पर ही फ़तवे लगाने की धमकियाँ दे डालीं, एक एपिसोड में तो एक मौलवी ने गुस्से में आकर तारेक की वाकिंग-स्टिक (छड़ी) से एक महिला गेस्ट को मारने तक की धमकी दी.
हमने इस सिलसिले से मौलाना अंसार रज़ा से भी बात की क्योंकि पहले दो एपिसोड में वह स्वयं इस कार्यक्रम में मौजूद थे और उन्होंने तारेक के इस कार्यक्रम की शो के दौरान ही तारीफ भी की थी, फिर ऐसा क्या हो गया कि वह इसके खिलाफ़ ‘जन-हित-याचिका’ तक जा पहुंचे. इस पर मौलाना ने कहा “ मैं उनके पहले शो में गया था, और मुझे अच्छा लगा था कि चलो भई एक अच्छी चीज़ आई है मार्किट में, लेकिन कुछ बातें उन्होंने नागवार कहीं, मैंने उनसे उसी शो में कहा कि भई आप यहाँ हिन्दू-मुसलमानों को लड़वाने की बातें मत कीजिये, उसके बाद उनका जो दूसरा एपिसोड आया, उसमें उन्होंने ‘हज़रते-फारूखे-आज़म-रज़ीअल्लाहो-तआला’ के हवाले से एक जुमला इस्तेमाल किया कि ‘हमलावर’, हज़रते ओरंगज़ेब के तआल्लुक़ से और महमूद गजनवी के तआल्लुक़ से भी, तो मैंने उनसे कहा कि ये तो आप दंगा फैलवा देंगे यहाँ, अब वो तीन-तलाक़ के मसले पर आ गए, कुल मिलकर वो इस्लाम को बदनाम करने के लिए, क्योंकि यूपी का इलेकशन सामने है, इसलिए हमने, चैनल को, तारेक फतह को, होम-मिनिस्ट्री को, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और कानून मंत्रालय, सबको पार्टी बनाया है.”
इसी बीच सूत्रों से पता चला है, कि आगामी आने वाले एक शो में मौलाना अंसार रज़ा ने तारेक फ़तह को ‘काफ़िर’ तक कह डाला है, इस्लाम के अनुसार, ऐसा विश्वासघाती, जिसका क़त्ल यदि कोई मुसलमान करता है तो वह मुजरिम नहीं कहलायेगा.
पीआईएल में मौलाना का कहना है कि ‘फ़तह का फ़तवा’ के एंकर, तारेक फतह, देशवासियों को भड़का कर दंगे-भड़काने जैसी स्थिति पैदा कर रहा है. मौलाना से जब यह पूछा गया कि जिन एपिसोड से उन्हें शिकायत है, क्या उनको टीवी पर देखा है? तो मौलाना ने इससे इंकार किया और कहा कि उनकी याचिका का आधार वह शिकायतें हैं जिन्हें उन्होंने दूसरों को करते सुना है.
पीआईएल में उत्तर-प्रदेश के चुनावों का भी ज़िक्र है कि तारेक फतह निहित स्वार्थों के चलते दंगे जैसी स्थितियां बनाना चाहते हैं ताकि किसी ख़ास राजनैतिक दल को इसका फायदा पहुँच सके.
इसी पीआईएल में यह भी कहा गया है कि तारेक समलैंगिकों के अधिकारों का समर्थक है और यह भी कि पकिस्तान और सऊदी-अरब ने उसे अपने यहाँ प्रतिबंधित कर रक्खा है. जब हमने तारेक से इस सम्बन्ध में जानना चाहा तो उनका कहना था कि “मैं इस पर फख्र महसूस करता हूँ कि पकिस्तान और सऊदी-अरब में प्रतिबंधित हूँ, अगर मौलाना अजहर को अपनी पहचान के लिए पकिस्तान या सऊदी-अरब की ज़रुरत है तो अत्याचारी व्यवस्थाओं और देशों को सराहने और इज्ज़त देने के लिए उनका स्वागत है, उस पकिस्तान को जिसने भारतीय इलाकों (गिलगित- बाल्तिस्तान) पर क़ब्ज़ा कर रक्खा है और बलोचिस्तान की मुस्लिम जनसंख्या का बेदर्दी से नर-संहार कर रहे हैं”.
फ़तह कहते हैं कि- “हमारा ये नजरिया है कि किसी तरह हिन्दुस्तान के जो मुसलमान हैं वो दूसरे समुदायों के लोगों के साथ, जैसे वो तरक्क़ी कर रहे हैं, तरक्क़ी करें, आगे बढें, जिनमें आलमे-दीन हैं, प्रोफेशनल क्लास हैं, वकील हैं, राइटर्स हैं, आर्किटेक्ट्स हैं, तमाम मिलकर, जो इस्लाम का योगदान है उसको साथ लेकर, अपने आपको हिन्दुस्तानी मानकर, इस मुल्क को, इस सर-ज़मीन को आगे बढाएं”.
हालाँकि दिल्ली हाई-कोर्ट द्वारा अभी इस जन-हित-याचिका को अपने सं ज्ञान में लेना है और उसने इसके लिए अभी तक कोई तारीख तय नहीं हुई है, लेकिन बजाय इसके कि मुस्लिम-समाज के लोग जिन्हें, तारेक का इस तरह इतिहास में झांकना, और अल्लाह का इस्लाम बनाम मुल्ला का इस्लाम की बहस छेड़ना गवारा नहीं, उन्हें सामने आना चाहिए क्योंकि एक बात जो तारेक फतह के कार्यक्रम में हमने महसूस की वो यह है कि तारेक अपने विरोधियों को भी उतनी ही जगह देते हैं जितनी अपने विचारों को.
होना तो यह चाहिए कि मुसलमानों को इस मंच पर आकर दमदार बहस करनी चाहिए, तारेक फतह अगर गलत हैं तो उनको बेनकाब करना चाहिए. इसके विपरीत, एक कार्यक्रम के लिए, एक वर्ग द्वारा, पीआईएल जैसे हथियार के इस्तेमाल में भी सियासत नज़र आती है. इतिहास से उदाहरण लें तो एक खुले मंच को जब कभी भी दबाने की कोशिशें हुई हैं, वह और उभर कर सामने आया है.