देहरादून : देश की राजधानी दिल्ली के चाणक्य पूरी स्थित उत्तराखंड सदन में कांग्रेस के सभी शीर्ष नेताओं का मंथन टिकट बंटवारे को लेकर दो दिन चला। अब स्थिति लगभग यह साफ़ हो चुकी है कि कांग्रेस पार्टी उत्तराखंड में हरीश रावत को ही सर्वेसर्वा बनाना चाहती है। यानी आगामी उत्तराखंड चुनावों में कांग्रेस के मोहरे रावत ही तय करेंगे। दरअसल उत्तराखंड में हरीश रावत के अतिरिक्त कोई चेहरा पार्टी के पास बचा भी नही है। पार्टी के कई शीर्ष नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, जिनमे विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत जैसे नेता भी शामिल हैं।
बीजेपी के सामने जिस तरह कई राज्यों में कांग्रेस की रणनीति फेल नजर आयी वहीँ उत्तराखंड एक मात्र ऐसा राज्य है जहाँ हरदा ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया।उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को जिस तरह अदालत ने ख़ारिज किया उसके बाद खुद बीजेपी के पास कहने को कुछ बचा नही। हरीश रावत ने अपनी सरकार को अस्थिर करने पर बीजेपी को आड़े हाथों लिया और जनता में रावत के लिए इस घटना के बाद सहानुभूति भी पैदा हुई। यानी हरीश रावत एक ऐसे नेता के तौर पर सफल हुए जिन्होंने जनता के सेंटीमेंट को अच्छी तरह पकड़ा। रावत ने मोदी लहर के बावजूद भी सूबे में अपनी लोकप्रियता कायम रखी। पूरी कांग्रेस पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व मोदी सरकार के राष्ट्रवादी फैसलों की आलोचना में लगा है लेकिन हरीश रावत सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर सेना के नए प्रमुख की नियुक्ति को लेकर जनता के हिसाब से जवाब दे रहे। इन मसलों पर वह मोदी सरकार की तारीफ करने से भी नही चुके।
मोदी की तर्ज पर 2017 का चुनाव लड़ेंगे रावत-
आगामी उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की पूरी नैया हरीश रावत के भरोसे हैं। सूत्रों की माने तो कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इस बार उत्तराखंड चुनाव की हर रणनीति हरीश रावत को बनाने देना चाहती है। हरीश रावत ने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से साफ़ कह दिया है कि जिस तरह उन्होंने अब तक उत्तराखंड में बीजेपी से टक्कर ली है वैसे टक्कर वह आगे भी देना चाहते हैं और इसके लिए हर रणनीति वह खुद बनाएंगे। यहाँ तक कि टिकटों के बंटवारे को लेकर भी उनकी ही चलेगी।
हरीश रावत आगामी उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की बिसात ठीक उसी तर्ज पर बिछाना चाहते हैं जैसी साल 2014 में नरेन्द्र मोदी ने बिछाई थी। नरेन्द्र मोदी ने साल 2014 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारणी से साफ़ कहा था कि 2014 का लोकसभा चुनाव जिताने की जिम्मेदारी उनकी है बशर्ते चुनाव का हर फैसला लेने की छूट उन्हें दी जाए। उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जहाँ मतदाताओं में सत्ता विरोधी लहर हर बार दिखती है। इसलिए एक बार बीजेपी तो दूसरी बार कांग्रेस के सरकार उत्तराखंड में दिखती है। इस बार सत्ता में कांग्रेस की है और लाभ बीजेपी के पक्ष में जाना तय है।
हरीश रावत के सामने एक चुनौती यह भी है कि उनके कारण जो नेता पार्टी छोड़कर गए हैं उनको गलत साबित करें। उत्तराखंड कांग्रेस में फ़िलहाल सब हरीश रावत के पक्ष में हैं। हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, प्रीतम सिंह, दिनेश धनै और निर्दलीय राजेन्द्र भंडारी भी रावत के करीबी है। हालाँकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और हरीश रावत की खटपट की खबरें पहले आती रही हैं। किशोर उपाध्याय की उत्तराखंड के प्रदेश संगठन पर गहरी पकड़ बताई जाती है लेकिन पलड़ा फिलहाल हरीश रावत का ही भारी दिख रहा है।