भारतवर्ष त्योहारों का देश है। और हम सब भारतीय प्रत्येक जीव जंतु पशु पक्षियों यहां तक कि वृक्षों में भी देवों का बास मानते हैं इसीलिए कभी हम पीपल की पूजा करते हैं तो कभी नीम की कभी बरगद की तो कभी बेल की इसी क्रम में नागों को भी हम देवता के रूप में पूजते हैं।
वैसे तो नागों का इतिहास बहुत पुराना है विष्णु पुराण में भी इसका जिक्र होता है और शिव पुराण में भी भगवान भोलेनाथ ने नागों को अपने गले में स्थान दिया तो भगवान विष्णु ने अपनी सैया के रूप में स्वीकार किया कृष्ण भगवान तो शेषनाग के फन पर नृत्य करते दिखे और जब मां यमुना को पार करते समय वासुदेव जी बारिश में भीग रहे थे तो इन्हीं नागों ने अपने फैन की छाया से भगवान कृष्ण की सुरक्षा की
नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को ऋषि आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन रोक दिया और नागों की रक्षा की.
इस कारण तक्षक नाग के बचने से नागों का वंश बच गया. आग के ताप से नाग को बचाने के लिए ऋषि ने उनपर कच्चा दूध डाल दिया था. तभी से नागपंचमी यह तिथि सावन की पंचमी मानी जाती है।
सांपों को शीतलता देने के लिए उन्होंने उनके शरीर पर दूध की धार डाली थी। तब नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी उनकी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा।
तभी से श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जातमनाई जाने लगी.पौराणिक काल से सर्पों की पूजन की परंपरा चली आ रही है. कहा जाता है कि,नागों की पूजा करने से सांपों का भय समाप्त हो जाता है. नाग पंचमी का पर्व नाग देवता को समर्पित करके मनाया जाता है।
. हर वर्ष नागपंचमी के पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मनाया जाता है. क्योंकि बरसात के महीनों में तमाम कीड़े मकोड़े सांप बिच्छू आदि भी घूमने लगते हैं।
तो इसी कारण से हमारे पूर्वज उनको दूध पिलाकर उनकी भूख को शांत करते थे इसलिए 1 दिन उसने के लिए नियुक्त कर दिया गया जिससे नाग पंचमी के दिन सभी सापो को हर घर में दूध पिला कर उनके भी मान को बढ़ाया जाए,,,,
मीनू की डायरी भाग दो 🙏