कुछ ही देर में कमलनयनी ने खाना तैयार कर लिया और रणजीत से बोली___
चलो खाना तैयार है!!
जी नहीं! मैं अकेले थोड़े ही खाऊँगा,तुम भी खाओ तभी अच्छा लगेगा,रणजीत बोला।।
पहले तुम खा लो,बाद में मैं खा लूँगीं,कमल बोली।।
ना जी ना! ऐसा कहीं होता है कि बनाने वाला बैठा रहे और जिसने कुछ ना किया हो वो खा ले,रणजीत बोला।।
अरे,तुम मेरे मेहमान हो तो पहले तुम खाओ,कमल बोली।।
ना जी !कहा जाए तो तुम मेरी मेहमान हो,ये घर मेरे रिश्तेदार का है,रणजीत बोला।।
अच्छा,ठीक है,मै ही मेहमान हूँ,लो अब तो खा लो,कमल बोली।।
ना जी! संग में खाना होगा,तभी मै खाऊँगा,रणजीत बोला।।
अच्छा,ठीक है बाबा! पहले आप....पहले आप के चक्कर में खाना भी ठंडा हो जाएगा,चलो मैं भी अपने लिए थाली परोसती हूँ,कमल बोली।।
ये हुई ना बात! रणजीत बोला।।
रणजीत का ऐसा अपनापन देखकर कमलनयनी की आँखें भर आईं,वो आज अपनी जिन्दगी में ऐसा अपनापन पहली बार महसूस कर रही थीं,कमल ने अपनी आँखों के आँसू झट से पोछ लिए कि रणजीत ना देख पाएं लेकिन रणजीत से कमल की आँखों के आँसू छुप ना सकें और उसने उसे टोकते हुए पूछा____
अब क्या हुआ? देवी जी! आँखों से गंगा जमुना क्यों बहने लगी? रणजीत ने पूछा।।
कभी किसी ने इतना अपनापन नहीं जताया ना! तो मन भर आया और कुछ नहीं,कमल बोली।।
मुझे सब पता है तुम्हारे बारें में,गाँववालों से सुना है कि तुम पहले नाचने वाली थी और फूफा जी तुम्हें खरीदकर लाए हैं,मुझे तुमसे पूरी हमदर्दी है,मैं समझ सकता हूँ कि शायद ही जबसे तुमने होश सम्भाला हो तो किसी ने भी बिना अपने मतलब के तुमसे अपनापन जताया हो,रणजीत बोला।।
तुम्हें सब पता है,मेरे बारें में फिर भी तुम मेरे हाथ का पकाया हुआ खाना खाने के लिए तैयार हो,कमल ने पूछा।।
वो तुम्हारा अतीत था और कोई भी लड़की अपनी मर्जी से अपनी इज्जत के साथ खिलवाड़ नहीं करती ,रही होंगीं तुम्हारी कुछ मजबूरियाँ इसलिए शायद तुम्हें उस काम को अपना पेशा बनाना पड़ा,रणजीत बोला।।
तुम इतना अच्छा सोचते हो मेरे बारें में,ये सुनकर अच्छा लगा,काश तुम्हारी तरह और भी लोंग मुझे समझ पातें,कमल बोली।।
इसका मतलब़ है कि तुम मुझे अपना मित्र बनाने के लिए राज़ी हो,रणजीत ने पूछा।।
ये कोई पूछने की बात है,जिस से खुल कर मन की बात कह सको,वही सच्चा मित्र होता है,जो कि तुम हो,कमल बोली।।
मोहतरमा! अब ऐसे ही बातें ही करती रहोगी कि खाना भी खिलाओगी,पेट में चूहे दौड़ रहे हैं,रणजीत बोला।।
अरे,हाँ! ये लो और खाओं,कमल ने रणजीत की ओर परसी हुई थाली बढ़ाते हुए कहा।।
दोनों ने खाना खाया और हँसी खुशी रणजीत अपने झोपड़े में चला गया और इधर कमल सारी रात सो ना सकीं,उसे रह रहकर बस रणजीत का ही ख्याल आ रहा था,शायद वो उसे पसंद करने लगी थी।।
अब कभीकभार रणजीत मोतीमहल आ ही जाता कमल से मिलने,रणजीत के आने पर कमल को अच्छा लगता लेकिन रणजीत ने कमल के मन के भावों को नहीं समझा और समझता भी कैसे? वो तो फाल्गुनी को चाहता था।।
ऐसे ही दिन बीत रहे थें,अब फाल्गुनी भी ठीक हो गई थी,अब रणजीत कमल के पास कम जा पाता था लेकिन कभी कभी समय निकाल ही लेता कमल से मिलने के लिए___
एक रोज़ वो कमल से मिलने मोतीमहल आया,दोपहर के खाने का समय था,कमल खाना ही खाने जा रही थी कि रणजीत आ पहुँचा और उसने आते ही पूछा___
क्या कर रही थी?
कुछ नहीं,बस खाना खाने जा रही थी,कमल बोली।।
तो फिर मैं गलत समय पर आ धमका,रणजीत बोला।।
अरे,नहीं! ऐसा क्यों सोचते हो,जो भी खाने में है मिल बाँटकर खा लेगें,आखिर हम मित्र हैं,कमल बोली।।
तो चलो फिर देर किस बात की,रणजीत बोला।।
दोनों भीतर चले गए लेकिन कमल किवाड़ बंद करना भूल गई,वो सिर्फ़ किवाड़ अटका कर चली गई और दोनों के लिए थालियाँ परोसी और खाने बैठ गए,साथ में हँसी ठिठोली भी चल रही थी,दोनों जोर जोर से हँस रहे थे,तभी मोतीमहल का किवाड़ खुला और किसी ने मोतीमहल में प्रवेश किया।।
उस शख्स को देखकर दोनों चौंक पड़े वो कोई और नहीं गजेन्द्र सिंह था,दोनों को साथ साथ खाना खाता हुआ देखकर गजेन्द्र का खून खौल गया।।
रणजीत भी झेंप सा गया और गजेन्द्र को प्रणाम बोलकर जाने लगा तभी गजेन्द्र गुस्से से बोला___
कहाँ जा रहे हो? खाना तो खत्म करके जाते बरख़ुरदार!
जी! मैं खा चुका,अब जाऊँगा और इतना कहकर रणजीत चुपचाप खिसक गया और इधर कमलनयनी की शामत आ गई,रणजीत के जाते ही गजेन्द्र बोला___
अच्छा! तो ये गुलछर्रे उड़ाए जा रहे हैं,जिस थाली मे खाती हो उसी मे छेद करती हो।।
जी,क्या मतलब़ है आपका? मैं कोई आपकी पत्नी नहीं हूँ जो आप मुझसे ऐसी बातें कर रहें हैं,कमल बोली।।
हाँ...हाँ....क्यों नहीं? जब जवान लड़को के साथ अय्याशी हो रही है तो मैं तुम्हें क्यों अच्छा लगूँगा भला,मैं भूल कैसे गया कि तुम हो तो आखिर एक नाचने वाली,जिसे रोज रोज नए नए शरीर की गंध से सरोकार हो वो भला एक की कैसे बनकर रह सकती है,गजेन्द्र बोला।।
आप कुछ ज्यादा ही बोल रहें हैं,मैं आपकी कोई गुलाम तो नहीं हूँ जो आप मेरे लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं,कमलनयनी बोली।।
हाँ...हाँ...आई बड़ी दूध की धुली,सौ सौ चूहें खा के बिल्ली हज़ को चली ,ये सती सावित्री वाला नाटक मेरे सामने मत दिखाओं,गजेन्द्र बोला।।
आप जैसे चरित्रहीन क्या जानें,नारी की पवित्रता,आप तो उनमें से से जिन्हें औरत की आबरू से कोई सरोकार नहीं होता बस औरत के शरीर से मतलब़ होता है,कमल बोली ।।
चुप रहो,मैं तुम जैसों को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ,अभी तो जा रहा हूँ लेकिन रणजीत को फिर से मोतीमहल आते जाते देख लिया था तो मुझसे बुरा कोई ना होगा और इतना कहकर गजेन्द्र मोतीमहल से चला गया।।
इधर फाल्गुनी और रणजीत के प्रेम को माली काका ने भी भाँप लिया और उन्होंने एक दिन रणजीतसे पूछ ही लिया____
क्यों बेटा! अगर फाल्गुनी का हाथ थामा है तो उम्र भर निभाओगे ना! ऐसा ना हो तुम उसके दिल के साथ खिलवाड़ करके चले जाओ और ये बूढ़ा बाप इसी कष्ट से मर जाए क्योंकि तुम तो बड़े घर के हो बेटा! तुमहारा कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो जाएंगी,हम गरीबों के पास सिवाय इज्जत के कुछ नहीं होता।।
नहीं,बाबा! ऐसा कुछ नहीं होगा,मैं सारे समाज से लड़कर भी फाल्गुनी से ब्याह करूँगा,उसका हाथ थामूँगा,बस आप मुझ पर भरोसा रखें,बस फसल आने की देर हैं,फसल के आने पर मैं फाल्गुनी से ब्याह कर लूँगा,रणजीत बोला।।
बस,बेटा! मुझे तुमसे यही आशा थी,माली काका बोले।।
इधर कमल अब पूरी तरह से रणजीत को चाहने लगी थी,रणजीत उसके घर भी आ ही जाता कभी चाय पीने तो कभी खाना खाने,रणजीत तो कमल को केवल अपनी मित्र समझता था लेकिन कमल के लिए रणजीत कुछ और ही था और इस बात की ख़बर गजेन्द्र के ख़बरी गजेन्द्र को पहुँचा देते कि रणजीत ने अब भी कमलनयनी से मिलना नहीं छोड़ा है और उधर उसने माली की बेटी को भी फाँस रखा है।।
गजेन्द्र से अब ये सब बरदाश्त नहीं हो रहा था,उसे लग रहा था कि अगर कमल उसकी नहीं हो पाएंगी तो वो उसे किसी और की भी नहीं होने देगा लेकिन अभी खेंतों में बहुत काम था,सारी फसल खलिहानों में पड़ी थी इसलिए वो कमल के पास जा नहीं सकता था।।
इधर फाल्गुनी ने भी सोचा कि अब वक्त आ गया कि मैं कमल जीजी से बता देती हूँ कि रणजीत मुझसे प्यार करता है और मुझसे ब्याह करने वाला है,और उसने ये बात रामू से कहने के लिए कही,दोनों मोतीमहल पहुँचे ____
तुम्हें पता है कमल जीजी! कि क्या होने वाला है? रामू ने कहा।।
अच्छा जी! तो क्या होने वाला,जरा हम तो सुनें,कमल बोली।।
फाल्गुनी जीजी का ब्याह होने वाला है,रामू बोला।।
अच्छा,जी! तो ब्याह किससे होने वाला है,कौन है वो राजकुमार,जरा हमें भी तो बताओ,मेरे नन्हे मुन्ने भइया! कमल ने पूछा।।
अच्छा तो बताएं देता हूँ,बोलो लड्डू दोगी ना! रामू बोला।।
हाँ...हाँ...पक्का,अब जल्दी बोल कौन है वो,कमल ने पूछा।।
और इधर फाल्गुनी खड़े खड़े शरमा रही थी___
वो हैं हमारे रणजीत भइया! रामू बोला।।
और इतना सुनकर कमल का जी धक्क से उड़ गया लेकिन फिर भी खुद को सम्भालते हुए बोली____
अरे वाह!....ये तो बड़ी खुशी की बात है,अब मेरी फाल्गुनी दुल्हन बनेगी,कितना अच्छा संजोग है,ये सुनकर मुझे बहुत खुशी हो रही हैं,कमल बोली।।
हाँ..जीजी! वो रणजीत ही है,मैने उस दिन नहीं बता पाई थी तुम्हें,सोचा वक्त आने पर बता दूँगी,फाल्गुनी बोली।।
तो फिर ब्याह कब है?कमल ने पूछा।।
बस,दो चार दिन में ही ब्याह है,रणजीत ने अपने घरवालों को बताया था लेकिन उसके घरवाले मुझे अपनी बहु बनाने को तैयार नहीं हैं,लेकिन रणजीत बोला मै तो केवल फाल्गुनी से ही ब्याह करूँगा,इसलिए वो अपने घरवालों के खिलाफ जाकर मुझसे ब्याह कर रहा है,फाल्गुनी बोली।।
ये तो कितनी अच्छी बात है कि वो तुझे इतना चाहता है,उसका साथ कभी मत छोड़ना,कमल बोली।।
हाँ कमल जीजी! तुम्हारी बात हमेशा गाँठ बाँधकर रखूँगी,फाल्गुनी बोली।।
मेरा लड्डू कहाँ है? रामू ने पूछा।।
अरे भाई! मैं तो भूल ही गई,मेरे छोटे भइया! लो खाओं लड्डू,कमल ने रामू को लड्डू देते हुए कहा।।
और उसी दिन शाम को रणजीत भी ये खुशखबरी कमल को सुनाने आया।।
कमल ने कहा कि___
बधाई हो मित्र! जो तुम्हें फाल्गुनी जैसी जीवनसाथी मिली।।
लेकिन तुम्हें ब्याह में जरूर आना होगा,रणजीत बोला।।
मैं आऊँगी तो समाज क्या कहेगा,कमल बोली।।
कोई कुछ नहीं कहेगा,मैं सबसे निपट लूँगा,रणजीत बोला।।
किस किस का मुँह बंद करते फिरोगे,रहने दो मैं यहीं से आशीर्वाद दे दूँगी,कमल बोली।।
मैं कुछ नहीं सुनना चाहता,तुम्हें आना ही होगा,रणजीत बोला।।
अच्छा! ठीक है बाबा! कोशिश करूँगी आने की,कमल बोली।।
लेकिन मेरे घरवाले बहुत खिलाफ हैं और फूफाजी जी तो और भी ज्यादा,ना जाने वो कौन सा क़दम उठाएं,रणजीत बोला।।
कहना क्या चाहते हो रणजीत! कमल ने पूछा।।
ऐसा ना हो कि वो मेरा और फाल्गुनी का ब्याह रूकवाने की कोशिश करें,मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ वो किसी भी हद तक जा सकते हैं,रणजीत बोला।।
ऐसा मत सोचो,ब्याह का समय है शुभ शुभ बोलो,कमल बोली।।
और थोड़ी देर कमल से बातें करके रणजीत चला गया और ये बात फिर किसी खबरी ने गजेन्द्र तक पहुँचा दी।।
अब तो गजेन्द्र ने ठान लिया कि वो रणजीत को नहीं छोड़ेगा।।
दो चार दिन बाद ब्याह की रात भी आ पहुँची और कमल ना गई ब्याह में,लेकिन उस रात क्या होने वाला था ये किसी को भी ख़बर ना थी,रात में सब ब्याह की तैयारियाँ हो रही थीं,कन्यादान बस होने ही वाला था कि गजेन्द्र सिंह अपने लठैतों को लेकर आ पहुँचा और लठैतों ने रणजीत को घसीटकर उस पर लाठियों के वार पर वार शुरू कर दिए,उसे बचाने के लिए फाल्गुनी भी बीच में आ पड़ी और उस पर भी लाठियाँ पड़ने लगी,बचाने के लिए माली काका भी दौड़े लेकिन लोगों ने उन्हें रोक लिया।।
गजेन्द्र ने वहाँ खड़े लोग से कहा कि खबरदार जो कोई भी आगें आया उसका भी यही हाल होगा,डर के मारे कोई भी कुछ ना बोला।।
और उस रात फाल्गुनी और रणजीत की लाठियाँ खाते खाते जान चली गई,रामू भागकर कमल को बुलाने गया लेकिन तब तक दोनों लहुलुहान होकर प्राण त्याग चुके थे।।
कमल ने देखा तो गुस्से से पागल हो उठी और बोली___
मैं तुम्हें नहीं छोड़ूगी,तूने इन मासूमों की जान लेकर अच्छा नहीं किया।।
अब तो तू भी नहीं बच सकती मेरे चंगुल से,अब तक तो मैं तुझे छोड़ता आया था लेकिन आज रात नहीं,गजेन्द्र बोला।।
तू मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा गजेन्द्र !और इतना कहकर भागते भागते कमल मोतीमहल के पास वाले कुएँ में कूद गई।।
गजेन्द्र ने पुलिस से बचने के लिए रणजीत और फाल्गुनी की लाशों को मोतीमहल में कहीं गड़वा दिया और खुद भाग खड़ा हुआ,वो परिवार सहित अपना गाँव छोड़कर कहीं और जा रहा था कि उसकी रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई,पता चला कि परिवार का कोई भी सदस्य बच ना पाया,जब गजेन्द्र को पिछले जन्म मे ही उसके कर्मों की सजा मिल चुकी है तो इस जन्म मे नहीं मिलनी चाहिए,इस जनम में रणजीत ने सत्यसुन्दर बनकर जन्म लिया और गजेन्द्र ने मदन बनकर लेकिन इस बार दोनों गहरे मित्र बने,ये बहुत ही इत्तेफाक की बात है।।
माली काका और गाँव के लोगों ने रणजीत की लाश को तो मोतीमहल से ढूढ़ लिया और उसका विधिवत अन्तिम संस्कार भी कर दिया लेकिन फाल्गुनी की लाश उन्हें कहीं ना मिली,इसलिए फाल्गुनी की आत्मा तब से रणजीत के लिए भटक रही है और कमलनयनी की आत्मा गजेन्द्र से बदला लेना चाहती है और अगर इन दोनों के शरीरों का अन्तिम संस्कार हो जाए तो दोनों को मुक्ति मिल जाएगी,राम खिलावन बोला।।
तभी सत्यसुन्दर ने रामखिलावन से पूछा___
और उस माली काका और रामू का क्या हुआ?
माली काका तो कुछ साल जिए और स्वर्ग सिधार गए और वो रामू मै ही हूँ,रामखिलावन बोला।।
अच्छा तो तुम हो वो रामू इसलिए तुमने मुझे पहचान लिया,मैं तुमको बता सकता हूँ कि फाल्गुनी का शरीर कहाँ हैं,मुझे एक बार वो मोतीमहल ले गई थी,सत्यसुन्दर बोला।।
ठीक है तो कल ही दोनों के अन्तिम संस्कार की विधि पूरी करते हैं,कुएँ मे तो वैसे भी कम ही पानी है,कंकाल ढूंढ़ने मे दिक्कत नहीं होगी,रामखिलावन बोला।।
लेकिन आप लोग अब तक कमल का अन्तिम संस्कार तो कर ही सकते थे ना! मदन ने पूछा।।
हाँ,लेकिन मैं अकेले ये नहीं कर सकता था क्योंकि गाँव वाले बहुत डरते थे,रामखिलावन बोला।।
और दूसरे ही दिन पुलिस को सूचित करके लाशों को ढू़ढ़ा गया,मोतीमहल के कच्चे आँगन में फाल्गुनी का कंकाल मिल गया और कुएँ से कमलनयनी का कंकाल,दोनों का रामखिलावन ने विधिवत अन्तिम संस्कार कर दिया,उसके बाद मदन और सत्यसुन्दर डाक बँगले में रहें लेकिन दोनों में से उन्हें फिर कोई ना दिखा।।
समाप्त___
सरोज वर्मा....