लखनऊ, अतुल कुमार : उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में सभी विपक्षी दलों द्वारा एक जुट होकर नरेन्द्र मोदी एवं उनकी नीतियों की आलोचनाओं ने मतदाताओं की दृष्टि में BJP का कद और ऊँचा कर दिया। विशेषकर 8 नवंबर 2016 को घोषित नोटबंदी की आलोचनाओं ने तो विरोधियो की कमर ही तोड़ दी। नोटबंदी के विरुद्ध राहुल गांधी द्वारा दिए गये बयानों से जनता पहले ही त्रस्त हो चुकी थी फिर चुनाव के दौरान सहयोगी समाजवादी पार्टी के साथ यूपी में कांग्रेस को ध्वस्त कराने में नोटबंदी के बयानों ने उत्प्रेरक का काम किया। गठबंधन को महानता का रूप दिखने में लगे अखिलेश यादव भी नोटबंदी के विरुद्ध बयानों से अछूते नहीं रहे। राहुल गांधी की संगत में अखिलेश यादव ने पांच वर्षों में यूपी में बनाई अपनी छवि ही खराब कर ली। हाशिये पर आई कांग्रेस पार्टी को जहां तिनके का सहारा मिला वही यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि कांग्रेस की डूबती नैया केें साथ सपा का भी अंत नज़र आने लगा।
आरक्षित वर्ग एवं मुस्लिमो के वोटो के सहारे मुख्यमंत्री का ख्वाब देख रही मायावती द्वारा की गई मोदी की आलोचनाओं न तो एक ही चेहरे वाली पूरी बीएसपी पार्टी को एक किनारे लाकर खड़ा कर दिया। मोदी की नोटबंदी की सबसे अधिक सराहना मायावती के वोट बैंक द्वारा की जाती रही है क्योंकि देश की गरीब एवं निचले स्तर की जनता को विश्वास था कि मोदी ने छोटे और बड़ो के अंतर को समाप्त कर समानता की नीयत से यह कार्यवाही की है। नोटबंदी से सबसे अधिक कष्ट अमीरों को हुआ न की गरीब या किसानों को।किसी भी नेता ने ज़मीनी हकीकत को जाने बिना ही आलोचनाओं की लड़ी लगा दी। इससे पूर्व सर्जीकल स्ट्राइक पर देश के महान नेताओ द्वारा सरकार की जो आलोचनाएं की गई उसका साफ़ और सीधा जवाब देकर भारत के सैन्य अधिकारियो ने ही देश हित के विरुद्ध बोलने वाले नेताओं के मुँह बंद कर दिया था।
चुनाव में मोदी की भाषण शैली की नकल करके राहुल गांधी,अखिलेश यादव,डिम्पल यादव और मायावती ने मतदाताओं को रिझाने का प्रयास जरूर किया परन्तु चुनावी सभाओं को मनोरंजन समझ कर मतदाता मोदी के ही गुण गता दिखाई देता था। इतना ही नहीं विभिन्न चैनलो पर मीडिया वाले सभी दलों के प्रवक्ताओं को बुलाकर तरह तरह के विवादों,कार्यो या नेताओ के आश्वासनों पर खुली बहस कराते है जिसमे एक प्रतियोगिता नज़र आती है।इन बहसों के दौरान ऐसा लगता है कि किसी प्रतियोगिता के फाइनल मैंच में बीजेपी पहुँच चुकी है और उसे हराने के लिए सभी दल् कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एकजुट हो गई है। तीनो पार्टीयो के प्रवक्ताओं का प्रहार सीधे मोदी के कार्यो या उनकी पार्टी के प्रवक्ता पर होता है।ताज्जुब तो तब होता है जब एक दूसरे के विरोधी समझे जाने वाली बीएसपी और समाजवादी पार्टी के बीच कभी कटु वचनों का प्रयोग नहीं होता। तीनो विरोधी पार्टिया एक धर्म विशेष को लेकर बीजेपी पर आक्रमण जरूर करती है पर अंत में उसका लाभ दर्शको के माध्यम से बीजेपी को ही होता है।
इससे स्पष्ट है कि चैनलो पर बैठने वाले पार्टीयो के प्रवक्ता भी मोदी की आलोचना कर BJP का कद बढ़ाते है और अपनी पार्टी की छवि काफी हद तक खराब कर रहे है। प्रदेश में पांचवे चरण का चुनाव संपन्न हो चूका है,दो चरणों का चुनाव शेष है। सभी पार्टियां एक दूसरे की आलोचना को छोड़कर,जाती पाती और धार्मिक विवादों को छोड़कर जनहित की बात करे और ज़ुबानी जंग से दूर रहे । सभी पार्टीयो को यह नहीं भूलना चाहिए की उनकी पार्टी में कितने दागी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे है। अभी भी समय है कि सचेत हो जाये और अपनी पार्टी की साख बचाने में लग जाये।