तुम्हारी पलकों के पीछे
रह-रह सुलगते अंगार हैं
माना
आग के परदों के पीछे
वहाँ प्रकाश के और संसार हैं
मगर
परदा उठाओ मत
उस प्रकाश के पीछे फिर
राख के अम्बार हैं!
आग को न छेड़ो
सुलगना भी सुन्दर है
दबी भी
आग देर तक तपाती रहेगी.
(आग को
छुआ नहीं था न, इस की हसरत
दिनों तक सहलाती रहेगी)
लो-हो गयी मुलाकात
अब तुम्हारी राह उधर
मेरी इधर
न हुई सही बात
पर यह तो जान लिया
कि जलते तो जा रहे हैं अविराम
और यों चलते ही जा रहे हैं
नातमाम.