नई दिल्ली : रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया से रघुराम राजन की छुट्टी होते नए गवर्नर उर्जित पटेल लगातार सरकार की हसरतों को पूरी कर रहे हैं। इसी कड़ी में ताज़ा उदाहरण डीमॉनेटाइजेशन (नोटबंदी) का रहा, जिसे पूर्व रघुराम राजन के रहते लागू नही किया जा सका था। जिस तरह आबीआई अब सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है उससे इस बात की सम्भावनाये बहुत अधिक हैं कि आरबीआई मोदी सरकार के एक और क्रांतिकारी फैसले को मान सकता है। यह कदम भारत में इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली का है। हालाँकि नोटबंदी के फैसले के बाद चर्चाएं यह भी होने लगी हैं कि जिस तरह केंद्र सरकार के फैसलों पर नए आरबीआई गवर्नर राजी हो रहे हैं उसने आरबीआई के स्वायत्त तरीके से काम करने के सिद्धान्तों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
बहरहाल ताज़ा मसला भारत में 'इस्लामिक बैंक' बनाने का है। इसको लेकर कहा जा रहा है कि आरबीआई और केंद्र सरकार बैंकों में एक इस्लामिक विंडो बनाकर इसे लागू कर सकते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि वर्तमान केंद्र सरकार समाज के सभी वर्गों के लिए समान कानून की कवायद करती रही है और 'कॉमन सिविल कॉड' भी लागू करना चाहती है। वहीँ दूसरी ओर सरकार अब भारत में धर्म के आधार बैंकिंग प्रणाली चलाएगी तो यह एक ही सरकार के दो चेहरे होंगे।
क्या है इस्लामिक बैंक ?
इस्लाम में तहत शरिया में व्याज लेना हराम है, यानी भारतीय बैंकिंग प्रणाली में इस्लाम को मानने वाले लोगों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो इस धार्मिक मजूबरी के कारण बैंकिंग व्यवस्था से दूर रहता आया है। ख़बरों के अनुसार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों में ‘इस्लामिक विंडो’ खोले जाने का प्रस्ताव दिया है। ताकि देश में शरिया के अनुरुप या ब्याज-मुक्त बैंकिंग की ‘सतत’ शुरुआत की जा सके। इससे इससे सरकार को लाभ यह होगा कि बैंकों में पैसा आएगा और सरकार को ब्याज भी नही देना पड़ेगा।
बैंकिंग प्रणाली में धार्मिक तुष्टिकरण को बढ़ावा क्यों ?
पाकिस्तानी लेख क तारेक फतह कहते हैं कि इस घोषणा के पीछे या तो नासमझी है अथवा तुष्टिकरण है। वो कहते हैं कि ''इससे यह बात उजागर हुई कि भारत के इस्लामवादियों ने आरबीआई के उच्चतर स्तर तक पहुंच बना ली है और उन्होंने भारतीय मुस्लिम समुदाय में सर्वाधिक सुरक्षित स्थान पर भी अपनी पहुंच बनाने में सफलता पाई है। एक ओर भारत कैश अर्थव्यवस्था को हतोत्साहित करने और अर्थव्यवस्था को डिजीटाइज करने के कदम बढ़ा रहा है और देश को 21वीं सदी में जाने की तैयारी कर रहा है।
वहीं दूसरी ओर मुस्लिम भारतीयों को उनके मध्यकालीन अतीत की ओर ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। भारत में जब आरबीआई के गवर्नर गवर्नर के पद पर डी सुब्बाराव थे तब भी ये बात उठी थी लेकिन उन्होंने इससे इनकार किया और कहा कि भारत में बैंकिंग के नियम सूद-रहित बैंकिंग की इजाजत नहीं देते हैं।
इस्लामिक बैंक का पहले होता रहा विरोध
यूपीए सरकार के अंतिम दिनों में स्थिति थोड़ी बदलने लगी और रिजर्व बैंक ने केरल की एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी को अपने कामकाज को शरीया अनुकूल ढांचे में करने की इजाजत दी। लेकिन केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका के जरिए इस वित्तीय कंपनी के कामकाज को चुनौती दी गई। याचिका में कहा गया था कि ‘सरकारी सहभागिता से बनी एक वित्तीय सेवा कंपनी अगर किसी विशिष्ट धर्म के ग्रंथों का अनुसरण कर रही है तो इसका मतलब यही है कि सरकार विशिष्ट धर्म के प्रति पक्षपाती है।