नई दिल्ली : इस्लामिक राजतन्त्र वाले देश सऊदी अरब में महिलाओं को दुनिया के अन्य हिस्सों जैसी आज़ादी नहीं है। यहाँ महिलाओं को अपने हिसाब से कपडे पहनने तक की अनुमति नहीं है लेकिन अगर कोई महिला हिज़ाब पहनकर ओलंपिक में दौड़ती हुई दिखे तो हर कोई चौंक सकता है। सऊदी अरब में महिलाएं बिना पुरुषों के घर से भी बाहर नहीं निकल सकती है, वाहन नहीं चला सकती यही नहीं महिला खिलाडियों को यहाँ खेल ों में हिस्सा लेने की अनुमति भी नहीं है लेकिन हिस्सा ले भी लिया तो पुरुष अभिभावक के साथ। स्पोर्ट किट भी धार्मिक रूप से स्वीकृत होना चाहिए। कुछ समय पहले तक सऊदी अरब में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला। आज तक यहाँ पुरुषों की ही इच्छा को महिलाओं पर थोप दिया जाता था।
ओलंपिक में हिज़ाब पहनकर दौड़ी 22 साल की करीमन अबुलजडएल
तो क्या अब महिलाओं पर पाबन्दी रखने वाला सऊदी अरब बदल रहा है या महिलाएं खुद सऊदी अरब को बदलना चाहती हैं। जब हर किसी ने टीवी पर रियो ओलंपिक में 22 साल की करीमन अबुलजडएल को 100 मीटर की रेस में हिज़ाब पहनकर भागते देखा तो इतिहास बन गया। वह सऊदी की पहली महिला हैं जिन्होंने ओलंपिक में इस तरह धावक के रूप में भाग लिया। भले वह रेस जीत नहीं सकी लेकिन सोशल मीडिया पर करीमन की चर्चा आग की तरह फ़ैल गई। अबुलजडएल ने अपनी दौड़ 14.61 सेकंड में पूरी की।
साल 2012 में हटा था प्रतिबन्ध
यह पहला मौका नहीं था जब ओलंपिक में महिलाओं ने हिस्सा लिया। साल 2012 में पहली बार सऊदी अरब की महिलाओं को ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति दी थी। लन्दन ओलंपिक में सऊदी अरब ने अपनी दो एथलीटों को भेजा जिन्होंने जूडो और एथेलिटिक्स में हिस्सा लिया। जहाँ एथेलेटिक्स में साराह अत्तर ने आठ सौ मीटर की दौड़ में हिस्सा लिया वहीँ वोदिजान अली सेराज अब्दुलरहीम शहरखानी ने जूडो प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया।
साल 2012 लन्दन ओलंपिक में भाग लेती धावक अत्तार
साल 2012 में जब सऊदी अरब की महिलाओं ने जब ओलंपिक में हिस्सा लिया था तब अधिकारी इस बात पर सहमत हो गए थे कि महिलाओं को खेलों में भाग लेने के लिए हिज़ाब पहनना जरूरी नहीं है। ओलंपिक में महिलाओं के भेजने के फैसले का दुनियांभर के कई देशों ने स्वागत किया था। न्यूयॉर्क स्थित मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि जिससे महिलाओं के लिए अपने अधिकार पाने की गुंजाइश पैदा होगी और कट्टरपंथी सऊदी अधिकारियों के लिए इसे वापस ले पाना मुश्किल होगा।