लखनऊ ब्यूरो-: उत्तर प्रदेश भाजपा के युवा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य! इनका सपना रहा है भाजपा की सरकार बन जाने पर सूबे का मुख्य मंत्री बनने का। वह तो नहीं पूरा हो सका। जैसे तैसे मन को काबू में किया तो दूसरा सपना पाल लिया योगी सरकार में गृह मंत्री बनने का। सोचा होगा कि इससे प्रदेश में उनकी हनक बडा इजाफा हो जायेगा। लेकिन, उनका यह सपना भी फुस्स हो गया। इस विभाग को अपने ही हाथों में रखकर योगी ने इन्हें आम आदमी की नजर में ‘बेचारा‘ जैसा बना दिया है। चुनावी नतीजे के बाद कुछ ऐसी ही स्थिति आने पर इन्हें अस्पताल में भरती होना पड गया था। अब लखनऊ में मंत्रियों के विभाग बंटवारे के बाद लगता है कि इन्हें फिर एक बार ऐसा झटका सा दिया गया है। खबर है कि उसी रात यह अमित शाह से गुहार लगाने दिल्ली कूच कर गये। इनके समर्थकों की माने, तो मंत्री जी अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक गये हैं।
इस स्थिति में इनकी बेचारगी पर अपनी पीडा जताने वाले इनके अपने समर्थक भी हैं। शायद, अपनी जुबान फिसल जाने ही कारण ये लोग कुछ इस तरह से फुसफुसा रहे हैं। खुलकर कहने की इनमें से किसी भी हिम्मत नहीं। फिर भी चारों तरफ बडी चैकन्नी निगाह डालकर इनमें से एक अपने साथी के कान में जैसे यह फुसफुसा रहा था कि केशव भइया ने तो सोचा था कि वह सूबे के मुख्य मंत्री बनेंगे। उस दौरान उनके चेहरे की चमक दमक देखते ही बनती थी। लेकिन, बना दिये गये उप मुख्यमंत्री। इस चोट को सहने के बाद किसी तरह मन को काबू किया, तो सोचा होगा कोई बात नहीं। गृह मंत्री तो बन ही जायेंगे। इससे सूबे में उनकी हनक बढ जायेगी। हर जिले को डीम और एस.पी.उन्हें सलाम ठोकेंगे। लेकिन, भाग्य ने साथ नहीं दिया। इसीलिए यह पद भी उनके हाथ से फिसल गया। मिला भी तो पीडब्लूडी विभाग। सडकें पुलिया, पुलों और सरकारी इमारतों को बनवाने का। बडी मायूसी हुई होगी उन्हें।
कहा जाता है कि अपनी गहरी मायूसी के इस दौर में इन्हें अमित शाह की याद आ गयी, जिन्होंने चुनाव के दौरान इनकी पीठ खूब थपथपाई थी। इसलिये खबर है कि विभाग वितरण की रात में ही वह उनसे गुहार लगाने के इरादे से दिल्ली कूच कर गये। लेकिन, लगता है कि इसी हडबडी में इन्हें यह भी सोचने का मौका न मिला होगा कि मोदी और शाह तो योगी की बनायी मंत्रियों की सूची पर पहले ही अपना ठप्पा लगा चुके हैं। इसलिये अब इसमें फेरबदल नहीं किया जा सकता है। इससे बेवजह ही योगी के सामने असहज स्थिति पैदा हो जायेगी। दूसरे भी अपनी जीभ बाहर कर सकते हैं। ऐसे में किस किस की मुराद योगी पूरी करते रहेंगे। इस स्थिति में ‘ऊपर‘ का दबाव पडने से यदि कहीं उनका योगीत्व जग गया, तो मुख्य मंत्री की कुर्सी छोडते उन्हें पल भर की भी देर नहीं लगेगी।
दूसरी ओर, मंत्री केशव प्रसाद मौर्य तो फोन पर उपलब्ध नहीं हो सकें। लेकिन, मौके नजाकत भांप कर उनके करीबियों ने अपनी ओर से ही यह सफाई देने में देर नहीं लगायी कि ऐसा कुछ भी नहीं है। मंत्री जी तो पूर्व निर्धारित अपने कार्यक्रम के ही अनुसार दिल्ली गये थे।
बहरहाल, इस संबंध में जानकार सूत्रों की माने तो अपने अत्यंत सशक्त खुफिया तंत्र के जरिये प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को केशव प्रसाद मौर्य का सारा चिट्ठा मालूम हो गया होगा। वैसे भी, केशव प्रसाद मौर्य के इन सपनों के पूरा होने की राह में तीन ज्वलंत प्रश्न अडंगा डालते जैसे जान पड रहे हैं। इनमें से पहला प्रश्न है इनकी शैक्षणिक योग्यता का। केशव प्रसाद मौर्य ने किस विघालय में शिक्षा प्राप्त की है? हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा किस कालेज से और कब उत्तीर्ण किया है? इसकी प्रामाणिक जानकारी शायद ही किसी को हो। यह इलाहाबाद के हिंदी साहित्य सम्मेलन की साहित्यरत्न की उपाधि ये अलंकृत हैं। इस डिग्री को बी.ए. के समकक्ष बताया गया है। यह विवादित भी कही जाती है। वैसे भी, इस डिग्री का क्या महत्व है और कितने कठोर परिश्रम के बाद यह मिल जाती है, यह जगजाहिर है। दूसरा सवाल है इनके खिलाफ आज भी नौ आपराधिक मुकदमों का चलते रहना है। इनमें से कई मुकदमे तो ऐसे है, जिनमें कईं गंभीर धाराएं लगायी गयी हैं।
तीसरा सवाल देखते ही देखते इनके करोडपति बन जाने से संबंधित है। हांलाकि, इनके समर्थक डंके की चोट पर यह कहकर परम गदगद हो जाते रहे हैं कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की तरह उनके केशव भइया भी बचपन में चाय बेचते रहे हैं। इन सबके यह कहने की मंशा इशारो में यह जताना भी हो सकता है कि यदि बचपन में चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री हो सकते हैं, तो उनके केशव भइया उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री क्यों नहीं हो सकते हैं? लेकिन, इस तरह का दावा ठोंकने वाले इस तथ्य को भूल जाते हैं कि चाय बेचने के इस एक मामले के अलावा मोदी और मौर्य में कोई तुलना ही नहीं की जा सकती है।
मसलन, केशव प्रसाद मौर्य के इन समर्थकों के पास इस सवाल का जवाब नहीं हो सकता है कि मोदी की तुलना में उनके केशव भइया आज अकूत चल-इतनी अचल संपत्ति के मालिक कैसे हो गये हैं। अलाउद्दीन का जादुई चिराग तो इनके पास है नहीं। बिना इसके यह देखते ही देखते रंक से राजा कैसे हो गये हैं? दूसरी ओर, अपने लंबे राजनीति क सफर में कई बार गुजरात का मुख्य मंत्री रहने और अब प्रधान मंत्री होने के बाद भी नरेंद्र मोदी की कुल जमापूँजी लगभग 77 लाख रु तक ही है। इसके विपरीत पिछले लोकसभाई चुनाव में दिये गये अपने शपथपत्र में चायवाले रहे केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी नौ करोड रु की अपनी संपत्ति बतायी थी। हकीकत में यह इससे भी कहीं ज्यादा ही हो सकती है।
केशव प्रसाद मौर्य के इतना समृद्धशाली होने को लेकर उनके पैतृक निवास के आसपास तरह तरह की सरगर्म चर्चाएं चल रही है। इन चर्चाओं में इन पर लगा यह अत्यंत सनसनीखेज आरोप भी है कि विहिप ने शीर्ष नेता रहे अशोक सिंहल ने इन्हें कौशांबी जिले में धडल्ले से की जा रही गायों की भारी तस्करी को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस काम के लिये इन्होंने हट्टेकट्टे नवजवानों का एक मजबूत दस्ता बना लिया था। इस मुहिम में इन्हें किस हद तक कामयागी मिल सकी थी, यह तो नहीं मालूम। इस जिले में गो वध और गायों की तस्करी आज भी धडल्ले से जारी है। लेकिन, इस इलाके के लोगों की माने, तो इस काम के दौरान केशव प्रसाद मौर्य इतने ताकतवर हो गये थे कि गोतस्कर पुलिस से तो कम, लेकिन, इनसे कहीं ज्यादा इनसे खौफ खाने लगे थे। इसी दौरान इन पर लक्ष्मी का असीम अनुकंपा शुरू हो गयी। कारण कुछ भी रहा हो। चर्चा है कि इसी दौर में इनके रिश्ते कुछ ऐसे लोगों से मजबूत होना शुरू हो गये, जो इनके आर्थिक साम्राज्य के विस्तार में बडे मददगार साबित हुए। इस गंभीर आरोप की असलियत क्या है? इसका खुलासा करने के लिये जरूरी है कि मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ इस प्रकरण की सीबीआई जांच कराने के लिये खुद पहले करें।