नई दिल्लीः भारतीय सेना तमाम अहम हथियारों की कमी से जूझ रही है। इसकी कई वजह है। कुछ तो इस तरफ लापरवाही के साथ ही भ्रष्टाचार के मामलों के कारण नए हथियारों की खरीद करने का साहस न दिखा पाने के कारण जिम्मेदा है। सबसे चौंकाने वाली बात है कि सेना 1960 में खरीदे गए पुरानी एल 70-जेड यू 23 गनों से छुटकारा पाना चाहती है। मगर अब तक नए हथियार नहीं खरीदे गए। सैन्य सूत्रों के मुताबिक 2012 में इन हथियारों के खरीद की योजना बनाई गई, मगर भ्रष्टाचार के मामले में जर्मनी की मैन्यूफैक्चरर कंपनी रेनमेटाल के फंस जाने के कारण मामला खटाई में पड़ गया।
इन प्रमुख हथियारों की है सेना को जरूरत
असॉल्ट राइफल-डिफेंस मिनिस्ट्री के सूत्र बताते हैं कि सेना को मौजूदा समय कम से कम 1.8 लाख नई असॉल्ट राइफलों की जरूरत है। 2011 में राइफल खरीद का प्रोजेक्ट तैयार हुआ मगर कुछ खामियों के चलते सरकार ने जून 2015 में रद कर दिया। कहा जा रहा है अब फिर से सौदेबाजी शुरू हुई है।
होवित्जरः बोफोर्स घोटाले के बाद कोई आधुनिक आर्टिलरी गन ही नहीं खरीदी गई। यानी 1980 के दशक के बाद से इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। के-9 वज्र टी होवित्जर और एम777 अल्ट्रा लाइट होवित्जर खरीदने की योजना पर काम चल रहा। मगर सौदा फाइनल नहीं हो सका है।
कार्बाइनः आमने-सामने की लड़ाई में कारबाइन बहुत मारक होती है। मगर भारतीय सेना कारबाइन की भारी कमी का सामना कर रही है। 2010 से खरीद का ट्रायल शुरू हुआ मगर अब तक फैसला नहीं हो सका है।
ज्यादा दिन तक नहीं लड़ सकती सेना
सेना के सूत्र कह रहे हैं कि जिस प्रकार से बुनियादी हथियारों की कमी से भारतीय सेना जूझ रही है, उससे सेना युद्ध के मैदान में ज्यादा दिन तक दुश्मन देश का मुकाबला नहीं कर सकती। लिहाजा केंद्र सरकार को गोला-बारूद की पर्याप्त सप्लाई को लेकर संजीदा होना होगा।