मुंशी प्रेमचंद जी के विषय में लिखना सूरज को दिया दिखाना होगा,अमूल रत्नों से परिपूर्ण जाज्वल्यमान वसुंधरा का आंचल कितना पवित्र और कितना महान है, यह किसी से छिपा नहीं है। जिस प्रकार यह हिरण्य गर्भा जननी अपने गर्भ में अनेक रत्नो और मणिमुक्ताओ को छुपाए बैठी है,।
उसी प्रकार इसने अपने गर्भ से अनेक ऐसे महापुरुषों को जन्म दिया जिन्होंने काल की परिभाषा ही बदल दी ऐसे एक दो नहीं अपितु इनकी श्रृंखला है।
महापुरुषों की इन स्वर्णिम पंक्तियों में एक नाम हिंदी साहित्य के विख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी का है। जिन्होंने अपनी लेखनी को अपना सिपाही बनाकर अनवरत कमजोर गरीब और पीड़ित ,शोषित वर्गों के लिए लड़ते रहे।
उस समय के समाज का जितना सजीव और मार्मिक वर्णन मुंशी प्रेमचंद जी ने किया वह शायद ही किसी कथाकार की लेखनी ने किया हो,,,
"प्रेमचंद की कहानियों में सेवासदन, गबन, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गोदान, रंगभूमि व निर्मला जैसे कई उपन्यास लोकप्रिय हैं। इसके अलावा कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा और बूढ़ी काकी जैसी 300 से अधिक कहानियां भी चर्चित है।
मुंशीजी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के नज़दीक लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद जी के बचपन का नाम "धनपत राय "और इनके पिता का नाम "अजायब राय "था और वे डाकखाने में मामूली नौकरी करते थे। "धनपत राय "जब सिर्फ आठ साल के थे तब मां का निधन हो गया। पिता ने दूसरा विवाह कर लिया लेकिन वे मां के प्यार और वात्सल्य से महरूम रहे।
इनकी रचनाओं को पढ़कर पाठक इनकी लेखनी में डूब जाता इनकी लेखनी के भाव के अनुरूप ही उसकी आंखों में आंसू दया या फिर जो भाव वो पैदा करना चाहते हैं ,आ जाते हैं।
मेरे विचार से प्रेमचंद जी के बारे में लिखना यानी सूरज को दिया दिखाना ही होगा, क्योंकि जिस कलम के सिपाही ने अपनी रचनाओं में सारे रस सारे भाव उड़ेल दिए हो उसके विषय में हम और आप क्या लिख सकते हैं??
""मुंशी प्रेमचंद जी "की जयंती के दिन हम सब इसके साहित्य के माध्यम से इन्हें चिरकाल तक याद करते रहेंगे,,,, मेरे अल्फ़ाज़,,💐 🙏