रामधारी सिंह दिनकर साहित्य के वह सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनकी कलम में दिनकर यानी सूर्य के समान चमक थी। उनकी कविताएं सिर्फ़ उनके समय का सूरज नहीं हैं बल्कि उसकी रौशनी से पीढ़ियां प्रकाशमान होती हैं। पढ़ें उनकी लिखी कविताओं में से चुनिंदा 5 प्रसिद्ध कविताएं
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती हैं।
राष्ट्रकवि’ के रूप में समादृत और लोकप्रिय रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय ज़िले के सिमरिया ग्राम में एक कृषक परिवार में हुआ।
बचपन संघर्षमय रहा जहाँ स्कूल जाने के लिए पैदल चल गंगा घाट जाना होता था, फिर गंगा के पार उतर पैदल चलना पड़ता था। पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद आजीविका के लिए पहले अध्यापक बने, फिर बिहार सरकार में सब-रजिस्टार की नौकरी की,,
अँग्रेज़ सरकार के युद्ध-प्रचार विभाग में रहे और उनके ख़िलाफ़ ही कविताएँ लिखते रहे। आज़ादी के बाद मुज़फ़्फ़रपुर कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष बनकर गए। 1952 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुन लिया गया जहाँ दो कार्यकालों तक उन्होंने संसद सदस्य के रूप में योगदान किया।
इसके उपरांत वह भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त किए गए और इसके एक वर्ष बाद ही भारत सरकार ने उन्हें अपना हिंदी सलाहकार नियुक्त कर पुनः दिल्ली बुला लिया।
ओज, विद्रोह, आक्रोश के साथ ही कोमल शृंगारिक भावनाओं के कवि दिनकर की काव्य-यात्रा की शुरुआत हाई स्कूल के दिनों से हुई जब उन्होंने रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा प्रकाशित ‘युवक’ पत्र में ‘अमिताभ’ नाम से अपनी रचनाएँ भेजनी शुरू की।
1928 में प्रकाशित ‘बारदोली-विजय’ संदेश उनका पहला काव्य-संग्रह था। उन्होंने मुक्तक-काव्य और प्रबंध-काव्य—दोनों की रचना की। मुक्तक-काव्यों में कुछ गीति-काव्य भी हैं।
कविताओं के अलावा उन्होंने निबंध, संस्मरण, आलोचना, डायरी, इतिहास आदि के रूप में विपुल गद्य लेखन भी किया।मुक्तक-काव्य: प्रणभंग, रेणुका, हुँकार, रसवंती, द्वंद्वगीत, सामधेनी, बापू, धूप-छाँह, इतिहास के आँसू, धूप और धुआँ, मिर्च का मज़ा, नीम के पत्ते, सूरज का ब्याह, नील-कुसुम, हारे को हरिनाम सहित दो दर्जन से अधिक संग्रह।
प्रबंध-काव्य: कुरुक्षेत्र (1946), रश्मिरथी (1951), उर्वशी (1961)
गद्य : मिट्टी की ओर, रेती के फूल, संस्कृति के चार अध्याय, उजली आग, वेणुवन, शुद्ध कविता की खोज, हे राम!, संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ, मेरी यात्राएँ, दिनकर की डायरी, विवाह की मुसीबतें सहित दो दर्जन से अधिक कृतियाँ।
अब दिनकर जी के विषय में कुछ भी लिखना स्वयं उन्हीं को दिया दिखाना होगा क्योंकि जिस दिनकर से सम्पूर्ण विश्व आलोकित है,उन पर कोई क्या लिखें मेरे अल्फ़ाज़ मीनू 🙏