नई दिल्ली: बैंक के लिए ग्राहकों को दिए गए कर्ज़ की वसूली करना मुश्किल होता जा रहा है। बैंकों के एनपीए या फिर बैड लोन्स बीते साल (दिसंबर 2016) के लिए अब 56.4 फीसद पर आ गए हैं। सरकारी और प्राइवेट बैंकों के बैड लोन्स अब मिलकल लगभग 6 लाख करोड़ रुपये तक हो गए हैं (आंकड़े केयर रेटिंग्स द्वारा)। वहीं माना यह भी जा रहा है कि स्थिति अभी और खराब हो सकती है।
ख़बरों के मुताबिक़ इसकी वजह नोटबंदी भी बताई जा रही है। ऐसा इसलिए माना जा कहा है क्योंकि नोटबंदी ने छोटे-मंझोले कारोबारियों की कमर तोड़ दी, जिसकी वजह से अब उन्हें अपने कर्ज चुकाने में परेशानियां होंगी। बीते दो सालों में बैड लोन्स अब 135 फीसद तक पहुंच गए हैं। गौरतलब है कि आरबीआई ने बैंकों के एनपीए कम करने को लेकर कई तरह की योजनाएं भी जारी की थी लेकिन इसके बाद भी पीएसयू बैंकों के बैड लोन्स 11 फीसद पर बरकार है। स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। वहीं दिसंबर 2016 के आंकड़ों की बात करें तो देश के सरकारी और प्राइवेट बैंकों के एनपीए मिलाकर 697,409 करोड़ रुपये के हैं।
नेशनलाइज्ड बैंक के पूर्व चेयरमैन का कहना है कि RBI ने बैंकों को NPA- बैड लोन्स को लेकर अपनी बैलेंसशीट्स मार्च 2017 तक खत्म करने का समय दिया था लेकिन शायद ही अब बैंक इस समय सीमा के अंदर अपना काम पूरा कर सकें। उन्होंने आगे यह भी कहा कि नोटबंदी से बैकों पर बैड लोन्स को रिकवर करने का तनाव भी बढ़ गया है। वहीं एसबीआई के एनपीए की बात करें तो 2016 के सितंबर क्वार्टर में ये 1.06 लाख करोड़ का था जो बढ़कर 1.08 लाख करोड़ हो गया था। गौरतलब है कि देश के 5 नामी बैंकों के एनपीए का रेशो 15 फीसद से ज्यादा हो गया है जो किसी भी लिहाज से अच्छा नहीं। इन 5 बैकों में इंजियन आईडीबीआई, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, ओवरसीज बैंक, यूको बैंक और यूनाइटिड बैंक है।